ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल Naeem Ahmad, July 13, 2021March 11, 2023 ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग परिक्षेत्र में उपलब्ध जैन तीर्थाकंरों की प्रतिमाये इस बात को सिद्ध करती है, कि ग्वालियर का धार्मिक महत्व अति प्राचीन है। पहले यह क्षेत्र गुप्तों के अधिकार में था बाद में यह क्षेत्र हर्ष वर्धन और कछवाहों के अधिकार में आ गया। कछवाहा नरेशो ने विक्रमी संवत् 332 में ग्वालियर किले का निर्माण कराया था। ग्वालियर का किला हिस्ट्री – ग्वालियर का इतिहास कछवाहा वंश के शासक अपने वंश का सम्बन्ध भगवान श्रीराम के पुत्र कुश से मानते है। इस वंश का महत्वपूर्ण शासक सूरजसेन था जो कुष्ठरोग से गृषित था। उसका रोग ग्वालियर में ठीक हुआ और एक सिद्ध के आदेश से उसने अपना नाम बदलकर सूरजपाल रख दिया। इस वंश का 84वाँ नरेश तेज कर्ण था। उस समय इनका राज्य कन्नौज के राजा भोज के आधीन हो गया था। इस वंश में बऊदामा, किर्तिराज, भुवनराज और प्रदूमपाल नामक नरेश हुए। महिपाल के पश्चात मनोरथ नामक शासक हुआ। उसने सन् 1161 में ग्वालियर में महादेव मंदिर का निर्माण कराया। उसके पश्चात उसका पुत्र विजयपाल शासन में बैठा विक्रमी संवत् 1253 में शहाबुद्दीन ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण किया। इसके बाद यह किला गुजर प्रतिहारों के अधीन आ गया। इस दुर्ग में महमूद गजनबी ने आक्रमण किया था उस समय यह दुर्ग चन्देलो के आधीन था। अन्त में यह दुर्ग कुतुबुद्धीन ऐबक के आधीन हो गया। जब भारत वर्ष में तुगलक वंश के शासक राज्य करते थे उस समय ग्वालियर का किला नर सिंह राय कटिहार के आधीन था। जब दिल्ली मे तैमूर लंग का आकमण हुआ उस समय ग्वालियर फोर्ट बीरमदेव के अधीन था, इसके नाम के दो अभिलेख विकमी संवत् 1459 के ग्वालियर दुर्ग मे उपलब्ध होते है। तैमूर लंग के वापिस जाने के बाद ग्वालियर दूर्ग पर मुल्लई इकबाल खाँ ने चढ़ाई की ग्वालियर दुर्ग बहुत सुदृढ़ था। मुल्लइकबाल खाँ इसे जीत नही पाया यहाँ के देशी नरेशों ने मुल्लाइकबाल खाँ से बदला लेने के लिये इटावा के पास उस पर आक्रमण किया किन्तु राजपूतो की सामूहिक सेना मुल्ल्ला इकबाल खाँ को हरा नहीं पायी। ग्वालियर का किला सल्तनतकाल में ही ग्वालियर का दुर्ग तोमर वंश के शासको के आधीन हो गया। इस वंश का शक्तिशाली नरेश मानसिंह तोमर थें। जिन्होने कलाकार साहित्यकारों को विशेष आश्रय प्रदान किया था। मुगल सम्राट बाबर भी बिक्रमी संबत् 1587 में ग्वालियर पर आक्रमण किया। इस समय ग्वालियर के राजा विक्रमजीत थे। इस युद्ध में विक्रमजीत की पराजय हुई। बाबर ने यहाँ मानसिंह के बनवाये महल और बगीचों को देखा तथा सम्सुद्धीन अल्पमस की बनवायी टूटी-फूटी मस्जिदे देखी और यही पर अपनी नमाज आदा की। बाबर से लेकर औरंगजेब के शासनकाल तक ग्वालियर का किला मुगलो के आधीन रहा। औरंगजेब के शासनकाल के अन्तिम समय ग्वालियर दुर्ग मराठों के अधीन हो गया तथा यहाँ सिन्ध्याँ वंश राज्य करने लगा ग्वालियर के मराठा नरेशों की सन्धि अंग्रेजो से भी हुई। सन् 1857 की क्रान्ति में ग्वालियर के सिन्धिया नरेश ने अंग्रेजों का साथ दिया जबकि झाँसी, कालपी, के मराठा, शासक तथा बाँदा के नवाब तात्याटोपे के नेतृत्व में अंग्रेजों का विरोधकर रहे थे। क्रान्तिकारियों ने ग्वालियर दुर्ग जीत लिया था। किन्तु अंग्रेजों की सेना के आ जाने के कारण क्रान्तिकारियों की पराजय हुई। और ग्वालियर के किले मे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई कोअपने प्राणों की आहुत्त देनी पडी। उसके पश्चात ग्वालियर का किला फिर सिंधिया के अधिकार में आ गया। ग्वालियर के किले में निम्नलिखित दर्शनीय स्थल है ग्वालियर दुर्ग के अवशेष ग्वालियर दर्ग के प्रवेश द्वार तेलीका मन्दिर गूजरी रानी का महल मान सिंह का महल जैन तीर्थाकंरो की मूर्तियाँ तानसेन का मकबरा गुलाम गौस खा का मकबरा रानी झाँसी की समाधि जय विलास पैलेस हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल ऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किलेमध्य प्रदेश पर्यटन