गैलीलियो का जीवन परिचय – गैलीलियो का पूरा नाम क्या था? Naeem Ahmad, May 27, 2022March 18, 2024 “मै गैलीलियो गैलिलाई, स्वर्गीय विसेजिओ गैलिलाई का पुत्र, फ्लॉरेन्स का निवासी, उम्र सत्तर साल, कचहरी में हाजिर होकर अपने असत्य सिद्धान्त का त्याग करता हूं कि सूर्य ब्रह्मांड की गतिविधि का केन्द्र है (और स्वयं स्थिर है)। मैं कसम खाकर कहता हूं कि इस सिद्धान्त को अब मैं कभी नहीं मानूंगा, इसका समर्थन प्रतिपादन भी अब मैं किसी रूप में नहीं करूंगा। गैलीलियो को जब यह शपथ लेने के लिए कचहरी में लाया गया था, वह बूढ़ा हो चला था और अक्सर बीमार रहा करता था। दुनिया का वह माना हुआ गणितज्ञ था, वैज्ञानिक, ज्योतिविद तथा परीक्षणात्मक प्रतिभा का अद्भूत धनी गैलीलियो, लेकिन कानून दानों ने अपने ओहदे के बल पर उसके खिलाफ फैसला सुना दिया कि— ब्रह्मांड का केन्द्र पृथ्वी है (सूर्य नहीं)। गैलीलियो को जो प्रतिष्ठा विश्व के इतिहास में प्राप्त है वह शायद किसी भी वैज्ञानिक को आज तक नहीं मिल सकी, लेकिन मौत की धमकी ने उसे भी मजबूर कर दिया था कि जो सच्चाई उससे प्रत्यक्ष द्वारा, तथा अनुमान द्वारा प्रमाणित की थी उससे वह खुलेआम मुकर जाए। गैलीलियो का सारा जीवन पुराने अन्धविश्वासों के प्रत्याख्यान में ही गुजरा। एरिस्टोटल के समय से चले आ रहे कितने ही तथा कथित ‘सत्यों’ को उसने असत्य सिद्ध कर दिखाया, और न्यूटन के परतर अनुसन्धानों के लिए नींवें डालीं। आज हम उसे परीक्षणात्मक विज्ञान प्रणाली का जनक मानते हैं, यद्यपि उन दिनों विज्ञान के यंत्रों में अपेक्षित शुद्धता एवं सूक्ष्मता कुछ बहुत न आ पाई थी। अपने इस लेख में हम इसी महान वैज्ञानिक के जीवन बारे में उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— गैलीलियो का पूरा नाम क्या था? गैलीलियो का वैज्ञानिक खोज क्या था? गैलीलियो की मृत्यु कैसे हुई? गैलीलियो का जन्म कब हुआ था? गैलीलियो के सिद्धांत क्या थे? गैलीलियो के जीवन और वैज्ञानिक खोज के बारे में? गैलीलियो ने किसका नियम दिया था? गैलीलियो का बचपन कैसा था? गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार किस वर्ष किया था? गैलीलियो की पहली पुस्तक का नाम क्या था? सूर्य के धब्बों के संदर्भ में गैलीलियो ने अपनी किस पुस्तक में लिखा? गैलीलियो का जीवन परिचय गैलीलियो का जन्म 1564 मे हुआ था। शेक्सपियर और गैलीलियो विश्व की दो विभूतियां एक ही वर्ष संसार मे आई। गैलीलियो का पिता इटली के पीसा शहर मे ऊन का सौदागर था। उसकी गिनती आसपास के शहरो में भी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप मे होती थी, परन्तु आर्थिक दृष्टि से वह इतना सम्पन्न नहीं था कि समाज में अपनी प्रतिष्ठा को संभाले रह सके। उसने अपने परिवार का पोषण कुछ संगीत रचनाओं द्वारा करने की भी चेष्टा की, किन्तु मजबूरन उसे व्यापार का आश्रय लेना पडा। गैलीलियो में अद्भुत प्रतिभा का प्रमाण बचपन से ही मिल रहा था। संगीत में भी उसकी बुद्धि उसी सहज भाव से प्रवेश पा चुकी थी। सितार और तुरही बजाने में वह सिद्धहस्त था, और चित्रकला में भी स्थानीय पारखियों को उसने अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था, बच्चो के खिलौने या घर में काम आनेवाली और छोटी-मोटी चीजे, बनाना तो जैसे उसके बाए हाथ का काम था। पीसा इटली की टस्कनी रियासत में है। बडे पुराने समय से यह कला तथा विद्या के एक प्रतिष्ठित केन्द्र के रूप में चला आता था। गैलीलियो के आत्म-विकास के लिए यह सांस्कृतिक वातावरण स्वभावत बहुत अनुकूल ही था। घर मे भी, और आस-पास भी, सभी कुछ प्रेरणा-प्रद था। पिता ने प्रेरणा दी और प्रोत्साहित किया कि बेटा, तुम्हे डाक्टर बनना है, और गेलीलियो पीसा विश्वविद्यालय मे चिकित्सा अध्ययन के लिए दाखिल हो गया। विश्वविद्यालय मे जब वह अभी 20 वर्ष का ही था, गैलीलियो ने अपना प्रथम वैज्ञानिक अनुसंधान किया। कहानी इस तरह है कि पीसा के गिरजे मे छत से लटकते कंदील को उसने डोलते हुए देखा और अपनी नब्ज़ को घडी की टिकटिक के तौर पर इस्तेमाल करते हुए, उसने नोट किया कि कंदील के इस दाये-से-बाये, बाये से दाये जाने मे कुछ नियमितता है। किन्तु उसने कुछ परीक्षण किए और, उसके अनन्तर, वह इस परिणाम पर पहुचा कि एक ही लम्बाई के पेण्डुलम, उनको कितने ही ज़ोर से या कितने ही धीरे से गति दी जाए, हमेशा एक ही रफ्तार से इधर-से-उधर, उधर से इधर डोलते है। महान वैज्ञानिक गैलीलियो उसने इस वैज्ञानिक तथ्य का प्रयोग करने के लिए परामर्श भी दिया कि रोगियों की नब्ज मापने के लिए पैण्डुलम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पैण्डुलम से चलने वाली एक घडी भी उसने ईजाद कर दी। पर उसकी रूपरेखा पर कोई अमल शायद नही हो सका। कुछ समय बाद ही क्रिक्चन ह्य जेन्स ने मिनटो और सेकण्डों को सही-सही बताने वाली एक घडी तैयार की थी,जिसमे समय को नियंत्रित करने के लिए पैण्डुलम का ही इस्तेमाल किया गया था। सन् 1585 में गैलीलियो को पैसे की किल्लत हो गई। उसकी पढाई विश्वविद्यालय मे जारी नही रह सकी। वह आप ही थोडा बहुत पढ़ता रहा, लेकिन उसका झुकाव अब गणित की ओर हो गया। इन्हीं दिनो की बात है जब वह एरिस्टोटल द्वारा प्रतिपादित गति के नियमो की कुछ खुलकर आलोचना करने लगा था। उसके कार्य की ओर टस्कनी के ग्रांड ड्यूक का ध्यान भी आकर्षित हुआ। टस्कनी के राज-परिवार मे प्रतिभाशाली कलाकारो तथा सूक्ष्म चिन्तकों को सम्मानित करने की परम्परा बरसो से चली आती थी। ग्रांड डयूक ने उसे पीसा विश्वविद्यालय मे गणित के प्रोफेसर के रूप मे नियुक्ति दिला दी। किन्तु 25 वर्ष के ‘नौसिखिया’ गेलीलियो को उसके और साथी प्रोफेसर पसन्द कैसे कर सकते थे। छोटी उम्र और कोई डिग्री नही, और उस पर एरिस्टोटल की सत्यता पर सन्देह उठाने की हिम्मत। गैलीलियो का गुरूत्वाकर्षण नियम एरिस्टोटल ने एक पत्ते को और एक पत्थर को कभी जमीन पर गिरते देखा था, और झट से परिणाम निकाल लिया था कि हलकी चीज़ों को जमीन पर आने मे कुछ देर लगती है। भारी चीजे अपेक्षा कुछ जल्दी ही जमीन पर आया करती हैं। और यह सच भी है कि एक पत्ते को एक पत्थर की बजाय जमीन पर आने में कुछ ज्यादा वक्त लगता है किन्तु उसका कारण हवा की रुकावट होता है, पत्ते का हलका या कम वजनी होना नही। इस छोटी-सी बात की एरिस्टोटल उपेक्षा कर गया था। गेलीलियो गैलीली को सन्देह हुआ कि क्या एरिस्टोटल का निष्कर्ष सचमुच सही है ” अगर दो चीजों को इतना भारी कर दिया जाए कि हवा उनके रास्ते में रुकावट बन ही न सके, क्या तब भी वे दोनो चीजें अलग-अलग ही (एक पहले, दूसरी पीछे) जमीन पर गिरेगी ?। कहानी है, और शायद एक कल्पित कहानी है– कि गैलीलियो ने दो भिन्न भार वाली गेंदे ली और दोनो को पीसा के प्रसिद्ध एक ओर को झुके मीनार ‘लीनिंग टावर’ से एक साथ छोड दिया। नीचे विश्वविद्यालय के विज्ञान विभाग के सभी प्राध्यापक इर्दे-गिर्द जमा थे। दोनो गेंदो के भार मे बहुत अन्तर था, किन्तु दोनो एक ही साथ जमीन से टकराई। गैलीलियो सही था, और एरिस्टोटल गलत। लेकिन प्रोफेसरों को अपनी ही आंखो पर विश्वास न आया। कहानी सच भी हो सकती है झूठ भी, लेकिन गैलीलियो ने गिरती चीजों से सम्बद्ध समस्याओं के बारे में और भी गहन अध्ययन किया, जिसका वैज्ञानिक महत्त्व दो चीजों को किसी ऊचाई से एकसाथ गिराने के खेल या मज़ाक से कही अधिक है। असल प्रश्न था कि किसी भी वस्तु को कुछ निश्चित दूरी, पृथ्वी तक पहुंचने में समय कितना लगता है ? स्मरण रहे, उन दिनों घड़ियां कोई बहुत अच्छी किस्म की थी नही। स्टॉप वाच, या इलेक्ट्रॉनिक टाइमिंग का स्वप्न भी तब तक किसी ने देखा नहीं था, और फिर पीसा के टावर से किसी चीज़ को जमीन तक पहुंचने में तीन सेकण्ड से कोई बहुत ज्यादा नहीं लगता। पाठक गैलीलियो की समस्या का कुछ अनुमान कर सकता है। उसे एक उपाय निकालना था जिसके द्वारा गिरती चीजों के तुलनात्मक अध्ययन मे समय की सूक्ष्मता कुछ अधिक बाधा न डाल सके। गैलीलियो ने इसके लिए एक सीधा सपाट शहतीर लिया। इस शहतीर की लम्बाई 22 फुट थी। शहतीर मे एक लम्बा खांचा काट दिया गया। जब शहतीर को कुछ तिरछा किया जाए तो, खांचे के रास्ते गेंद धीरे-धीरे जमीन तक पहुच जाएगी। और वक्त का सही अन्दाज करने के लिए उसने एक बाल्टी ली जिसमे से पानी बूंद-बूंद करके एक और बर्तन में इकट्ठा किया जा सके। अर्थात् कितना पानी निकल चुका है– इसके आधार पर समय का अनुमान गैलीलियो ने लगाया। पहली बार गेंद सारे रास्ते को तय कर गई, दूसरी बार, उसे ऐन बीच में रोक दिया गया, और तीसरी बार, उसे शहतीर का चौथाई हिस्सा ही तय करने दिया गया। फिर शहतीर की तिरछावन को बदल-बदलकर परीक्षण किए गए, और इस प्रकार सैकड़ों गणनाएं की गई। और इन सब परीक्षणों का सार उसकी गणित-विषयक प्रतिभा ने दो शब्दों में इस प्रकार अनुसूचित कर डाला– चौगुनी दूरी को तय करने में गेंद को सिर्फ दूना समय लगता है। उदाहरण के लिए, यदि एक सैकण्ड गुजर जाने पर गेंद 5 फुट रास्ता तय कर चुकी हो तो, दो सैंकण्ड के बाद वह 5 फुट के दुगुने का दुगुना यानी 20 फुट तय कर चुकेगी, और तीन सैकण्ड गुजर जाने पर 5 फुट का 3×3 गुणा 45 फुट तय कर लेगी। गैलीलियो ने इसी को सिद्ध करने के लिए एक और परीक्षण इसी को कुछ बदल कर किया। इस बार उसने दो शहतीर लिए और दोनों को नीचे से जोड़ दिया। दोनों में कटे हुए रास्तों को बड़ी सफाई के साथ मिला दिया गया इस प्रकार कि उनमें से एक के ऊपर के सिरे से कोई गेंद अगर छोड़ी जाए तो वह जमीन के पास पहुंचते ही दूसरे शहतीर के ऊपर की ओर चढ़ना शुरू कर दे। इस परीक्षण के लिए शहतीरों में खुदे खांचों में और गेंदों में सफाई बहुत ज्यादा होनी चाहिए। गैलीलियो ने दिखा दिया कि गेंद एक रास्ते से जितना ही नीचे आती है उतना ही रास्ता दूसरे शहतीर में वह खुद-ब-खुद ऊपर पहुंच जाती है। होता यह है कि ऊपर से नीचे की ओर आते हुए गेंद की रफ्तार लगातार बढ़ती जाती है। जमीन पर पहुंचकर उसकी रफ़्तार अब और नहीं बढ़ेगी, और दूसरे शहतीर के जरिये ऊपर की ओर जाते हुए उसकी यह रफ्तार उसी हिसाब से अब कम होना शुरू हो जाती है। अब, अगर शहतीर की सतह या अवतारणा एक रुकावट बनकर उसकी रफ्तार को और कम न कर दे तो, गेंद का यह ऊपर-नीचे जाने का सिलसिला लगातार इसी तरह चलता ही रहेगा कभी बन्द नहीं हो सकेगा। गेंद की इस हरकत का विज्ञान में नाम है इनर्शिया– अगति, गति-शून्यता। सिद्धान्त रूप में इसकी सभ्यता पर संशय असम्भव है। न्यूटन ने गैलीलियो की इसी कल्पना को अपने ‘प्रिन्सीपिया’ में समाविष्ट करते हुए, इसका कुछ परिष्कार किया था ओर गति के प्रथम नियम के रूप में इसे प्रतिष्ठित किया था। गुरूत्वाकर्षण के संबंध में गैलीलियो गैलिलाई का परिक्षण अब गैलीलियो ने दो नियमों को एक साथ समन्वित करके सैन्य युद्ध सम्बन्धी एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न का समाधान निकालने का प्रयत्न किया। प्रश्न था कि तोप का गोला जिस रास्ते चलकर अपने निशाने पर पहुंचता है, क्या उसकी दिशा पहले से ही निश्चित नहीं की जा सकती? गैलीलियो ने इसका समाधान भी ढूंढ निकाला। वह यह मानकर चला कि तोप से यह गोला एक दिगन्त समरेखा में जमीन की ओर, न आसमान की ओर—निकल पड़ता है, किन्तु, साथ ही, वह धीरे-धीरे आप-से-आप जमीन की ओर भी आ रहा होता है। पृथ्वी की ओर आने की उसकी गति के बारे में हम ऊपर शहतीर और गेंद के परीक्षण द्वारा निकाले गए गुरूत्वाकर्षण नियम से जान सकते हैं। गैलीलियो इस परिणाम पर पहुंचा कि गोले का रास्ता कुछ उस शक्ल का होना चाहिए जिसे ग्रीस के कुछ पुराने गणितज्ञ पैराबोला के नाम से जानते थे। इस तथ्य के अन्वेषण का सीधा परिणाम यह हुआ कि तोप, बन्दूक से निशाना लगाने में अब बड़ी ही बारीकी आ गई। विश्व के वैज्ञानिकों मे अब भी बहुत मतभेद था कि कोपरनिकस का सिद्धान्त क्या सचमुच सत्य है। पृथ्वी चलती है, सूर्य नहीं– क्या यह बात सच है ” गैलीलियो ने यह सिद्ध कर दिखाया कि बुर्ज के ऊपर से छोडीं हुई गेंद इस बात का कोई सबूत नही है कि जमीन इस अरसे मे अपनी जगह से नहीं हिली। चलते हुए जहाज के मस्तूल पर से अगर यही गेंद गिराई जाए तो वह मस्तूल के साथ-साथ होती हुई जमीन पर आ गिरेगी। गैलीलियो ने बतलाया कि बुर्ज पर से जमीन की ओर गेंद छोड़ते हुए भी यही कुछ होता है। कोई चीज स्थिर है या एक ही रफ्तार से चल रही है। हम दोनो अवस्थाओं में कोई भेद नही कर सकते जब तक कि हम किसी दूसरी चीज पर अपनी निगाह नहीं रखते। मोटर गाडी जब हरी रोशनी के इन्तज़ार मे खडी हो, और साथ की गाडी आगे चलना शुरू कर दे, सवारी को लगेगा जैसे वह उसको अपनी गाडी पीछे की ओर जा रही है। अगर उसकी निगाह पास खडी इमारतों पर न हो। यह थी युक्त-श्रृंखला जो गैलीलियो के मन मे चल रही थी उसने सोचा कोपरनिकस सच भी हो सकता है कि जमीन ही चल रही हो और हमारी इन्द्रियां हमे धोखा दे रही हो। गैलीलियो के निष्कर्ष सत्य थे। जिन्हे उसने परीक्षणों द्वारा प्रत्यक्ष प्रमाणित भी कर दिखाया। फिर भी 1591 में उसे विश्वविद्यालय की प्रोफेसरी से बरखास्त कर दिया गया। उसका कसूर यह था कि उसने अपने साथियों के दिल मे सदियों से चले आ रहे एरिस्टोटल के सिद्धांतो के प्रति सन्देह उत्पन्न कर दिया था। दुनिया थी कि एरिस्टोटल की गलतियों के साथ चिपटे रहना ही उसे पसन्द था। खेर, एक साल बाद गैलीलियो को दूसरी नौकरी मिल गई। पेदुआ विश्वविद्यालय मे वह गणित का प्रोफेसर नियुक्त हो गया। विज्ञान-जगत में समीक्षण तथा परीक्षण मे उसकी कीर्ति इतनी फैल चुकी थी कि अब यूरोप-भर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए पेदुआ ही आने लगे। पेदुआ मे आकर वह ज्योतिविज्ञान की ओर आकृष्ट हुआ। उसे पता लगा कि दूरबीन ईजाद की जा चुकी है, उसने भी लेन्स घिस घिसकर अपनी ही एक दूरबीन बनानी शुरू कर दी। जब वह बन गई, तो उसने उसे आसमान की तरफ मोडा और कितने ही अद्भृत तथ्यो को वह तत्क्षण जान गया। किस प्रकार चन्द्रमा की बाहरी सतह सपाट नही है, उसपर भी जमीन की ही तरह पहाड है घाटियां हैं) यही नही, उन पहाडों की ऊचाइयों का भी उसने हिसाब लगा लिया। गैलीलियो ने देखा कि ये नक्षत्र तारो की तरह स्वत प्रकाशयुक्त नही है बल्कि चांद की तरह ही उधार की रोशनी से बाहर ही बाहर से चमकते हैं। और ये तारे ज्वालाओं के पुंज है, और इधर-उधर मोटी-मोटी किरणे हर वक्त बिखेरते रहते हैं, जिसे हमारी दुर्बल आखें टिम-टिम के रूप में ग्रहण करती है। उसने दूरबीन को आकाश गंगा की ओर फेरा और देखा कि यह गंगा लाखो तारो के एक झूरमृट के अतिरिक्त और कुछ नही है। यही नही, गैलीलियो ने ज्यूपिटर ( बृहस्पति ) के अनेक उपग्रहों मे चार का पता कर लिया। चन्द्रमा पर पडे काले धब्बे का भी उसने प्रत्यक्ष किया और, इस प्रत्यक्ष के आधार पर वह इस निर्णय पर पहुचा कि हमारी पृथ्वी भी अन्य नक्षत्रों की भांति सूरज की रोशनी को वापस फेंकती है, जिसके कारण अन्य नक्षत्र वासियों की दृष्टि में यह प्रथ्वी भी चन्द्रमा की तरह ही चमकती, परिवतेनशील दिखाई देती होगी। चन्द्र वासियों के पास यदि दूरबीन हो तो वे भी देखकर उछल पढते कि आज पृथ्वी पूर्णिमा में है। इन सत्या अन्वेषणों ने गैलीलियो की कीर्ति को विश्वव्यापी कर दिया। किन्तु, साथ ही ‘विद्वत्ता’ की वह पुरानी अंधता भी चली आती थी जो यह सीधी साथी बात स्वीकार नहीं कर सकी कि यह पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र नहीं है। इन विद्वानों ने गैलीलियो पर गालियां बरसाना शुरू कर दिया। गैलीलियो का एरिस्टोटल से सिद्धान्त-गत मतभेद पर्याप्त था, किन्तु दोनों ही चिन्तकों के विचार मार्ग प्रायः एक ही थे। भौतिकी के क्षेत्र में जो निष्कर्ष उसने उपस्थित किए उनमें बहुधा अन्त: परीक्षण अर्थात चिन्तन द्वारा ही उसे सफलता प्राप्त हुई थी, बाह्य परीक्षणों के आधार पर नहीं। तीन सदी पश्चात् आइन्सटाइन ने भी इसी तरह के कुछ परीक्षण किए। परीक्षण भी कल्पनापरक और उन परीक्षणों के निष्कषे भी कल्पनापरक। शहतीर ओर गेंद वाला परीक्षण शुरू-शुरू में कम से कम गैलीलियो को उसके अन्तस्तल में ही स्पष्ट हुआ था। बस यह सच है कि इस प्रकार के चिन्तन और तर्क के समर्थन के लिए गैलीलियो ने प्रायः, कुछ न कुछ वास्तविक परीक्षण भी उसके बाद किए। अपने जीवन के अन्तिम वर्षो में गैलीलियो ने ‘डायलोग्ज ऑन टू न्यू साइन्सेज’ लिखना शुरू किया। जिसमें गति, गति में अभिवृद्धि, तथा गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी उसकी सम्पूर्ण अन्वेषणाएं साररूप में प्रस्तुत हैं। दो नई विज्ञान पद्धतियों पर कुछ सम्बाद’ नाम की यह पुस्तक 1636 में प्रकाशित हुई। चार साल पहले वह एक और सम्बाद भी प्रकाशित कर चुका था। जिसका विषय था ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में दो मुख्य व्यवस्था सूत्र’ (ए डायलॉग ओन द टू सिस्टम्स आफ द वर्ल्ड )। इस पुस्तक का ध्येय कोपरनिकस के सिद्धान्त का विशदीकरण था, गैलीलियो ने इस सिद्धान्त को और भी पलल्लवित किया और विश्व की व्यवस्था में सूर्य को केन्द्र बिन्दु पर प्रतिष्ठित करते हुए, पृथ्वी को तथा अन्यान्य नक्षत्रों को उसके इर्द गिर्द परिक्रमा करते दिखाया। यही वो ग्रन्थ थे जो सरकारी अफसरों का कुफ्र बरपा लाए, और जिनकी सत्यता से मुकर जाने के लिए उसे खुद मजबूर होना पड़ा, किन्तु यही उसकी वे कृतियां हैं जिनको दुनिया आज भी याद करती है। गैलीलियो की मृत्यु 1642 में हुई। गैलीलियो एक दिग्गज था जिसके कंधों पर कभी न्यूटन खड़ा हुआ था, कुछ आगे देख सकने को। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी