तिरूपति बालाजी दर्शन – तिरुपति बालाजी यात्रा Naeem Ahmad, July 8, 2018March 12, 2024 तिरूपति बालाजी भारत वर्ष के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों मे से एक है। यह आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले मे स्थित है। तिरूपति तमिल भाषा का शब्द है। तिरू का अर्थ है श्री तथा पति का अर्थ है प्रभु। इस प्रकार तिरूपति का सम्मिलित अर्थ है – श्री प्रभु ।तिरूमलै वह पर्वत है, जिस पर लक्ष्मी जी के साथ स्वयं विष्णु जी विराजमान है। तिरूपति इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ नगर है। कपिलतीर्थ मैं स्नान एवं कपिलेश्वर भगवान का दर्शन करके यात्री पर्वत पर चढते है।पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम जालौन उत्तर प्रदेशतिरूमलै पर्वत का दूसरा नाम वेंकटाचल है। यहां पर श्री तिरूपति बालाजी (वेंकटेश्वर भगवान) का स्थान है। कहते है, कि साक्षात शेषजी यहा पर्वत रूप मे स्थित है, इसलिए इसे शेषाचलम भी कहते है।तिरूपति बालाजी का महात्म्यस्कंदपुराण के अनुसार ‘सभी वेद भगवान श्री निवास का ही प्रतिपादन करते है। यज्ञ भी श्री निवास की ही साधना के साधन है। अधिक क्या सभी लोग श्री निवास के ही आश्रित है। उनसे भिन्न कुछ भी नहीं है। अतः सभी यज्ञ, तप, दोनो के अनुष्ठान तथा तीर्थों मे स्ना का जो फल है, उससे करोड गुना अधिक फल श्री निवास की सेवा से प्राप्त होता है। उन वेंकटाचलम निवासी भगवान श्र हरि का दो घडी चिंतन करने वाला मनुष्य भी अपनी 31 पीढिय़ों का उद्धार करके विष्णुलोक मे सम्मानित होता है।धार्मिक पृष्ठभूमिकहा जाता हैं कि वेंकटाचलम पर साक्षात भगवान शेष जी पर्वत रूप में स्थित हैं।इसलिए इसे शेषाचलम भी कहा जाता हैं। कहते है कि प्राचीन काल मे प्रह्लाद तथा राजा अंबरीश इस पर्वत को नीचे से प्रणाम करके चले गए थे। पर्वत को भगवत्स्वरूप मानकर वे ऊपर नही चढें थे। श्री रामानुजाचार्य पर्वत पर दंडवत् प्रणाम करते हुए गए थे। अब भी इस पर्वत पर अहिंदू नही जा पाते। पर्वत के नीचे पहला गोपुर ऊंचा बना हुआ है। वहां से आगे केवल हिन्दू जा सकते है।तिरूपति बालाजी दर्शनकपिलतीर्थजो लोग बस से वेंकटाचलम पर बालाजी के दर्शन करने आते है। तथा बस से ही लौट जाते है, उन्हें तो यह तीर्थ मिलता ही नही। तीर्थ के पास से ही बसे चली जाती है। चढाई प्रारंभ होने से पहले ही पर्वत के नीचे यह तीर्थ है।वृन्दावन धाम – वृन्दावन के दर्शनीय स्थल, मंदिर व रहस्यकपिलतीर्थ एक सुंदर सरोवर हैं। इसमें पर्वत पर से जलधारा गिरती है। सरोवर मे पक्की सीढियां बनी है। सरोवर के तट पर संध्या मंडप बने हुए हैं। तीर्थ में चारो कोनो पर चार स्तंभों मैं चक्र के चिन्ह अंकित है। पूर्व दिशा मे संध्या वंदन मंडप के ऊपरी भाग मैं श्री कपिलेश्वर मंदिर है। सरोवर के दक्षिण मे नम्मालवार का मंदिर है। और उत्तर पश्चिम मे नरसिंह मूर्ति है।तिरूमलै का मार्गतिरूमलै पर्वत पर जूते चप्पल सहित नहीं जाया जाता। पूरे मार्ग में प्रकाश की व्यवस्था है। रात्रि के अंधकार मे भी ऊपर जाने या लौटने मे कोई कठिनाई नही होती। कई स्थानों पर मार्ग के दोनों ओर वन है। परंतु यहां के वन मे भय की कोई बात नहीं है।जो लोग बस से आते है, उन्हें घुमावदार पहाड़ी मार्ग द्वारा मंदिर से थोड़ी दूरी पर पहुंचा दिया जाता हैं। परंतु जो पैदल मार्ग से आते हैं। उन्हें लगभग ढाई किलोमीटर की कडी चढाई करनी पडती है। इसके बाद वैकुंठ द्वार आता है।वैकुंठ द्वारइस बीच मे एक और गोपुर मिलता हैं। कई छोटे छोटे द्वार मिलते है। वैकुंठ द्वार पर तीसरा गोपुर है। यहां वैकुंठनाथ जी का मंदिर है। श्री राम-लक्ष्मण तथा श्री राधा-कृष्ण, ललिता, विशाखादि की मूर्तियां है।इससे लगभग तीन मील तक सीढियां नही है। मार्ग कुछ उतराई-चढाई का है। परंतु समतल है, आगे फिर आधी मील उतराई और फिर उतनी ही चढाई पडती है। इस एक मील मे सीढियां बनी है। फिर आगे बालाजी तक डेढ़ मील बराबर मार्ग है।पैदल जाने वाले यात्री यहां लगभग 7 मील की यात्रा कवारा है। मार्ग में उसे सात पर्वत मिलते है। श्री तिरूपति बालाजी मंदिर सातवें पर्वत पर है। इस मार्ग की पैदल यात्रा पुण्य प्रद मानी जाती हैं।कल्याणखट्टतीर्थराज प्रयाग की भांति वेंकटाचल पर भी मुंडन संस्कार प्रधान कृत्य माना जाता हैं। यहां केश मुंडन का इतना माहात्मय है। कि सौभाग्यवती स्त्रियाँ भी यहां मुंडन कराती है। उच्च वर्ग की सौभाग्यवती स्त्रियां केवल एक लट कटवा देती है।यहां एक अश्वत्थ का वृक्ष है, जो कि कल्याणखट्ट स्थान पर है। इसी स्थान पर मुंडन कराया जाता है। यहां बहुत से नाई मुंडन के लिए नियुक्त है।स्वामिपुष्करिणीश्री बालाजी मंदिर के समीप ही पुष्पकरिणी नामक विस्तृत सरोवर है। सभी यात्री इसमें स्नान करके दर्शन करने जाते है। इस स्थान के विषय मे एक कथा भी प्रचलित हैं। प्रचलित कथा के अनुसार- वाराहवतार के समय भगवान वाराह के आदेश से वैकुंठ से इस पुष्पकरिणी को वेंकटाचल पर वाराह भगवान के स्नानार्थ गरूड ले आए। यह वैकुंठ की क्रिडा-पुष्पकरिणी है। जिसमें भगवान नारायण श्री देवी एवं भूदेवी आदि के साथ स्नान क्रिड़ा करते थे। इसको समस्त स्नान पापों का नाशक माना जाता है। यहां मार्च अप्रैल में “तपोत्सव” भी मनाया जाता है।वाराह मंदिरस्वामिपुष्करिणी के पश्चिम मे वाराह भगवान का मंदिर है। नियमानुसार तो वाराह भगवान के दर्शन करने के बाद ही बालाजी के दर्शन करने चाहिए, परंतु अधिकांश यात्री बालाजी का दर्शन करके तब वाराह भगवान के दर्शन करते है।तिरूपति बालाजी मंदिर दर्शनभगवान श्री वेंकटेश्वर को ही उत्तर भारतीय बालाजी कहते है। भगवान के मुख्य दर्शन दिन में तीन बार होते है–1- पहला दर्शन प्रभात काल मे होता है।2- दूसरा दर्शन मध्याह्न मे होता है।3- तीसरा दर्शन रात्रि मे होता हैं।इन तीनों दर्शनों के लिए शुल्क नहीं लगता। इसके अलावा भी अन्य दर्शन होते है, जिनके लिए शुल्क देना पडता है।तीन परकोटेश्री बालाजी का मंदिर तीन परकोटों से घिरा है। इन परकोटों मे गोपुर बने है। जिन पर स्वर्णकलश स्थापित है। स्वर्णद्वार के सामने ” तिरूमहामंडपम्” नामक मंडप है।मंदिर के सिंहद्वार को पडिकावलि कहते है। यही प्रथम द्वार है। इस द्वार के समीप वेंकटेश्वर स्वामी के भक्त नरेशो एवं रानियों की मूर्तियां है। विरज व पुष्प कूपप्रथम द्वार तथा द्वितीय द्वार के मध्य की प्रदक्षिणा को संपंगि प्रदक्षिणा कहते है। इसमें विरज नामक एक कुआँ है। कहा जाता है कि श्री बालाजी के चरणो मे नीचे विरजा नदी है। उसी की धारा इस कूप मे आती है।इसी प्रदक्षिणा मैं पुष्प कूप है। बालाजी को जो तुलसी पुष्प चढाता है। वह किसी को दिया नही जाता । वह इसी कूप मे डाला.जाता है। केवल बसंत पंचमी पर तिरूजानूर मे पद्मावती जी को भगवान के चढे पुष्प अर्पित किए जाते है। विमान प्रदक्षिणाद्वितीय द्वार को पार करने पर जो प्रदक्षिणा है, उसे विमान प्रदक्षिणा कहते है। उसमें कई मंदिर है। वैकुंठ प्रदक्षिणातीसरे द्वार के भीतर भगवान के निज मंदिर (गर्भगृह) के चारो ओर एक प्रदक्षिणा है। उसे वैकुंठ प्रदक्षिणा कहते है।यह केवल पौष -शुक्ला एकादशी को खुलती है। अन्य समय यह मार्ग बंद रखा जाता है। हुंडी-हौजभगवान के मंदिर के सामने स्वर्ण मंडित स्तंभ है। उसके आगे तिरूमहामंडपम् नामक सभा मंडप है। द्वार पर जय विजय की मूर्तियां है। इसी मंडप मे एक ओर हुंडी नामक बंद हौज है। जिसमें यात्री बालाजी को अर्पित करने के लिए लाया हुआ द्रव्य एवं आभूषण आदि डालते है। श्री तिरूपति बालाजी की मूर्तिजगमोहन से मंदिर के भीतर चार द्वार पार करने पर पांचवें के भीतर श्री बालाजी (वेंकटेश्वर स्वामी) की पूरवाभिमुख मूर्ति है। भगवान की श्री मूर्ति श्यावर्ण है। वे शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए खडे है। यह मूर्ति लगभग सात फुट ऊंची है। भगवान के दोनों ओर श्रीदेवी तथा भूदेवी की मूर्तियां है। भगवान को भीमसेनी कपूर का तिलक लगाया जाता है। भगवान के तिलक से उतरा यह चंदन यहा प्रसाद के रूप मे बिकता है। भक्तगण उसे मंजन के काम मे लेने के लिए ले जाते हैं। चोट का चिन्हश्री बालाजी की मूर्ति मे एक स्थान पर चोट का चिन्ह है। उस स्थान पर दवा लगाई जाती है। इसके संदर्भ मे एक कथा भी प्रचलित है। कहते है कि एक भक्त प्रतिदिन नीचे से भगवान के लिए दूध ले आता था। वृद्ध होने पर जब उसे आने पर कष्ट होने लगा, तब भगवान स्वयं जाकर चुपचाप उसकी गाय का दूध पी आते थे। एक दिन भक्त ने छुपकर भगवान को मानव वेश मे उसकी गाय का दूध पीते हुए देख लिया। तब उसने उन्हें चोर समझ कर डंडा दे मारा। उसी समय भगवान ने प्रकट होकर उसे दर्शन दिया, तथा आश्वासन दिया। वही डंडा लगने का चिन्ह अभी तक मूर्ति मे है।तिरूपति बालाजी धाम के सुंदर दृश्यहमारे यह लेख भी जरूर पढे:–कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरमरामेश्वरम यात्रापशुपतिनाथ मंदिर नेपालनाथद्वारा टेम्पल हिस्ट्रीगंगासागर तीर्थचित्रकूटधाम की यात्रा तिरूपति बालाजी धाम के आस पास के अन्य तीर्थआकाशगंगाबालाजी के मंदिर से दो मील दूर वन मे यह तीर्थ है। यहां एक पर्वत मे से झरना बहता है। उसका जल एक कुंड मे एकत्र होता है। यात्री उस कुंड मे स्नान करते है। वहा का जल प्रतिदिन बालाजी के मंदिर मे पूजा के लिए जाता है।पापनाशन तीर्थआकाशगंगा से एक मील और आगे यह तीर्थ है। दो पर्वतो के मध्य से बहती एक धारा आकर एक स्थान पर ऊपर से दो धाराएं होकर नीचे गिरती है। इसको साक्षात गंगा माना जाता है। यहा यात्री सांकल पकडकर स्नान करते हैं। वैंकुंठ गुफाबालजी से दो मील पूर्व पर्वत मैं वैकुंठ गुफा है। उस गुफा से जो धारा निकलती है उसे वैकुंठ तीर्थ कहते है।पांडव तीर्थपाडव तीर्थ बालाजी से दो मील उत्तर पश्चिम मे एक झरना है, जो पाडव तीर्थ कहलाता है। यहा एक सुंदर गुफा है । जिसमे द्रौपदी सहित सभी पांडवो की मूर्तियां है।जाबलि तीर्थपाडव तीर्थ से एक मील और आगे जाबालि तीर्थ है। यहां झरने के पास हनुमानजी की मूर्ति है।श्री गोविंदराज मंदिरयह मंदिर विशाल है. इसमे मुख्य मंदिर शेषशायी भगवान नारायण का है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा श्री रामानुचार्य ने की थी। इस मंदिर के आस पास छोटे छोटे कई देव मंदिर है। यह मंदिर तिरूपति मे देवस्थान कमेटी की धर्मशाला के पास है। यहा एक सरोवर भी है।कोदंडराम मंदिरयह तिरूपति का दूसरा मुख्य मंदिर है। यह मंदिर तिरूपति की उत्तरी दिशा मे फूलबाग धर्मशाला के पास है। यहा भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, जानकी देवी के श्री विग्रह प्रतिष्ठित है।द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास – द्वारका धाम – द्वारकापुरीतिरूपति बालाजी कैसे पहुंचेतिरूपति दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध नगर है। मद्रास से मुंबई जाने वाली लाइन पर रेणिगुंटा स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर तिरूपति नाम का स्टेशन हैं। हैदराबाद, मद्रास, कांचीपुरम, चित्तूर, विजयवाड़ा, आदि स्थानों से तिरूपति के लिए बस सेवाएं उपलब्ध है।तिरूपति से तिरूमलै पर्वत जाने के दो रास्ते है। एक पैदल दूसरा बस का। पैदल मार्ग लगभग 11 किलोमीटर है, जबकि बस मार्ग इससे दोगुना है। देवस्थान समिति की बसे तिरूमलै जाती रहती है।तिरुपति मे कहा ठहरेस्टेशन के पास ही देवस्थान ट्रस्ट की बडी विस्तृत धर्मशाला है। तिरूपति मे यात्रियों के ठहरने आदि की सुव्यवस्था जैसी देवस्थान ट्रस्ट की ओर से है। वैसी व्यवस्था किसी अन्य तीर्थ मे नही है। देवस्थान ट्रस्ट की कई धर्मशालाएं है । जिनमे हर चीज की उत्तम व्यवस्था है।इन धर्मशालाओं मे यात्री बिना किसी शुल्क के अपना सामान रखकर निश्चिंत जा सकते है। सामान रखने की व्यवस्था अलग है। ठहरने के लिए कमरे है। जो अपना भोजन स्वयं बनाना चाहते है उन्हें बर्तन इत्यादि भी दिए जाते है। इसके अलावा यहा कुछ अच्छे होटल ओर गेस्ट हाउस भी है जिनमे आसानी से रूका जा सकता है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=’16290′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on 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