चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास Naeem Ahmad, August 27, 2022February 24, 2024 चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी के दक्षिणी तट पर बसी कालपी नगरी के दक्षिणी किनारे पर कालपी उरई रोड पर स्थित है। यह चौरासी गुंबद अत्यन्त प्राचीन है। चौरासी गुंबद कालपी की ऐतिहासिक इमारतों में से एक उल्लेखनीय इमारत है।चौरासी गुंबद का इतिहासचौरासी गुंबद का ऐतिहासिक अवलोकन विभिन्न मतो से आवेधित है। इसके विषय में कहा जाता कि यह बहुत प्राचीन इमारत है व आकृति के दृष्टि से यह बौद्ध भवन प्रतीत होती है। इस चौरासी गुंबद भवन को अशोक कालीन विद्यालय दर्शाते हुये कहा गया है कि यह आपरष्ठ चौरासी गुंबद के नाम से विख्यात है।पाहूलाल मंदिर कालपी – पाहूलाल मंदिर का इतिहाससन 1928 में श्री रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा राजस्थान व कलकत्ता विश्वविद्यालय के इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रो० यदुनाथ सरकार ने कालपी भ्रमण के समय स्व० कृष्ण बलदेव वर्मा के यहाँ निवास किया था और उसी प्रवास के समय इन लोगो ने बतलाया था कि कालपी में चौरासी गुम्बद व अन्य मठ बौद्ध कालीन है। सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात् एक विश्व स्तरीय सम्मेलन कालपी में हुआ था, और उसी आयोजन के अन्तरगत यह चौरासी गुंबद निर्माण किया गया था।सूर्य मंदिर कालपी – कालपी सूर्य मंदिर का इतिहासएक अन्य मतानुसार कालपी के दक्षिण भाग के एक सिरे पर एक बौद्ध मठ स्तूप सा प्राचीन भव्य खंडहर है। कभी इस भवन में चौरासी गुंबद व दरवाजे थे। अतः इसका नाम चौरासी गुंबद पड़ा। इस भवन में कुछ पत्थर बौद्धकालीन शिल्प की छाप लिए हैं। संभव है कौशाम्बी और जीजाक नामक बौद्ध राज्यों के मध्य स्थित यह कालपी शहर बौद्ध प्रभाव में रहा हो। एक जनश्रुति के अनुसार चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय यहाँ एक बौद्ध मठ उच्च शिक्षा संस्थान एवं आवास ग्रह था। मध्यकालीन लोधी वंशजों के विशाल मकबरा चौरासी गुंबद को बौद्ध कालीन मठ भी बहुत से लोग मानते हैं।गणेश मंदिर कालपी – गणेश मंदिर का इतिहासहिजरी 791 में सुल्तान मुहम्मद उर्फ महमूद शाह लोधी ने कालपी लहरिया राजा उफ श्रीचन्द्र पर आक्रमण कर उसे परास्त किया था। उसी विजय के फलस्वरूप चौरासी गुंबद का निर्माण महमूद शाह लोधी द्वारा हुआ चौरासी गुंबद के नाम का कारण यह था कि निर्माण के समय चौरासी गुंबद बनाये गये थे। इस भवन में तीन कब्र है। एक कब्र महमूद शाह लोधी की है व दूसरी कब्र उस अमीर की है जो बादशाह की ओर से वहाँ पर रहता था तथा तीसरी कब्र एक भिश्ती की है । उस भिश्ती ने मुकामात मखवझ में बादशाह का साथ दिया था तथा ऐन वक्त पर खुद सुपर बादशाह का होकर घायल हुआ था। बादशाह ने उस भिश्ती के साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया तथा उसे वचन दिया था कि उसकी कब्र के पास ही भिश्ती की भी कब्र रहेगी। इस करण वह भिश्ती भी वहीं दफनाया गया। यह एक पुराना व दिलचस्प भवन है।पातालेश्वर मंदिर कालपी धाम जालौन उत्तर प्रदेशइस इमारत को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उसका निर्माण पहले अन्य प्रयोजन के लिए हुआ था। इमारत वर्गाकार है। श्री डी०एल० ड्रेक ब्रोकमेन आई०सी० एस० भी यह स्वीकार करते हैं कि बाद में इस भवन को लोधी शाह बादशाह की कब्र के नाम से जाना जाने लगा और कुछ लोग इसे सिकन्दर लोधी की कब्र मानते हैं। जबकि हम यह तथ्य जानते हैं कि सिकन्दर लोधी आगरा के निकट मरा था और उसकी लाश को दिल्ली ले जाया गया था।रोपड़ गुरू मंदिर इटौरा कालपी – श्री रोपड़ गुरु मंदिर का इतिहासचौरासी गुंबद नामक शानदार मकबरा महमूद लोधी का है जो बादशाह सिकन्दर लोधी का अमीर था और कालपी का सूबेदार नियुक्त हुआ था। हिजरी 791 में हुए एक युद्ध में महमूद लोधी अपने अंगरक्षक भिश्ती के साथ मारा गया था। उसकी याद में बने इस मजार के बीच में लोधी की कब्र और बायीं ओर भिश्ती की कब्र हैं। चौरसी गुंबद एक बहुत पुरानी इमारत है व इसकी आकृति देखने से यह बौद्ध इमारत प्रतीत होती है जिसको यवन काल में नष्ट कर मुसलमानी इमारत में परिणित की हुई मालूम होती है। इसके अन्दर मुसलमानी कब्रें हैं जिसके लिए बहुतेरी भ्रमात्मक खबरें कहीं जाती है। कोई कोई तो इसे सिकन्दर लोधी की व कोई इसे उस भिश्ती की जिसने हुमायूँ की जान बचाई थी कि कब्र होना बताते हैं परन्तु इसके कोई मानवीय प्रमाण नहीं मिलते हैं। ऐसा मालूम होता है कि यहां नगर के किसी प्रभावशाली यवन शासक की कब्र है जो मुगलों से पहले की बनी हुयी है। जौनपुर के सुल्तान से कालपी में महमूद शाह लोधी के बीच युद्ध हुआ था और इसकी मृत्यु हुयी थी। उसी की स्मृति में यह चौरासी गुंबद तैयार हुआ व इसके बड़े हाल में उसकी कब्र बनाई गईचौरासी गुंबद कालपीचौरासी गुंबद का वास्तुशिल्पवास्तुशिल्प की दृष्टि से यह भवन एक विशाल व सुन्दर भवन है जो कि वर्गकार है। इस भवन के वास्तुशिल्प का अध्ययन हम दो चरणों में करेंगेप्रथम – भवन की मर्यादा (सीमा ) भित्ति द्वितीय – मूलभवनभवन की मर्यादा भित्ति:–इस चौरासी गुंबद की मर्यादा भित्ति भी वर्गकार है। वर्ग की प्रत्येक भुजा के सन्धि स्थल पर एक मीनार स्थित है। वर्ग की पूर्वी भुजा के केन्द्र स्थल पर एक विशाल मेहराबदार द्वार स्थित है जिसके ऊपर अष्टकोणीय आधार पर आधारित एक विशाल गुम्बद है। इस दीवार की चौखट लाल बालू पत्थर से निर्मित है। दरवाजे के ऊपर स्लैब भी पत्थर का है जिसके कारण दरवाजा आयताकार हो जाता है। यह आयताकार द्वार तीन मैहराबों से युक्त है। इस मध्य गुम्बदकार द्वार की गहराई 17 फुट है व ऊँचाई 29 फुट है। इस मध्य द्वार के दायीं ओर दस इसी भाँति 14 फुट गहराई वाले व 20 फुट ऊँचाई वाले द्वार स्थित हैं। बायीं ओर के द्वार नेस्तनाबूत हो गये हैं। परन्तु इस भित्ति की दक्षिणी भुजा के देखने से ऐसा आभास अवश्य मिलता है कि भित्ति की प्रत्येक भुजा 27 द्वारों युक्त होगी। इसी प्रकार से मर्यादा भित्ति पर कुल 84 द्वार होंगे जिन पर गोल गुम्बद बने होंगे और इन्हीं 84 गुम्बद युक्त द्वारों के कारण इस भवन का नाम 84 गुंबद पड़ा होगा। द्वार के मेहराबों के दोनों ओर एक एक आला स्थित है। गुम्बद के अष्ट कोणीय आधार एवं उसके नीचे मुख्य द्वार की भुजा पर वाहय ओर कमल दल की भाँति अलंकरण है।मूलभवनभवन की मर्यादा भित्ति के अन्दर 80 फुट चौतरफा चौड़ाई का खुला आँगन है। इसके बाद वर्ग आकार में भवन का मध्य केन्द्रीय भाग स्थित हैं। इस वर्ग की भी चारों भुजायें मर्यादा भित्ति कीभाँति मीनारों द्वारा चारों कोनों पर जुड़ी है। वर्ग की प्रत्येक भुजा में बाहर से 7 तीन मेहराबों से युक्त दरवाजे है। दरवाजों के ऊपर तोड़ा आधार पर छज्जा निकला हुआ है तथा छल्ले के ऊपर कंगूरे अंकित है। दरवाजों के ऊपर छज्जा लाल पत्थर के आधार पर आधारित एवं बाहर की ओर थोड़ा सा झुका हुआ है जो कि पानी को ढाल देकर नीचे गिरने में सहायक होता है। प्रत्येक दरवाजे की मध्य भित्ति पर अर्थात् दो दरवाजो के बीच की दीवार पर ऊपरी ओर एक एक अलंकृत आला बना हुआ है। दरवाजों के दोनो ओर ऊपरी भाग में एक एक ज्यामितीय बेल से अलंकृत गोला अंकित है। कुछ गोलों में अरबी में अल्लाह खुदा है। इस मूल भवन का केन्द्रीय कक्ष वर्गकार है। जिसकी प्रत्येक भुजा 35 फुट लम्बी है।श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहासआन्तरिक वर्ग की प्रत्येक भुजा में तीन दरवाजे तथा मध्य वर्ग भाग की प्रत्येक भुजा में पाँच पाँच दरवाजे व सबसे बाहरी वर्ग की प्रत्येक भुजा पर सात सात दरवाजे बने है। इस प्रकार से मूलभवन में कुल 60 दरवाजे है। इस मूल भवन के केन्द्रीय वर्ग में उच्चकोटि का चूने का प्लास्टर है जिस पर ज्यामितीय डिजाईने उकेरी गई है। अन्दर के प्रत्येक आले एवं दरवाजे पर भी अलंकरण है। इस भवन को अन्दर से देखने पर स्पष्ट होता है कि इसका आधार तल वर्गाकार तथा द्वितीय तल अष्टभुजी है और इस द्वितीय अष्टभुजी तल के ऊपरी भाग पर भवन का तृतीय तल गोल गुम्बदकार रुप में स्थित था जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है। इसके मध्य में बड़ा चौकोर हालनुमा गुम्बद है जिसके चारों ओर छोटे गुम्बद और मेहराबी दरवाजे बने है। बाहर चारोंओर सहन के बाद बाऊंड्री है। इस बाऊन्डी में चारों तरफ गुंबद नुमा मेहराबी दरवाजे बने हैं। मध्य का गुम्बद टूटा हुआ है। इसकी मीनारे बहुत छोटी है।काली हवेली कालपी – क्रांतिकारी मीर कादिर की हवेलीयह चौरासी गुंबद भवन बाहर से 125 फुट के वर्ग में बना है जिसकी ऊँचाई लगभग 80 फुट है। सम्पूर्ण भवन शतरंज के बोर्ड की भाँति आठ मेहराब के स्तम्भों एवं सात रेखाओं द्वारा खुली जगह में विभक्त है। इस प्रकार से 64 मेहराब के स्तम्भ आपस में दुगने 49 मेहराबों से 49 कयवों युक्त जगहों से जुड़े है जिसके ऊपर समतल छत है। इस भवन के मेहराब के स्तम्भ 6 फुट 2 इंच से लेकर 8 फुट 8 इंच तक वर्ग के आकार में तथा 6-5 फुट से 9-5 फुट तक फैलाव लिए हैं। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले