गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थान Naeem Ahmad, September 18, 2022February 18, 2024 राजस्थान की राजधानी जयपुर में श्री जी की मोरी में प्रवेश करते ही बांयी ओर गोपीजन वल्लभ जी का मंदिर भी नगर-प्रासाद ओर इस नगर के विशाल और सुन्दर मंदिरों मे से एक है। कहते है कि यह मंदिर पहले निम्बार्क संप्रदाय का था। इस संप्रदाय के 39वे जगदगुरु श्री वृन्दावन देवाचार्य सवाई जयसिंह के अश्वमेघ यज्ञ मे जयपुर आये थे। आमेर की सडक पर परशुराम द्वारा नामक स्थान तभी का है और वृन्दावन देवाचार्य वही ठहरे थे। सवाई जयसिंह ने अपने नये नगर को सभी संप्रदायो के स्थानों से मण्डित किया था और वृन्दावन देवाचार्य को उसने यह मंदिर दिया था।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानरामसिंह द्वितीय के समय तक इस गोपीजन वल्लभ जी मंदिर देवस्थान के महन्त निम्बार्क संप्रदाय के ही होते रहे, फिर जब शैवों और वैष्णवों मे खटक गई ओर ब्रहमपुरी से गोकल नाथ जी तथा पुरानी बस्ती से गोकुल चन्द्र माजी के गोस्वामी अपने देव- विग्रहों के साथ जयपुर छोड गये तो निम्बार्काचार्य गोपेश्वरशरण देवाचार्य भी यहां से सलेमाबाद (किशनगढ) चले गये और फिर नही लौटे।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुरमहाराजा रामसिंह ने गोपीजन वल्लभ जी मंदिर फिर द्रविड विद्वान पंडित जयराम शेष की महन्ताई में दे दिया। फिर रामनाथ शास्त्री, जिन्हे जयपुर मे ‘मन्वाजी” के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त थी, महन्त बने और 1872 ई मे महाराजा रामसिंह ने यह मंदिर उन्ही को भेंट कर दिया। तब से इस मंदिर को मन्वाजी के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं इस मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व की और देखता है, किंतु राधा-कृष्ण के सुन्दर विग्रह, जो ऊपर जाने पर हैं, नगर की ओर दक्षिणा भिमुखी है। भगवान के मंदिर का यहां वही रूप है जो गोविन्द देव जी के मंदिर मे देखा जाता है। पाच मेहराबो की विशाल बारहदरी के बीच मे चार स्तम्भों को बंद कर गर्भ-गृह बना है, जिसमे गोविन्द के समान मुंह बोलते राधा-कृष्ण विग्रह है। गर्भगृह के दोनो ओर चवरधारी द्वारपाल हैं। दीवानखाना या बारहदरी दो ओर से जालियों से बंद है और ऊपर छत पर गुम्बददार छत्रियां तथा आयताकार खुले दालान इमारत के देवस्थान होने की सूचना देते है।ब्रजराज बिहारी जी मन्दिर जयपुर राजस्थानगोपीजन वल्लभ जी मंदिर के दिंवगत महत पंडित गोपीनाथ द्रविड साहित्याचार्य जयपुर के संस्कृत विद्वानों मे गणनीय थे।जयपुर के प्रसिद्ध वीतराग दक्षिणात्य विद्वान पण्डित वीरेश्वर शास्त्री भी इसी मंदिर मे रहे थे और उनसे साहित्य एव शास्त्र-चर्चा के लिए यहां अनेकानेक विद्वान, अध्यापक और धर्मशास्त्री आते ही रहते थे। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=’12369′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल जयपुर के दर्शनीय स्थलजयपुर पर्यटनजयपुर पर्यटन स्थलराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन