तुर्की की क्रांति कब हुआ – तुर्की की क्रांति के कारण और परिणाम Naeem Ahmad, May 13, 2022March 24, 2024 400 वर्ष पुराने ओटोमन तुर्क साम्राज्य के पतन के बाद तुर्की के फौजी अफसरों और जनता में राष्ट्रवादी महत्त्वाकांक्षाएं पनपने लगी। वे खलीफा और सुल्तानों के मध्ययुगीन शासन से अपने देश को मुक्त कराकर खुली हवा मे सांस लेना चाहते थे। कमाल अता तुर्क यह सपना देखने वालों के अग्रणी नेता थे। तुर्की की क्रांति ने न केवल इस राष्ट्र को अपनी प्राकृतिक सीमाओं मे सुरक्षित किया बल्कि सोच-विचार और समाज नीति का पश्चिमीकरण भी कर दिया। खिलाफत खत्म हुई और तुर्की प्रथम विश्व युद्ध की पराजय से उभरकर एक स्वतंत्र ओर प्रभुसत्ता संपन्न राष्ट्र बन गया। अपने इस लेख में हम इसी तुर्की की क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—– तुर्की की क्रांति कब हुआ था? तुर्की की क्रांति का नेता कौन था? तुर्की की क्रांति के क्या कारण थे? तुर्की की क्रांति के क्या परिणाम रहे? तुर्की की क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा? आजाद तुर्की का उदय कब और किसके द्वारा हुआ? तुर्की में गणतंत्र की स्थापना कैसे हुई? युवा तुर्क आंदोलन कब हुआ था? तुर्की में गणतंत्र की स्थापना कब हुई? आजाद तुर्की का प्रथम शासक कौन था? तुर्की का प्रथम राष्ट्रपति कौन था? कमाल पाशा ने कौनसी लीपि अपनाई? आधुनिक तुर्की का जनक कौन है? तुर्की की क्रांति के कारण और शुरूआतप्रथम विश्व युद्ध खत्म हाने के बाद तुर्की का ओटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) तेजी से पतन की गर्त में फिसलने लगा था। करीब 400 साल पहले ओटामन तुर्की ने मसोपोटामिया ओर कुर्दिस्तान, सीरिया ओर माइनर एशिया, क्रिमिया और दक्षिण रूस व मिस्र और उत्तर अफ्रीका को जीतकर अपने साम्राज्य का काफी विस्तार कर लिया था। तुर्को ने कोस्टटिनोपिल (Constantinople) बाल्कन देशों, हगंरी को अपने प्रभुत्व में लाकर पश्चिमी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ शक्ति होने का रूतबा हासिल कर लिया था। लेकिन ज्यों ही इस साम्राज्य के टुटने की प्रक्रिया शुरू हुई तो यह देखते देखते यूरोप के बीमार आदमी में बदल गया। रूस के जार ने तुर्क साम्राज्य को यह उपमा ऐसे ही नही दे दी थी। रूस ने क्रीमिया को उससे छीन लिया था। यूनान के राष्ट्रवादी संघर्ष ने उसे तुर्को के हाथ से आजाद करा लिया था। सर्बिया (Serbia), रूमानिया औरर बुल्गारिया भी क्रमशः अपनी आजादी की तरफ बढ़ रहे थे। फ्रांस ने अल्जीरिया पर कब्जा कर लिया था। मिस्र ब्रिटिश नियंत्रण में आ चुका था। कुल मिलाकर एक जमाने में महान और शक्तिशाली रह चुके इस साम्राज्य की हालत अब खस्ता और काफी कमजोर थी।मकर संक्रांति का महत्व – मकर संक्रांति क्यों मनाते हैंसुल्तान अब्दुल हामिद कास्टटिनापिल में बैठकर अपने बचे-खुचे राज्य को निहायत क्रूर और मनमाने ढंग से चला रहा था। शक्की और असुरक्षित सुल्तान ने अपने इर्द-गिर्द जासूसों की पूरी फौज ही खडी कर ली थी। वह किसी नये विचार समाज-सुधार के किसी प्रस्ताव, किसी भी तरह की आजादी और आंदोलन के जिक्र तक को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नही था। अपने देश और समाज की यह दुर्दशा देखकर युवा तुर्को का मन कुछ कर गुजरने के लिए बेचैन होने लगा। पर सुल्तान के जासूसों से डरकर खुफिया संगठन बनाने के अतिरिक्त उनके सामने कोई चारा न था। खुद सुल्तान की फौज में भी इस तरह की सीक्रेट सोसाइटियां बनने लगी थी। इनके गठन में एक युवा अफसर मुस्तफा कमाल पाशा ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह अफसर ही बाद में तुर्की की क्रांति का नायक बना और अता तुर्क (Father of Turks) के नाम से मशहूर हुआ।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधकमाल पाशा मानास्तिर (Monastir) के सुनियर मिलट्री स्कूल के एक प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने सैन्य विज्ञान का गहन अध्ययन करने के दौरान खुद को असाधारण प्रतिभाशाली साबित किया था। सुल्तान के सेनापति युवक मुस्तफा में भविष्य के जनरल की संभावनाएं देखते थे। उन दिनों 20वी शताब्दी की शुरुआत थी औरर तुर्की को एक कुशल सेनापति की जरूरत भी थी। सन 1881 में पैदा हुए मुस्तफा ने 24 साल की उम्र में कप्तान का पद हासिल किया और मिलिट्री कालेज में ही वतन (Vatan) नामी सीक्रेट सोसाइटी बनायी जिसका मकसद संविधानिक सुधार करना था। यह सोसाइटी तुर्की को मध्ययुगीन समाज की जड़ो से निकालकर नये सांचे में ढ़ालना चाहती थी। पर इससे पहले कि काम आगे बढ़ पाता सुल्तान के जासूसों ने सोसाइटी का सुराग लगा लिया। उसके सदस्य गिरफ्तार कर लिये गये और क्रांति की कोशिशों के बदले कमाल पाशा को जेल की कोठरी मिली। जासूसों ने कमाल के खिलाफ सारे सबूत जुटा लिए थे और उसे मौत की सजा मिलने में देर नही थी। पर यहां कमाल की एक अच्छे अफसर के रूप में ख्याति काम आयी औरर सजा देने के बजाय कमाल को दमिश्क में एक रेजीमेंट में तैनात कर दिया गया। वहा कमाल को अपनी युद्ध कला के जौहर दिखाने का पूरा मौका मिला।तुर्की की क्रांतिकमाल की विशेषता यह थी कि उन्होंने यूरोपीय सुधारकों की पुस्तकों का अध्ययन किया था। उन्हें फ्रांसीसी भाषा भी आती थी। सीरिया में कमाल ने द फादरलैंड एंड फ्रीडम सोसाइटी बनायी जिसकी विचारधारा तेजी से फैली पर कमाल का ध्यान तो तुर्की पर ही लगा हुआ था। उधर तुर्की में कमाल के जन्म स्थान सलोनिका (Salonika) में एक नये आंदोलन के अंकुर फूट रहे थे। इसमें अपने अंशदान देने के लिए कमाल ने मिस्र औरर यूनान होते हुए स्वदेश का रास्ता पकड़ा। पर सुल्तान के जासूसों ने कमाल की गतिविधियों का फिर से पता लगा लिया। उन्हें वापस जाना पडा बाद में कमाल ने आधिकारिक जरिए से ही अपना तबादला सलोनिका करा लिया।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहाससलोनिका में एक खुफिया सुधार-आंदोलन की गतिविधिया शुरू हो गई। इसका नाम “ऑटामन फ्रीडम सोसाइटी” रखा गया। सोसाइटी के नेताओं में कई मुद्दों पर परस्पर मतभेद था। ज्यादातर नेता चाहत थे कि सन् 1876 के सविधान को दोबारा स्थापित किया जाये। सन् 1877 में सुल्तान अब्दुल हामिद ने इस संविधान को मानने से इंकार कर दिया था। इसके उल्ट कमाल पाशा का मकसद बेकार हो चुकी परंपराओं कुप्रशासन अशिक्षा और पुराने इस्लामी कानुनों को मिटाकर पश्चिमी ढांचे पर एक आधुनिक व मजबूत राष्ट्र की स्थापना करना था। परंतु पाशा के विरोधी नेता पेरिस में निर्वासन व्यतीत कर रहे थे। यंगटर्क नेताओं से जुड़े थे जो ऑटामन साम्राज्य को फिर से स्थापित करने का असंभव स्वप्न देखते थे।1947 की क्रांति इन हिन्दी – 1947 भारत की आजादी के नेतासन् 1908 में सुल्तान को पता लगा कि मलानिका में विद्रोह की चिगारिया सुलग रही है। उसने विद्रोही अफसरों के नेता एनवर बे (Envar bay) को तलब किया पर एनवर ने पहाड़ियों में शरण ली। दूसरा विद्रोही अफसर मेजर नियासी (Niyasi) भी अपने सैनिक और हथियार के साथ एनवर के नेतृत्व में चला गया। धीरे धीरे तुर्की फौजों के बड़े हिस्से ने बगावते कर दी और युवा तुर्को ने सुल्तान को संविधान मानने पर मजबूर कर दिमा। इस परिवर्तन के नायक एनवर और नियासी थे। ठीक एक साल बाद सुल्तान अब्दुल हामिद ने अपने समर्थकों के जरिए इस्लाम खतरे में का नारा लगाया और कास्टटिनापिल में विद्रोह हो गया। अनुभवहीन युवा तर्के सरकार लड़खड़ा गयी। मलानिका की फौज आड़े वक्त पर काम आयी। इसका नेतृत्व एनवर औरर कमाल पाशा के हाथ में था। विद्रोह कुचल दिया गया और सुल्तान को गद्दी छोडनी पडी।वियतनाम की क्रांति कब हुई थी – वियतनाम क्रांति के कारण और परिणामअगले नौ वर्ष तक तुर्की पर कमेटी ऑफ यूनियन एंड प्रोग्रेस (Committee of union and progress) की हुकुमत रही। अक्टूबर 1911 में तुर्की युद्ध में उलझ गया। सन् 1912 में बाल्कन युद्ध में तुर्की को हार खानी पडी औरर उसके हाथ से यूरोपीय इलाका निकल गया। प्रथम विश्व -युद्ध शुरू हुआ। सन् 1915 में कमाल ने गलीपॉली (Gallipoli) द्वीपसमूह के अपनी कमान वाले हिस्से पर ब्रिटिश हमला झेला और तीन महीने तक विपरीत परिस्थितियों में बेतहाशा बहादुरी और निजी जोखिम के दम पर थोडी-सी फौज के सहारे अंग्रेजों को आगे बढ़ने से रोके रखा। इस तरह कमाल ने कास्टटिनापिल को बचाया। युद्ध में वे ही अकेले तुर्की सेनापति थे जिसने जीत हासिल की थी। इस जीत ने कमाल की ख्याति पूरे देश में फैला दी। फिर भी तुर्की को मित्र राष्ट्रों के सामने घुटने टेकने पड़े।क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थेइधर कास्टटिनापिल में युवा तर्को की सरकार की जगह सुल्तान के उत्तराधिकारी वहीदद्दीन (Vahideddin) ने ले ली थी। देश मे अकाल पडा हआ था और जनता का नैतिक बल गिर चुका था। सुल्तान ने कमाल की सौहबत और राजधानी में उनकी मौजूदगी टालने के लिए उन्हें काले सागर के तट पर फौज की कमान संभालने के लिए भेज दिया। कमाल ने सन् 1919 से तमाम प्रतिरोधी दलों को संगठित करना शुरू किया। थल सेना और नौसेना के कमांडरों की खुफिया बैठक में तय हुआ कि सुल्तान की हकुमत को न माना जाये। इस बैठक से निकली घोषणा में कास्टटिनापिल की सरकर का विदेशी प्रभुत्व में करार दिया गया और सिवास (Sivas) में एक स्वतंत्र और न्यूनतम कार्यक्रम वाली सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय असेंबली बुलाने का फैसला किया गया।पेरिस कम्यून इन हिन्दी – पेरिस कम्यून क्रांति के बारे मेंकमाल ने फौज की नौकरी छोडकर एक नागरिक की तरह सिवास कांग्रेस की अध्यक्षता की। सुल्तान ने मित्र राष्ट्रों से मदद मांगी। उन्होंने तुर्की के राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाने की शुरूआत की। अंग्रेजों ने कास्टटिनापिल पर कब्जा कर लिया और सुल्तान ने सर्वोच्च खलीफा के रूप में मुसलमानों से कमाल की बात न मानने के लिए कहा। अकारा में 23 अप्रैल 1920 को तुर्कीश ग्रांड नेशनल असेंबली का पहला अधिवेशन हुआ जिसमें कमाल को राष्ट्रपति चुना गया। कमाल ने घोषित किया कि खलीफा को अंग्रेजों ने कैद लिया है इसलिए उसके बिना ही सरकार चलायी जायेगी। 10 अगस्त का सुल्तान ने मित्र राष्ट्रों के साथ एक ऐसी संधि की जो राष्ट्र के लिए घोर अपमानजनक थी। इस संधि से तुर्की ज्यादा से ज्यादा एक कटपुतली देश बन सकता था। सारा देश इस संधि के खिलाफ कमाल पाशा के पीछे खड़ा हो गया।अक्टूबर क्रान्ति कब हुई थी – अक्टूबर क्रान्ति के कारण और परिणामसन् 1921 में यूनानियों ने हमला किया और तर्को को मुंह की खानी पड़ी, पर कमाल ने अकारा के दक्षिण में एक बार फिर इस्पाती दीवार की तरह मोर्चा लगा दिया यूनानियों को वापस जाना पडा और आजाद तुर्की को पहली बार एक राष्ट्र के रूप में सारी दुनिया ने स्वीकारा। रूसी फ्रांसीसी और इतालवी सरकारों ने तुर्की को मान्यता प्रदान की। मुस्तफा कमाल पाशा के नेतृत्व में अगली गर्मियों में यूनानियों को मुल्क के बाहर निकल दिया गया ओर अंग्रजों से संधि कर ली गयी, तुर्की एक लंबे अर्से के बाद अपनी प्राकृतिक सीमाओं का मालिक बना।तुर्की की क्रांति का परिणामतुर्की की क्रांति वहा के समाज, राजनीति और कानून में काफी तब्दीलियां लायी। खलीफा की सल्तनत खत्म कर दी गयी।अकारा को नयी राजधानी बनाया गया। अगस्त, 1925 में फेज पहनना गैर कानूनी करार दे दिया गया। तुर्की की पोशाक, कानून शिक्षा, और विधान, सभी कुछ पश्चिमी देशों जैसे कर दिये गए। बहु विवाह पर पाबंदी लगा दी गई, महिलाओं को पूरषों के बराबर अधिकार दिये गये। सन् 1928 में अरबी लिपि की जगह रोमन लिपि का प्रयोग शुरू किया गया। तुर्की की जनता ने प्रेम से अपने नेता का नाम “अता तुर्क” यानी तुर्को का पितामह रख दिया।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in 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