तारामती की कथा – तारामती की कहानी, राजा हरिश्चंद्र की कहानी Naeem Ahmad, April 13, 2020March 23, 2024 शिवि नरेश की कन्या का नाम तारा था। शिवि देश और वहां के राजा की पुत्री होने के कारण लोग इसे शैव्या नाम से भी पुकारते थे। शैव्या जब विवाह योग्य हुई तो उसका विवाह सत्यवादी महाराजा हरिश्चंद्र से हुआ और वह शैव्या (तारा) से महारानी तारामती बनी। उसकी कोख से रोहित नाम का राजकुमार उत्पन्न हुआ। तारा पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली अद्भुत क्षत्रिय नारी थी। उसने अपना अस्तित्व ही पति में विलीन कर दिया था। महाराज हरिश्चन्द्र का सुख उसका सुख था और उनका दुख उसके लिए भी दुख था। ऐसी ही महान नारी रानी तारामती की कथा, तारामती की कहानी हम अपने इस लेख में जानेंगे।शकुंतला दुष्यंत की प्रेम कथा – शकुंतला दुष्यंत की अमर प्रेम कहानीसमय परिवर्तनशील है, सब दिन एक समान नहीं गुजरते। राजा हरिश्चंद्र तारामती जैसी पतिव्रता पत्नी और रोहित जैसा मनोहारी राजकुमार पाकर अपने आप को सौभाग्यशाली समझते थे। उन्हें क्या पता था कि उनकी यह हंसी खुशी की दुनिया चंद दिनों तक ही रहेगी। एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने मुनि विश्वामित्र के मांगने पर अपना सारा राजपाट उन्हें दान कर दिया, और आकर अपनी महारानी तारा से मिले। महाराजा हरिश्चंद्र को उदासीन और चिन्ताग्रस्त देख पतिपरायणा तारा व्यथित हुई और महाराज से इस उदासीनता का कारण पूछा। तब महाराज हरिश्चंद्र ने अपनी प्राण प्रिय को उत्तर देते हुए कहा — मैने अपने राजपाट का दान मुनि विश्वामित्र को कर दिया है। अब मैं राजा नहीं हूँ, एक गरीब हूँ” मुझे अपनी चिंता नहीं है। पर इस स्थिति में तुम्हें और रोहित को जो कष्ट होगा वह मै कैसे देख पाऊंगा, मन इसी चिंता से व्यग्र है। तारामती हरिश्चंद्र की कहानी – सत्यवादी राजा हरिश्चंद्रमहाराज की राजपाट दान और चिंता को सुंनकर तारा ने कहा — इस चिंता से व्यग्र होने की कोई बात नहीं, इस पर तो उलटा प्रसन्न होना चाहिए। राज्य और धन कितने दिन रहने वाला है। आज है और कल नहीं। यह शरीर जिसे हम कितने यत्नों से संभालते है, फिर भी यह सदा हमारे साथ नहीं रहता, ये सब क्षणभंगुर चीजें है। इनमें मोह रखकर दुखी होना व्यर्थ है। संसार में धर्म ही नित्य है। अतः उसकी रक्षा करना ही जीवन की सफलता है। धर्म की रक्षा में प्राण भी चले जाये तो सार्थक है। राज्य के प्रपंच में पड़कर मनुष्य ईश्वर को भूल जाता है। और जिस उद्देश्य के लिए यह मानव शरीर प्राप्त हुआ है, उसको ही विस्मृत कर अपना अहित कर बैठता है। हे राजन! आपके द्वारा राजपाट का दान देना तो मेरे लिए ज्यादा खुशी की बात है। क्योंकि अब तक आप राजकाज के कार्यों में अधिक व्यस्त रहते थे किंतु अब आप मेरे अधिक निकट रहेंगे, मुझे पति सेवा का ज्यादा अवसर मिलेगा। पतिव्रता पत्नी के लिए पति अखंड प्रेम और सत सौभाग्य तीनों लोकों के राज्य से भी बढ़कर है।रमेश चन्द्र दत्त का जीवन परिचय हिन्दी मेंराजा हरिश्चंद्र अपनी पत्नी के ये उदगार सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उनके मन पर छायी उदासी मिट गई और चेहरे पर जो चिंता के भाव उभर आये थे, समाप्त हो गए। वे मन ही मन पत्नी तारा के सदगुणों और सुविचारों की प्रसंशा करने लगे। दूसरे दिन सवेरा होते ही ऋषि विश्वामित्र आये और बोले — यह राज्य मुझे दे दिया है, तो अब तुम जहां तक मेरा प्रभुत्व है, वहां से निकल जाओ, और हां ! ये शरीर पर जो बहूमूल्य वस्त्राभूषण पहने हुए है, उन्हें भी यही छोड़ दो। वल्कल वस्त्र धारण कर अपनी पत्नी और पुत्र को साथ लेकर शीघ्र ही यहां से चले जाओ।अधिक पैसा कमाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें राजा हरिश्चंद्र ने बहूमूल्य वस्त्राभूषण उतार, वल्कल वस्त्र धारण कर अपनी पत्नी तारामती और पुत्र रोहित के साथ रवाना हुए, तो विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र को देखकर कहा कि — मुझे राजसूय की दक्षिणा दिये बिना कहां जाते हो। हरिश्चंद्र के पास राजसूय दक्षिणा देने को अब कुछ बाकी नहीं बचा था। उन्होंने ऋषिवर से राजसूय दक्षिणा देने के लिए एक मास का समय मांगा। ऋषि विश्वामित्र ने कहा — राजन ! आपके निवेदन पर मैं आपको राजसूय दक्षिणा देने के लिए एक मास का समय देता हूँ, किंतु तीसवें दिन यदि आप राजसूय दक्षिणा नहीं दोगे तो मैं तुम्हें शाप दे दूंगा।सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानीराजा हरिश्चंद्र आज एक गरीब और असहाय की भांति पैदल चले जा रहे थे। दो प्राणी — उनकी प्राण प्रिय पत्नी तारा और पुत्र रोहित उनके साथ थे। महारानी तारा जिसकी परिचर्या हेतु सैकड़ों परिचारिकाएँ रहतु थी आज पैदल चल रही थी। सुकुमार बालक रोहित अपनी मां की गोद से नीचे नहीं उतरना चाहता था। रानी को पैदल चलने का अभ्यास न था। उसके चेहरे पर थकान के चिन्ह स्पष्ट परिलक्षित हो रहे थे, फिर भी हिम्मत के साथ हर कदम आगे बढायें जा रही थी। पति का अनुकरण करने का मन मैं संतोष था। ये तीनों प्राणी विचरण करते करते काशी नगरी में पहुंच गए। विश्वामित्र काशी में ही थे। हरिश्चंद्र जब वहां पहुंचे तो उनसे भेंट हुई। विश्वामित्र ने याद दिलाया — राजन ! आज तीसवां दिन है, मेरी दक्षिणा चुका दिजिए।हरिश्चंद्र ने कहा — मुनिवर ! अभी आधा दिन शेष है। मै शीघ्र ही आपकी दक्षिणा चुका दूंगा, अब आपको अधिक प्रतिक्षा नहीं करनी होगी।तारामती हरिश्चंद्र की कहानीराजा रानी बहुत अधिक थक चुके थे। एक तो पैदल चलने ऊपर से उपवास के कारण कृशकाय हो चले थे। क्षत्रिय होने के नाते भीख तो लेते नहीं थे, पास पैसा भी नहीं था, कोई काम धंधा भी प्रारंभ नहीं किया था। ऊधर बालक रोहित भूख से छटपटा रहा था। अपने पुत्र के लिए भोजन की व्यवस्था न करने वाला पिता विश्वामित्र की दक्षिणा कैसे चुकायेगा। राजा के धैर्य की बड़ी कठोर परीक्षा चल रही थी। राजा इन उधेडबुन में था कि संध्या से पूर्व कैसे दक्षिणा के धन का प्रबंध किया जाएं। वह प्रतिक्षण चिंतातुर होता जा रहा था।मीराबाई का जीवन परिचय और कहानीअपने पति की यह दशा तारा से अब और अधिक समय तक देखी नही जा सकती थी। राजा कि चिंता का कारण उससे छिपा नहीं था। अश्रुपूरित नेत्रों और गदगद कंठ से महारानी तारा ने कहा — हे स्वामी ! आप चिंता छोडिए और सत्य का पालन किजिए। नरश्रेष्ठ” पुरूष के लिए सत्य की रक्षा से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। जिसका वचन निर्थक हो जाता हैं। उसका स्वाध्याय, दान आदि सम्पूर्ण कर्म निष्फल हो जाते है। हे आर्य ! मुझसे पुत्र का जन्म हो चुका है। श्रेष्ठ पुरूष स्त्री का संग्रह पुत्र के लिए करते है। वह फल आपको प्राप्त हो चुका है। अतः आप दक्षिणा चुकाने के लिए मुझे किसी के हाथों बेंच दीजिए।मीराबाई का जीवन परिचय और कहानीरानी की यह बात सुनकर हरिश्चंद्र को बड़ा आघात लगा और वह मूर्छित हो गये। अपने पति की यह हालत देखकर तारा भी मूर्छित होकर गिर पड़ी। दोनों को इस प्रकार गिरा देखकर राजकुमार रोहित जो भुख से पीडित था, कभी अपनी मां कभी अपने पिता को भोजन देने के लिए पुकार पुकार कर जगाने का प्रयास कर रहा था। जब राजा और रानी की मूर्छा दूर हुई तब सूर्यास्त होने में कुछ ही समय शेष था।भक्त नरसी मेहता की कथा – नरसी मेहता की कहानीतारा ने पुनः कहा — हे स्वामी ! समय अब बहुत कम है। मैने जो प्रार्थना की है, वही कीजिए और दक्षिणा देकर अपने वचन का पालन कीजिए, अन्यथा आपको शाप से पीडित होना पडेगा। आप मुझे अपने गुरु की दक्षिणा चुकाने के लिए बेच रहे है। कोई दुर्गगुणो के वशीभूत होकर यह कार्य थोडे ही कर रहे है। इसमे इतना सोचने और दुखी होने की क्या बात है।टेसू और झेंझी की कहानी – टेसू और झेंझी का इतिहासराजा किर्कर्तव्यमूढ़ हुआ बैठा था। तारा बार बार आग्रह कर रही थी। आखिरकार पत्नी द्वारा सुझाये उपाय को ही उसे स्वीकार करना पड़ा। एक वृद्ध ब्राह्मण ने दासी का कार्य करने हेतु रानी को खरीदा। हरिश्चंद्र के जीवन का यह क्रूरतम अनुभव था। अपने हाथों अपनी पत्नी को बेचना। पति से अलग होते समय तारा फूट फूट कर रो रही थी। हरिश्चंद्र की आंखों से आंसुओं का सैलाब थमने का नाम न ले रहा था। रोहित मां का आंचल थामें उससे लिपटा हुआ रो रहा था। ब्राह्मण के कहने पर भी वह मां को छोड़ नहीं रहा था। रानी तारा ने ब्राह्मण से निवेदन किया — आपने मुझ पर बड़ी कृपा की है। इतनी कृपा और कर दीजिए, इस बालक को भी खरीद लिजिए। मुझ अभागिन का यह पुत्र है। मै इसकी जननी हूँ। इसके बिना मन लगाकर आपका कार्य नहीं कर पाऊंगी। ब्राह्मण ने तारा के आग्रह पर रोहित को भी खरीद लिया। पत्नी और पुत्र को बेचने से जो धन प्राप्त हुआ वह सारा विश्वामित्र को सौंप दिया, फिर भी दक्षिणा में कुछ धन कम पड़ गया तो राजा ने स्वयं को चांडाल के हाथ बेच मुनि को दक्षिणा प्रदान की।जीवित्पुत्रिका व्रत कथा और महत्व – जीवित्पुत्रिका व्रत क्यों रखा जाता हैएक दिन हरिश्चंद्र श्मशान में पहरा दे रहे थे कि किसी स्त्री की करूणा पुकार उसे सुनाई दी, जिसका पुत्र सांप के काटे जाने से मर गया था, उसे जलाने को लाई थी, उस भाग्यहीन के पास कफन तक नहीं था। वह स्त्री और कोई नहीं स्वयं राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती थी, और यह बालक रोहित का शव था। तारा के विलाप से हरिश्चंद्र ने यह सब जान लिया। हरिश्चंद्र ने अपनी भी स्थिति स्पष्ट की पर तुरंत संभलकर तारा से कफन मांगा, उसके बिना अग्नि संस्कार संभव नहीं, क्योंकि इस समय मै रोहित का पिता नहीं चांडाल का सेवक हूँ और उसके कार्य हेतु नियुक्त हूँ।बछ बारस पूजन कैसे करते है – बछ बारस व्रत कथा इन हिन्दीतारा ने कहा — स्वामी ! मेरी स्थिति से आप अनभिज्ञ नहीं है। मै बिकी हुई दासी हूँ, कफन के पैसे मेरे पास नहीं है, तन ढकने को एक ही साड़ी मेरे पास है। इसमें से आधी अपने कलेजे के टुकड़े रोहित के कफन हेतु देती हूँ। आधी से अपने तन को ढ़ककर लाज की रक्षा करूंगी। हरिश्चंद्र की परीक्षा की यह अंतिम सीमा थी, ज्योहीं तारामती कफन हेतु साड़ी फाडने को उद्यत हुई, समस्त देवता वहां प्रकट हुए। और तारा को रोका तथा रोहित को जीवनदान दिया। तथा हरिश्चंद्र के त्याग धैर्य और सत्यपालन की सराहना की। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=”9109″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... प्राचीन काल की नारी प्राचीन देवियां