जियस की मूर्ति – ओलंपिया में जियस की मूर्ति जिसको बनाने वाले को खुद आश्चर्य हुआ Naeem Ahmad, May 22, 2022March 28, 2024 जिस प्रकार एशिया महाद्वीप मे भारत अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृत के लिये संसार में अग्रणी माना जाता है, उसी प्रकार यूरोपीय महाद्वीप में ग्रीस एवं रोम सभ्यता और संस्कृति के आदि गुरु समझे जाते हैं। ग्रीस देश की सभ्यता बहुत ही प्राचीन है। इस देश ने भौतिक संसार को बहुत कुछ सीख दी है। एक जमाना था कि जब इस देश की पताका संस्कृति और सभ्यता के क्षेत्र में काफी ऊंची लहरा रही थी। उसी की बानगी है ओलंपिया में जियस की मूर्ति, परंतु आज वह बात नहीं है।इतिहास लेखकों का मत है कि पौराणिक काल में ग्रीस के निवासियों में धर्म के प्रति बडी ही प्रबल चेतना थी। लोगो के प्रत्येक कार्य का संचालन धर्म द्वारा निर्धारित सूत्रो पर ही होता था। प्राचीन काल में इस देश के लोग देवी-देवताओं को बहुत अधिक मानते थे और उनकी पूजा-अर्चना किया करते थे। प्राचीन इतिहास लेखक हेरोडोटस ने अपने इतिहास मे ग्रीस के विषय में लिखते हुए कहा है कि इस देश के लोग बडे ही धर्म भीरु थे और अपने हर काम में देवी-देवताओ को प्रमुखता देते थे। जिस प्रकार अपने देश भारत के निवासी ईश्वर के विभिन्न रूप को तरह-तरह की मूर्तियों में देखते हैं और उनकी पूजा करते है, उसी प्रकार ग्रीस देश के निवासी भी भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं को मानते थे। वे भी ईश्वर के तरह-तरह के रूपों की कल्पना का आधार मूर्तियों को मानकर उसकी पूजा किया करते थे। ग्रीस के इन देवताओं मे जियस नामक देवता सबसे बड़े माने जाते हैं। जियस को यहां के निवासी सभी देवताओं मे महान समझते है और इनके प्रति लोगो मे श्रद्धा और भक्ति भावना बहुत अधिक हैं। जिस प्रकार भारत के हिन्दू भगवान इन्द्र को देवताओ का राजा मानते हैं। वही स्थान ग्रीस के देवी-देवताओं मे जियस का है’ ग्रीस देश के निवासियों की यह धारणा है कि जियस ही सभी देवी-देवताओं के राजा है। जिस प्रकार देवराज इन्द्र की पत्नी (इन्द्राणी) का नाम धात्री है, वैसे ही जियस देव की पत्नी का नाम जूनो है। ओलंपिया में जियस की मूर्तिग्रीस देश वाले अनन्त काल से जियस और जूनों की मूर्तियों की पूजा बडी श्रद्धा और भक्ति से करते आ रहे है। उनके जीवन की हर सांस में देवराज जियस और देवरानी जूनो का निवास है। सिर्फ यही नही इतिहास के प्रारम्भिक काल में ग्रीस कला, साहित्य एवं सभ्यता के भिन्न-भिन्न अगों में पूर्णता प्राप्त कर चुका था। ग्रीस के महान साहित्यकार ‘होमर’ का नाम हमने सुना ही है जिसने ‘इलियड’ एव ‘ओडिसी’ नामक महाकाब्यों की रचना की थी। होमर का समय ईसा से ग्यारह सौ वर्ष पूर्व का बताया जाता है। ‘इलियड” की कथा हमारे रामायण की कथा की तरह ही है। जिस सिकन्दर महान की अनेकानेक वीर गाथाएं हम लोगों ने पढी है, वह भी इसी देश का निवासी था। कहते हैं कि कारीगरी के कुछ ऐसे विशेष ढंग जो आज पश्चिम के देशो में प्रचलित हैं सर्वप्रथम ग्रीस देश ने ही उन्हें बताये थे। हेरोडोट्स के इतिहास मे भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि जिन दिनों ग्रीस मे अच्छी से अच्छी सुन्दर मूर्तियां आदि बना करती थीं, उन दिनो संसार के दूसरे देशों को संभवतः इस कला की जानकारी भी नहीं थी।भूल भुलैया का रहस्य – भूल भुलैया का निर्माण किसने करवायाग्रीस देश की जिस मूर्ति ‘जियस की मूर्ति’ का उल्लेख हम अपने इस लेख मे कर रहे है, वह वहां के अत्यन्त ही श्रद्धेय देवता की मूर्ति है। जियस की मूर्ति जिसकी पूजा ग्रीस वाले सदियों से करते आ रहे हैं वह वास्तव मे आश्चर्य जनक है। इस मूर्ति का सौन्दर्य, इसकी विशालता और कारीगरी विश्व भर मे प्रसिद्ध है। संसार के अन्यत्र किसी भी हिस्से मे इतनी सुन्दर एवं अद्भुत मूर्ति अन्य किसी भी स्थान पर नही है। सर्वप्रथम जब संसार के प्रसिद्ध देशों के अन्वेषकों ने इस मूर्ति को देखा था, तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा था। आदमी अपने हाथों से सृजन का ऐसा चित्र संसार के सामने प्रस्तुत कर सकता है, इसकी कल्पना भी वे नही कर सकते थे।ओलंपिया में जियस की मूर्ति का निर्माणजियस की जिस मूर्ति के सम्बन्ध में हम बताने जा रहे हैं वह ग्रीस के सुन्दर नगर ओलंपिया मे बनी हुई है। कुछ लोग इस मूर्ति को इसीलिए ओलंपिया जियस की मूर्ति के नाम से भी पुकारते हैं। इस मूर्ति के निर्माण में कलाकार ने जिस कौशल एवं चातुर्य का परिचय दिया है वह वास्तव में आश्चर्य में डालने वाला है। इसी कारीगरी और कला कुशलता के कारण यह मूर्ति संसार मे इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कर सकी है कि यूरोप में ही नहीं बल्कि संसार के सभी देशों के लिये जियस की मूर्ति आश्चर्य एव कौतूहल की वस्तु बनी हुई है।जियस की मूर्तिविश्व प्रसिद्ध जियस की मूर्ति का निर्माता ग्रीस देश का निवासी एक कुशल कलाकार था। उस कलाकार का नाम था फिडियस। इसी कलाकार फिडियस ने पश्विम के देशों को कला-कुशलता की जानकारी दी। उससे पहले यूरोप महाद्वीप के विभिन्न देशों के निवासी काठ का उल्लू बनाना भी नहीं जानते थे कहते हैं, फिडियस बडा ही चतुर एवं योग्य कलाकार था। इसका जन्म ईसा से पाँच सौ वर्ष पूर्व एथेन्स नगर में हुआ था। कलाकार फिडियस के जन्म काल के सम्बन्ध में कई विद्वानों में मतभेद है। जिन दिनों फिडियस का जन्म हुआ, उन्हीं दिनों सम्राट पेरिक्लियस का जन्म भी एथेन्स नगर में हुआ था।ग्रीस का सम्राट पेरिक्लियस बड़ा ही कला प्रेमी था। उसके समय में फिडियस की कला-कृतियों की धूम भी चारों ओर थी। एक बार सम्राट परिक्लियस ने कलाकार फिडियस को अपने दरबार में बुलाया और उससे कहा कि “फिडियस तुम अपनी कला से मेरे महलों और राजधानी को स्वर्ग के समान सुन्दर बना दो। इसके लिये जितना भी धन लगे, में सहर्ष व्यय करने को तैयार हूँ।” फिर क्या था, फिडियस को अपनी कला दिखलाने का इससे सुन्दर मौका और क्या मिल सकता था। महान कलाकार फिडियस अपने काम में लग गया। उसने सम्राट की राजधानी और महल के लिये एक से एक सुन्दर वस्तुएं बनाई। उसकी बनाई हुईं प्रत्येक कृति अद्भुत होती गई। जो उसकी कलाकृतियों को देखता मन्त्र मुग्ध सा खड़ा देखता ही रह जाता। उसने राजधानी को अलकापुरी और महल को इन्द्र के महल की तरह सजाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उसने अनेक देवी देवताओं की अनोखी आकर्षक मूर्तियां भी बनाई। उन दिनों कलाकारों में प्रतिस्पर्धा होती थी। फिडियस की कला कृति को देखकर सम्राट बहुत प्रसन्न थे। दूसरे कई और अन्य कलाकारों ने भी सम्राट को प्रसन्न करने के लिये फिडियस द्वारा बनाई गई मूर्तियों की तरह ही और कई मूर्तियां बनाई पर फिडियस की मूर्ति की कलाकारी की बराबरी कोई भी न पा सका। जान पडता था की कला की देवी साक्षात फिडियस की कलाकृतियों में निवास करती हैं।रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्यइन मूर्तियों में से फिडियस ने हाथी दांत और सोने एवं कीमती जवाहरातों से भी अनेक मूर्तियां बनाई थी। हाथी दांत और सोने की मूर्तियां बनाने की कला का प्रचार कहते है फिडियस के बाद ही हुआ सर्वप्रथम उसी ने हाथी दांत और सोने से मूर्तियों बनाई थीं। सारे ग्रीस में फिडियस द्वारा बनाई गई इन मूर्तियों की बडी चर्चा रहती थी। दूर-दूर से लोग इन्हें देखने के लिये आते थे। एथेन्स नगर में ऐसी सैकड़ों मूर्तिया थी। लोग इन मूर्तियों की बडी श्रद्धा के साथ पूजा करते थे। इनमें जो कारीगरी की गई थी, उसे देखकर लोगों को जैसे काठ मार जाता था। लोग श्रद्धा और विस्मय के साथ एक टक इन्हें देखते डी रह जाते थे।अपोलो की मूर्ति का रहस्य क्या आप जानते हैं? वे आश्चर्यपरन्तु जिस विशेष, मूर्ति की उल्लेख हम यहां कर रहे है उसे फिडियसने ओलंपिया नगर में बनाया था। ओलंपिया उन दिनो ग्रीस का प्रसिद्ध नगर था और आज भी यह नगर खेलकूद की विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए काफी प्रसिद्ध है। हां तो जियस की वह विश्व प्रसिद्ध मूर्ति इसी नगर में प्रतिष्ठित है। वैसे तो फिर फिडियस ने हाथी के दांत और सोने की अनेक बड़ी-बडी मूर्तियां बनाई, पर ओलंपिया में जियस की मूर्ति उन सभी मे अधिक सुन्दर एवं प्रर्शसनीय सिद्ध हुई। कहते हैं कि पुराने काल मे ओलम्पिया में प्रत्येक सत्तर वे वर्ष पर एक बहुत बड़ा मेला लगा करता था। कोई-कोई विद्वान इसे प्रत्येक उनहत्तरवें वर्ष पर बतलाते हैं। इस मेले का आयोजन एक बडे दालान में होता था। जियस की मूर्ति बनाने का कारण क्या थाइसी मेले के सम्बन्ध की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि एक बार एथेन्स नगर के निवासियों पर इस मेले के संचालन का भार सौंपा गया था। उन्हीं दिनों ग्रीस का महान कलाकार फिडियस एथेन्स छोड कर भाग गया था। कहा जाता है कि मूर्तियां बनाते समय उस पर सोने की चोरी करने का अपराध लगाया गया था। अतः इस डर से कि इस चोरी के कथित अपराध में उसे सम्राट की ओर से फांसी की सजा न दे दी जाए, वह नगर छोड़कर भाग गया। वास्तव में बात ऐसी थी कि फिडियस ने सोना नहीं चुराया था। कुछ दूसरे कलाकारों ने जो फिडियस की ख्याति से जलते थे और उसके विरूद्ध साजिशों की रचना कर रहे थे, उसे फंसाने के लिये सोना चुराया था। बाद में एथेन्स के निवासियों को पता चला तो वे बडे दुखी हुए और फिडियस के प्रति किये गये अन्याय के लिये प्रायश्चित करने लगे।सहारा रेगिस्तान कहा पर स्थित है – सहारा रेगिस्तान का रहस्यओलंपिया नगर के मेले के संचालन का भार जब एथेन्स के निवासियों को सौंपा जया, तो उन्होने वहा पर जियस की मूर्ति प्रतिस्थापित करने की योजना बनाई। मूर्ति के निर्माण के लिये उन्होंने फिडियस से प्रार्थना की। फिडियस तैयार हुआ पर उसने एथेन्स के लोगों से अपने प्रति किये गये अकृतज्ञता का बदला लेना चाहा। उसने सोचा कि ओलंपिया में मैं ऐसी अद्भुत मूर्ति बनाऊंगा जैसी एथेन्स में एक भी नहीं होगी और यही सोचकर उसने विश्व प्रसिद्ध देवराज जियस की मूर्ति का निर्माण किया। फिडियस की कामना पूरी हुई। ओलम्पिया की वह मूर्ति सचमुच मे एथेन्स ही नहीं, बल्कि सारे-संसार मे अपने ढंग की अनूठी अकेली मूर्ति है।प्रत्यक्ष द्रष्ठाओं का कहना है कि सोने और हाथी दाँत की बनी हुई यह मूर्ति इतनी ऊँची थी कि जिस मन्दिर में उसे प्रतिष्ठित किया गया था वह उसकी छत से टकराती थी। मूर्ति को एक मन्दिर में स्थित सिंहासन पर प्रतिष्ठित किय गया था। लोगों का कहना है कि यदि उस मूर्ति को खड़ा किया जाता तो वह इतनी ऊँचाई हो जाती कि मंन्दिर की छत तोड कर बाहर निकल जाती। जियस की मूर्ति के बीच दाहिनी ओर विजय देवी’ की एक छोटी सी मूर्ति थी। उस मूर्ति के सिर पर मुकुट रखा हुआ था और हाथों में माला शोभायमान थी। जियस की मूर्ति के बायें हाथ में एक दण्ड बना हुआ था। यह दण्ड कई प्रकार के धातुओं के सम्मिश्रण से बनाया गया था। जियस को जो वस्त्र पहनाया गया था, वह स्वर्ण का वस्त्र था। जिस हाथ में दण्ड था, उसी पर एक पन्ने की मूर्ति भी बनी हुई थी। मूर्ति के स्वर्ण-वस्त्र पर तरह-तरह की बेल-बूंटे एवं तरह-तरह के पत्तियों के चित्र बने हुए थे जो देखने में बड़े ही मनोरम मालूम पड़ते थे। जियस की मूर्ति का लम्बाई चौड़ाई ऊंचाईजियस की मूर्ति की ऊंचाई का सही-सही पता नहीं चलता है। प्राचीन अन्वेषकों ने भी इसका कोई उल्लेख नहीं किया है। जिस मन्दिर में यह मूर्ति प्रतिष्ठित थी उसकी ऊँचाई 65 फीट की बतलाते हैं। इससे भी हम मूर्ति की ऊंचाई का एक अन्दाज आसानी से लगा सकते हैं। क्योकि पहले ही यह बताया जा चुका है कि मन्दिर के उस कमरे में जिसमें मूर्ति रखी गई थी, मूर्ति का ऊपरी भाग सटता हुआ सा जान पडता था। अतः प्रतिष्ठित अवस्था मे मूर्ति की ऊँचाई प्राय 60 फीट की हो सकती थी।स्टोनहेंज का रहस्य हिंदी में – स्टोनहेंज का इतिहास व निर्माण किसने करवायाजिस सिंहासन पर मूर्ति रखी गई थी वह सिंहासन आबनूस की लकड़ी हाथी दांत और स्वर्ण का बना हुआ था। उसमें चारों तरफ बहुमूल्य मोती और मणियां जडी हुई थीं। मूर्ति के सिर पर आलिव (एक प्रकार का पश्चिमीय वृक्ष) वृक्ष की शाखा की तरह का मुकुट रखा गया था। यह मूर्ति फिडियस की सर्वोत्तम एवं अद्वितीय रचना थी। इसके बन कर तैयार हो जाने के पश्चात उसे स्वयं ही इतना आश्चर्य होने लगा था कि उसे अपने हाथों पर विश्वास ही नही हुआ था’ उसे ताजुब था कि क्या उसी के हाथों ने इस मूर्ति की रचना की है। उसने इस मूर्ति को बनाने में अपने भीतर के कलाकार को पूर्णतः जागृत कर लिया था। अपने समस्त चातुर्य को सजोकर उसने इस मूर्ति का निर्माण किया था। प्रशसा एवं आश्चर्य की बात तो यह थी कि यह मूर्ति देखने में जितनी विशाल लगती थी, उतनी धातु उसमें नहीं लगाई गई थी। जियस मूर्ति की लम्बाई-चौडाई एव डील-डौल को इतने तोले हुये पैमाने पर कलाकार ने बैठाया था, कि कही से भी उसमें कोई कमी नहीं दिखलाई पडती थी।चीन की दीवार कितनी चौड़ी है, चीन की दीवार का रहस्यग्रीस के निवासियों मे, विशेषकर ओलम्पिया नगर के रहने वालों में इस मूर्ति से सम्बन्धित कितनी ही प्रकार की कहावतें एवं किंवदंतियां प्रचलित हैं। लोगो मे इस धारणा का बाहुल्य है कि जब वह मूर्ति बनकर तैयार हो गई तो देवराज जियस उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उनका आनन्द चरम सीमा पर पहुँच जया और वह इतने आनन्द विभोर हो उठे कि अपने समस्त आराधकों की उपस्थिति में ही अपने व्रजास्त्र का मन्दिर में पड़ी मेज पर जोरों से प्रहार किया। जिसके परिणाम स्वरूप उस मेज के टुकडे-टुकड़े हो गये थे। देवराज जियस की प्रसन्नता की इस याद में मेज के टूटे अंश वहीं मन्दिर में बडे चाव से रखे गये थे।इस मूर्ति मे निहित कलात्मक चमत्कार को देखकर लोगों को आश्चर्य और कौतृूहल दोनों ही होता था। इसमें जितने हाथी दांत का इस्तेमाल किया गया था, उसका अन्दाज लगाना कठिन है। लोगों का कहना है कि हजारों की संख्या में हाथियों की हत्या की गई थी और उनके दांत उखाडे गये थे। उन दांतों को तेज यन्त्र से फाड कर पतले-पतले बारीक तख्ते तैयार किये गये थे। उन्ही से विश्व के इस आश्चर्य जियस की मूर्ति का निर्माण हुआ था। उतने पतले-पतले हाथी दातों से किस प्रकार इतनी सुन्दर एव विशाल मूर्ति बनी थी यह साधारण मस्तिष्क के लिए कल्पना से भी दूर की बात है।सहारा रेगिस्तान कहा पर स्थित है – सहारा रेगिस्तान का रहस्यहमने पहले यह उल्लेख किया है कि ग्रीस की राजधानी एथेन्स नगर में फिडियस और अन्य दूसरे कलाकारों ने कितनी ही मूर्तियां बनाई थीं। उन मूर्तियों के निर्माण में जिस हिंसा का सहारा लिया गया था, उसकी कल्पना भी कम आश्चर्य जनक नही है। जहां एक तरफ उन मूर्तियों मे की गई कारीगरी के अद्भुत सौंदर्य की हम सराहना करते हैं जिन्हें देखते ही कोई भी प्रथम झलक में मानवी सृजन के पुष्प नहीं मान सकता, वही दूसरी तरफ इन निर्माण कार्यों में प्रस्तुत साधनों के लिये जो हिंसा की गई होगी वह भी रोंगटे खड़े कर देने वाली लगती है।उन मूर्तियों के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करते हुये एक अंग्रेंज विद्वान ने लिखा है-”उन मूर्तियों को बनाने में जितने हाथी दांत लगे थे, उसके लिये हजारों क्या लाखों की सख्या में हाथियों को हत्या की गई होगी।इसके लिये न जाने कितने ही हाथी ग्रीस वालो को बाहर दूर-दूर के देशो से मंगवाने पडें होगे और उनकी हत्या करके दाँत निकाले गये होंगे।’ ध्वस्त पर ही निर्माण की नींव रखी जाती है। आज भी मनुष्य अपने आनंद और सुख के लिये प्रतिदिन ही लाखो-लाखो पशुओ की हत्या करता है। यही नही, आदमी पर आदमी का शासन करने की लोलुपता का स्मरण ही कीजिये तो पता चलेगा कि अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये एक देश की हजारों-हजारों जनता का रक्तपात करना पड़े, तो वह उसे पाप अथवा अधर्म मानने को तैयार नही, अतएव, ग्रीस के उस गौरव चिह्न तथा अद्भुत कला-कृतियों की पृष्ठभूमि में हजार दो हजार हाथियो की हत्या का कलंक भी छिपा हो,तो वह कोई महत्त्व नहीं रखता। एथेंस का मिनर्वा मंदिरजियस की जिस मूर्ति का उल्लेख ऊपर किया गया है, वह तो कलाकार की अद्वितीय करीगरी है ही, अब हम उस मन्दिर की थोडी-सी जानकारी भी प्राप्त कर ले, जिसमें वह संसार प्रसिद्ध मूर्ति प्रतिष्ठित की गई थी। यह मन्दिर अत्यन्त ही सुन्दर है। इसकी दीवार में बड़े ही आकर्षक ढंग से तरह-तरह की चित्रकारी की गई है। अनेक देवी-देवताओं की आकृतियों मन्दिर की दीवारों पर बनाई गई थीं। इनमें ग्रीस के तत्कालीन सम्राट के भी चार चित्र बने हुए थे। सम्राट के ये चित्र संजमूसा और संगमरमर पत्थरों के मेल से बनाये गये थे। दीवार पर जो आकृतियां बनाई गई थीं, उन्हे देखने से बडा आश्चर्य होता था। इतनी सफाई के साथ उनकी कांट-छांट की गई थी कि कहीं से कोई त्रुटि नजर नहीं आती थी। उन्हे देखते ही लोग दांतो तले अंगुली दबाने लगते थे। कारीगरी का ऐसा अद्भुत चमत्कारिक रूप संसार में अन्यतंत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता। सारा का सारा मंदिर सफेद संगमरमर के पत्थर का बना हुआ था। मन्दिर के सामने वाले स्थान की लम्बाई-चौडाई 240 हाथ की बताई जाती है मन्दिर मे 420 स्तम्भ थे और इन्हीं स्तम्भों पर मंदिर की छत अड़ी हुई थी। ओर इटली के निवासी तो उस आदमी को एकदम अभागा आदमी समझते थे, जो अपने जीवन मे एक बार उस मूर्ति का दर्शन नही कर पाता था।अटलांटिस द्वीप का रहस्य – अटलांटिक महासागर का रहस्यसंसार का वह महान आश्चर्य आज पूर्णरूप से वर्तमान में नहीं है। ग्रीस का वह गौरव महान काल के जाल में समा गया है। नियम के क्रूर हाथो ने कलाकार की आभा के उस अनुपम एवं अद्वितीय सोपान को छिन्न भिन्न कर दिया है अब उसके कुछ अवशेष मात्र बचे छुए है। मंदिर के 420 स्तम्भों मे से जिन पर मन्दिर की छत खड़ी थी, सोलह स्तम्भ आज भी खडे हुए है। इनमें से प्रत्येक स्तम्भ की लम्बाई चालीस हाथ की है। कलाकार फिडियस की कृतियों का अद्भुत नमूना आज भी ग्रीस में देखने को मिलेगा। एथेन्स नगर मे उसका बनाया हुआ एक मंदिर “मिनर्वा मंदिर” आज भी फिडियस की कलाकारी का अदभुत नमूना है। आज मिनर्वा के इस मन्दिर के मुकाबले मे कारीगरी का सुंदर नमूना दूसरा देखने को कही नही मिलता। मिनर्वा ग्रीस निवासियों की देवी है। अत्यन्त ही प्राचीनकाल से इस देश के निवासी देवी मिनर्वा को पूजते आ रहे है। मिनर्वा देवी के इस मन्दिर को बनाने मे फिडियस ने अपनी कला का अद्भुत चमत्कार दिखलाया है। उसकी कारीगरी का अपूर्व नमूना देखना एवं उसका सच्चा सौन्दर्य पान करना तो तभी संभव हो सकता है जब एक बार उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो।यह मन्दिर भी संगमरमर के पत्थरों से बना हुआ है बड़े आश्चर्य की वस्तु इसमे यह देखने को मिलती है कि कलाकार फिडियस ने उस मंदिर के द्वार पर मिनर्वा देवी के जन्म की पूरी कथा अंकित कर रखी है। मिनर्वा देवी की जो मूर्ति फिडियस ने बनाई थी, दुर्भाग्य से वह मूर्ति भी आज विद्यमान नही है। विद्वानों का कहना है कि सम्राट पैरिक्लियस की मृत्यु के सवा सौ वर्ष बाद उस मूर्ति को लोगो ने तोड-फोड दिया (किन लोगों ने तोड़ा, इसका उल्लेख नहीं मिलता)। पर सौभाग्य से मन्दिर आज भी ज्यों का त्यों खडा है। मछर्ति के सम्बन्ध में विद्वानों का मत है कि उसका मूल्य लगभग 20 लाख रुपये होगा। वह मूर्ति 25 हाथ ऊँची थी तथा सोना एवं हाथी दांत से बनाई गई थी। इस मन्दिर के बनवाने में श्री सम्राट पैरिक्लियस ने अपरिमित धनराशि व्यय किया था। कहते है कि इन मूर्तियों के निर्माण के लिए सम्राट दूर-दूर देशों से हाथियों को मंगाने के लिए अपने विश्वसनीय आदमियों को भेजता था हाथियों को मारकर उनके दांत जड़ से खोदकर काम में लिये जाते थे और उन्हीं से उन प्रतिमाओं का निर्माण हुआ था।तूतनखामेन का रहस्य – तूतनखामेन की कब्र वह ममी का रहस्यसमय के साथ-साथ सब कुछ मिट जाता है। उसी प्रकार जियस की वह महान आश्चर्य जनक प्रतिमा अब संसार में विद्यमान नहीं है। परन्तु जिन पुराने यूरोपीय विद्वान अन्वेषकों ने उन्हे देखा था उनके वर्णन आज भी यत्र तंत्र पढ़ने को मिलते है। वे वर्णन काफी सजीव है एव कला कृतियों में की गई अद्भुत कारीगरी का प्रमाण यह है कि उन्हे पढ़ कर ही हमे आश्चर्य में डूबे रह जाना पड़ता है। एक ऐसे काल में जब आदमी के पास आज के जितने साधन नही थे, वैसा काम करना जैसा आज के अच्छे से अच्छे संसार प्रसिद्ध कलाकार भी नहीं कर सकते बडे अचम्भे की बात । काश, आज जियस की मूर्ति और वे प्रतिमाएं विद्यमान होती, संसार के लोग उनसे बहुत कुछ सीख सकते थे।जैसे-जैसे ग्रीस की संस्कृति एवं सभ्यता का ह्वास होता गया। वैसे ही वहाँ की स्मृतियां भी मिटती गई। महाकवि होमर का ग्रीस, विश्व विजेता महान सिंकन्दर का ग्रीस, विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटों और अरस्तू का ग्रीस अब एक मात्र पौराणिक अवशेषों के रूप मे संसार मे विद्यमान है पर उसकी महानता आज भी वैसी ही वर्तमान है और संभवत आने वाले हर समय मे भी वह पुकार पुकार कर संसार को अपनी गौरव गाथा सुनाता रहेगा।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”9142″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... दुनिया के प्रसिद्ध आश्चर्य विश्व प्रसिद्ध अजुबे