जंतर मंतर दिल्ली इन हिन्दी – जंतर मंतर दिल्ली हिस्ट्री Naeem Ahmad, February 12, 2023March 24, 2024 दिल्ली में स्थित जंतर मंतर दिल्ली एक खगोलीय वैधशाला है। जंतर मंतर अथवा दिल्ली आवज़स्वेट्री दिल्ली की पार्लियामेंट स्ट्रीट (सड़क ) पर स्थित है। यह आकाश-लोचन यंत्र-मंत्र महाराज जयपुर ने बनवाया था। इस पर कभी महाराज जयपुर की ध्वजा- पताका फहरा करती थी। जंतर मंतर का निर्माण कार्य 1710 ई० में हुआ था। इसे जयपुर महाराज जयसिंह ने बनवाया था। महाराज जयसिंह एक बड़े ज्योतिषी थे उन्हें नक्षत्रों और ग्रहों और तारा गणों के सम्बंध में अधिक ज्ञान प्राप्त करने का बड़ा चाव था। महाराज ने हिन्दू, मुस्लिम तथा यूरोपीय ज्योतिष-शास्त्र की पुस्तकों का अध्ययन किया ओर उसके पश्चात् यह जंतर मंतर बनाने का निश्चय किया। ऐसा ही एक जंतर मंतर उन्होंने जयपुर में भी बनवाया। इसमें नक्षत्र शाला के यंत्र इतने बड़े ओर भारी हैं कि न तो वह हिल-डुल सकते हैं और न गणना में ही किसी प्रकार की त्रुटि हो सकती है। इस नक्षत्र-शाला को बनाने के पश्चात् महाराज जयसिंह ने सात वर्ष तक नक्षत्रों और ग्रहों की चाल का अध्ययन यंत्रों की सहायता से किया ताकि वह तारा-गणों नक्षेत्रों और ग्रहों की एक नई तालिका बनावें। फिर भी उन्हें संतोष नहीं हुआ ओर उन्होंने जयपुर, बनारस, उज्जैन ओर मथुरा आदि स्थानों में नक्षत्र- शालाएं बनवाई। इनमें भी उन्होंने अपने अध्ययन तथा प्रयोग किये । जब सभी स्थानों की गणनाओं का परिणाम एक ही हुआ तो उन्हें संतोष हुआ। इस प्रकार पंडितों और ज्योतिषियों को ज्योतिष गणना में सहायता मिल गई। इन्हीं स्थानों की सहायता से पंचांग ( पत्रा, यंत्री ) तैयार किये जाते हैं। जंतर मंतर दिल्ली इन हिन्दी — जंतर मंतर दिल्ली हिस्ट्री जंतर मंतर दिल्ली नक्षत्रशाला में छः यंत्र हैं।( 1 )समरथ (2) जय प्रकाश (3 ) राम यंत्र ( 4 ) मिश्र यंत्र (5) नापक यंत्र ( 6 ) दो स्तम्भ। समरथ यंत्र:– यह सब से बड़ा यंत्र है श। यह एक बड़ी सूर्य घड़ी है। इसे ज्योतिषी लोग धूपघड़ी का कांटा कहते हैं। यह समकोण त्रिभुजाकार है। यह प्रथ्वी पर इस प्रकार स्थापित किया गया है कि इसका कर्ण प्रथ्वी के साथ उतने अंश का कोण बनाता है जितने अंश पर दिल्ली की अक्षांश ( 28°, 3,4 ) बनाती है। इस प्रकार कर्ण सदैव उत्तरी ध्रुव की ओर संकेत करता रहता है ओर प्रथ्वी की कीली के समानान्तर रहता है। इस कर्ण पर सीढ़ियां जिससे लोग चढ़कर अंकों का अध्ययन करते हैं। सूर्य घड़ी के दोनों ओर ईंट के बने हुये दो छोटे यंत्र हैं। यह वृत के चौथाई रूपाकार है इन्हीं पर सूर्य घड़ी की छाया पड़ती है ओर सूर्य-समय बतलाती है। इनपर कोई भी व्यक्ति समय पढ़ सकता है। इनके उत्तर की ओर जो चिन्ह हैं उनसे घंटा, मिनट और सैकंड का ज्ञान होता है दक्षिणी चिन्हों, घड़ी पल और विपल का ज्ञान होता है।इस यंत्र का धूप में अध्ययन करने से पता चलता है कि किस प्रकार प्रथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। जंतर मंतर दिल्ली जयप्रकाश यंत्र:– यह एक पेचीला यंत्र है। इसे स्वयं महाराज जयसिंह ने बनाया है। इसके दो भाग हैं इन अर्ध भागों का रूप कटोरे का सा है। इसका अर्थ यह है कि आकाश के दो भाग कर दिये गये हैं और प्रत्येक कटोरा आधे भाग का सम्बोधन करता है। आवश्यक बिन्दु तथा वृत इस पर खिंचे गये हैं। बीच में एक लोह- स्तम्भ है। स्तम्भ में चार खूंटियां हैं जो चारों दिशाओं की ओर स्थित हैं। पूर्वी गोलार्ध के दक्षिणी भाग के सामने भीतके निचले भाग में एक छिद्र है। इस छिद्र होकर वर्ष भर में केवल एक दिन ( 21 मार्च ) सूर्य का प्रकाश पड़ता है। दीवार के अंक उस दिन बतलाते हैं कि जब रात दिन बराबर होता है तो सूर्य का स्थान आकाश में कहां रहता है। राम यंत्र:– जयप्रकाश यंत्र के दक्षिण राम यंत्र स्थित है। इसमें दो गोलाकार यंत्र हैं यह भीत की भांति स्थित हैं। प्रत्येक के केन्द्र में स्तम्भ है। इनसे अंक्षाशों तथा देशान्तरों का ज्ञान होता है।मिश्र यंत्र– एक ही भवन में पांच यंत्र मिश्रित हैं इसी से इसे मिश्र यंत्र कहते हैं। इनमें से नियम चक्र यंत्र समरथ यंत्र की भांति सूर्य घड़ी सा है। इसके दोनों ओर दो अर्धवृताकार यंत्र हैं ग्रीविच ( इंग्लैंड ) जूरिच ( स्विटज़रलैंड ) नाटकी (जापान) सेरिच ( पिकद्वीप ) आदि स्थानों की भांति भारत का यह यंत्र (गोले ) भी हैं जहां से देशांतरों की गणना होती है। इस वृतों के द्वारा जब दिल्ली में दोपहर होती है तो ग्रीविच, जूरिच नाटकी सेरिच्यू आदि स्थानों का समय जाना जा सकता है। दूसरे यंत्र दूसरे कार्यो के लिये हैं। मिश्र यंत्र के दक्षिण की आर के दोनों स्तम्भ साल का सब से बड़ा ओर सबसे छोटा दिन ( 1 जून ओर 21 दिसम्बर ) बतलाते हैं। दिसम्बर में एक स्तम्भ की पूर्ण छाया दूसरे स्तम्भ पर पड़ती है।जून में इसकी छाया दूसरे पर बिलकुल नहीं पड़ती है। समरथ यंत्र चौकोर है ओर 20 फुट गहराई में बनाया गया है। उत्तर से दक्षिण इसकी लम्बाई 120 फुट और पूर्व से पश्चिम 125 फुट है। इसके कुछ भाग की नीव पृथ्वी के धरातल से नीचे है। ऊंचाई 60 फुट से अधिक है। समकोण त्रिभुज की बड़ी भुजा 113.1/2 फुट, छोटी 60.3 फुट और कर्ण 128 फुट हैं। राम यंत्र के वृतों का भीतरी अर्ध व्यास 24 फुट 6 इंच का है ओर केन्द्रीय स्तम्भ का व्यास 5 फुट 3 इंच है। मिश्रयंत्र पांच भिन्न यंत्रों का मिश्रण है। इसमें नियत, समरथ, आग्र, दक्षिणी ऋति ओर करकरसी वलप आदि हैं। समरथ यंत्र के पश्चिम की ओर एक छोटा सा भवन है जिसमें एक चौकीदार रहता था इसी भवन के ऊपर राज ध्वजा फहराती रहती थी। जंतर मंतर दिल्ली का बहुत ही प्रसिद्ध स्थल है बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। वर्तमान जंतर मंतर दिल्ली धरनों प्रदर्शनों के लिए भी जाना जाता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”7649″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new 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