गोमती नदी का उद्गम स्थल और गोमती नदी लखनऊ के बारे में Naeem Ahmad, July 20, 2022February 27, 2024 गोमती लखनऊ नगर के बीच से गुजरने वाली नदी ही नहीं लखनवी तहजीब की एक सांस्कृतिक धारा भी है। इस छोटी नदी की कहानी बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण है। गोमती के आदर में कहा जातालखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधततो गोमती प्राप्य, नित्य सिद्ध निषेविताम् | राजसूयम वाप्नोति, वायुलोकं च गच्छति।गोमती अथवा धेनुमती नाम से ही इसकी महिमा का मूल्यांकन किया जा सकता है। इस जलधारा की पवित्रता से प्रभावित होकर ही देश के कई जलाशयों का नाम गोमती रखा गया है, जैसे काठियावाड़ के द्वारिकाधाम मन्दिर के निकट की खाड़ी गोमती ही कही जाती है। भगीरथ द्वारा गंगा के लाए जाने से पहले से ही इसके विद्यमान होने के कारण गोमती को “आदि गंगा” कहा गया है। हमारी संस्कृति में जल को जीवन कहा गया है और फिर बहते पानी की महिमा का क्या कहना।गोमती नदी लखनऊ की जीवन रेखागोमती नदी का जन्म हिमालय से नहीं, हिमालय की तलहटी में समुद्र तल से 182 मीटर की ऊंचाई पर पीलीभीत जिले की पूरनपुर तहसील में हुआ, मनियाकोट गोमती का मायका है और माघौटांडा कस्बे के पास वो फुलहर झील है, जो गोमती का उद्गम है। गोमती नदी के उद्गम स्थल के लिये कहा जाता है कि गोमती एक सिद्ध संत की आस्था का वरदान है। संत की समाधि आज भी यहां एक शिव मंदिर के निकट है जहां नागपंचमी का मेला लगता है। मनियाकोट के आस-पास कई जल स्रोत मिलकर एक होते हैं जो कि वास्तव में भाभर क्षेत्र के पथरीले इलाके के नीचे-नीचे से आते हैं। ये अनेक शिराएं मिल कर एक जलधारा बनाती हैं। गोमती उत्तर से दक्षिण की ओर चलती है और फिर शाहजहांपुर जनपद में पांव रखती है।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहासइसी जनपद से गोमती पूरी तरह प्रवहमान होती है। यह सोया सोया पानी जब जागकर आगे चलता है, बढ़ता है तो समाज के संस्कारी उपवनों को सींचता जाता है। रुहेलखण्ड का यह क्षेत्र अपने वीर बांकुरों के लिए प्रसिद्ध है। रुहेलखण्ड में अपना बचपन बिताकर 67 कि.मी. की यात्रा करके गोमती एक अल्हड़ किशोरी बनकर अवधांचल की सीमा में प्रवेश करती है। लखीमपुर खीरी जिले में अक्षांश 28-12 और देशान्तर 80–20 की स्थिति में गोमती का प्रवेश होता है। परगना मुहम्मदी और पास गांव के बगल से निकलते हुए लखीमपुर के दक्षिण के पूर्वी क्षेत्र तक 452 कि.मी. लम्बा सफर तराई के हरे भरे जंगलों की परछाईयों को समेटते हुए तय करती है, वन-पक्षियों का कलरव सुनते हुए। अत: गोमती एक नवयोवना की भांति इठलाती हुई चलती है खीरी जिले के औरंगाबाद क्षेत्र के दक्षिण से होती हुई और फिर सीतापुर हरदोई जनपद में आती है। यहां से ये हरदोई, सीतापुर जिलों की सीमा रेखा बनकर बहती है। यहां मिश्रिख तहसील में बायीं और से आकर कठिना नदी इसे अपना अर्घय देती है, यह कठिना नदी जो शाहजहांपुर जिले की मोती झील से निकल कर आती है।गोमती नदी लखनऊइसके बाद आता है गोमती का पहला पड़ाव ‘नैमिषारण्य’ तीर्थ मन्थर गति से आयी गंभीरा “गोमती” यहां एक पवित्र धाम से परिणय करती है, सर्व प्रसिद्ध स्थल नैमिषारण्य- ‘एकदा नैमिषारण्ये ऋषय: शौनका दय:। पपृच्छुर्मुनयः सर्वे सूत पौराणिकं खलु ।। नीम के जंगलों से आच्छादित इस सनातन तपोवन में गोमती 88 हजार ऋषीश्वरों के पांव पखारती है। सतयुग से ही इस साधना स्थल, आध्यात्मिक पीठ से सहचेतना का रचनात्मक प्रकाश होता रहा है, सद्ज्ञान का प्रसारण होता रहा है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में नैमिषारण्य की महिमा में लिखा-तीरथवर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिधिदाता।लखनऊ की बोली अदब और तहजीब की मिसालइस नैमिषारण्य की रक्षा-सुरक्षा की व्यूह रेखा गोमती ही बनाती है। जिससे तीर्थ की शोभा दुगुनी हो गई है। यहीं सूतजी के श्रीमुख से मुनियों ने भागवत कथा का श्रवण किया था। यहीं पर वेदव्यास द्वारा वेद विमाजन किया गया और हुई अठारह पुराणों की रचना-नेमिषे सुतमासी नमामिवादम महामतिम् | कथामृतं रसास्वाद कुशल: शौनको अब्रवीत ||व्यास गद्दी जेमिनी आश्रम, ललिता पीठ, पाण्डव दुर्ग, चक्रतीर्थ, हनुमानगढ़ी, जैसे पावन स्थानों का पुंज है नैमिषारण्य। प्रत्येक चन्द्रमास की अमावस्या को यहां चक्रतीर्थ पर नहान का मेला लगता है, तीर्थ-यात्रियों का विशाल जनसमूह यहां आता है, ये पर्व सोमवती अमावस को और भी धूमधाम लेकर आता है। इसी नैमिषारण्य में सम्राट मनु और शतरूपा ने परमेश्वर को पुत्र रूप में पाने के लिये गोमती तट पर तपस्या की थी-पहुंचे जाइ धेनुमति तीरा। हरषि नहाने निरमल नीरा।।लखनऊ की चाट कचौरी ऐसा स्वाद रहें हमेशा याददूर-दूर से यहां आए हुए पर्यटक चक्रतीर्थ में अवगाहन करके मन्दिरों में दर्शन करते हैं फिर नारदानन्द आश्रम, पुराण-मन्दिर और देवपुरी देखने जाते हैं। ललिता देवी मन्दिर में दिन रात मनौतियां होती हैं। चढ़ावे चढ़ते हैं और बच्चों के चूड़ाकर्म संस्कार होते हैं। गोमती हरदोई जिले की सीमा रेखा बनकर हत्याहरण तीर्थ के निकट से होती हुई जब लखनऊ जिले की ओर आने को होती है तो इसके बाये तट पर सरायन नदी गले मिलती है। फिर सरायन का पानी लेकर आगे लखनऊ जनपद में आती है। यहां महोना मलिहाबाद परगने के बीच से होती हुई बसहरी घाट पर लासा देवी के ऊंचे मन्दिर के नीचे से निकलकर बख्शी तालाब, कठवारा की चन्द्रिका देवी के पास से गुजरती है। यहां आस-पास आमों के बाग हैं जिनकी आम्र मंजरी का मादक सौरभ बसन्त ऋतु में गोमती के आंचल को सुवासित करता हैं और गर्मियों के मौसम में इस नदी के दोनों किनारों पर सुनहरे लखनऊवी खरबूजे पुखराज नगीने की तरह बिखर जाते हैं।लखनऊ के प्रसिद्ध मंदिर यहां जाना ना भूलेंअब रानीमऊ रैथा के बीच होती हुई मूसा बाग और धेला गांव के मध्य से गोमती गऊघाट पर आती है। गऊघाट लखनऊ नगर में नदी प्रवेश का पहला निर्मल घाट हुआ करता था। गऊघाट जहां का स्वच्छ नीर गायें पीती थीं, जिनके स्वस्थ दूध से सबका पोषण होता था, बच्चे पलते थे।अब आ गया लखनऊ, कोसल जनपद की राजधानी अयोध्या का पश्चिमी दुर्ग द्वार लक्ष्मणपुर, जिसने पौराणिक काल देखे, महा जनपदीय युग देखे, फिर राजपूत साम्राज्य के बाद भरों, रजपासियों की राजधानी बनी लखनावती, आज भी गोमती लखनऊ के लक्ष्मण टीले का पदप्रज्ञालन कर रही है यहाँ गोमती को “लक्ष्मण गंगा’ भी कहा गया है। लक्ष्मण टीले के शेष तीर्थ और आदि गंगा की इसी धारा के कारण लखनावती को “छोटी काशी” कहा जाता था।मूसा बाग लखनऊ जहां स्थित है एक चूहे का मकबरागोमती ने शेखजादों का लखनऊ, नवाबों का प्यारा लखनऊ और आज उत्त्तर प्रदेश का राजनगर लखनऊ, बहुत निकट से देखा है। मुगलकालीन नवाबों के चढ़ते उतरते वैभव को और अपने दाएं तट पर मच्छी भवन किले को बनते देखा है। गोमती में उस डूबते सूरज को आज भी लोग देखने आते हैं जिसके दम से अवध की शाम, “शामे अवध” का नाम पाती है।लखनऊ की मस्जिदें – लखनऊ की ऐतिहासिक मस्जिदयहां गोमती के तट पर हैं हुसैनाबाद की खूबसूरत इमारतों का हुजूम। आसफी इमामबाड़ा रूमी दरवाजा, गोमती के ऐतिहासिक पुल कोठी फरहबख्श, छतर मंजिल, मोतीमहल, शाहनजफ, कदन रसूल, सिकन्दर बाग, ला कास्टेंशिया, विलायती बाग और कोठी बीबीयापुर की शानदार ऐतिहासिक इमारतें। सन् 1857 का स्वाधीनता संग्राम और बेगम हजरत महल की यादगारें लखनऊ की चिकनकारी, कामदानी, जरदोजी, इत्र, तेल, तम्बाकू, गोटा, वरक, और मिट॒टी के खिलौनों का उद्योग ये सब गोमती के पानी से परवरिश पाते रहे हैं। गोमती के पानी में आपसी मेल मिलाप की कोई धारा हैं और ललित कलाओं के विकास का दम-खम भी है।लखनऊ यूनिवर्सिटी का इतिहास इन हिन्दीलखनऊ में गोमती के घाटों पर जब तब भीड़ उमड़ कर आती है, गणेशोत्सव की मूर्ति विसर्जन दशहरे पर दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए, चेटीचंड (चैतीचन्द्र) में वरूण पूजा के लिए या शहीद स्मारक पर श्रद्धा सहित दीपदान के लिए आये हुए श्रद्धालु लोग आज भी जुड़ते हैं। यहां तक कि सबसे बड़ा मेला, कार्तिक पूर्णिमा का मेला, गोमती पर ही लगता है। जो यहां पूरे अगहन मास चलता रहता हैचारबाग रेलवे स्टेशन का इतिहास – मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैलखनऊ के कुछ घाटों, मन्दिरों में गोमती मूर्तिमान भी देखी जा सकती हैं। यहां सबसे प्राचीन प्रतिमा 10वीं सदी की देखना चाहें तो इसी जनपद में इटोंजा के निकट डिगोई ग्राम में देख सकते हैं और एक सदी पुरानी प्रतिमा को शुक्ला घाट पर देख सकते है। गोमती की बाढ़ ने लखनऊ नगर के कुछ हिस्सों को कई बार नहला दिया है। सन् 1915 और 1923 की भीषण बाढ़ को लोग भूले नहीं थे कि सन् 1960 में फिर भयंकर सैलाब आया और तब हजरतगंज में नावें चलने लगी थीं।क्राइस्ट चर्च लखनऊ का इतिहास हिन्दी मेंलखनऊ जनपद में अखण्डी मंझोवा गांव में, झिलंगी गोपरामऊ में, और बेता कांकराबाद में गोमती के दायें किनारे पर आकर मिलती है। केवल कुकरायल ही यहां बायें तट पर गोमती से संगम करती है। लखनऊ के पिपरिया घाट के बाद से शहर दूर होता जाता है और फिर मोहनलालगंज से सिकंदरपुर खुर्द के आगे लखनऊ जनपद छूट जाता है इससे पहले यहां गस्कर में रेठ और सलेमपुर में लोनी नदी मिल जाती है। अब आता है बाराबंकी जिले का दक्षिण भू-भाग, जहां हैदरगढ़ के निकट से गोमती नदी गुजरती है और इसी जिले में आकर कल्याणी नदी मिलती है।राज्य संग्रहालय लखनऊ का इतिहास हिन्दी मेंउत्तर-पश्चिम दिशा से यह सुल्तानपुर जिले में प्रवेश करती है। यहां उत्तर में मीरनपुर और दक्षिण में बरउंसा है और पास ही है जगदीशपुर का नए औद्योगिक विकास से जगमगाता क्षेत्र। इसी सुल्तानपुर शहर के बीच गोमती, सीताकुण्ड तीर्थ होकर चुपचाप निकल जाती है। त्रेता युग में भरत जी चरण पादुका लेकर इसी मार्ग से अयोध्या लौटे थेसई उतरि गोमती नहाए। चौथे दिवस अवधपुर आए।।इसके बाद आता हैं मीरन गांव और पांचो पीरन की मजारें।अब अल्देमऊ और चांदा के बीच होकर पापड़ घाट के बाद आता है घोतपाप तीर्थ। यहां दायीं ओर घाट हैं मन्दिर हैं, इस स्थान पर अल्देमऊ, नूरपुर परगने में गोमती तट पर सतई बाबा का प्रसिद्ध मठ है जहां मेला लगता है। यहां खुदाई से बहुत से पुरातात्विक अवशेष मिलें हैं। इस क्षेत्र में भरों का राज सदियों रहा है। शेरशाह के दो किले भी हैं। यहीं चांदीपुर में कन्दू नाला आकर मिलता है। इसके बाद दक्षिण पूर्व की तरफ चलकर सिगरामऊ से जिला प्रतापगढ़ को छू कर गोमती बड़े आवेग से जौनपुर की मेहमान बनती है। मऊ शाहगंज लाइन पर खुरासों रोड पर गोमती तट पर दुर्वासा मंदिर है।लखनऊ की तवायफें जिनसे रहते थे कोठे हमेशा गुलजारमहर्षि जमदग्नि के आश्रम के निकट बसा हुआ प्राचीन नगर जमदग्निपुर आज जौनपुर कहलाता है। इस जौनपुर में आठ सौ साल पहले तक गोमती के दोनों किनारों पर भारशिवों का बोलबाला था। भरों के देवता करार वीर का प्रसिद्ध मंदिर आज भी यहां है। सन् 1326 में यहां की पुरानी रचनाओं को तोड़कर फीरोज शाह तुगलक ने एक किले का निर्माण किया था। जौनपुर का ये किला आज भी करार कोट कहलाता है, अटाला मस्जिद, बड़ी मस्जिद, इत्र, तेल और इमरती तथा जंगी मूली के लिए जौनपुर शहर प्रसिद्ध रहा है।पतंगबाजी का शौक आपको ही नहीं लखनऊ के नवाबों को भी थासन् 1567 की बात है जब मुगल सम्राट अकबर जौनपुर पधारे थे, उसके बाद ही उन्होने वहां एक पुल के निर्माण का आदेश दिया और फिर 30 लाख रुपये की लागत से जौनपुर का शाही पुल तैयार हुआ। खूबसूरत छतरियों वाला यह गोमती का पुल विश्व का पहला लेविल ब्रिज है जिसकी नकल पर सन् 1810 में लंदन शहर का “वाटर लू” लेविल ब्रिज बनवाया गया है।कबूतर बाजी जिसके शौकीन थे लखनऊ के नवाबगोमती जौनपुर की झंझरी मस्जिद को अपने दायें तट पर छोड़ कर आगे बढ़ जाती है। कागज के इस छोटे शहर में जिसका नाम है जमेथा। यह महर्षि जमदग्नि, रेणुका और परशुराम जी का आश्रम रहा है। फिरोजशाह तुगलक ने इसे “शहरे अनवार” का नाम भी दिया था। यहां फकीरों के तमाम मज़ारे होने के कारण इसको जनता पीरान शहर भी कहती रही है और फिर बाद में गयासुद्दीन तुगलक के बेट जफर के नाम से इसे नाम मिला “जफराबाद”।मुर्गा की लड़ाई कभी लखनऊ का मुख्य मनोरंजन थाजौनपुर के आगे 28.8 किमी पूर्व त्रिमुहानी पर सई नदी गोमती में आकर मिलती है। इस संगम पर हर साल मेला लगता है। आगे बढ़कर ये दक्षिण पूर्व की ओर वाराणसी और गाजीपुर जले की विभाजक रेखा बनाती है और यहीं बायें किनारे पर नन्द नदी से इसका संगम होता है- और फिर इससे 8 कि.मी. दूर 25-31 अक्षांश और 83-31 देशान्तर की स्थिति में गोमती अपनी पचरंगी चूनर लहराती हुई गंगा में मिल कर गंगा हो जाती है। यहां मार्कण्डेय महादेव का सुविख्यात मंदिर है। यही स्थल है जहां राजा देवास ने दूसरी काशी बनानी चाही थी।इस तरह वो नदी जो न पर्वतों से उतरी है न समुद्र में गिरी है। उत्तर प्रदेश में उभरी है और सदाबहार संस्कृतियों वाली फुलवारियों में से 500 कि.मी. की यात्रा पूरी करके उत्त्तर प्रदेश की सरहद के भीतर ही विलीन हो जाती है। वास्तव में गोमती का चरित्र लखनऊ की गंगा-जमुनी छवि का आईना है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”9505″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn 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