डॉक्टर हरगोविंद खुराना की जीवनी – डॉक्टर हरगोविंद खुराना जीवन परिचय Naeem Ahmad, December 9, 2018March 19, 2023 डॉक्टर हरगोविंद खुराना का जीवन परिचय— सन् 1930 में भौतिकी विज्ञान के क्षेत्र में पाने वाले पहले भारती वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकटरमन ने एक बार कहा था, कि भारत में मेरे जैसे न जाने कितने ही रमन भरे पड़े है। किंतु आवश्यक संसाधनों व उपयुक्त अवसरो के अभाव में व या तो अपनी प्रतिभा गंवा बैठते है, या विदेशों की ओर पलायन कर जाते है, जहां उन्हें उनके अनुकूल वातावरण मिल जाता है। रमन के इन शब्दों में कितनी सच्चाई थी, इसका जीता जागता उदाहरण है महान वैज्ञानिक डॉक्टर हरगोविंद खुराना। उनके बारेेंं इस लेख में हम जानेंगें– डॉक्टर हरगोविंद की जीवनी, डॉक्टर हरगोविंद खुराना जीवन परिचय, डॉक्टर हरगोविंद खुराना इनफार्मेशन इन हिन्दी, डॉक्टर हरगोविंद खुराना बायोग्राफी, डॉक्टर हरगोविन्द खुराना माहिती आदि। भारत में जन्मे इस प्रतिभाशाली महान वैज्ञानिक को जब उसके अपने देश में ही आगे बढ़ने और कुछ कर दिखाने के अवसर और संसाधन उपलब्ध न हो सके तो उन्होंने विदेश में रहकर ही अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा को निखारा। कभी रसायन विज्ञान के होनहार विद्यार्थी रहे डॉक्टर हरगोविंद खुराना ने आगे चलकर जीव रसायन विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांतिकारी खोज कर डाली, जिसके परिणामस्वरूप सन् 1968 में उन्हें शरीर और औषधि विज्ञान का विश्व प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। हरगोविंद खुराना, गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर, और चंद्रशेखर वेंकटरमन के बाद तीसरी ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने नोबेल पुरस्कार का गौरव प्राप्त किया था। डॉक्टर हरगोविंद खुराना का जन्म हालांकि डॉक्टर खुराना ने अमेरिका की नागरिकता हासिल कर ली थी। किंतु उनका जन्म भारत मे ही हुआ था। 9 जनवरी 1922 को पंजाब के मुल्तान जिले (जो अब पाकिस्तान में है) के रायपुर नामक गांव में हुआ था। हरगोविंद खुराना के माता पिता डॉक्टर हरगोविंद खुराना के पिता का ना लाला गणपतराय था, जो सरकारी टैक्स सेवा में कलेक्टर के पद पर थे। गांव की भाषा में कहा जाएं तो पटवारी थे। उनकी माता का नाम कृष्णा देवी खुराना था जो एक कुशल गृहिणी थी। जिनकी पांच संतानें थी, जिनमें हरगोविंद खुराना सबसे छोटे थे। डॉक्टर हरगोविंद खुराना का बचपन और शिक्षा हालांकि रायपुर एक छोटा सा गाँव था। जिसमें केवल खुराना का परिवार ही एक मात्र शिक्षित परिवार था। अपनी नौकरी और पढ़ें लिखे होने के कारण खुराना के पिता और उनके परिवार का गांव और आसपास के क्षेत्र के लोगों बड़ा सम्मान और रूतबा था। डॉक्टर हरगोविंद खुराना खुराना का बचपन गांव के अन्य बच्चों के साथ ही स्वाभाविक रूप से खेल कूद में बीता, किंतु पढ़ने लिखने में भी उनकी रूचि बचपन से ही हो गई थी। डॉक्टर हरगोविंद खुराना की प्रारंभिक शिक्षा गांव की ही एक पाठशाला से शुरू हुई थी। पाठशाला भी क्या थी, कभी कभी पेड़ के नीचे बैठकर भी पढ़ना पढ़ता था। बचपन से ही तीव्र बुद्धि के स्वामी हरगोविंद खुराना ने जब गांव की पाठशाला से 5वीं कक्षा उत्तीर्ण की तो उन्होंने दिखा दिया था कि प्रतिभा हो तो उसे कैसे भी वातावरण में निखारा जा सकता है। वे अपनी पाठशाला के सबसे होनहार छात्र थे। गांव की पाठशाला से प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका प्रवेश मुलतान के डी. ए. वी. हाईस्कूल की छठी कक्षा में करा दिया गया। उनके बडे भाई भी इसी स्कूल में पढते थे। इसी स्कूल में अंग्रेजी विषय से उनका पहली बार परिचय हुआ। जल्दी ही खुराना ने अंग्रेजी भाषा पर अपनी पकड मजबूत कर ली। जब खुराना ने मुल्तान के डी. ए. वी. हाईस्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तो गणित, विज्ञान और अंग्रेजी विषयों में विशेष योग्यता प्राप्त करने के साथ साथ वे अंकों के आधार पर प्रदेश में दूसरे स्थान पर आऐ। सन् 1939 में उनका दाखिला लाहौर के डी.ए.वी. कॉलेज में करा दिया गया। जो शिक्षा के साथ साथ राजनैतिक और क्रांतिकारी गतिविधियों के संदर्भ में देश के अग्रणी शिक्षा संस्थानों में से एक था। इंटर की परीक्षा में विज्ञान उनका प्रमुख विषय था, जो आगे उनके अध्ययन का केंद्रीय विषय बनकर उभरा। सन् 1943 में उन्होंने रसायन विज्ञान को अपना प्रमुख विषय बनाते हुए बी.एस.सी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1945 में रसायन विज्ञान विषय के साथ ही उन्होंने इसी कॉलेज से एस. एस.सी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। डॉक्टर हरगोविंद खुराना की विदेश शिक्षा एम.एस.सी की परीक्षा प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण करने के बाद के बाद भी खुराना के पास एकमात्र डिग्री के सिवाय ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे वह अपने सपने और लक्ष्य को पूरा कर सके। उन्होंने नौकरी पाने के लिए कफी दौड धूप की परंतु उनहे सफलता नही मिली। अचानक सरकार द्वारा एक योजना आरंभ की गई, जिसके अंतर्गत प्रतिभाशाली छात्रो को छात्रवृत्ति देकर विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजा जाना था। खुराना प्रथम श्रेणी से एम. एस.सी तो कर ही चुके थे, अतः उन्हें भी इस योजना के लिए चुन लिया गया। इसी साल वे उच्च शिक्षा के लिए मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, लिवरपूल, इंग्लैंड चले गए। वहां उन्होंने विख्यात वैज्ञानिक, प्रोफेसर ए. रॉबर्टसन के अधीन रहकर अपना शोध कार्य पूर्ण किया और सन् 1948 में पी.एच.डी (डॉक्टर ऑफ फिलॉस्फी) की उपाधि प्राप्त की। विदेश जाने का कारण जिन दिनों डॉक्टर हरगोविंद खुराना लिवरपूल विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे। इसी बीच सन 1947 में उन्हें अपने देश भारत की स्वतंत्रता का सुखद समाचार मिला, किंतु साथ ही विभाजन का दुखद समाचार भी प्राप्त हुआ। इस विभाजन में उनके परिवार को अपनी जन्म भूमि मुलतान को छोडकर शर्णार्थियों के रूप में भारत आना पड़ा। तथा सरकारी सहयोग से दिल्ली मे जीवन यापन की व्यवस्था करनी पड़ी। सन् 1948 के अंत खुराना विदेश पढाई करके भारत लौटे। जिस योजना के अंतर्गत खुराना छात्रवृत्ति प्राप्त कर विदेश पढने गए थे। उसकी शर्त के अनुसार शैक्षिक योग्यता के अनुसार निश्चित समय तक सरकार की सेवा करनी होगीं। किंतु भारत सरकार उनकी योग्यता के अनुरूप उन्हें पद देने में असमर्थ रही। और योजना की दूसरे नियम के अनुसार डॉक्टर खुराना अपने दायित्व से मुक्त हो गए। उसके बाद डॉक्टर खुराना भारत के अनेक वैज्ञानिक संस्थानों मे काम की तलाश में गए। किंतु कहीं उन्हें काम न मिला। देश के अनेक वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा डॉक्टर खुराना जैसे प्रतिभाशाली और उच्च शिक्षा प्राप्त युवक को इस प्रकार ठुकरा देना, केवल उनकी शैक्षिक योग्यता और प्रतिभा पर ही प्रश्न चिन्ह नहीं लगा, वरन उनके स्वाभिमान को भी इससे बहुत ठेस पहुंची। और आखिर उन्होंने भारत मे नही रहने का निश्चय कर लिया। और वह वापस इंग्लैंड चले गए। कैसे विदेश बना कर्मभूमि इंग्लैंड पहुंचकर डॉक्टर हरगोविंद खुराना ने वहां के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में महान जीव विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता सर अलेक्जेंडर टॉड के निर्देशन में अनुसंधान कार्य आरंभ कर दिया। डॉक्टर खुराना और प्रोफेसर टॉड के विचारों और रूचियों में बहुत समानता थी। यही कारण था की डॉक्टर खुराना पूरे मनोयोग से अपने कार्यों मे जुट गए। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर टॉड के निर्देशन में खुराना ने दो वर्षों तक शोध कार्य किया। ये दो वर्ष उनके जीवन में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। अपने गुरू प्रोफेसर टॉड से जहाँ उन्हउन्होने जीव विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को जाना, वहीं उनके शोध कार्यों की सफलता का अच्छा प्रचार प्रसार भी किया। इसी समयावधि में उनकी भेंट विज्ञान जगत के अनेक धुरंधरों से भी हुई, जिसके परिणामस्वरूप विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के अनेक अवसर उनके सामने खुलते चले गए। डॉक्टर हरगोविंद खुराना का विवाह जब डॉक्टर खुराना लिवरपूल विश्वविद्यालय मे शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने कुछ दिनों के लिए स्विट्जरलैंड की यात्रा की थी। अपनी उसी छोटी सी यात्रा के दौरान उनकी मित्रता एक सुंदर स्वीडिश युवती एस्थर से हो गई थी। यात्रा से लौटने के बाद भी यह मित्रता पत्र व्यवहार के माध्यम से बनी रही। और धीरे धीरे उस सीमा तक पहुंच गई कि दोनों ने एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में स्वीकार करने का निर्णय ले लिया। डॉक्टर हरगोविंद खुराना की पत्नी स्विट्जरलैंड के एक सांसद की पुत्री थी। डॉक्टर खुराना ने भी भारत में रह रहे अपने परिजनों को इससे अवगत कराया, और दोनों परिवारों की सहमति और उपस्थिति में सन 1952 में दोनों का विवाह हो गया। सफलता पर सफलता मिलती गई अपने वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट डॉक्टर हरगोविंद खुराना अब मनचाही जीवन संगिनी पाकर आनंदपूर्वक जीवन व्यतीत कर ही रहे थे कि सन् 1952 के अंत में उन्हें पहली सफलता मिली। उन्हें ऑरगैनिक कैमिस्ट्री ग्रुप ऑफ कॉमनवेल्थ रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा गया। और फिर सन् 1953 मे डॉक्टर खुराना पत्नी सहित कनाडा चले गए, वहां इस वैज्ञानिक संस्थान के अध्यक्ष पद पर रहकर उन्होंने महत्वपूर्ण जैविक रसायन कोएन्जाइम-ए पर गहन शोध किए। शरीर चिकित्सा विज्ञान मे यह उनकी बहुत क्रांतिकारी खोज थी। जिसके लिए डॉक्टर खुराना को सन् 1960 में प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कनाडियन पब्लिक सर्विस का स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसके बाद सन् 1960 में उन्हें अमेरिका के विस्कांसिन विश्वविद्यालय के एन्जाइम रिसर्च इंस्टीट्यूट मे सहायक निदेशक पद पर काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। इसी साल उन्हें अमेरिका के रॉक फैलर संस्थान द्वारा अतिथि प्रोफेसर के पद का दायित्व भी सौंपा गया। सन् 1968 में डॉक्टर खुराना और उनके सहयोगी डॉक्टर एम. डब्ल्यू. नारेबर्ग और डॉक्टर आर. डब्ल्यू हाली के साथ कृत्रिम जीन्स निर्माण की विधि खोजकर एक क्रांतिकारी उपलब्धि हासिल की, और उस समय विज्ञान की दुनिया मे तहलका मच गया। दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय ने डॉक्टर खुराना की सराहना की। डॉक्टर खुराना को नोबल पुरस्कार यद्यपि सम्मानो और पुरस्कारों से डॉक्टर खुराना नाता 1960 से ही जुड़ गया था। जो समय समय पर आगे भी चलता रहा। सन् 1966 में डॉक्टर खुराना को अमेरिकी नागरिकता प्रदान की गई। सन् 1967 में उन्हें डेनी हेनीमेन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।सन् 1968 में जब डॉक्टर खुराना को उनके सहयोगियों के साथ संयुक्त रूप से शरीर एवं औषधि विज्ञान का नोबल पुरस्कार देने की घोषणा की गई, तो अमेरिका के साथ साथ भारत मे भी, जिस मिट्टी की वे उपज थे, में खुशी की लहर दौड़ गई। नोबेल पुरस्कार मिलते ही डॉक्टर खुराना विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति बन चुके थे। देश विदेश के अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं व विश्वविद्यालयों द्वारा उन्हें सम्मानित करने की होड़ सी मच गई। इसी साल उन्हें न्यूयॉर्क स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय द्वारा लूसिया ग्रास होरूटिज पुरस्कार, और लॉस्कर फैडरेशन, पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (1913) और श्री चंद्रशेखर वेंकटरमन (1930) के बाद डॉक्टर खुराना तीसरे भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता बने। सन् 1969 मे अपनी मातृभूमि के दर्शन के लिए डॉक्टर खुराना भारत आए। भारतवासियों ने बड़े सम्मान के साथ उनका स्वागत किया, और भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। भारत सहित विभिन्न देशों के निमंत्रण, और भारी सम्मान, और अनेक यात्राएं पूरी करने के बाद जब डॉक्टर हरगोविंद खुराना अमेरिका वापस लौटे तो अपनी इस अभूतपूर्व सफलता पर ही संतुष्ट होकर बैठ नहीं गए, बल्कि वे इस क्रम को और भी आगे बढ़ाने के काम में जी जान से जुट गए। सन् 1970 में उन्हें मेसेच्यूट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में जीव विज्ञान एवं रसायन के एल्फ्रेड स्लोन प्रोफेसर के रूप में नियुक्त कर दिया गया। इसी संस्थान की प्रयोगशाला में डॉक्टर खुराना और उनके 24 सहयोगियों वाले एक दल ने संसार के पहले कृत्रिम जीवन का निर्माण करने के अभियान पर कार्य आरंभ किया। जिसमें वह 1976 में कामयाब हुए। उनके बनाए कृत्रिम जीन बिल्कुल प्राकृतिक जीन की भांति कार्य करने लगे। डॉक्टर हरगोविंद खुराना की खोज से क्या क्या किया जाना संभव हो सका संतान कैसी हो, इसका निर्धारण उसके जन्म से पूरव ही किया जा सकता है। लडके या लड़की का पैदा होना अपनी इच्छा के अनुसार निश्चित किया जा सकता है। होने वाली संतान का रंग, रूप कद काठी कैसी हो और उसमें कौन कौन से गुणों का समावेश होना चाहिए। यह भी पहले से ही सुनिश्चित किया जा सकता है। पैतृक माने जाने वाले कुछ रोग जो कि आनुवांशिकता के आधार पर ही होते है, उन्हें भी दूर किया जा सकता है। दमा, ह्रदय रोग, कैंसर, बांझपन आदि गंभीर और भयंकर रोगों को हमेशा के लिए मानव जीवन से मुक्त किया जा सकता है। मनुष्य को स्वस्थ और दीर्घायु बनाना भी संम्भव हो गया है। इसी खोज के आधार पर पेड़ पौधा व जीव जंतुओं की उपयोगी व नई नस्लें तैयार की जा सकती है, जो मनुष्यों की आवश्यकताओं को प्रत्येक स्तर पर पूरा करने में समर्थ हो। डॉक्टर हरगोविन्द खुराना की मृत्यु 09 नवम्बर 2011 को इस महान वैज्ञानिक ने अमेरिका के मैसाचूसिट्स में अन्तिम सांस ली। उनके पीछे परिवार में पुत्री जूलिया और पुत्र डेव हैं।Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to 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