टुंडे कबाब लखनऊ – टुंडे कबाब की कहानी – टुंडे कबाब का इतिहास Naeem Ahmad, June 23, 2022March 26, 2024 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नाम सुनते ही सबसे पहले दो चीजों की तरफ ध्यान जाता है। लखनऊ की बोलचाल और लखनऊ का खानपान। लखनऊ के खानपान का जब हम स्मरण करते हैं तो सबसे पहले हमारे जहन लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब का स्मरण हो उठता है, और अचानक ही हमारे मुंह में पानी आ जाता है। और आए भी क्यों नहीं? इनके लाजवाब स्वाद की महक देश ही नहीं विदेशों तक में फैली हुई है। देशी और विदेशी पर्यटक जो लखनऊ की यात्रा पर आते हैं, यहां के इन लाजबाव स्वाद से भरपूर नरम मुलायम टुंडे कबाब का जायका लेना नहीं भूलते। कबाब कई तरह के होते हैं इनमें सियामी कबाब, नरगिशी कबाब, सींक कबाब, टुंडे कबाब, काकोरी और शीकमपुरी मशहूर है। हर रेसिपी में अलग अलग तरह के मसालों का इस्तेमाल होता है। और इनमें से कुछ तो 160 तरह के मसालों के साथ बनाए जाते है। मिडिल ईस्ट में धीमी आंच पर मीट को पकाए जाने वाली है ये टेस्ट आखिर भारत देश तक कैसे पहुंची। इन व्यंजनों के नाम किसने दिए। इनमें किन मसालों का इस्तेमाल किया जाता है इन सवालों से हमें बेहद दिलचस्प जवाब मिले। कुछ जवाबों में तो एक हाथ वाला रसोईया, बिना दातों वाला नवाब, एक अपमानित मेजबान और तलवार तक का जिक्र है। भारत में कबाब की शुरुआत भारत में कबाब की शुरुआत कैसे हुई वास्तव में कबाब एक प्राचीन व्यंजन है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल के लोग आग पर भूने हुए मांस के टुकड़े खाते थे इतिहास में भी इन व्यंजनों का काफी जिक्र मिलता है। 11वीं शताब्दी में कल्याणी चालुक्य राजा द्वारा भेजे हुए मांस के टुकड़ों को खाने की बात की गई है जो कबाब की तरह होते थे। हम जानते हैं कि कबाब भारत में मध्य पूर्व से तुर्को और अन्य विदेशी राजदूतों द्वारा लाया गया था। कबाब शब्द की जड़ें अरबी शब्द कबाब में जिसका अर्थ भुना हुआ मांस होता है। यह मांस पकाने के लिए सबसे आसान तरीकों में से एक है सैनिक अपने रास्ते पर जानवरों का शिकार करते थे वे अपनी तलवारों से उसे काटते थे और उन्हें खुली आग पर भूनते थे। बेहद मशहूर और पसंद किया जाने वाला भुना हुआ कबाब या सींक कबाब। सेनाओं के साथ उपमहाद्वीप में मध्य एशिया से पहुंचा। रसोईयों ने इन व्यंजनों को सही से बनाने की कोशिश की और अपने मालिकों को खुश करने के लिए उनकी पसंद के मसालों का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया। टुंडे कबाब का इतिहास कबाबों के इतिहास पर आग नजर डालें तो पता चलता है कि मुगलों को मांस के किमे (बारीक कुटा हुआ मांस) से बनाए हुए व्यंजन बहुत पसंद थे। लेकिन कबाब ज्यादा चबाकर खाना पड़ता था क्योंकि तुर्कों को वो वैसा ही पसंद था। समय के साथ भारतीय रसोइयों ने सींक कबाब के रूप को बदला और उन्होंने इसे गोल टिक्की के रूप में तराश दिया। सन् 1775 से सन् 1797 तक आसफुद्दौला अवध के नवाब थे। वो अच्छे भोजन के काफी शौकीन थे लेकिन इस शौक ने उनके शरीर की चर्बी बढ़ा दी थी। और धीरे धीरे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और जल्द ही उनके मुंह के सारे दांत गिर गए। लेकिन बगैर दातों वाले मांस खाने के शौकीन नवाब को खुश भी करना था। शाही रसोईयों ने पहले ही दम खाना पकाने की विधि पर अच्छी पकड़ हासिल कर ली थी। वे ओर भी ज्यादा स्वाद और सुगंध के साथ भोजन परोस रहे थे। और अब उन्हें कुछ ऐसा करना था जिससे नवाब बिना चबाए ही खा सके। टुंडे कबाब प्रसिद्ध इतिहासकार लिजी कोलिंगम ने अपनी किताब में लिखा है कि ऐसा माना जाता है कि सियामी कबाब को इस समस्या से निजात पाने के लिए बनाया गया है। उन्हें बारीक कटे हुए मांस से बनाया जाता था, जिसे किमा कहा जाता है। इस किमे को पीसकर महीन पेस्ट बना दिया जाता था। और फिर अदरक और लहसुन, खशखश और विभिन्न मसालों को मिलाकर इसे गोल या लंबे आकार का बनाया जाता था। उन्हें एक सीख पर लपेट कर आग पर भूना जाता था और फिर ऐसी डिश बनती जो बाहर से कुरकुरी और अंदर से मुलायम और नरम होती थी कि नवाब आसफुद्दौला जैसे बिना दांत वाले नवाब भी उसे शौक से खा लिया करते थे। टुंडे कबाब नाम कैसे पड़ा इसके बाद हाजी मुराद अली इन कबाबों को और बेहतर स्वाद के साथ लेकर आए। हाजी मुराद अली वो रसोईया है जिन्होंने लखनऊ के मशहूर टुंडे कबाब का इजाद किया था। टुंडे कबाब के वर्तमान वारिस मोहम्मद उस्मान कहते हैं कि छत पर पतंग उड़ाते समय एक दुर्घटना में मेरे दादा की बांह टूट गई थी। ठीक से इलाज ना होने के कारण उनके एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया था। लेकिन उन्हें खाना पकाना बहुत पसंद था। यहां तक कि वह अपने साथ काम करने वाले और रसोईया के मुकाबले काफी तेजी से प्याज काट सकते थे। वह अपने एक हाथ से मांस को इतना बारीक काटते थे कि मसाले उसमें पूरी तरह मिल जाया करते थे। जब नवाब वाजिद अली शाह ने घी में पकाएं मुंह में घुलने वाले कबाब को चखा तो उन्होंने इसे बनाने के बारे में पूछा। एक हाथ वाले रसोईया का जिक्र करते हुए उन्हें बताया गया कि यह टुंडे है। इन कबाबों के टुंडे नाम पड़ने के पीछे भी दिलचस्प किस्सा है। असल में टुंडा उसे कहा जाता है जिसके हाथ न हो। रईस अहमद के वालिद हाजी मुराद अली पतंग उड़ानें के बेहद शौकीन थे, एक बार पतंग उड़ाते हुए उनका हाथ टूट गया। जिसके बाद उनका ठीक से इलाज ना होने के कारण उनका एक हाथ खराब हो गया। पतंग का शौक गया तो मुराद अली वालिद के साथ दुकान पर बैठने लगे। इनके टुंडे होने की वजह से जो यहां से कबाब खाता उसे टुंडे कबाब कहने लगा। और यही से इनका नाम पड़ गया, टुंडे कबाब। टुंडे कबाब की रेसिपी हाजी रईस का कहना है कि यहां के कबाबों में आज भी उन्हीं मसालों का प्रयोग किया जाता है जौ सवा सौ साल पहले किया जाता था। कहा जाता है कि कोई टुंडे कबाब की रेसिपी ना जान सके इसलिए इनके मसालों को अलग अलग दुकान से खरीदा जाता है। और फिर घर में ही एक बंद कमरे पुरूष सदस्य उन्हें कूटकर और छानकर तैयार करते हैं। इन मसालों में कुछ तो ईरान और दूसरे देशों से मंगवाए जाते हैं। हाजी परिवार ने इस गुप्त ज्ञान को आज तक किसी को नहीं बताया। यहां तक कि अपने परिवार की बेटियों तक को नहीं। कबाब बनाने में पूरे दो से ढ़ाई घंटे लगते है। इन कबाबों की खासियत को नीम हकीम भी मानते हैं। क्योंकि यह पेट के लिए फायदेमंद होता है। इन कबाबों को परांठों के साथ ही खाया जाता है। परांठे भी ऐसे वैसे नहीं बल्कि घी दूध बादाम और अंडा मिलाकर तैयार किए जाते हैं जो भी इन्हें एक बार खाता है, वो इनका दिवाना हो जाता है। टुंडे कबाब की पहुंच बॉलीवुड तक लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब की पहुंच बॉलीवुड तक है। बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान अक्सर टुंडे कबाब बनाने वाली इस टीम को मुंबई स्थित अपने घर मन्नत में विभिन्न आयोजनों में बुलाते हैं। महान अभिनेता दिलीप कुमार, अनुपम खेर, आशा भोंसले, क्रिकेटर सुरेश रैना, गीतकार ज़ावेद अख्तर और शबाना आजमी भी इनके बड़े प्रशंसकों में से एक है। कहां खाएं टुंडे कबाब लखनऊ के प्रसिद्ध टुंडे कबाब की सबसे पुरानी दुकान अकबरी गेट शाहगंज लखनऊ चौक में स्थित है। यहां रहीम नहारी कुलचे वाले के सामने छोटी सी गली में यह सबसे पुरानी टुंडे कबाब की दुकान है। यहां के बाद इनकी दूसरी ब्रांच अमीनाबाद में मोहन मार्केट ख्यालीगंज में स्थित है जहां आप इन कबाबों के स्वाद आनंद ले सकते हैं। हाल ही में कुछ वर्षों पहले अपने व्यापार को बढ़ाते हुए तथा ग्राहकों की सुविधा को देखते हुए अपनी एक नई ब्रांच नवल्टी सिनेमा के पास कपूरथला में भी खोली है। जहां आप ओरिजनल टुंडे कबाब का जायका ले सकते हैं। लखनऊ के नवाब वंशावली:— [post_grid id=”9505″] लखनऊ के पर्यटन स्थल:—- [post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized लखनऊ पर्यटनस्वादिष्ट व्यंजन