जय निवास उद्यान जयपुर – जय निवास गार्डन Naeem Ahmad, September 14, 2022February 20, 2024 राजस्थान की राजधानी और गुलाबी नगरी जयपुर के ऐतिहासिक इमारतों और भवनों के बाद जब नगर के विशाल उद्यान जय निवास मे आते है तो चंद्रमहल के सामने ऐसा चित्रोपम दृश्य उपस्थित होता हैं जो मुगलो के शाही किलो मे भी नही है। किन्तु यह सही है कि जयपुर बसने के समय तक मुगल स्थापत्य और शिल्प आगरा के ताजमहल और एतमादुद्दौला के मकबरे, दिल्ली के लाल किले की शाही इमारतों और दूसरे उद्यान-भवनों मे अपनी सुन्दरता और भव्यता की पराकाष्ठा को पहुंच चुके थे। इसलिये यह स्वाभाविक था कि सवाई जयसिंह भी अपने महल की रूप रेखा मे बागायत को इमारत जितना ही महत्त्व देता। जिस तालाब के किनारे शिकार की ओदी मे बैठकर सभवत पहली बार उसने इस सुन्दर नगर की कल्पना की थी, वही “ताल कटोरा” उस विशाल उद्यान का उत्तरी छोर बना जिसे ”जय निवास उद्यान का नाम दिया गया। चंद्रमहल इस बाग के दक्षिणी छोर पर बनाया गया और पूर्व तथा पश्चिम मे ऊंची और मजबूत दीवारो से घेर कर इस राजसी उद्यान भवन की हदबंदी की गई। गोविन्द देव जी का मंदिर (सूरज महल) इस बाग के बीच मे विशाल बारादरी थी और दक्षिणी छोर पर ताल कटोरे में मुंह देखता बादल महल बनाया गया था।जय निवास उद्यान जयपुरजय निवास उद्यान अनिवार्यत एक मुगल बाग है और इसकी विशेषता बहते पानी की उन नहरों मे है जो पूरे बाग को अलग- अलग निचले तख्तों मे बांटती चली जाती है। चंद्रमहल के सामने संगमरमर का हौज अतीव सुन्दर है और जताता है कि बागानों की जिन्दगी पानी से ही है। रियासती तौर-तरीको और क्रब-कायदो ने जय निवास उद्यान, चंद्रमहल और बादल महल को कडे़ पहरे मे बंद पर्दानशीन सौंदर्य की तरह रखा और इस मनोरम जय निवास गार्डन तथा इसके भव्य भवनों की विशेषताओं को उजागर न होने दिया।जयपुर राज्य का इतिहास – History of Jaipur stateजय निवास गार्डन मुगल-उद्यान-कला के सर्वोत्कृष्ट नमूनों मे गिना जा सकता है। इसकी योजना आज भी वैसी ही है जैसी जयसिंह के समय मे थी। अठारहवी सदी के आरंभ मे भारतीय रईसों की सुरुचि और सौंदर्य-प्रेम का अनुमान लगाने के लिए यह एक सशक्त उदाहरण है। भरतपुर मे डीग के गोपाल भवन के फव्वारो की छटा का बडा नाम है, लेकिन जय निवास उद्यान के फव्वारों को चलते हुए जिन्होने देखा है, वे मानेगे कि यह भी डीग से होड लगाने वाला है, यद्यपि यहां की जलधाराओं मे रंगो की वैसी छटा नही होती।जय निवास उद्यानचंद्रमहल के नीचे से दोनो ओर पत्थर जडे़ मार्गों के बीचो-बीच जो नहर गई है उसको दोनो ओर से आने वाली ऐसी ही नहरें समकोण पर काटती है। ठीक उसी तरह जिस तरह जयपुर नगर के मार्ग एक-दूसरे के आर-पार जाते है। इस प्रकार बाग मे जो चौराहे बनते है, वहा होज बने है। सभी नहरों के बीच मे थोडे- थोडे फासले से फव्वारे लगे हैं जिनकी सख्या हौजों मे और भी ज्यादा हो जाती है। चला देने पर सावन-भादो का दृश्य उपस्थित होता है और अच्छी हवा चलती हो तो फूहारों के आनन्द के क्या कहने।ईसरलाट जयपुर – मीनार ईसरलाट का इतिहासआमेर की पहाडी पथरीली भूमि मे बाग-बगीचो की वैसी गुंजाइश नही थी जैसी जयपुर बसाने पर हुई। जब इतना बडा बाग लगाया जाने लगा तो उसके लिए पेड-पौधो का चुनाव भी एक बडा काम था। जयपुर और चौमू के इतिहासकार स्वर्गीय हनुमान शर्मा का कथन है कि गुलाब, दाऊदी और सोनजाय के सैकडो पेड़ चौमू के मिया विलायत खां के बाग से यहां आये थे। मिया जी चौमू मे मुसाहव या कामदार थे जिन्हे जयपुर रियासत से भी जागीर थी। चौमू के बाहर ‘नाडा’ नामक स्थान मे उन्होने एक मस्जिद बनवाई थी और एक विशाल बाग भी जिसके सोन जाय, दाऊदी, कमरख और खिरनी के पेड़ बडे नामी थे। जिस मिली जुली हिन्दू-मुस्लिम शैली मे अन्य इमारतें तथा जय निवास उद्यान की योजना बनी, मिया विलायत खां उसके भी प्रतीक थे। अभिवादन मे ”राम-राम” या “सीताराम कहते, दान-पुण्य, पूजा-पाठ और ब्राहमण भोजन तक में श्रद्धा दिखाते और अपने स्वामी, चौमू-ठाकूर मोहनसिंह नाथावत की वफादारी के साथ नौकरी बजाते। सवाई जयसिंह ने भी इस “मुसलमान हरिभक्त को पन्द्रह सौ रुपये सालाना आय की जागीर बख्शी थी।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानजय निवास उद्यान मे गोविन्द देव जी के मंदिर के पिछवाडे का विशाल हौज सवाई प्रतापसिंह ने बनवाया था। रंग-बिरगे कांचो से बने झरने से गिरकर हौज का पानी आगे निचले बाग मे जाता था। इस हौज के पूर्व मे ‘सावन-भादो’ नामक फर्न-हाउस भी कभी बहुत सुन्दर और दर्शनीय था, जिसमे कल घुमाते ही सब ओर लगे छेददार नलो से पानी चलने लगता था और वर्षा का नजारा बन जाता था। प्रतापसिंह के बाद जयपुर को जो बुरे दिन देखने पडे उनमें जय निवास उद्यान की भी बडी उपेक्षा हुई। 1835 ई मे महाराजा रामसिंह गद्दी नशीन हुए और उन्होने सारे जयपुर के जीर्णोद्धार के साथ जय निवास उद्यान को भी वह सौंदर्य और गरिमा लौटाई जो उनके 60-70 साल पहले तक रही थी। बारहदरी या गोविन्द देवजी के मंदिर के सामने दाहिनी ओर जो पीली इमारत बनी हुई है, वह रामसिंह ने ही बनवाई थी। यह ‘ बिलियार्ड रूम है जिसका स्थापत्य चंद्रमहल या गोविन्द मंदिर से अलग-थलग मालूम होता है। इसकी छत बहुत ऊंची है और मेहराबे सुन्दर जो इटालियन संगमरमर के स्तभों पर उठी हैं। 1875 ई मे ग्वालियर का महाराजा जियाजी राव सिंधिया महाराजा रामसिंह का मेहमान बनकर जयपुर आया था तो उसने यही बिलियार्ड पर अपने हाथ आजमाये थे। महाराजा मानसिंह ने इसे ‘बेक्चेट हॉल’ का रूप दिया और यह आज भी इसी रूप मे सुसज्जित है। बिलियार्ड रूम के ठीक सामने बाग के दूसरे तख्ते मे ऊची दीवारों से घिरा एक बडा-सा अहाता है जिसमें तरणताल है।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानमहाराजा मानसिंह (1922-70ई ) ने जय निवास उद्यान के पत्थर जडे मार्गों, पानी की नहरों और मध्यवर्ती भाग को तो नही छेडा, किंतु बाग को उन्होने आधुनिक उद्यान-कला के अनुरूप बनवाया। इससे नगर की शोभा मे अभिवृद्धि ही हुई है। जय निवास उद्यान चंद्रमहल से बादल महल तक फैला है और बाग के बीचो-बीच गोविन्द देव जी के मंदिर के पश्चिम मे एक छोटा दरवाजा निचले बाग मे जाने का रास्ता है, जो पहले ऊपर के सजावटी बाग की तुलना मे फलों का बगीचा था। अब तो यह बाग (निचला) कर्नल भवानी सिंह ने जयपुर नगर परिषद को दे दिया है जिससे नगर के दक्षिण मे रामनिवास बाग की तरह उत्तर मे यह जय निवास बाग एक सार्वजनिक उद्यान बनकर इस ओर के नागरिकों के विहार और मन-बहलाव का अच्छा स्थल बन गया है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल जयपुर के दर्शनीय स्थलजयपुर पर्यटनजयपुर 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