चीन की दीवार कितनी चौड़ी है, चीन की दीवार का रहस्य Naeem Ahmad, May 21, 2022March 28, 2024 प्राचीन काल से ही संसार के सभ्य देशों में चीन का स्थान अग्रणी था। कहते हैं चीन ही वह देश है जिसने विश्व को सभ्यता की प्रारम्भिक शिक्षा दी थी। हमारे वैदिक युग के साहित्य मे भी इस देश की गौरव गरिमा की अनेक गाथाएँ यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है। यहाँ के निवासी दस्तकारी और कारीगरी में संसार के अन्य देशों के गुरु समझे जाते थे। अब भले ही यूरोप आदि महाद्वीप के विभिन्न देश अपनी विद्वता और कला-कौशल का बोल पीटते हों, पर सृष्टि के प्रारम्भ मे जब उन देशों के निवासी नग्नावस्था में रहा करते थे, जंगलों में घूमा करते थे तथा पहाड़ो और पड़ाड़ियों की कन्दराओं मे जानवरों की तरह जीवन व्यतीत करते रहते थे, उन दिनो चीन और भारत आदि एशिया महाद्वीप देशों के लोग अच्छे-अच्छे वस्त्र धारण करते थे तथा अपने आवास के लिए इन देशो के लोगों ने सुन्दर-सुन्दर महल तक बनाये थे।’चीन की दीवार’ जो विश्व के प्रमुख आश्चर्यो मे से एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और जिसका उल्लेख हम अपने इस लेख में करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—- चीन की दीवार कब बनी थी? चीन की दीवार की उंचाई कितनी है? चीन की दीवार कितनी चौड़ी है? चीन की महान दीवार क्यों बनवाई गई थी? चीन की दीवार का क्या नाम है? यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आज से हजारों वर्ष पहले भी इस देश में एक से चढ़कर एक बढ़कर कलाकार भरे पड़े थे। जिस बन्दूक और बारूद के बल पर पश्चिम के देश दुनियां के सामने सीना तानकर चलने का गर्व प्रदर्शित करते हैं उसका आविष्कार सर्वप्रथम चीन ने ही किया था। चीन ने ही उन्हें बन्दूक बनाने और बारूद बनाने की शिक्षा दी थी। पर समय का चक्र कुछ विचित्र ढंग से चलता रहता है। आज शिक्षक देश पिछडा़ हुआ है और अव्हेलित राष्ट्र कहला रहा है, और उस समय के विद्यार्थी देश अपनी गुरुता का डंका पीट रहे हैं इसे समय का फेर नहीं तो और क्या कहेंगे?भूल भुलैया का रहस्य – भूल भुलैया का निर्माण किसने करवायाआज इंग्लैण्ड में संयुक्त राज्य अमेरिका में, फ्रांस मे तथा अन्य यूरोपीय देशो में अनेकानेक ‘माचिस’ (दियासलाई) की फैक्ट्रियां हैं। अन्य देशों में भी जहां जहां अंग्रेजों द्वार संचालित अनेक दियासलाई की फेक्ट्रियां चल रही हैं। पर हम जानते है कि जिस दियासलाई के बिना एक क्षण भी हमारा काम नही चल सकता, उसको भी सर्वप्रथम चीन देश के निवासियों ने ही बनाया था। उन्होंने ही विश्व को इस कला का आविष्कार कर अपना अनूठा काम बताया था। रेशम और रेशमी वस्त्रों का भी उत्पादन सर्वप्रथम चीन देश में ही हुआ था। इसके पूर्व कोई भी देश रेशम का नाम तक नहीं जानता था। यही कारण है कि संस्कृत में रेशम के लिए ‘चीनाशुक” नाम रखा गया।चीन की दीवार क्यों बनवाई गई थीसदा से चीन देश के निवासियों की प्रतिभा अद्वितीय रही है। नई-नई वस्तुओं के अविष्कार करने की उनकी क्षमता अपार रही है। हमेशा उन्होने इस दिशा में संसार का नेतृत्व किया है पर विधि की विडंबना भी अनूठी और विचित्र है। नियति की चक्रचाल को कोई नहीं समझ सकता। एक समय संसार के गुरु कहलाने वाले इस देश का जब अध पतन होने लगा, तो वह भी खूब हुआ। एक दम शिखर की ऊंचाई तक पहुँचा हुआ चीन नीचे, एक दम नीचे पतन के गर्त में गिर गयाय था। चीन के तत्कालीन सम्राट चिंग शी हुआन का इस चीन की दीवार को बनाने के पीछे उद्देश्य क्या था। इस कार था कि एक तो यह कि उत्तर के उपद्रवकारी तातारों से उसके देश की रक्षा होती थी और दूसरे चीन की दीवार के निर्माण की अवधि में उसे अपने भीतरी दुश्मनों के खून-चूसने का भी पूरा अवसर मिल गया। चीन की दीवार के बनने में कितना धन खर्च हुआ, कितने लोगों के प्राण गये, इसका कोई प्रामाणित उल्लेख उपलब्ध नहीं है। इतिहास के जानकार यही बतलाते हैं कि जहां-जहां से होकर यह दीवार गई, वही-वहीं के लोगों पर इस दीवार के निर्माण का सारा खर्च डाला गया था। सम्राट की तरफ से इसमें काम करने वालों को कोई मूल्य नहीं दिया जाता था। लोग अपनी तरफ से खाकर इस दीवार के बनाने में जी-जान से जुट गये थे।चीन की दीवारचिंग जब उत्तर से तातार आक्रमणकारियों को भगाकर लौटा, तो उसे इस बात की सूझ हुई कि वह इस प्रकार की एक दीवार बनवाये जिससे चीन की रक्षा हो सके। प्रजा उसे बहुत चाहती थी। अतः उसने लोगों को केवल शब्दों से प्रोत्साहित किया और उसकी आवाज सुनते ही लोग प्राण-प्रण से इस महायज्ञ में आहुति देने के लिए चल पड़े। चिंग जानता था कि इस निर्माण को पूर्ण करने मे उसकी हजारों की संख्या में प्रजा को प्राण से भी हाथ धोना पड़ेगा। वह यह भी जानता था कि उसके खजाने में इतना धन नहीं है कि वह मजदूरों को मजदूरी भी दे सके। पर इस दीवार की आवश्यकता वह समझता था। इसीलिए उसने साहस और प्रोत्साहन का मंत्र अपनी प्रजा को दिया। उसकी आवाज पर लोग हजारों की संख्या में जुट गये और दीवार बनने लगी।रूस में अर्जुन का बनाया शिव मंदिर हो सकता है? आखिर क्या है मंदिर का रहस्यइतना ही नही, चिंग ने अपने साम्राज्य के प्रत्येक हिस्से से इंजीनियरों और हजारों की संख्या में मजदूरों को आमंत्रित किया। प्रत्येक व्यक्ति के लिये इसमें कार्य करना आवश्यक कर दिया गया था। यहां तक कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति के पास कोई किताब पाई गई तो उसे चार वर्षो तक दीवार के निर्माण में कड़े श्रम करने की सजा दी जाती थी। चिंग यद्यपि दयालु और प्रजा पालक था, पर इस दीवार को लेकर वह बुद्धि शून्य और अन्धा बन गया था। इस मामले में उसे न्याय और अन्याय में कोई अन्तर नहीं दिखाई पड़ता था। इसलिए ऐसे लोगों को भी जो विद्या प्रेमी थे और पढना चाहते थे वह एक साधारण मजदूर की तरह दीवार के निर्माण कार्य में ईंट और पत्थर ढोने के लिये लगा देता था। उसके कारिंदे भी लोगों पर बहुत अधिक अत्याचार करते रहते थे। दिन-रात एक करके लोग काम में लगे रहते तब भी उन्हें दोनों समय सूखी रोटियां भी खाने के लिये नसीब न होती थीं। कितने ही लोग तो भूख से तड़प-तडप कर इस दीवार की नीव में गड गए या समुद्र की लहरों में समा गए थे। पर लोगों की इस दयनीय अवस्था पर चिंग ने कभी गम्भीर होकर नहीं सोचा। दीवार! दीवार!” रात दिन उसे इस दीवार की धुन बनी रहती थी। वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी यह दीवार तैयार हो जाये, पर इतना महान कार्य जल्दी होने वाला नहीं था। जो कारीगर इसकी मजबूती, ऊँचाई आदि की जाँच करते थे, वे इस मामले में बडे सतर्क थे। जहां कही भी दीवार में उन्हें कोई त्रुटि नजर आती तो वे उसे तोडकर फिर से नये सिरे से उसे बनवाते थे।चीन की दीवार को क्या कहते हैंहाल में एक अंग्रेंज लेखक मि. गेयल ने इस महान दीवार के सम्बन्ध मे अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि जब हम मनुष्य की महान कृतियों के सम्बन्ध में बारबार सुनते हैं, पढ़ते हैं, तो स्वाभाविकत हममें उत्कंठा जागती है। पर जब हमें उसकी कृति को देखने का सौभाग्य प्राप्त होता है ती हमें उसे देखकर चकित डोना पड़ता है। कदाचित ही हमारी आँखों के सामने उनके वर्णन के पीछे का इतिहास सत्य रूप में आता है। पर चीन की दीवार के विषय में ऐसी बात नहीं है। हमने इसकी महानता पर जितना भी सुना या पढा था देखने पर मै इसे उससे कई गुना अधिक महान पाता हूं। चाहे हम इस “महान दीवार” को तारों के झिलमिल प्रकाश में देखे, चाहे चन्द्रमा’ की थिरकती चांदनी मे अथवा सूर्य के दैदिय्यमान प्रकाश में, यह दीवार हमे बड़े दैत्याकार पर्वत की तरह ही दिखाई पड़ती हैं, यह दीवार इतनी महान है, कि यदि समस्त संसार में विषुवत रेखा पर इसमें जितना सामान लगा हुआ है, उसको एकत्र किया जाए तो एक तीन फीट चौड़ी और आठ फीट ऊँची दीवार बन जायेगी। जब हम चीन की दीवार लगे हुए साधन एवं श्रम की कल्पना करते है तो अनायास ही हमें मान लेना पड़ता है कि इसके निर्माण में हजारों लोगों को पसीना, आयु और खून बहाना पडा होगा। वास्तव में इसे खून की दीवार’ कहना ही उचित होगा। क्योंकि जब हम उन लोगों की दर्दनाक कहानियां पढ़ते है, जिनके बाप-दादों को इस दीवार के बनाने में अपनी हडिडयो तक को लगा देना पडा था, तब हम सहज ही कल्पना कर सकते है, कि कितने बलिदानों की कब्र है चीन की दीवार ।”अपोलो की मूर्ति का रहस्य क्या आप जानते हैं? वे आश्चर्यमि गेयल की कही गई यह उक्ति इस दीवार की महानता का एक स्पष्ट प्रमाण है। प्रकृति का यह नियम है कि विध्वंस की नींव पर ही निर्माण की ईटें जोडी जाती हैं। अतः कोई आश्चर्य नहीं कि संसार में प्रसिद्ध इस दीवार के निर्माण में चीन की तत्कालीन जनता को अपरिमेय बलिदान देने पड़े होंगे। यदि ऐसा न हुआ होता तो आज चीन का वैभव विशाल संसार के सामने गर्व से सिर ऊँचा किये खडा कैसे रहता। एक विदेशी यात्री ने इस दीवार की भयंकरता और आकार-प्रकार को देखकर कहा था–दूर से देखने पर चीन की यह दीवार” ‘पत्थर के विशाल अजगर? की तरह भयानक मालूम पडती है। जिस तरह टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर इस दीवार का निर्माण किया गया है, वह सचमुच ही अजगर की भांति है। उर्दू में लोग इसे दीवार कहकहा” कहते हैं। ‘कहकहा’ शब्द विशालता का प्रतीक है।चीन की दीवार की लम्बाई चौड़ाईचीन की राजधानी पेचिंग के उत्तर से होती हुई यह दीवार मध्य एशिया के रेगिस्तान तक चली गई है। पेचिंग के निकट का हिस्सा आज भी वैसा ही ठोस है, यानि इसे बने अभी अधिक दिन न हुए होगें। चीन की दीवार की नीव के विषय में हम आपको यह बता दें कि इस दीवार की नींव प्रत्येक स्थान पर 25 फीट है। इसकी चौड़ाई भी, ऊपर की ओर कहीं दस फीट और अधिक हिस्सों में बीस फीट है। दीवार के दोनों तरफ ईट और पत्थरों की जुडाई की गई है। बीच में मिटटी दी गई है। इसमें जो ईटें (पत्थरों की तराशी हुई ईंटें) लगाई गई हैं उनकी मोटाई भी 20 इंच से कम नही हैं। इसकी चौड़ाई इतनी है कि इस पर एक साथ गाड़ियों की तीन-तीन कतारें दौड़ सकती हैं।चीन की दीवार के निर्माण के पश्चात् यद्यपि तातार आक्रमणकारियों का उपद्रव प्राय सदा के लिये बन्द अवश्य हो गया, पर सम्राट के लिये अपने देश में ही अनेक दुश्मन पैदा हो गये। इस दीवार के निर्माण में साधारण जनता को जो बलिदान और त्याग करने पड़े थे, उससे उसका पूर्ण शोषण हो चुका था। चिंग के शासन के कडे़ नियम, दीवार के निर्माण की शीघ्रता में जनता के दुख-दर्द का भूल जाना, इन सबने मिलकर जनता में असन्तोष की लहर पैदा कर दी थी। जिस प्रकार यह दीवार सम्राट चिंग के लिए विश्व प्रसिद्धि का सन्देश लाई उसी प्रकार यह उसके शासन की समाप्ति का प्रतीक भी बन गई। इधर दीवार पूरी हुई और उधर देश में क्रान्ति की आग जल उठी। उसके शासन में पीडित जनता ने हानवंश’ के केयाटी नामक एक नवयुवक के नेतृत्व में विद्रोह किया और इस वीर युवक ने चिंग के हाथों से राजसत्ता की बागडोर छीन ली।Nazca Lines information in Hindi – नाजका लाइन्स कहा है और उनका रहस्यचीनी भाषा में इस महान दीवार को ‘वानली-चुंग” कहते हैं। इसका अर्थ होता है 3400 (तीन हजार चार सौ) मील लम्बी दीवार। इससे इस बात का पता चलता है कि प्रारम्भ में इस दीवार की लम्बाई 3400 मील होगी। पर ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर 7500 मील लंबी दीवार की पुष्टि तो होती ही है। अब इस दीवार की लम्बाई 250 मील की ही रह गई है। संभवतःचिंग और केआटी के बाद के चीनी सम्राटों ने इसके कुछ हिस्सों से इस दीवार को छोटी करवा दी हो। अथवा यह भी संभव है कि विदेशी आक्रमणों के फलस्वरूप यह दीवार एक ओर से ध्वस्त होती गई हो और इस तरह इसकी लम्बाई कम होती चली गई हो। चाहे जो भी कारण रहा हो हमें इसका प्रमाण कहीं नहीं मिलता है। चीनी क्षेत्रों में इस दीवार के सम्बन्ध में कितने ही लोक जीत भी प्रचलित हैं। इन लोक गीतों में दीवार को चीन के लिए “वरदान’ और ‘अभिशाप’” दोनों ही का रूप दिया गया है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँँचते है कि चीनी जनता में जितनी श्रद्धा इस दीवार के लिये है उतनी ही घृणा और वेदना भी उनके हृदय के एक कोने मे इस दीवार के लिए है। सरकार के पहले च्यांग काईशेक ने इस दीवार को जहां-तहां से मरम्मत करवाने का काम शुरू करवाया था। परन्तु तभी देश में भयंकर जनक्रान्ति फैल गई। इस क्रान्ति की अग्नि से हिमालय सी दृढ़ यह दीवार भी प्रभावित हुए बिना नही रही। जहां-तहां इस दीवार को बहुत अधिक क्षति पहुँची। पर इससे दीवार की महानता में कोई अन्तर नहीं आया।मिस्र के पिरामिड का रहस्य – मिस्र के पिरामिड के बारे में जानकारीसम्राट केआटी के शासन के पश्चात् और भी कितने सम्राट चीन की गददी पर बैठे, चिंग द्वारा बनवाई गई यह रक्षात्मक दीवार उसके बाद के सम्राटों के लिए वरदान सिद्ध हुई। उत्तर के आक्रमणकारियों से चीन सदा-सदा के लिए मुक्त हो गया था। परन्तु इतने पर भी इस देश की संपदा विदेशियों के लिए बराबर आकर्षण का केन्द्र बिन्दु बनी रही। जब तब चीन के दूसरे अन्य हिस्सो से इस देश पर विदेशी आक्रमण करते रहे। किन्तु यह दीवार बराबर सशक्त प्रहरी की भांति अपने देश की रक्षा करती रही। पुर्तगाल एवं डचो ने कितनी ही बार इस भूमि पर धावा बोला, पर बराबर ही उनके संघातक वार दीवार के मजबूत पत्थरों से टकरा कर वापस लौट गये। जापानियो का भी आक्रमण इस देश पर हुआ। उस समय भी इस महान दीवार ने चीन की रक्षा की। निर्माण के पश्चात बराबर संघर्षो में लीन रहने के फलस्वरूप कही-कही से दीवार ढह गई है। पर इतनी विशाल लम्बी चौड़ी दीवार के कहीं-कही से ढ़ह जाने से ही क्या होता है॥ आज भी जिस अवस्था में यह दीवार है, अपनी विशालता और मजबूती के लिए संसार में दूसरा स्थान इसकी सानी नहीं रखता।एक प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक ने इस दीवार को देखने के पश्चात जो उदगार व्यक्त किया है उसे पढ़कर हम सहज इसकी महानता का अन्दाजा लगा सकेंगे। उसने लिखा है- “विश्व-प्रसिद्ध इस दीवार में जितनी ईटें और पत्थर, और चूना आदि सामग्रियों लगी है, उनसे तो एक बड़े सुन्दर नगर का निर्माण हो सकता है। इन सामग्रियों से सैकड़ों आलीशान सुन्दर महलों का निर्माण हो सकता है।”सहारा रेगिस्तान कहा पर स्थित है – सहारा रेगिस्तान का रहस्यप्रसिद्ध विद्वानों की ऐसी उक्तियों से हमें यह पता चलता है कि चीन की दीवार के बनाने में चीनी जनता ने किस अद्भुत पराक्रम का नमूना संसार के सामने रखा है। संसार मे न जाने कितनी दीवारें, कितने किले और कितनी आलीशान इमारते होंगी पर चीन की यह दीवार अकेली है, इसकी तुलना मे संसार की दूसरी कोई इमारत अथवा दीवार आदि नहीं है।वास्तव में इसकी महानता का वास्तविक मूल्यांकन वही कर सकता है जिसे इस दीवार को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो। वर्णन चाहे जितना भी ठोस हो, चाहे जितने भी विशेषणों से सम्बोधित किया गया हो, पर वास्तविक जानकारी तो उसे देखने के बाद ही होती है परन्तु हममें से सभी के लिये यह संभव नहीं है कि संसार की अद्भुत कला-कृतियों का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकें। इसलिए उनके सम्बन्ध में पढ़कर, अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर के ही हमें संतुष्ट डोना पडता है।कुछ ही समय पूर्व इस दीवार ने एक बार पुनः संसार को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इसके बारे में मिले समाचार ने संसार के कला-प्रेमियों एंव विद्वानों को आश्चर्य में डाल दिया था। बात ऐसी थी कि चीन की तत्कालीन साम्यवादी सरकार के सामने इस दीवार को तुड़वा देने की एक योजना आई थी। इसकी पृष्ठ भूमि में वहां की सरकार का क्या उद्देश्य था, इसका तो पता नहीं चला। सिर्फ यही सुनने को मिला की चीन की सरकार इस दीवार को अपने देश की प्रगति में रुकावट समझती है इसलिए इसे तुडवा देने की योजना उसके सम्मुख आई है। सरकार के इस निर्णय का संसार के कोने-कोने से एक प्रकार का सामाजिक विरोध हुआ। चारों तरफ से सरकार के इस निर्णय पर आश्चर्य व्यक्त किया जाने लगा अन्त में विश्व की भावनाओं की चीनी सरकार अवहेलना न कर सकी और दीवार को तुड़वाने की योजना उसने सदा-सदा के लिए स्थगित कर दी। यह चीन की दीवार युगो-युगो तक संसार के सम्मुख गर्व से सीना ताने अपने पौराणिक गुण-गरिमा का गर्व लिए सदा-सदा के लिए खडा रहेगा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—–[post_grid id=”9142″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... दुनिया के प्रसिद्ध आश्चर्य विश्व प्रसिद्ध अजुबे