दिमित्री मेंडेलीव का जीवन परिचय और दिमित्री मेंडेलीव की खोज Naeem Ahmad, June 8, 2022 आपने कभी जोड़-तोड़ (जिग-सॉ) का खेल देखा है, और उसके टुकड़ों को जोड़कर कुछ सही बनाने की कोशिश की है ? शुरू शुरू में सभी कुछ बेसिर पैर नजर आता है।सेकड़ों टुकड़े मुख्तलिफ शक्लों, रंगों, मापों के टुकड़े लेकिन कुछ गौर के साथ चीज़ को कुछ पढ़ने की करे तो मसला अपने आप हल होने लग जाता है। वही टुकड़े एक-एक करके अपनी-अपनी जगह भरने लग जाते हैं ओर चित्र, स्पष्ट होते-होते, पूरा बन जाता है। जिग-सॉ पजल शुरू करने से पहले ही हमें मालूम होता है कि टुकड़ों का कुछ सिर पैर है कि उन्हें फिट करते-करते हम तस्वीर को पूरा कर ही लेंगे। 1869 तक इसी तरह की कुछ जोड़-तोड़ की चीज़ें रसायन में इकट्ठी हो चुकी थी। 63 तत्त्वों की खोज हो चुकी थी। रासायनिकों को अब इन तत्त्वों में कहीं-कहीं कुछ समानताएं नज़र आने लगी थीं। उदाहरणतः सोडियम और पोटेशियम दोनों मुलायम होते हैं, क्लोरीन, ब्रोमीन और आयोडीन तीनों रंगीन भी होते हैं, और धातुओं को खा जाने वाले द्रव्य होते हैं। जिग-साँ के चित्र में तो कुछ पूर्व-विनिश्चितता होती है, किन्तु वैज्ञानिकों को अभी यह निश्चय नहीं था कि इन तत्त्वों में कुछ परस्पर क्रमिकता है, उन्हें यह भी मालूम नहीं था कि इस सम्बन्ध में परीक्षा के लिए किन अंगों की छानबीन होनी चाहिए, और अभी तो चित्र के सभी अंश भी उपलब्ध नहीं थे। फिर भी समस्या को सुलझाना निहायत ज़रूरी था। हज़ारों टुकड़ों में बिखरा पड़ा यह रसायन-सम्बन्धी ज्ञान-विज्ञान संकलित होकर किसी क्रम-बन्ध में प्रस्तुत होना चाहिए। अनेकों रसायनशास्त्री इस प्रश्न से जूझ चुके थे, किन्तु जहां सभी असफल रहे, एक रूसी वैज्ञानिक ने वही कुछ व्यवस्था सिद्ध कर दिखाई। दिमित्री मेंडेलीव ने इन रासायनिक तत्त्वों को उनके अणु भारो के क्रम मे रखकर विश्व को एक तत्त्वानुक्रमणी–पीरियाडिक टेबल ऑफ एलिमेण्ट्स प्रस्तुत कर दी। दिमित्री मेंडेलीव का जीवन परिचय दिमित्री मेंडेलीव की गणना सोवियत यूनियन के गण्यमान्य वैज्ञानिकों में होती है यद्यपि उसका अनुसंधान काल जार-युग के रूस में पडता है। दिमित्री मेंडेलीव का जन्म 1 फरवरी, 1834 को पूर्वी साइबेरिया के एक वीरान इलाके तोबोल्स्क मे हुआ था। वह एक स्थानीय हाईस्कूल के डायरेक्टर की सत्रहवी तथा कनिष्ठ संतान था। तोबोल्स्क मे पहले-पहल आकर बसे परिवारों में एक परिवार के दादा ने यहां आकर सबसे पहला प्रिंटिंग प्रेस चालू किया था और उसके बाद साइबेरिया भर में सबसे पहला अखबार चलाया था। मां अपने युग की एक मानी हुई सुन्दरी थी और उसका तार्तार परिवार भी तोबोल्स्क के पहले बाशिन्दों में ही एक था। इस तार्तार परिवार ने ही साइबेरिया में सबसे पहली शीशे की फैक्टरी चालू की थी। किन्तु दिमित्री के पैदा होने के कुछ ही दिन बाद बाप अंधा हो गया और उसकी नौकरी जाती रही। मां ने अपने मायके की वह बन्द चली आ रही फेक्टरी फिर से खोल दी कि घर का गुजर कुछ तो चल सके। तोबोल्स्क एक ऐसा केन्द्र था जहां पर रूस के राजनीतिक बन्दियों को लाया जाता था और दिमित्री की एक बहिन ने कभी दिसम्बर 1925 की क्रांति के किसी ऐसे ही कैदी से शादी की थी। यह देश-निर्वासित पढा-लिखा बन्दी ही था जिसने दिमित्री को प्रकृति-विज्ञान मे प्रथम दीक्षा दी थी। गिलास फेक्टरी मे आग लग गई और दिमित्री मेंडेलीव की मां ने फैसला कर लिया कि बेटे के पढाई के शौक को पूरा करने के लिए अब परिवार को मास्को चल देना चाहिए। उस वक्त दिमित्री मेंडेलीव की आयु 17 वर्ष थी। उसे सिर्फ साइबेरिया की भाषा ही आती थी। विश्वविद्यालय में दाखिला नही मिल सका। किन्तु वह एक पक्के इरादे की औरत थी। पीट्सबर्ग चल दी, जहां रूसी भाषा सीख कर बच्चा एक ऐसे स्कूल में दाखिल हो गया जहा हाईस्कूल के लिए टीचर्स तैयार किए जाते थे। यहां उसके विशेष विषय थे– गणित, भौतिकी, तथा रसायन। साहित्य और विदेशी भाषाओं में मेंडेलीव की तनिक भी रुचि नही थी। फिर भी स्नातक परीक्षा में वह अपनी श्रेणी में प्रथम ही रहा था। दिमित्री मेंडेलीव उसने सेहत कोई बहुत अच्छी नही पाई थी। फेफड़ों में हमेशा कुछ न कुछ तकलीफ और मां की मौत ने उसके हौसले को बिलकुल पस्त कर दिया। डाक्टरों ने फतवा दे दिया कि छह महीने से ज्यादा नही जी सकता, सो वह उठकर क्रीमिया के कुछ गरम मौसम में आ गया और वहां भी एक स्कूल में विज्ञान पढाने के लिए उसे एक नौकरी मिल गई। तभी क्रीमिया की लडाई छिड़ गई और वह वहां से उठकर पहले ओडेसा और फिर सेंट पीटर्सबर्ग आ गया। विश्वविद्यालय ने ही खुद उसे अनुमति दे दी कि एक प्राइवेट डोसेंट की तरह घर में विद्यार्थियों को पढ़ा सकता है और उनकी आई फीस का कुछ मुकर्र हिस्सा अपने लिए रख सकता है। रूस में उन दिनो विज्ञान में उच्चतर अध्ययन के लिए उपयुक्त व्यवस्था कोई थी नही, उसने सरकार से इजाजत ले ली कि वह फ्रांस और जर्मनी में जाकर अनुसंधान आदि कर सकता है। पेरिस में वह एक रसायन परीक्षणकर्ता हेनरी रैनो का सहकारी था, तो हाइडलबर्ग में आकर उसने अपनी ही एक छोटी-सी परीक्षणशाला खोल ली। वहां उसे प्रसिद्ध बर्नर के आविष्कर्ता बुन्सेन के सम्पर्क में आने तथा उसके साथ मिलकर काम करने का अवसर मिला, और गुस्ताफ किर्चहाफ के साथ भी। तीनों मिलकर स्पेक्ट्रोस्कोप ईजाद करने में लगे हुए थे। दिमित्री मेंडेलीव की खोज स्पेक्ट्रोस्कोप– प्रकाश की किरण की आन्तर रचना जानने के लिए एक उपकरण है, जिसकी उपयोगिता रासायनिक विश्लेषणों में भी कुछ कम नहीं होती। जर्मनी में पढ़ाई करते हुए मेंडेलीव कार्ल्सरूहे की कांग्रेस में भी शामिल हुआ था जहां कैनीज्रारों ने ऐंवोगेड्रो के कण-सिद्धान्त के हक में अपनी ऐतिहासिक अपील की। कैनीज्रारों की ऐंटॉमिक टेबल का उपयोग भी पीछे चलकर मेंडेलीव ने अपनी ‘पीरियॉडिक टेबल ऑफ एलिमेंट्स’ तैयार करते हुए किया था। मेंडेलीव पीटर्सबर्ग लौट आया और शादी करके बस गया। उसने 60 दिन में ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री की एक पाठ्य पुस्तक भी लिख डाली। रसायन में उसने डाक्टरेट भी प्राप्त कर ली उसका विषय था, ऑलकोहल तथा जल का परस्पर-मिश्रण। 1865 में जब मेंडेलीव अभी 31 वर्ष का ही था, उसकी वैज्ञानिक प्रतिभा तथा अध्ययन-कार्य के सम्मान में पीटर्सबर्ग के अधिकारियों ने उसे प्रोफेसरशिप के पूर्ण अधिकार दे दिए। क्लास रूम हमेशा भरे होते। भारी प्रभावशाली देह, और नीली-नीली अन्तर प्रवेश करती सी आंखें, बिखरे बाल, कुछ अजीब-सा किन्तु आकर्षक व्यक्तित्व। 1869 में रासायनिक आधार के संग्रह तथा अन्वेषण के अनन्तर अब दिमित्री मेंडेलीव इस स्थिति में था कि तत्त्वों में कुछ क्रम वह विनिश्चित कर सके। तब 63 तत्त्व मिल चुके थे जिनकी विविध भौतिक प्रवृत्तियां थी। कुछ हलकी किस्म की धातुएं तो कुछ भारी, कुछ सामान्य अवस्था में द्रव-सी तो कभी स्थूल भी, कुछ हलकी गैसे तो कुछ भारी। कुछ इतनी अधिक क्रियाशील थी कि बिना किसी प्रकार की सुरक्षा का प्रबन्ध किए उन्हें प्रयोग में लाना खतरे से खाली नही, और दूसरी कुछ ऐसी कि सालो-साल पडी रहे और उनमें कोई भी फर्क न आए। मेंडेलीव को मालूम था कि उसके सामने प्रश्न इस तत्त्वों में कुछ परस्पर क्रम संगति बिठाने का था। मूल में ही कुछ परस्पर सम्बन्ध होना चाहिए। बढते अणु-भार के अनुसार उन्हे क्रम में बिठाकर देखा गया कि दोनों सिरों पर क्रमश हाइडोजन और यूरेनियम ही फिट बैठते है। अब मेंडेलीव ने देखा कि यदि इन्ही 63 तत्त्वों को उनके इस अणु-भार क्रम में रखने पर यदि अब उनके 7 वर्ग बना दिए जाए तो उनकी भौतिक एवं रासायनिक वत्तियो में कुछ अद्भुत सगति-सी आ जाती है। हर सात तत्त्व के पदचात फिर वही विशेषताएं आवृत्त होकर आ जाती है। चित्र पर एक निगाह डाली नही कि वैज्ञानिक किसी भी तत्त्व के बारे मे प्रस्तुत क्रम मे उसके स्थान को देख कर बतला सकता है कि अमृक तत्त्व की रासायनिक प्रवृत्ति कैसी होनी चाहिए। इस प्रकार दिमित्री मेंडेलीव ने रसायन की ‘जोड-तोड’ की समस्या को सुलझा लिया था हालाकि पूर्ण-चित्र के तब सिर्फ दो-तिहाई अंश ही वैज्ञानिको के हाथ में थे। और अब, एक और प्रश्न कि क्या इस तत्त्व-चित्र के आधार अनुपलब्ध तत्त्वों के बारे में भी कुछ आभास नही दिया जा सकता अनेको अनुपलब्ध तत्त्वों के अणु भार तथा रासायनिक गुण भी मेंडेलीव ने पहले से गिनकर रख दिए। कुछ दिनो बाद इनमे सिलिकन, गेलियम, जमेंनियम, तथा स्कैण्डियम की खोज हो गई, और उनके गुण भी वस्तुत वही थे जैसा कि मेंडेलीव भविष्यवाणी कर गया था। मेंडेलीव की टेबल की समय-समय पर पुन परीक्षा हो चुकी है। आज हम इन अणुओं का क्रम उनके ‘नम्बर’ के अनुसार बिठाते है जो क्रमांक ऐंटॉमिक अणु में विद्यमान प्रोटनों की सख्या का द्योतक होता है। कुछ एक अपवादों को छोड दें तो तत्त्व का ऐंटॉमिक नम्बर प्राय उसके अणु-भार का ही समसंख्य होता है। 21 वें साल में जिसके बारे में चेतावनी दी गई थी कि वह अब छः महीने से ज्यादा और नही निकाल सकता, वही दिमित्री 78 साल जी गया। आखिर 1907 मे निमोनिया से दिमित्री मेंडेलीव मृत्यु हुई। उसके मरने तक रसायन को 86 तत्त्व मिल चुके थे, और वे भी मेंडेलीव की ही चित्र-पूर्ति की बदौलत कि बीच-बीच मे ये फला तत्त्व होने चाहिए।आज पीरियाडिक टेबल पूरी की जा चुकी है, 92 के 92 प्राकृतिक तत्त्व अब मिल चुके है। इंसान अणुओं के विस्फोट द्वारा नये तत्वों का निर्माण करना भी सीख गया है और तत्त्व-सख्या 101 को नाम दिया गया हे ‘मेंडेलीवियम’। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″],Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to 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