जालौन का इतिहास समाजिक वह आर्थिक स्थिति Naeem Ahmad, September 4, 2022March 26, 2024 जालौन जिला उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है, जिसका जिला मुख्यालय उरई है। जनपद जालौन को इसी तहसील का नाम मिला है। जालौन एक बड़ी तहसील है जो कि उरई मुख्यालय के पश्चिम में 26° और 26° 27° उत्तर एवं 79° 3° और 79° 31° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसी है। इसकी उत्तरी सीमा यमुना नदी द्वारा घिरी है। जालौन तहसील के अन्तर्गत जालौन कस्बा भी है जो कि 26° 8° उत्तरी अक्षांश और 79° 21° पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। जालौन का इतिहासजालौन का इतिहास देखने पता चलता है कि यह क्षेत्र जालिम सिंह द्वारा बसाया गया था। वस्तुतः यह क्षेत्र सेंगर क्षत्रियों के अधिपत्य में था तथा इटावा के मेरब तक इनका प्रभाव था। इन सेंगर राजाओं ने जालिम सिंह को पुरोहिती के उपलक्ष्य में यह क्षेत्र दिया था। जालिम सिंह एक सनाढय ब्राहमण थे जिनका गोत्र मेरह था। एक अन्य विचारानुसार महर्षि उद्दालक का आश्रम उरई था तथा उसकी सीमायें काफी विस्तृत व घोर वनों से आच्छादित थी इसी कारण वे उद्दालक वन कहलाने लगे। यही उददालक वन से दालकवन तथा दालवन वन और दालवन से जालवन हो गया। यह स्थान किसी नदी आदि के किनारे नहीं है अतः इसका प्रारंभ में न तो कोई राजनैतिक महत्व था और न ही व्यापारिक।भैरव जी मंदिर रामपुरा जालौन उत्तर प्रदेशयह क्षेत्र कालपी द्वारा ही संचालित होता था। सन 1729 में पेशवा की सहायता से मुहम्मद बंगश खाँ के पुत्र कायम खाँ को छत्रसाल द्वारा जब पराजित कर दिया गया तब छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को अपने राज्य का 1/3 भाग देना स्वीकार किया था। जिसे उनके पुत्र हिरदेशाह ने जिसके नाम से आज भी जालौन में एक मुहल्ला बसा हुआ है। सन 1738 में यह क्षेत्र मराठों को दे दिया और सन 1738 के उतरार्द्ध तक जालौन राज्य की स्थापना हो गई तथा गोविन्द राव बुन्देला इसके प्रथम राजा बने। ये खेर परिवार के थे।जालौन का इतिहासजालौन को राज्य की राजधानी बनाने का अर्थ केवल यह था कि मुगलों को राजधानी तक पहुंचने के पहले कई स्थानों पर राज्य की सेना से युद्ध करना पड़े। इस राज्य का झन्डा लाल रंग का था। राजधानी बनते ही इसका महत्व बढ़ने लगा। यहाँ पर अनेक महाराष्ट्रीयन वैश्य मारवाड़ी आदि जातियों के लोग आकर बसने लगे। सन 1761 में पानीपत के युद्ध में गोविन्द राव बुन्देला की मृत्यु हो गई उसके पश्चात कौन उत्तराधिकारी हुआ इसका सही प्रमाण नहीं मिलता है।करण खेड़ा मंदिर जालौन – करण खेड़ा का इतिहास व दर्शनीय स्थलसन 1776 में कर्नल गोड़ार्ड को बंगाल सरकार द्वारा एक बड़ी सेना के साथ बुन्देलखण्ड में बम्बई सरकार की सहायतार्थ भेजा गया। जिसने कालपी पर तथा इस क्षेत्र पर भी अपना अधिकार कर लिया। सन 1857 तक बुन्देलखण्ड के प्रमुख राज्यों में जालौन का भी राज्य था। गोविन्द राव की मृत्यु के पश्चात् उनकी पौत्री ताई बाई राज्य की शासिका बनी। सन 1857 की क्रान्ति में ताई बाई ने क्रियाशील भूमिका निभाई। परन्तु अंत में उसे व उसके परिवार जनों को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कैद कर लिया गया।जालौन की आर्थिक दशाइस क्षेत्र की आर्थिक दशा अच्छी थी। इस क्षेत्र पर पहले सेगरों का अधिपत्य था। इनकी अच्छी काश्तकारी थी। जिसके कारण ये लोग आर्थिक रूप से खूब सम्पन्न थे। जनसामान्य की आर्थिक दशा विशेष अच्छी नही थी। मुख्य रूप से लोग कृषि कार्यो में ही जुटे रहते थे। व्यापार भी कृषि आधारित ही था। किसी वस्तु का निर्यात आदि नहीं होता था। सामान्य जन इन सेंगर राजाओं की कृपा पर ही अपना जीवन यापन करता था।जालौन की सामाजिक दशासमाज में शिक्षा का अभाव था। जिसके कारण समाज प्रगति शील नहीं हो सका। सभी सामाजिक एवं धार्मिक उत्सव इन राजाओं के इशारों पर ही सम्पन्न होते थे। शादी विवाह में भी इन राजाओं का काफी हस्तक्षेप रहता था। निर्बल वर्ग असहाय था। स्त्रियों की दशा अच्छी नही थी। उन्हे भोगविलास की वस्तु समझा जाता था। मराठो के आने से स्त्रियों को समाज में कुछ मान्यता प्राप्त होने लगी थी।भवनों के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियाँ एवं पृष्ठ भूमियाँयहां पर सेगरों के अधिपत्य होने के कारण तमाम सेंगर राजाओं ने अपनी सुरक्षा के लिये अपनी अपनी गढ़ियों का निर्माण कराया था जैसे जगम्मनपुर , रामपुरा , हरदोई, सिरसा, बाबई इत्यादि। समाज में सबल केवल यही राजा थे शेष कुछ जनो को छोड कर सभी निर्बल थे अतः उन सभी निर्बलो के छोटे छोटे कच्ची मिई तथा फूस के मकान थे। कुछ आर्थिक रूप से सम्पन्न वैश्यों व राजघरानों से सम्बन्धित व्यक्तियों के आवास गृह सुन्दर व मजबूत बने थे। भवनो का निर्माण मुख्यतः रह राजाओं द्वारा राजकीय कोष से कराया गया था। जब गोविन्द राव बुन्देला जालौन के राजा बने तब उन्होने ही लक्ष्मी नारायण मन्दिर, गोबिन्देश्वर मन्दिर, बावडी आदि का निर्माण कराया था। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized हिस्ट्री