चेचक के टिके की खोज किसने की? एडवर्ड जेनर बायोग्राफी Naeem Ahmad, June 1, 2022March 16, 2023 छः करोड़ आदमी अर्थात लन्दन, न्यूयार्क, टोकियो, शंघाई और मास्कों की कुल आबादी का दुगुना, अनुमान किया जाता है कि 1700 और 1800 के बीच यूरोप में 6,00,00,000 लोग चेचक महामारी से मारे गए थे। 1721 की महामारी में बोस्टन की आधी आबादी चेचक ग्रस्त थी, और इनमें हर 10 रोगियों में एक की मृत्यु भी हुई। किन्तु आज यह विभीषिका दुनिया से ही प्रायः उठ चुकी है। विभीषिका का उन्मूलन टीके की नई ईजाद द्वारा ही सम्भव हो सका था, और इसका प्रवर्तक था– डाक्टर एडवर्ड जेनर। एडवर्ड जेनर का जीवन परिचय एडवर्ड जेनर का जन्म इंग्लैंड के ग्लोस्टरशायर कस्बे में 17 मई, 1749 को हुआ था। पादरी पिता ने प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए बालक को स्थानीय पाठशालाओं में भेजा। बचपन से ही जेनर की प्रवृत्ति प्राणि शास्त्र में कुछ थी और उसने चिकित्सा शास्त्र का विधिवत अध्ययन भी शुरू कर दिया था। डाक्टर बनने का एक तरीका उन दिनों यह था कि किसी और डाक्टर की शागिर्दी कर लो और जेन्नर भी शल्य चिकित्साविद डेनिएल लुडलो के यहां एप्रेंटिस लग गया। 21 साल की उम्र में एडवर्ड जेनर लन्दन के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में पहुंचा कि युग के महान सर्जन जॉन हंटर की छत्रछाया में आकर वह भी कुछ बन सके। डाक्टर हंटर में असीम कौतूहल भरा था, असीम उत्साह भरा था। वह ऐसा चिकित्सक था जिसकी आस्था चीज़ों को खुद करके देखने में अधिक थी। दुर्भाग्य से उसने खुद को ही कितने परीक्षणों की आधार भूमि बनाया, जिसका नतीजा यह हुआ कि एक लाइलाज बीमारी उसे आ लगी और उसकी ज़िन्दगी छोटी कर गई। खेर, अपने में यदि उसने यह बीमारी भर ली, तो विद्यार्थियो में अपना यह जीवन-दर्शन ही अधिक भरा कि ‘हैरान क्यों होते हो, परीक्षण करके खुद देख क्यो नही लेते ?। जॉन हंटर का एडवर्ड जेनर के साथ पत्र-व्यवहार चलता रहता था, और वह जीवन भर उसका मित्र एवं परामर्श दाता रहा। सेंट जॉर्ज के हॉस्पिटल से स्नातक हो चुकने पर हंटर ने उसे ग्लोस्टरशायर वापस भेज दिया कि वहां जाकर प्रेक्टिस शुरू कर दे। उसका शायद ख्याल था कि गांव में पैदा हुआ जेनर शहर के तंग वातावरण में प्रसन्न नही रह सकेगा। किन्तु गांव में जाकर डाक्टरी करने के इस परामर्श के लिए दुनिया आज हंटर की बहुत ऋणी है। एडवर्ड जेनर वैज्ञानिक चिकित्सा तथा आधुनिक चमत्कारी दवाओं के प्रयोग में आने से पूर्व आम विश्वास देसी टोटको में हुआ करता था। समझा जाता था कि कुछ पौधों में रोग को दूर करने की कुछ खास ताकत होती है। डिजिटेलिस का प्रयोग हृदय रोग में बहुत पुराने समय से चला आता था यद्यपि खुद डाक्टरों को भी तब यह मालूम न था कि उसके इस प्रभाव का कारण क्या है। काई अथवा फफूदी का प्रयोग लोग पहले भी करते आए थे कि बीमारी और न फैलने पाए, यद्यपि फ्लैमिंग ने पेनिसिलीन का आविष्कार बहुत बाद में आकर ही किया। आज भी कितनो ही को विश्वास है कि आवाज बैठ जाए तो कच्चा प्याज गले के दर्द को ठीक कर सकता है। कुछ हो, कच्चे प्याज मे कीटाणुओं को नष्ट करने की ताकत सचमुच है। वैज्ञानिक विश्लेषण के चिकित्सा क्षेत्र मे प्रवेश करने से पहले ऐसे ही कुछ और अन्ध-विश्वास लोक-प्रसिद्ध थे जिनमें एक यह भी था कि कुछ बीमारियां इन्सान को जिन्दगी में एक ही बार लगा करती हैं। आज के माता-पिता संन्तुष्ट हो जाते हैं कि उनकी लड़कियों को जर्मन मीजल्स (खसरा) हो गया है, क्योकि अधेड उम्र की किसी औरत को अगर यह बीमारी पकड़ बैठे तो उसके लिए यह एक मुसीबत ही बन जाए, किन्तु बच्चो पर इसका कोई खास असर नही होता। जिस लडकी को जर्मन खसरा एक बार हो गया सारी उम्र अब वह इसकी जिल्लत से मुक्त रहेगी। यही चीज़ चेचक के बारे मे भी लोक-विश्वत थी कि एक बार चेचक से बच निकलने पर मरीज को फिर दोबारा चेचक नही लग सकती। पूर्व के लोग इस विचार से फायदा उठाने लगे अपने जिस्म मे जान बुझकर चेचक के कीड़ों को प्रवेश दे-देकर। उन्होने तो एक ढंग भी निकाल लिया जिससे इन कीड़ों की ताकत कुछ कम हो जाए और अन्दर पहुंचकर ये कुछ ज्यादा नुकसान न पहुचा सकें। चेचक का मामूली सा एक आक्रमण, कुछ दिन बाद फिर स्वस्थ, और फिर बीमारी का उम्र-भर नाम नही। बदकिस्मती से यह उपाय कुछ ज़्यादा ही काम कर जाता, कितने ही शख्स इंजेक्शन के बाद फिर भले-चंगे कभी न होते। ग्लोस्टरशायर की भोली जनता जानती थी कि ‘काउपॉक्स” या बडी माता के बीमार को चेचक नही लगती। ‘माता’ के नाम से ही स्पष्ट है कि यह बीमारी आम तौर पर गायों को लगा करती है, और गायो से सक्रान्त होकर ही मनुष्यों में आती है। लेकिन हैरानी तो यह थी कि एक ऐसी बीमारी, गायों को जाकर क्यो चिपक जाती है। जिसकी पैदाइश ही घोड़ों के सूमों में होती है। एडवर्ड जेनर चेचक के टिके की खोज बड़ी माता या शीतला और चेचक की इस अद्भुत स्थिति का अध्ययन डाक्टर एडवर्ड जेनर ने शुरू किया। वृद्ध आचार्य हंटर ने उसे प्रोत्साहित किया, “अनुसन्धान करो, किन्तु धैर्य के साथ, और किसी भी पार्श्व की उपेक्षा कभी न करते हुए। और किसी भी वैज्ञानिक अनुसन्धान में एक निर्देश सूत्र और क्या हो सकता है ?कुल मिलाकर जेनर ने 27 मरीज़ों की परीक्षा की। 1796 में उसने अपने निष्कर्षों को प्रकाशित कर दिया। जेनर ने हर बीमार का क्रमिक इतिहास तैयार किया और पाया कि, शुरू-शुरू की परीक्षाओं में शीतला के रोगियों को चेचक नहीं लगती, हालांकि चेचक के मरीज उनके सम्पर्क में नित्यप्रति आते हैं। यही नहीं चेचक के कुछ कीटाक्त द्रवों को उसने इन लोगों की बांहों में इजेक्ट करके भी देखा कि इन्हें चेचक छूता तक नहीं। ओर अन्त में हमें बच्चे के मां-बाप की हिम्मत की दाद देनी चाहिए डाक्टर एडवर्ड जेनर ने एक आठ साल के तन्दरूस्त बच्चे जिम्मी फिप्स को माता का टीका लगाया और उसे तन्दरुस्त से बीमार कर दिया। इसके बाद उसने चेचक का टीका उसे, और एक ऐसे शख्स को भी लगाया जिसे माता नहीं थी। चेचक निकली माता की लानत से मुक्त तन्दरूस्त आदमी में, माता के कीटाणुओं से सुभग फिप्स में नहीं। जेनर ने जब अपने इन निष्कर्षों को प्रकाशित किया, स्वभावत: एक तृफान ही उठ खड़ा होना था। कुछ ने तो यह कहा कि यह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है, जबकि कुछ और ने दावे पेश किए कि यह खोज उसकी थी, और कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने चेचक की इस कहानी को ठीक तरह से समझे बगैर परीक्षण भी शुरू कर दिए और, इसी घपले में बीमारों को तन्दरुती तो क्या देनी थी, मौत बख्श दी। उत्तेजना का यह दौर आया और चला भी गया, और तब जेनर ने अपने तरीकों को चिकित्सा जगत के सम्मुख सिद्ध कर दिखाया, जिसके श्रेय स्वरूप अब सम्पूर्ण सभ्य विश्व से उसे सम्मान और आदर मिलने लगा। पार्लियामेंट ने उसके लिए नाइटहुड की सिफारिश की और 20,000 पौंड इनाम दिलवाया। ऑक्सफोर्ड ने उसे एक ऑनरेरी डिग्री दी। रूस के जार ने उसे एक सोने की अंगूठी भेजी। फ्रांस के नेपोलियन ने खुले दिल से उसकी प्रशंसा की। और अमेरिका से इण्डियनों का एक प्रतिनिधि मण्डल उसके लिए उपहार और धन्यवाद के संदेशों को लेकर इंग्लैंड पहुंचा। इस व्यक्ति ने गंवारों के एक पुराने अन्ध विश्वास का अध्ययन किया और सिद्ध कर दिखाया कि उसमें वैज्ञानिक तथ्य था। साथ ही उसमें यह साहस भी था कि एक मामूली बीमारी को इंजेक्शन के जरिए, अन्दर पहुंचाकर इन्सान को एक भारी जिल्लत से बचाया जा सकता है। दिल से वह एक देसी हकीम ही था और, यह महान आदर सम्मान प्राप्त करके, वह पुनः अपने ही गांव में लौट आया और अपनी ज़िन्दगी के आखिरी साल उसने अपने खेतों पर ही गुजारे। जनवरी 1823 में एडवर्ड जेनर की मृत्यु हुई। अब आप कभी बांह पर लगे टीके का निशान जब आपके सामने आए, कुछ उन अज्ञात व्यक्तियों का भी ख्याल कर लिया करें जिन्होंने कभी इन्हीं परिक्षणों के लिए खुद को पेश किया था। और एडवर्ड जेनर का भी ख्याल कर लिया करें जिसने टीके का आविष्कार करके हम सबको चेचक से हमेशा के लिए हिफाजत दिला दी। और उन सभी किस्म के टीकों का ख्याल भी कर लिया करें जो हमारे स्वास्थ्य के अभिरक्षक हैं, प्रहरी हैं जिनमें डाक्टर योनास साल्क का निकाला पोलियो से महफूज रखने वाला एक टीका भी है। जिसमें वर्तमान में कोराना वायरस से लड़ने का टिका भी है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email 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