गैलेन का जीवन परिचय – महान चिकित्सा शास्त्री गैलेन का सिद्धांत Naeem Ahmad, May 26, 2022May 26, 2022 इन स्थापनाओं में से किसी पर भी एकाएक विश्वास कर लेना मेरे लिए असंभव है जब तक कि मैं, जहां तक भी मेरी ताकत में है, इनकी परीक्षा खुद नहीं कर लेता। मैं तो कहूंगा कि मेरे बाद भी अगर किसी को मेरी ही तरह कर्मयोगी होने की धुन सवार हो, और सत्य की तह तक पहुंचने की हवस हो, तो वह केवल दो या तीन उदाहरणों से ही जल्दबाजी के साथ किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश न करे। जिज्ञासु को, प्रतिबोध, प्रायः मेरी तरह लम्बे अनुभव के बाद ही उपलब्ध होगा।” ये शब्द प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री गैलेन के हैं। गैलन जिसकी गणना विश्व के महान वैज्ञानिकों और धन्वन्तरियों में की जाती है और जिसे शरीर रचना विज्ञान का जनक माना जाता है। उसकी ‘एनेटॉमिकल एक्सरसाइज़ेज़’ चिकित्सा शास्त्र का वह विश्वकोष है जो चिकित्सा को सचमुच एक नये मोड़ पर ले आयी। एक कर्मयोगी जीवन का एक जीवित स्मारक, तथा चिकित्सकों के लिए प्राय: 15 सदियों से चला आ रहा अन्तिम प्रमाण। गैलेन के उद्धृत शब्दों का महत्त्व हमारे लिए आज और भी बढ़ जाता है जब हम उनमें परीक्षण द्वारा सत्य की परीक्षा करने की आधुनिक प्रणाली की, तथा निष्क्रषों की अनेकानेक परीक्षाओं के सिद्धान्त की प्रतिध्वनि पाते हैं। गैलेन का जीवन परिचय गैलेन का जन्म ईसा के 129 साल बाद, एशिया माइनर के पर्गेमम द्वीप में हुआ था। एशिया माइनर कालासागर तथा भूमध्यसागर के बीच में स्थित एक प्रायद्वीप है जो बीच में ईजियन सागर द्वारा ग्रीस से विभक्त हो जाता है। अर्वाचीन युग में यह प्राय-द्वीप प्रायः तुर्की की अधीनता में ही रहा है, किन्तु गैलेन के दिनों में यह सभ्य विश्व के समृद्धतम प्रदेशों में था। तब रोमन राज्य का दबदबा था और रोम ने तब इसका प्रशासन सचमुच बडी बुद्धिमत्ता और सुन्दरता के साथ किया था। गैलेन का पिता ग्रीक था और सुशिक्षित था। अंकगणित, ज्यामिति तथा ज्योति विज्ञान में उसे निपुणता प्राप्त थी। वह एक गणितज्ञ भी था ओर वास्तुशिल्पी भी। पिता का पुत्र पर महान तथा निर्णायक प्रभाव पडा। उसी के कारण उसकी मनोवृत्ति मे, उसके जीवन में, वैज्ञानिकता आई। पिता का उपदेश था “सत्य ही की आराधना करनी चाहिए। सुना और सुनकर उस पर चिन्तन किया। किसी भी मत और सम्प्रदाय के अनुसरण की आवश्यकता नही। उधर, मां का प्रभाव भी कुछ कम न था। उससे उसने धैर्य सीखा, खुद पर काबू रखना सीखा, कुछ भी जबान पर लाने से पहले उस पर खूब सोचना सीखा। सबक तो मां ने ठीक दिया लेकिन वह खुद एक खुश-मिजाज़ औरत थी, नतीजा यह हुआ कि गैलेन ने फैसला कर लिया कि मां का कहना वह कभी नहीं मानेगा। चौदहवें साल तक, जैसा कि उन दिनों रिवाज था, गैलेन की पढाई-लिखाई घर पर ही हुई। 15वे साल मे उसे विभिन्न शिक्षा केन्द्रो मे व्याख्यान सुनने भेज दिया गया, ताकि वह ग्रीक दार्शनिको के महावाक्यो का चयन कर सके। गैलेन जब सत्रह वर्ष का हो गया तब जाकर कही निश्चय किया गया कि उसे डाक्टर बनना है, और आश्चर्य यह है कि बालक की जीवन-दिशा निर्धारित करने के इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का समाधान एक स्वप्न के आधार पर किया गया। उन दिनों लोगो को स्वप्न की सत्यता पर बहुत ही अधिक विश्वास हुआ करता था, यहां तक कि गैलेन और उसके पिता जैसे सुशिक्षित और सुलझेविचारों के लोग भी उसे तथावत् स्वीकार करते थे। महान चिकित्सा शास्त्र वैज्ञानिक गैलेन चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन गैलेन ने उन दिनो के माने हुए विशेषज्ञों के यहां जाकर किया। इसके लिए उसे देश-विदेश पर्गेमम, स्मर्ना, कोरिन्थ तक जाना पडा। उन दिनो जितने भी विषय एक विद्यार्थी को पढाएं जाते थे–ज्यामिति, ज्योतिर्विज्ञान, संगीत, भाषाविज्ञान तथा आयुर्वेद, सभी का मतोयोगपूर्वक स्वाध्याय गैलेन ने किया। उनतीस साल तक उनका यह विद्यार्थी-जीवन चलता रहा। उन दिनो भी यह एक लम्बा अरसा माना जाता था। खेर, वापस घर लौटने पर उसने प्रेक्टिस शुरू कर दी और इसमे उसे पर्याप्त सफलता भी मिली। उधर रोम से ग्लैडियेटरों की मरहम-पटटी के लिए उसके पास बुलावे आने लगे। ग्लेडियेटर’ लोग तलवार हाथ मे लेकर एक-दूसरे की जान ले लेने के उद्देश्य से युद्ध किया करते थे। यह रोमनों का एक मनपसंद खेल था। किन्तु इन्सान के जिस्म पर चीराफाडी पर उन्हें आपत्ति थी। गैलेन ने अपने पद का फायदा उठाया, और वह वहां भी शल्य चिकित्सा सम्बन्धी अपने अध्ययन बदस्तूर करता रहा। गैलेन का सिद्धांत और खोज शरीर रचना विज्ञान तथा शरीर विज्ञान (फीजियॉलोजी ) दोनों में ही गैलेन ने बडे महत्त्वपूर्ण और व्यापक अनुसन्धान किए। उसकी उन गवेषणाओ के हज़ार-हजार पृष्ठ के 21 विपुलाकार ग्रन्थ सुरक्षित है। कानूनत वह मनुष्य के शरीर की रचना का पूरा-पूरा अध्ययन नही कर सकता था, वह कसर उसने 31 बन्दरों के शारीरिक अध्ययन द्वारा पूरी की। इस ग्रंथों का पृष्ठ-पृष्ठ गैलेन के सूक्ष्म अन्वीक्षणों का परिचायक है। गैलेन ने हृदय संस्थान का अध्ययन किया, उसकी तहों को टटोला, उसकी’ पेशियों के बलाबल को प्रत्यक्ष किया, और उसके मुखद्वारों की गतिविधि का साक्ष्य किया। खून किस तरह शरीर में दौरा करता है, इस सिद्धान्त पर भी वह लगभग पहुंच ही गया था कि एक गलत अनुमान उसकी उस सारी खोज को ही विक्रत कर गया, वह यह कि रक्त हृदय के दक्षिण पार्श्व से किसी प्रकार बीच की दीवार में से रिसकर दूसरी ओर पहुंच जाता है। यही नहीं, मुख्य रक्त वाहिनियों की पहचान भी उसने खूब कर ली थी, किन्तु यह निश्चय वह नहीं कर पाया कि ‘हृदय से तथा हृदय की ओर दोनों प्रक्रियाओं को एक करने वाली वह नियामक वाहिनी’ क्या है। उसका ख्याल था कि ये नीली-नीली और लाल-लाल नसें किसी अज्ञात, अनियमित-वृत्ति द्वारा खून को दिल से बाहर की ओर और फिर वापस दिल ही में ले जाती हैं। नाड़ी तंत्र नाड़ी-तन्त्र के विषय में भी गैलेन हमारे आधुनिक ज्ञान के बहुत निकट पहुंच गया था। उसने यह अनुभव कर लिया था कि ये नाड़ियां ही होती हैं जो स्वयं, अथवा सुषुम्ना नाड़ी के माध्यम द्वारा, ऐन्द्रिय-प्रत्यक्ष को मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। पशुओं पर उनके मेरुदंड को जगह-जगह छेदते हुए, उसने अनेक परीक्षण किए और पाया कि किस प्रकार वह बेचारा बेजुबान जानवर शरीर के कितने ही धर्मों को सही-सही निभाने मे निकम्मा हो चुका है। एक मध्यच्छद-स्नायु (फ्रेनिक नर्व ) के ही कट जाने से कितना नुकसान हो सकता है, इसका भी उसे सही-सही आभास हो चुका था। यही वह नाड़ी है जो शवास-प्रश्वास की प्रक्रिया मे फेफड़े के परदे की गतिविधि को नियमित किया करती है। यह पहचान भी गैलेन को हो चुकी थी कि नब्ज की रफ्तार किस प्रकार मरीज की हालत के बारे मे सही-सही खबर देती रहती है, और यह भी कि यही नाडी-स्पन्दन व्यक्ति की आन्न्तर स्थिति का, भाव-भूमि का, परिचायक भी हो सकता है। मैण्डेल के प्रजनन सिद्धान्तो का पूर्वज्ञान भी जैसे उसे हो चुका था क्योकि उसने भी प्रत्यक्ष किया था कि बच्चे शक्ल-सूरत मे अक्सर मा-बाप से नही, दादा-दादी से अधिक मिलते है। और उसने यह भी देखा कि पसीने की हालत मे, भले ही हमे यह अनुभव न हो रहा हो, हमारा सारा शरीर ही पानी-पानी हो रहा होता है। 1500 साल से अधिक गुजर गए किन्तु चिकित्सा-जगत की यह धारणा बनी ही रही कि गैलेन के सिद्धान्तो में कोई त्रुटि नही हो सकती। किसी एकाध ने यदि उन पर आपत्ति की तो उसका अर्थ होता, अब उनकी न कोई मरीज सुनेगा न कोई सहयोगी वेद्य ही। और यह तब जबकि गैलेन का खुद आदेश है कि बिना परीक्षा के किसी भी निष्कर्ष को आंख मूंदकर कभी स्वीकार न करना। 16वी सदी मे बेल्जियम के एक डाक्टर आन्द्रेआस वेसेलिअस ने मानव-शरीर के अगाग-सन्धान के सम्बन्ध से अनेक परीक्षण किए और गैलेन की प्रामाणिकता को किंचित विचलित करने की कोशिश की। किन्तु एक सदी और बीत गई, जब विलियम हार्वे ने आकर रक्त-प्रवाह के सम्बन्ध मे अपने परीक्षणों को प्रकाशित किया, तब जाकर कही चिकित्सा के क्षेत्रों से गैलेन का प्रभाव कुछ हटना शुरू हुआ। वैसेलिअस के समय में तो शरीर-तन्त्र विषयक कोई अनुसन्धान यदि यह संकेत देता प्रतीत होता कि गैलेन मे कही गलती रह गई है, तो चिकित्सा के महारथी यही कह देते कि हमारा यह शरीर ही गैलेन के वक्त से बदल चुका होना है, गैलेन गलती नही कर सकता। बुद्धि की यह दासता, स्वय उसके अपने ही ग्रन्थों के प्रति यह क्यो न हो, गैलेन को कभी मंजूर न होती। उसने तो कहां था, “हर चीज़ की सच्ची कसौटी प्रत्यक्ष है, स्वानुभव है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=’9237′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी