त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव – बड़ा गांव जैन मंदिर खेडका का इतिहास Naeem Ahmad, April 16, 2020March 14, 2024 त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव या बड़ा गांव जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान दिल्ली सहारनपुर सड़क मार्ग उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के खेडका कस्बे के पास रावण उर्फ बड़ा गांव नामक स्थान पर स्थित है। खेडका से बड़ा गांव जाने के लिए 4 किमी की पक्की सड़क है। यहा से रिक्शा, आटो, तांगा आदि आसानी से बड़ागांव के लिए मिल जाते है। बड़ागांव से होकर त्रिलोक तीर्थ धाम के लिए रास्ता जाता है। त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव के बिल्कुल पास है। यह स्थान जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहां 16 मंजिला 317 फुट ऊंचा विशाल मंदिर है। जिसके ऊपर भगवान आदिनाथ जी की पद्यासन 31 फिट ऊंची प्रतिमा दार्शनिक है। तथा 41 फिट ऊंचा मान स्तंभ भी चित्ताकर्षक है। त्रिलोक तीर्थ धाम लगभग 50 हजार वर्ग गज फैला हुआ एक मनोरम ऐतिहासिक धार्मिक स्थान है। त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव का इतिहास – बड़ा गांव जैन मंदिर का इतिहासइस मंदिर की प्रसिद्धि अतिशय क्षेत्र के रूप में है। कुछ वर्षो पहले यहां एक टीला था। जिस पर झाड़ झंखाड़ उगे हुए थे। गांव देहात के लोग यहां मनौती मनाने आते रहते थे। अपने जानवरों की बीमारियों या उन्हें नजर लगने पर वे बड़ी श्रद्धा से आते थे और टीले पर दूध चढाकर मनौती मनाते और उनके पशु रोग मुक्त हो जाते थे। बहुत से लोग अपनी बीमारी, पुत्र प्राप्ति और मुकदमों की मनौती मनाने भी आते थे। और इस टीले पर दूध चढाते थे, इससे उनके विश्वास के अनुरूप उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती थी। संभंवतः किसी जमाने में यहां विशाल मंदिर था। किंतु मुस्लिम काल में धर्मान्धता अथवा प्राकृतिक प्रकोप (जो भी कारण हो) के कारण यह नष्ट हो गया और एक टीले का रूप बन गया।नैमिषारण्य का इतिहास – नैमिषारण्य तीर्थ का महत्वएक बार ऐलक अनन्तकीर्ति जी खेड़का ग्राम में पधारे। उस समय प्रसंगवश वहां के लोगों ने उनसे इस टीले की तथा उसके अतिशयों की चर्चा की। फलतः वे उसे देखने गये। उन्हें विश्वास हो गया कि इस टीले में अवश्य ही प्रतिमाएं दबी होगी। उनकी प्रेरणा से वैसाखी 7 संवत् 1976 को इस टीले की खुदाई कराई गई। खुदाई होने पर प्राचीन मंदिर के भग्नावशेष निकले और उसके बाद बड़ी मनोज्ञ 10 दिगंबर जैन प्रतिमाएं निकली थी। किंतु वह बुरी तरह खंडित हो चुकी थी। अतः यमुना नदी में प्रवाहित कर दी गई। धातु प्रतिमाओं पर कोई लेख नहीं था। किंतु पाषाण प्रतिमाओं पर मूर्ति लेख था। उससे ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओं में कुछ 12वी शताब्दी की थी। और कुछ 16वी शताब्दी की। इससे उत्साहित होकर यहां एक विशाल दिगंबर जैन मंदिर का निर्माण किया गया और ज्येष्ठ शुक्ल 9 संवत् 1979 को यहां भारी मेला हुआ, इसके बाद संवत् 1979 में यहां समारोह पूर्वक शिखर की प्रतिष्ठिता हुई। तथा यहां विभिन्न स्थानों की मूर्तियों को लाकर प्रतिष्ठित किया गया।अहिच्छत्र जैन मंदिर – जैन तीर्थ अहिच्छत्र का इतिहासजिस स्थान पर खुदाई की गई थी, वहां एक पक्का कुआं बना दिया गया। कुआं 17 फिट गहरा है। इस कुएँ का जल अत्यंत शीतल स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक था। इसके जल से अनेक रोग दूर हो जाते थे। धीरे धीरे इस कुएँ की ख्याति दूर दूर तक फैल गई। और यहां बहुत से रोगी आने लगें। इतना ही नहीं इस कुएँ का जल कनस्तरों में रेल द्वारा बाहर जानें लगा। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि खेडका के स्टेशन पर प्रतिदिन 100-200 कनस्तर जाते थे। वहां से उन्हें बाहर भेजा जाता था। अब उसके जल में वह विशेषता नहीं रह गई है। मंदिर में मनौती मनाने वाले जैन और अजैन बंधु अब भी आते है। जिनके जानवर बिमार पड़ जाते है वे भी यहाँ मनौती मनाने आते है।बड़ा गांव जैन मंदिर स्थापत्य व प्रतिमाएंयह मंदिर शिखर बद है। शिखर विशाल है। उसका निचला भाग कमलाकर है। मंदिर में केवल एक हॉलनुमा मोहन गृह है। हॉल के बीच तीन कटनी वाली गंधकुटी है। गंधकुटी एक पक्के चबुतरे पर बनी हुई है। वेदी में मूलनायक भगवान पार्शवनाथ की श्वेत पाषाण की पद्यासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहन एक हाथ के लगभग है। प्रतिमा सौम्य और चित्ताकर्षक है। इसकी प्रतिष्ठा भट्टारक जिनचन्द्र ने की थी। इस प्रतिमा के अतिरिक्त एक पीतल की प्रतिमा इस वेदी विराजमान है।लोहागर्ल धाम राजस्थान – लोहागर्ल तीर्थ जहाँ भीम की विजयमयी गदा पानी बन गईमंदिर के चारों ओर बरामदा बना हुआ है। बरामदे के चारो कोनो पर शिखरबद्ध छोटे मंदरिया बनी हुई है। पूर्व की वेदी में ऋषभदेव भगवान की मटमैले रंग की पद्यासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना डेढ़ हाथ की है। यह प्रतिमा 15वी शताब्दी की है। तथा यह भूगर्भ से निकली थी। दक्षिणी वेदी में मूलनायक भगवान विमलनाथ की भूरे पाषाण की पद्यासन प्रतिमा है। नीचे के हाथ की उंगलियां खंडित है। इसका लाछन मिट गया है। किंतु परम्परागत मान्यता के अनुसार इसे विमलनाथ की मूर्ति कहा जाता है। मूर्ति के नीचे इतना लेख स्पष्ट पढ़ने में आया है।संवत् 1127 माघ सुदी 13 श्रीशं लभेथे।।इसी वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की एक कृष्ण पाषाण की मूर्ति है। यह पद्यासन है, अवगाहना एक फुट है, हाथ खंडित है। इस पर कोई लेख नहीं है। पालिश कही कही उतर गई है। यह मूर्ति विमलनाथ की प्रतिमा के समकालीन लगती है। ये दोनों भूगर्भ से निकली थी।पश्चिम की वेदी में भगवान पार्श्वनाथ की श्वेत पाषाण की एक हाथ अवगाहना वाली पद्यासन प्रतिमा है। पीतल की छः इंच वेदी में चारो दिशाओं में पीतल की चार खडगासन चतुर्मुखी प्रतिमाएं है। पीतल की दो प्रतिमाएं और है। जो क्रमशः सवा दो इंची और डेढ़ इंची है। ये सभी भूगर्भ से निकली थी।त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव के सुंदर दृश्यउत्तर की वेदी में भगवान महावीर की मटमैले रंग की पद्यासन प्रतिमा है। इसकी अवगाहना डेढ़ हाथ है। यह पूर्व की वेदी भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा के समकालीन है तथा दोनों का पाषाण एक ही है। यह भी भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त सभी वेदियों में पीतल की एक एक प्रतिमा और यंत्र है जो सभी आधुनिक है।पारसनाथ का किला बढ़ापुर का ऐतिहासिक जैन तीर्थ स्थल माना जाता हैमंदिर के चारों ओर धर्मशाला है। जिसका द्वार पूर्व दिशा में है। धर्मशाला के बाहर पक्का चबुतरा और एक पक्का कुआँ है। जो मंदिर की संम्पत्ति है। धर्मशाला के दक्षिण की ओर के कमरों के बीच में एक कमरे मे नवीन मंदिर है। जिसमें दो वेदियां है। बडी वेदी में मूलनायक चन्द्रप्रभु भगवान की प्रतिमा है। इनके अतिरिक्त तीन पाषाण की तथा एक धातु की प्रतिमा है। इनमे एक पाषाण प्रतिमा भूगर्भ से निकली थी। यह एक भूरे पाषाण में उकेरी हुई है। जो प्राय पांच अंगुली की है। छोटी वेदी में शीतलनाथ भगवान की खडगासन पाषाण की दो पद्यासन और एक पीतल की खडगासन प्रतिमा विराजमान हैं।मानस्तम्भ का शिलान्यासलगभग कुछ वर्षों पहले यहा क्षुल्लक मुभति सागर जी पधारे थे। उन्होंने इस क्षेत्र पर मान स्तंभ के निर्माण की प्रेरणा दी। किंतु उस समय यह कार्य सम्पन्न नहीं हो सका। सन् 1971 में स्वर्गीय आचार्य शिव सागर जी के शिष्य मुनि श्री वृषभ सागर जी महाराज ने दिल्ली चतुर्मास के समय लोगों को इस कार्य के लिए पुनः प्रेरित किया। जिसके फलस्वरूप 7 नवंबर सन् 1971 को महारज जी के तत्वावधान में मंदिर के सामने मान स्तंभ का शिलान्यास हो गया। और फिर धीरे धीरे संगमरमर से 41 फिट ऊंचा मान स्तंभ तैयार हो गया। इसके अलावा भी धीरे धीरे त्रिलोक तीर्थ धाम में अनेक निर्माण, व समाजिक कार्यो का आयोजन निरंतर होता रहा है। जिसके फलस्वरूप आज त्रिलोक तीर्थ धाम बड़ागांव एक भव्य तीर्थ बन चुका है।बड़ा गांव जैन मंदिर का वार्षिक मेलायहा प्रति वर्ष फाल्गुन शुल्क को मेला लगता है। और आसोज कृष्ण को जल यात्रा होती है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है।जैन धार्मिक स्थलों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”7632″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new 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