त्रावणकोर रियासत का इतिहास – History of Travancore state in hindi Naeem Ahmad, November 3, 2022March 28, 2024 भारतवर्ष की अति प्रगतीशील रियासतों में त्रावणकोर रियासत का आसन बहुत ऊँचा है। अपनी प्रजा का मानसिक, बौद्धिक और आर्थिक विकास करने में इस राज्य ने प्रशंसनीय कार्य किया है। हम भारतवासियों को त्रावणकोर राज्य के प्रगतिशील शासन के लिये योग्य अभिमान हो सकता है। यह राज्य सब दृष्टि से बडा भाग्यशाली रहा है। राजाओं के महलों से लगा कर गरीबों के झोपड़ों तक में ज्ञान का प्रकाश आलोकित हो रहा था। राज्य-शासन में प्रजा का हाथ होने से वहाँ का शासन सभ्य होने का उचित दावा किया जा सकता है। प्रकृति देवी की भी इस राज्य पर पूर्ण कृपा है। वर्षा यहाँ समय पर होता है। इस से यहाँ क्दाचित ही अकाल पडते हैें। सुमनोहर सरिताओं और चित्ताकर्षक झरनों से त्रावणकोर राज्य परिपूर्ण है। यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर भारत के भूतपूर्व वाइसराय लॉर्ड कर्जन महोदय ने कहा था कि प्रकृति देवी ने इस देवभूमि को अपने सम्पूर्ण श्रृंगार से अलंकृत किया है। यहाँ सब ऋतुएं बड़ी आनंदायक प्रतीत होती है।त्रावणकोर रियासत का इतिहासत्रावणकोर का प्राचीन इतिहास अभी बहुत कुछ अंधकार में है। दंतकथाओं से प्रतीत होता है कि महर्षि परशुराम पूर्वी समुद्र तट से भानु नामक एक राजकुमार को राज्य करने के लिये यहाँ लाये थे । यह बात कहां तक सत्य है इस पर अधिक ऐतिहासिक अनुसंधान की आवश्यकता है। पर यह निश्चित है कि अति प्राचीन काल से त्रावणकोर राज्य पर सतत रूप से हिंदू राजाओं का राज्य रहता आया है। कहा जाता है कि परशुराम के बाद इस राज्य पर कई वर्षों तक ब्राह्मणों का राज्य रहा था। पीछे जाकर इन ब्राह्मणों में फुट पड़ गई और कैया पुरम से कैया येयूमल नामक पुरुष राज्य करने के लिये बुलाया गया। इस मनुष्य के बाद कोई पच्चीस राजाओं ने ईस्वी सन 216 से 427 तक राज्य किया। इस वंश में कुल शेखर पेयूमल नामक अति प्रख्यात् राजा हो गये। ये साधु कुल शेखर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। ये वेष्णव- धर्मानुयायी थे। इन्होंने बड़ी शान्ति और गौरव के साथ राज्य किया। त्रावणकोर के इतिहास में इनका नाम सूर्य की तरह प्रकाशित है। इनके समय में त्रावणकोर का वैभव बहुत फेला हुआ था। History of the Travancore state in hindi पेयूमल वंश का अन्तिम राजा चर्म्मन हुआ। उसने अपने राज्य को अपने संबंधियों में बाट दिया। बस फिर क्या था? राज्य की शक्ति कमज़ोर हो गई और आसपास के बलशाली शत्रुओं की निगाह उस पर फिरी। यह राज्य चोल राज्य वंश के प्रतापी झंडे के नीचे आ गया। इसके बाद यह पांख्य लोगों के हाथों में चला गया। पर ये लोग भी यहाँ शान्ति से राज्य न कर सके। स्थानीय जमीदारों ने बलवे का झंडा उठाया और इससे यह राज्य मदुरा के नायक राजाओं के मातहत हो गया। अठारहवीं सदी के मध्य में आधुनिक त्रावनकोर राज्य के जन्मदाता महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने यहाँ अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर अपने आपको राज्य का स्वामी घोषित किया। आपने राज्य को पद्मनाथ स्वामी को अर्पण किया। आपको अपने राज्य-कार्य में आपके प्रधान सचिव अय्यन दालवा नामक सज्जन से बड़ी सहायता मिलती थी। सन् 1751 में महाराजा मार्तन्ड का शरीरान्त हो गया और महाराजा राम वर्मा सिंहासनरूढ हुए। आपने इतिहास प्रसिद्ध त्रावणकोर लाइन्स बनवाई। आपके समय में मैसूर के सुल्तान हैदर अली ने इस रियासत पर हमला कर उसे लेने का प्रयत्न किया, पर डच लोगों की सहायता से महाराजा ने उसके सारे मनोरथ विफल कर दिये। इसके बाद सुल्तान टीपू ने भी इस राज्य पर अपना विजय-झंडा उड़ाना चाहा, पर वह भी सफलीभूत न हो सका। सन् 1684 से इस राज्य के साथ अंग्रेजों का संबंध आरम्भ हुआ था। इसी साल राज्य के अन्तर्गत अजेंगों मुकाम पर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपनी एक फेक्टरी स्थापित की थी। सन् 1795 में ईस्ट इंडिया कंपनी और महाराजा त्रावणकोर के बीच में एक सन्धि हुईं। इसमें उक्त कम्पनी ने तमाम विदेशीय आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने की शर्त स्वीकार की। त्रावणकोर रियासत महाराजा राम वर्मा के बाद महाराजा बलराम वर्मा गद्दीनशीन हुए। ये बड़े ही कमजोर शासक थे। इससे राज्य कई प्रकार के षड़यंत्रों का अड्डा बन गया। इसी समय कुछ लोगों ने राज्य में बलवे का झंडा उठाया, पर वे लोग दबा दिये गये। सन् 1805 में ब्रिटिश सरकार के साथ त्रावणकोर राज्य की दूसरी संधि हुई। इसमें यह निश्चिय हुआ कि यह राज्य ब्रिटिश सरकार को आठ लाख रुपये खिराज दे।चेदि कहां है – चेदि राज्य का इतिहासमहाराजा बलराम के बाद रानी लक्ष्मीबाई सिंहासन पर मसनद हुईं। आपके समय में रेसिडेंट कर्नल मुनरो राज्य के सब कुछ थे। सन् 1815 में रानी लक्ष्मीबाई का देहान्त हो गया और महाराजा राम वर्मा ( द्वितीय ) सिंहासन पर बेठे। इस समय आप नाबालिग थे, अतएव स्वर्गीय रानी की बहिन पार्वतीबाई राज्य की एजेंट नियुक्त हुई। सन 1829 में महाराजा राम वर्मा द्वितीय ने अपने हाथ में शासन-सूत्र लिया। आपने बड़ी ही सफलता के साथ राज्य कार्य किया। आपके समय में प्रजा बढ़ी सुखी थी। आपने कई प्रकार के शासन-सुधार किये। दु:ख है कि ये लोकप्रिय महाराजा अधिक दिन तक संसार में न रह सके। सन् 1862 में आपका देहान्त हो गया। और राजा मार्तण्ड वर्मा ( द्वितीय ) गद्दीनशीन हुए । आपके समय में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं हुईं। आपके बाद सन् 1862 में आपके भतीजे राम वर्मा ( तृतीय ) त्रावणकोर के राजा हुए। आपको तत्कालीन वायसराय अर्ल केनिंग ने सनद् प्रदान कर दत्तक लेने का अधिकार दिया। सन् 1880में आपका देहान्त हो गया और सन् 1885 में महाराजा राम वर्मा ( चतुर्थ ) सिंहासन पर बैठे। सन् 1857 की 25 वीं सितंबर को आपका जन्म हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा का भार सुपरिचित मिस्टर रघुनाथ राव को दिया गया। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि यही मिस्टर रघुनाथ राव आगे जाकर दीवान और पेशकार हो गये। महाराजा साहब ने अंग्रेजी व संस्कृत विद्या के अध्ययन में आशातीत प्रगति की। सन्1885 के अगस्त मास में आपको राज्य अधिकार प्राप्त हुए। इस समय श्रीमान ने किसानों का कोई तीन लाख रूपया बकाया माफ कर दिया। सौभाग्य से श्रीमान को उच्च श्रेणी राजनितिज्ञ दीवान भी प्राप्त हो गए। आपने अपने सुयोग्य दीवान की सहायता से अपने राज्य को एक आदर्श राज्य बना दिया। आप ही की कृपा का फल है कि त्रावनकोर रियासत अंगुली पर गिनने योग्य दो चार प्रगतिशील रियासतों में अपना प्रधान स्थान रखता था।विजयनगर साम्राज्य का इतिहास, स्थापना और पतनसन् 1888 में आपको के सी आई ई की उपाधि प्राप्त हुई। सन् 1897 में श्रीमती महारानी विक्टोरिया के जुबली डायमंड उत्सव के उपलक्ष्य में आपने अपने राज्य से डायमंड जुबली नामक पब्लिक लाइब्रेरी व विक्टोरिया अनाथालय की नींव डाली। इसके दो वर्ष बाद श्रीमान सम्राट ने आपकी तोपों की सलामी उन्नीस से इक्कीस कर दी। सन् 1900 में श्रीमान और राज्य की प्रजा पर दुख का वज्रपात हुआ। इस साल प्रथम राजकुमार श्री मार्तण्ड वर्मा का स्वर्गवास हो गया। उक्त राजकुमार बड़े ही होनहार और सभ्य थे। भारत के भूतपूर्व वायसराय लॉर्ड कर्जन ने आपकी प्रसंशा करते हुए कहा था:- राजकुमार मार्तण्ड वर्मा बड़े मिलनसार, सभ्य और सुसंस्कृत ह्रदय के थे। विद्या से आपको विशेष प्रेम था। भारत वर्ष के राजकुमारों में आप पहले ग्रेजुएट थे। अगर आप जीवित रहते तो आप अपने गौरवशाली पूर्वजों की कीर्ति पर अवश्य ही नया प्रकाश डालते।बीकानेर राज्य का इतिहास – History of Bikaner stateसन् 1900 की 31अगस्त को श्रीमान महाराजा साहब ने अंग्रेजी सरकार की अनुमति से श्रीमती सेथू लक्ष्मीबाई और श्रीमती सेथू पार्वती बाई को राजकुमारियों के रूप में ग्रहण किया। सन् 1910 में श्रीमान के राज्य की सिल्वर जुबली उत्सव बड़े समारोह के साथ मनाया गया। इस समय प्रसाशन की ओर से जो अभिनन्दन पत्र दिया गया था, उसमें कहा गया था:- श्रीमान हम अभिमान के साथ इस बात को कह सकते है कि श्रीमान में शासन की उच्च योगिता और वैयक्तिक महान गुणों जैसा सम्मेलन हुआ है, वैसा इतिहास में मिलना मुश्किल है। हमारे पास शब्द नहीं है कि हम इस वक्त अपने ह्रदयगत भावों को प्रकट कर सके। यह एक पवित्र सत्य है कि श्रीमान ने पूर्ण रूप से हम लोगों के हृदयों पर विजय प्राप्त कर ली है। आगे आने वाली पीढ़ियां श्रीमान को त्रावणकोर के सबसे महान प्रजाहीतैषि और सर्वोपरि नरेश के रूप में गौरव के साथ में स्मरण करेगी।यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि त्रावणकोर रियासत का राज्य शासन अति प्रगतिशील और उन्नत है। संसार के सभ्य राष्ट्रों के नमूने पर इसकी सृष्टि हुई है। सन् 1888 में यहां लेजिस्लेटिव असेंबली कायम हुई। इसका उद्देश्य राज्य के लिए कानून बनाना रखा गया था। सन् 1904 में यहां लोक प्रतिनिधि सभा भी कायम हुई। लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को सरकार पर प्रकट करना इसका प्रधान उद्देश्य था। शुरू शुरू में इस सभा के लिए सदस्य सरकार के द्वारा ही नामजद किए जाते थे। पर बाद में लोगों को यह अधिकार दिया गया कि वह खुद ही सदस्य चुनकर सभा में भेजे। इतना ही नहीं त्रावणकोर दरबार लेजिस्लेटिव कौंसिल में भी लोक प्रतिनिधि लेने का तत्व स्वीकार किया। उसमें लोक प्रतिनिधि सभा से चुने हुए कुछ सदस्य लिए जाते थे। इन सभाओं के संगठन पर वृस्तित रूप से विचार करने के लिए यहां स्थान नहीं था।भरतपुर राज्य का इतिहास – History of Bhartpur stateसन् 1921 की मर्दुमशुमारी के अनुसार त्रावणकोर राज्य की जन संख्या 4006062 थी। यह की वार्षिक आमदनी 210565 थी। यहां की शिक्षा संबंधी संस्थाओं की संख्या 1459 थी। इनमें कोई 471023 विद्यार्थी शिक्षा पाते थे। इसके अतिरिक्त यहां 527 प्राइवेट स्कूल थे जिनमें लगभग 18342 विद्यार्थी विद्या लाभ करते थे। कई प्राइवेट विद्यालयों को सरकार की ओर से सहायता मिलती थी। इस राज्य में आठ कॉलेज थे। यहाँ विज्ञान, हुनर, कला, संगीतशास्त्र और कानून की शिक्षा का भी अच्छा प्रबन्ध था। यहाँ स्त्रियों के लिये भी एक कॉलेज था। संस्कृत की उच्च शिक्षा का यहाँ जैसा उत्तम प्रबन्ध था वैसा किसी भी देशी राज्य में नहीं था।त्रावणकोर राज्य ने अपने प्रजाजनों मे शिक्षा-प्रचार करने का जैसा प्रशंसनीय प्रयत्न किया है, वह देशी राज्यों के इतिहास में एकदम ही अपूर्व था। अपनी गरीब प्रजा का धन विलासिता और फूजूल कार्यो में बेरहमी से खर्च करने वाले धर्मच्युत राजाओं को–स्वर्गीय महाराजा त्रावनकोर का आदर्श ग्रहण कर प्रजा कल्याण में प्रवृत्त होना चाहिए। स्वर्गीय महाराजा त्रावणकोर ने प्रजा की कठिन कमाई के धन को अधिकतर प्रजा ही की भलाई में व्यय करने का जो आदर्श दिखलाया है वह परम अनुकरणीय है और अगर हमारे अन्य भारतीय राजा महाराजा प्रजा द्वारा प्राप्त किये हुए धन को प्रजा ही के विकास में व्यय करेंगे, तो सभ्य संसार के सामने समुज्वल मुँह से वे खड़ रह सकेंगे। नहीं तो, उनका भविष्य कितना अन्धकारमय व शोचनीय होगा इसकी कल्पना करने से भी हृदय को दु:ख होता है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=’12754′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की प्रमुख रियासतें हिस्ट्री