जे जे थॉमसन का जीवन परिचय और जे जे थॉमसन की खोज? Naeem Ahmad, June 9, 2022March 26, 2024 योग्यता की एक कसौटी नोबल प्राइज भी है। जे जे थॉमसन को यह पुरस्कार 1906 में मिला था। किन्तु अपने-आप में वह एक महान वैज्ञानिक न भी होता तब भी एक अद्वितीय अध्यापक होने के नाते भी वह किसी पुरस्कार का अधिकारी होता ही। विश्व-भर में अनगिनत वैज्ञानिकों को उससे प्रेरणा मिली, निर्देशन मिला, कम से कम आठ विद्यार्थी भी उसके बाद में नोबल-विजेता हुए।जे जे थॉमसन का जीवन परिचयजे जे थॉमसन का जन्म 18 दिसम्बर 1856 को इंग्लेंड में चेस्टर के नज़दीक हुआ था। इनका पूरा नाम जोसेफ जॉन थॉमसन है। जे जे थॉमसन के पिता का पुरानी दुर्लभ पुस्तकों का व्यापार था, जो कितनी ही पीढ़ियों से परिवार में एक पेशे के तौर पर चलता आता था। वंश में विज्ञान की भी कुछ न कुछ परम्परा थी। थॉमसन के एक चाचा को ऋतुओं के अध्ययन में तथा वनस्पति शास्त्र में भी रुचि थी, किन्तु इतने ही को हम परिवार में एक विशेष प्रवृत्ति के रूप में ग्रहण नहीं कर सकते।जे जे थॉमसन किताबों का कीड़ा था। उसकी भूख मिटती ही न थी। सो परिवार ने यह निश्चय किया कि इंजीनिर्यारेंग उसके लिए उपयुक्त क्षेत्र रहेगा। 14वें वर्ष में उसे ओवेन्स कालिज, आजकल मैंचेस्टर विश्वविद्यालय भेज दिया गया। दो साल बाद जब बाप की मृत्यु हो गई, उसकी शिक्षा-दीक्षा का भार मित्रों ने अपने ऊपर ले लिया। जॉन डाल्टन के नाम से एक छात्रवृत्ति का प्रबन्ध कुछ चला आता था, उसी की कृपा से थॉमसन की पढ़ाई वहीं नहीं रुक गई। 19 वर्ष का होते-होते थॉमसन ने इंजीनियरिंग की यह पाठ्यविधि समाप्त कर दी और उसके बाद अब वह एक छात्रवृत्ति लेकर कैम्ब्रिज के ट्रेनिटी कालिज में प्रविष्ट हो गया। गणित तथा विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी चीज़ जो इस विश्वविद्यालय में थी वह थी– मैथम टिकल ट्राइपॉस’ के नाम से प्रसिद्ध (योग्य विद्यार्थियों के लिए खुली ) परीक्षा। थॉमसन इस परीक्षा में प्रतिष्ठा पूर्वक सफल रहा, जेम्स क्लर्क मैक्सवेल की भांति परिणाम में उसका स्थान द्वितीय था।जेम्स क्लर्क मैक्सवेल बायोग्राफी – मैक्सवेल के आविष्कार?और मेक्सवेल की ही भांति थे जे जे थॉमसन ने अपनी गणित की प्रतिभा को समीक्षात्मक भौतिकी की ओर प्रवर्तित कर दिया। थॉमसन की परीक्षण बुद्धि कुछ विशेष न थी, उसके हाथों मे भी कोई विशेष कुशलता न थी। शुरू-शुरू मे रसायन की प्रयोग शालाओं मे वह लगभग अपनी आंखों से ही हाथ धोने पर आ गया था। किन्तु अनुभव ने उसे यही बताया कि समीक्षात्मक भौतिकी अपने आप मे बिना प्रीक्षणात्मक समर्थन के, एक निर्थक वस्तु ही रह जाती है। 1881 मे टॉमसन ने एक निबन्ध लिखा जिसमें आइन्स्टाइन के प्रसिद्ध सिद्धान्त का पूर्वाभास मिलता है। निबंध का सार यह है कि दृव्यमान या सहति (मॉस) तथा शक्ति परस्पर समान ही होते है। तब उसकी आयु केवल 24 वर्ष थी।जे जे थॉमसनस्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करते ही जे जे थॉमसन को ट्रिनिटी कालिज का एक फेलो बना दिया गया जिससे कैवेंडिश लैबोरेट्रीज मे अनुसन्धान करने के लिए उसे सब प्रकार की सुविधाए मिल गई। 1884 में प्रयोगशाला के अध्यक्ष लॉर्ड रैले ने अपने पद से त्याग-पत्र देने का निश्चय कर लिया और वह अपना उत्तराधिकारी 28 साल के छोकरे जे जे थॉमसन को नियुक्त करता गया। काफी खप मची, यह नही कि थॉमसन की योग्यता मे किसी को कुछ शक था, किन्त छोटी उम्र खुद उसके रास्ते में पर्याप्त बाधा थी। किन्तु लॉर्ड रैले का चुनाव भी अच्छा ही सिद्ध हुआ। थॉमसन इस पद पर 34 वर्ष जमा रहा और उसके निर्देशन में यह संस्था विज्ञान के क्षेत्र में विश्व की श्रेष्ठतम संस्था मानी जाने लगी।इन्ही प्रयोगशालाओ में थॉमसन को अपना जीवन-कार्य भी मिल गया और जीवन-साथी भी। उसे कुछ बहुत आस्था नही थी कि औरतों में विज्ञान की प्रतिभा होती है। परान्त विज्ञान पर उसके व्याख्यानो को सुनने जब पहले बार एक लडकी भी आई तब उसने लिखा था, मुझे डर है इन व्याख्यानों का एक शब्द भी उसके पल्लें नही पड रहा वह अभी तक यही समझ रही है कि मेरा विषय परमेश्वर है, धर्म-विज्ञान है, और अभी तक वह अपनी इस भूल को शायद पहचान नही पाई। खेर, 1890 में उसने मिस रोज़ पेजेट के साथ शादी कर ली। उसके ‘एडवान्स्ड लेक्चर्स’ को वह भी सुनने आया करती थी।विलियम वेडरबर्न का जीवन परिचय हिन्दी में1897 में जे जे थॉमसन इलेक्ट्रॉन का जनक बन गया। इस नन्हें से कण का अनुसंधान करके उसने यह स्थापित कर दिया कि द्रव्य प्रकृत्या वैद्युत होता है। विद्युन्मय होता है। उन दिनों वैज्ञानिको के सम्मुख ‘कैथोड रे’ की आन्तर-रचना का प्रश्न आ चुका था। यही वह किरण थी जिसे क्रुक्स ने एक शीशे की नली में से पहले उसकी सारी हवा खाली कर एक प्रबल वोल्टेज-डिस्चार्ज के द्वारा सर्वप्रथम प्रत्यक्ष किया था। इसी ट्यूब का प्रयोग करते हुए, उसके बाद,श रॉटजन ने एक्स-रे उपलब्ध की थी। उन दिनों दो स्थापनाएं प्रचलित थी, और दोनो को ही प्रबल समर्थन प्राप्त था। थॉमसन का विचार था कि ये कैथोड-किरणें ‘विद्युताविष्ट कणों का एक समूह होती हैं, जबकि इस स्थापना का विरोधी पक्ष यह कहता था कि यह किरण और विद्युत कण दोनो नितान्त भिन्न वस्तुएं है। यह सच है कि जब कोई कैथोड-रे जाकर शीशे से टकराती है, उससे एक अद्भुत चमक पैदा हो जाती है, किन्तु इलेक्ट्रॉनों को इसके विपरीत आंखों से देखा नही जा सकता।थॉमसन ने एक ऐसा उपकरण प्रयुक्त किया कैथोड किरणें माना केथोड-बिन्दु क पर जन्म लेती है। एक छोटे-से छिद्र मे से गुजरकर वे और इस छिद्र का सम्बन्ध ‘अ के साथ पहले से किया होता है, शीशे की नली में एक सकीर्ण ज्योति-विलय-सा निर्धारित कर देती है। थॉमसन एक चुम्बक-छड ट्यूब के नज़दीक लाया। यह ज्योतिबिन्दु उसके साथ चलता आया, अर्थात किरणे झुकती हैं। अब चुम्बक को इस तरह चलाया गया कि ये किरणें ट्यूब के अन्दर पड़े परदे पर अंकित एक रन्ध्र पर केन्द्रित हो जाए। इस रन्ध्र मे से गुजरने पर रिसीवर-इलेक्ट्रोड के साथ सम्बद्ध इलेक्ट्रोस्कोप की सुईया हिलने लगी। थॉमसन का निष्कर्ष था कि यह कैथोड-रे ऋणात्मक विद्युत है। किन्तु विरोधी-मण्डल इससे सन्तुष्ट न हुआ। उसका कहना था कि यह तो माना कि चुम्बक के द्वारा कैथोड-रे विचलित हो सकती है, किन्तु इससे यह सिद्ध नही होता कि स्थिर-विद्युत के क्षेत्र मे भी यही अवस्था होगी। स्थिर विद्युत का क्षेत्र, अथवा इलेक्ट्रोस्टिकफील्ड, कुछ उसी प्रकार का एक क्षेत्र होता है जिसमें सख्त रबर की एक छड़, जैसे कोई कंधी या फाउण्टेन पेन की बेरल आदि किसी कपडे पर रगडे जाने पर कागज के पुर्जों को अपनी ओर बरबस खीचनें लगती है कोशिश हाइनरिख हेत्श ने भी की थी, किन्तु स्थिर विद्युत की इस प्रक्रिया द्वारा वह किरण को विचलित करने में असमर्थ रहा था। एक ही सम्भव उत्तर रह गया था, ओर वह कि शायद अभी ‘शुन्य’ स्थान मे कुछ तत्त्व बाकी है, कुछ गैस अभी रह गई जो दोनो प्लेटो के बीच करेंट को आने-जाने दे रही है, और इसी वजह से इसका इलेक्ट्रोस्टेटिक फील्ड शायद विकृत हो चुका है। इसलिए ट्यूब को अभी और खाली करो, और फिर परीक्षण करके देखो।अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय – अल्बर्ट आइंस्टीन के आविष्कार?यही किया गया। इस बार कैथोड-रे विचलित हो गईं। थॉमसन पहले ही साबित कर चुका था कि कैथोड-रे को कोई चुम्बकीय क्षेत्र भी विचलित कर सकता है, वैद्युत क्षेत्र भी। जिसका एक ही अर्थ हो सकता था कि कैथोड किरण प्रकृत्या, कोई ‘किरण’ न होकर, विद्युताविष्ट कुछ कणों की एक अविरत धारा है। यही नही थॉमसन ने इस ऋणाविष्ट कण (इलेक्ट्रॉन) को तोल। भी कि हाइड्रोजन के अणु का यह 1/2000 होता है। इलेक्ट्रॉन की गति भी उसने हिसाब लगाकर रख दी 160000 मील प्रति सेकण्ड।आज हम सब इलेक्ट्रॉनो से परिचित हैं, जे जे थॉमसन का वह भगीरथ-कृत्य आज एक अद्भुत इलेक्ट्रॉनिक खिलौने टेलीविजन में अमर हो चुका है। टेलीविजन की चित्र नलिका वस्तुत एक कैथोड-रे ट्यूब ही है जिसमे विद्यल्मथ कणों को बडी गति के साथ विचलित किया जाता है कि चित्र की किचित भ्रान्ति उत्पन्न हो सके। यह विचलन अब भी थॉमसन के उस पुराने तरीके से ही सिद्ध किया जाता है, स्थिर-विद्यत क्षेत्रो द्वारा तथा चुम्बकीय क्षेत्रों द्वारा। किन्तु 1897 में तब इन विद्युतकणों की सत्ता स्वीकृत करने में वैज्ञानिको को कुछ हिचक थी। थॉमसन ने कहा क्यो न इनकी फोटो उतार ली जाए ? किन्तु कैसे ? एक ऐसे कण का चित्र हम भला उतार ही किस तरह सकते है जो कि हाइड्रोजन का दो हजारवां हिस्सा है और 160,000 मील प्रति सेकण्ड की रफ्तार से निरन्तर गतिशील है।अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन का जीवन परिचय और खोजयह था प्रश्न जो थॉमसन ने अपने एक शिष्य चार्ल्स टी० आर० विल्सन के सम्मुख रखा। इससे पहले विल्सन कुछ अनुसन्धान कोहरे के कारणो पर कर चुका था। सभी जानते है कि गरम हवा में नमी थामने की ताकत ठण्डी हवा की निस्बत कुछ ज्यादा होती है। पर जल-वाष्पों से लदी गरम हवा को अकस्मात ठण्डा कर दिया जाए, तो छोटी-छोटी पानी की बूंदें बन आएगी। लेकिन हर पानी की बूंद मे एक मिट॒टी का जर्रा होता है। अर्थात यदि इन बूंदो मे धूल जरा भी न हो तो पानी जम ही न सके, कुहरा बन ही न सके। विल्सन ने इस तथ्य का प्रयोग उस “अणु” को खोजने में किया, जो थॉमसन को स्वीकार न था। एक उपकरण तैयार किया गया जिसमे एक क्षण मे नमी पैदा की जा सके ओर साथ ही अणु के ये क्षुद्राश भी पैदा किए जा सके। कितने ही साल वह इस समस्या पर लगा रहा और 1911 में एक ‘विल्सन क्लाउड चेम्बर’ बनाने मे सफल हो गया। होता यह है कि जब इन अणुतर कणों को चैम्बर में से शूट किया जाता है–करोडो वायु-कण विद्युत वाहक बन जाते है और पानी की बूदें इन विद्युत वाही कणों पर इकट्ठा होने लग जाती है। इन कणों को विज्ञान मे ‘आयन’ कहा जाता है–जो सूक्ष्म-अणु भी हो सकता है, स्थूल-कण भी” किन्तु अपना एक इलेक्ट्रॉन जब वह खो चुका हो तब ही। मेघगृह के ये यात्रा-मार्ग, जेट-प्लेनो के वाष्प-मार्गो की भांति फोटो पर उतारे जा सकते हैं। और इस प्रकार इन मार्गाकणों के द्वारा इलेक्ट्रॉन की प्रकृति को कुछ अवगत किया जा सकता है। अणु के सूक्ष्म कणों को पहचानने के लिए आज भी विल्सन-चेम्बर का प्रयोग होता है। इस अनुसन्धान की बदौलत विल्सन को 16 साल बाद नोबल पुरस्कार भी मिला।अब कार्य पूरा हो चुका था जे जे थॉमसन का खोजा ऋण अशु’ तुल भी चुका था, उसकी गति भी जानी जा चुकी थी और, एक तरह से उसकी तसवीर भी उतारी जा चुकी थी, और साइन्सदान इसे “इलेक्ट्रॉन’ कहने भी लग चुके थे। वर्तमान इलेट्रॉनिक्स के आपूर्ण विज्ञान की आधार-भूमि यही इलेक्ट्रॉन है। प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर सर जे जे थॉमसन कैवेंडिश लेबोरेट्रीज से मुक्त होकर ट्रिनिटी कालिज का अध्यक्ष मुकर्र हो गया। थॉमसन के ही एक पुराने शागिर्द गर्नेस्ट रदरफोर्ड की जो रेडियो एक्टिव वस्तुओं की रासायनिकता के विषय में अपनी अन्वेषणाओं के लिए नोबल-पुरस्कार प्राप्त कर चुका था, सिफारिश की गई कि इन प्रयोगशालाओ को अब वह संभाले। इस आनन्द में सुखातिरेक की धारा थॉमसन के लिए एक और यह आ मिली कि 1937 मे भौतिकी के नोबल पुरस्कार का अधिकारी उसके पुत्र जॉर्ज पेजेट थॉमसन को स्फटिको द्वारा इलेक्ट्रॉनो के दिशान्तरण (डिफ्रेक्शन) विषयक कार्य पर घोषित किया गया।सन् 1940 में जे जे थॉमसन की मृत्यु हुई। तब उसकी आयु 84 वर्ष थी। यही वह प्रतिभा थी जिसने वस्तु मात्र को विद्युन्मय सिद्ध करके अणु की अविनश्वरता की पुरानी कल्पना को उन्मूलित कर दिया था। इन्सान भी वह कुछ कम महान न था, जिसके प्रेम से कितने ही जन अद्भुत साहसिक कार्य कर गए। वह एक महान अध्यापक था जो विरासत में विश्व को भौतिकी, गणित तथा रसायन में कितनी ही प्रामाणिक पाठ्य-पुस्तके दे गया।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े —-[post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी