चिन्तपूर्णी देवी मंदिर ऊना हिमाचल प्रदेश – चिन्तपूर्णी माता की कहानी Naeem Ahmad, October 9, 2017April 8, 2024 हिमाचल प्रदेश राज्य को देवी भूमी भी कहा जाता है। क्योकि प्राचीन काल से ही यहा की पवित्र धरती पर देवताओ का वास रहा है। इसी पवित्र धरती पर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में माता चिन्तपूर्णी देवी मंदिर व चिन्तपूर्णी देवी तीर्थ स्थल है। इस पवित्र स्थल की गणना 51 शक्ति पीठो में कि जाती है। श्री शिवपुराण की कथा के अनुसार जब सती पार्वती के शव को लेकर भगवान शिव तीनो लोको का भ्रमण कर रहे थे।तो भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर करने के लिए सती के शव को चक्र से काट काटकर गिरा दिया था। जिन जिन स्थानो पर सती के अंग गिरे थे वहा वहा शक्ति पीठ माने गए है। इन 51 शक्ति में माता चिन्तपूर्णी देवी मंदिर के इस स्थान की भी गणना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर सती के चरणो के कुछ अंश गिरे थे। यह छिन्नमस्तिका देवी का स्थान है। माता चिन्तपूर्णी को छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है। चिन्तपूर्णी अर्थात चिन्ता को पूर्ण करने वाली देवी भी मिना जाता है।चिन्तपूर्णी देवी की धार्मिक पृष्ठभूमिचिन्तपूर्णी देवी का महात्मयइस तीर्थ पर विराजमान माता शक्ति को चिन्तपूर्णी क्यो कहा जाता है? इसे ले कई दंत कथाए व मत प्रचलित है। एक मत के अनुसार माता चिन्तपूर्णी माता ज्वालामुखी जी का ही एक नाम और रूप है। उनकी पवित्र ज्वालाओ से स्पर्श करवाकर पिण्डी को किसी भक्त द्वारा यहा स्थापित किया गया है। ज्वालामुखी सहस्त्र नाम’ नामक एक रचना में माता ज्वालामुखी जी का एक नाम चिंता भी है। इस स्थान की देवी का इसी आधार पर चिन्तपूर्णी नामकरण कर दिया गया। काल क्रम से यह नाम विश्रुत होता हुआ आज प्रसिद्ध हो गया है। कलियुग के प्रभाव से आज सर्व साधन सम्पन्न मानव भी चिंताओ से ग्रस्त दिखाई देता है। लौकिक दृष्टि से मनुष्य को सुख के सभी सनसाधन प्राप्त कर लेने के बाद भी उसको मानसिक शांति नही मिलती है किसी न किसी सांसारिक अभाव के कारण उसके मन से चिंता की उत्पत्ति होती रहती है। जो उसे शांति से नही बैठने देती। किसी को शारीरिक शुख का अभाव हैकिसी को धन और किसी को विद्या का। संसार में सुखी जीवन के लिए बुद्धि धन और स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होती है। पुराण में इन तीनो की प्राप्ति के लिए महाशक्ति की उपासना करने का विधान बताया गया है। इस संसार में सकाम भक्तो की अधिकता है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में सुख संतान सम्मान धन और संपत्ति प्राप्त करने की चिंता लगी रहती है। अपने जीवन को सुखी और संतुष्ट बनाने के लिए शत्रुनाश ऐश्वर्य और ज्ञान की कामना करता है। लोगो से तो भक्त अपनी बात छिपाकर रखता है पर मां के सामने रख देता है और फिर माता रानी उसकी चिंताओ और अभाव को दूर कर देती है। इसिलिए चिन्तपूर्णी देवी के दरबार में दूर दूर से भक्त अपनी चिंताओ के नाश के लिए यहा आते हैचिन्तपूर्णी देवी मंदिर के सुंदर दृश्यचिन्तपूर्णी बस स्टेंड से चिन्तपूर्णी देवी मंदिर की दूरी 1.5 किलोमीटर जो यात्रियो को पैदल तय करनी पडती है। पैदल मार्ग में आधे से ज्यादा मार्ग सिधा है बाकी मार्ग में सीढियो द्वारा माता के मंदिर तक पहुंचा जाता है मंदिर के मुख्य गर्भ में माता चिन्तपूर्णी के दर्शन एक गोल पिण्डी के रूप में होते है। जहा भक्त विभिन्न रुप में माता की आराधना करते है। माता के मंदिर के चारो ओर भगवान शिव के मंदिर है।चिन्तपूर्णी का तालाबभगवती ने कन्या रुप में भक्त माईदास जी को प्रत्यक्ष दर्शन देकर जब उनकी चिंता का निवारण किया और कहा कि नीचे जाकर जिस बडे पत्थर को तुम उखाडोगे वहा से जल निकल आयेगा। तब भक्तजी ने जिस स्थान से पत्थर उखाडा था वहा अब एक सुंदर तालाब बनवा दिया है। इसी स्थान से पत्थर उखाडने पर शीतल जल प्रकट हो गया था। यह तालाब पंजाब के स्व. महाराजा रणजीत सिंह के तत्कालीन दीवान द्वारा बनवाया गया था। जिनके नाम का पत्थर आज भी तालाब के समीप लगा हुआ है। इसके बाद इस तालाब का जीर्णोद्धार चिंतपूर्णी सरोवर कार्य समिति के भूतपूर्व अध्यक्ष अमर शहीद स्व. लाला जगत नारायण जी ने करवाया था। जो पंजाब केसरी के भूतपूर्व सम्पादक थे। तालाब के ठीक ऊपर मंदिर के संस्थापक श्रीश्री 1008 बाबा माईदास जी की समाधि बनी हुई है। समीप ही वह पवित्र बावडी स्थित है जिनके जल मे स्नान करने से समस्त व्याधियो का नाश होता है। इस जल को पवित्र माना जाता है। इसी जल से माता की दिव्य पिण्डी का जल अभिषेक किया जाता है।ऐतिहासिक दिव्य पत्थरजो पत्थर भक्त माईदासजी ने दिव्य कन्या की आज्ञानुसार उखाडा था और जिसके उखाडने पर जल प्रकट हो गया था वह ऐतिहासिक प्राचीन पत्थर आज भी यात्रियो के दर्शनार्थ हेतु माता रानी के दरबार में रखा हुआ है। यह पवित्र पत्थर चिन्तपूर्णी देवी मंदिर में प्रवेश करते ही मुख्य दरवाजे के समीप दाहिनी ओर देखा जा सकता है।ज्वाला देवी मंदिर यात्रावट वृक्षमां चिन्तपूर्णी का मंदिर इसी ऐतिहासिक व प्राचीन वट वृक्ष के साए में स्थित है। जिसके नीचे पंडित माईदास ने अपनी ससुराल जाते हुए और वापस लौटने पर भी विश्राम किया था। यही उन्हें पहले स्वप्न में फिर प्रत्यक्ष दर्शन दिव्य कन्या के रूप में हुए थे। यह अति प्राचिन वट वृक्ष किस युग का है इसका अनुमान लगाना कठिन है। भक्तगण यहा अपने मन में कुछ इच्छा धारण करके इसी वट वृक्ष की शाखाओ मे लाल डोरी (कलावा) बांधते है और अपनी इच्छा पूर्ण होने पर माता के दरबार में उपस्थित होकर उस धागे को खोल देते है। ऐसी मान्यता है की इस वट वृक्ष में धागा बांधने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।चिन्तपूर्णी देवी कैसे पहुंचेयह स्थान हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में है। पंजाब के होशियारपुर से कुछ दूरी पर भरवाई नामक स्थान है। यहा बसो का आवागमन रहता है। भरवाई बस अड्डे से केवल 2-3 मील की दूरी पर चिन्तपूर्णी देवी का भ्व्य मंदिर है। नैना देवी से चिंतपूर्णी तक सीधि बस सेवा भी उपलब्ध है यह लगभग 6-7 घंटे का मार्ग है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=’16975′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल नौ देवियांहिमाचल पर्यटन