गुलाम विद्रोह जन क्रांति – स्पार्टाकस की वीरता की कहानी Naeem Ahmad, May 5, 2022March 24, 2024 गृह युद्ध में घिरे हुए पतनशील रोमन साम्राज्य के खिलाफ स्पार्टाकस नामक एक थ्रेसियन गुलाम के नेतृत्व मे तीसरा गुलाम विद्रोह दुनिया मे जनक्रांति पहली मिसाल मानी जाती है। स्पार्टाकस ने रोमन सेनाओ को बुरी तरह शिकस्त देकर लाखों गुलामों की परतत्रंता की बेडिया काट डाली सेनापति क्रैसस के हाथों एल्पाइन दर्रा के मैदान मे स्पार्टकस को मात खानी पडी ओर छह हजार गुलाम योद्धा नृशंसता पूर्वक रोम से कापुआ जाने वाली सड़क के दोनों ओर सलीबों पर लटका दिये गये। अपनी नाकामयाबी के बावजूद स्पार्टकस की विद्रोह की कहानी आज तक अमर है। जो गुलाम विद्रोह के नाम से जानी जाती हैं। अपने इस लेख में हम इसी जन क्रांति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— गुलाम विद्रोह कब हुआ था? गुलाम विद्रोह का सेना नायक कौन था? गुलाम विद्रोह की शुरुआत कब हुई? हॉलीवुड की कौनसी फिल्म इस क्रांति पर बनी? गुलाम क्रांति क्या है? गुलाम क्रांति का जनक कौन था, हॉलीवुड फिल्म स्पार्टाकस किस क्रांति पर बनी? गुलाम विद्रोह का कारणशोषण, अन्याय ओर दमन के खिलाफ बगावत ओर युद्ध की शुरुआत गुलाम विद्रोह से होती है। गुलाम जो रोमन साम्राज्य की सारी ताकत ओर वैभव के आधार थे। गुलाम जो दास मालिका के लिए उत्पादन के बोलने वाले ओजार थे। गुलाम जिनकी जिंदगी का एकमात्र मकसद मंडी मे बिकना ओर अपने मालिक की आज्ञा का पालन करते हुए मर जाना मात्र था। गुलाम ने अपनी इस दारुण दशा से उबरने के लिए तीन बडे विद्रोह किये जिनमे सबसे प्रभावशाली तीसरा विद्रोह ईसा के जन्म से 73 वर्ष पहले हुआ था। इस गुलाम विद्रोह का नेता था थेसियन ग्लैडिएटर गुलाम- स्पार्टकस। स्पार्टकस के नेतृत्व में लगभग चार साल तक गुलाम सेनाओं ने उस समय दुनिया की सबसे शक्तिशाली मानी जने वाली रोमन सेनाओं को पराजित कर एक बारगी तो जैसे पुरे साम्राज्य की नींव ही हिला डाली।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधगुलाम विद्रोह की पृष्ठभूमि समझने के लिए तत्कालीन रोमन साम्राज्य के चरित्र को जानना बहुत ज़रूरी है। ईसा के जन्म से पांच सदी पर्व रोम के अंतिम राजा टाक्विन द प्राउड (Tarquin the proud) का उसके धिनौने कुकृत्यो के कारण गद्दी से उतार दिया गया। रोमनों ने तय किया कि वे राजशाही चलने ही नही देंगे। इसी विचारधारा के फलस्वरूप रोम गणराज्य का गठन हुआ, रोमन घरानों के उन मुखियाओं ने, जिन्होने राजा के खिलाफ विद्रोह को नेतृत्व किया था एक सीनेट बनायी जिस दो सदस्य कौंसुल (Consul) कहलाये। ये कौंसुल रोम के शासक तो थे पर उन्हें हर साल बाद बदल दिया जाता था। रोम दो भागों में बट गया। एक भाग पर पट्रीशियस (Patricians) अर्थात सामता का वर्चस्व था। तो दूसरा भाग बहुमत वाले प्लेबियस (Plebeians) अर्थात स्वतंत्र नागरिकों के अधिकार में था। प्लेबियस अपने प्रतिनिधि खुद चुनते थे। इन दोनों के अतिरिक्त रोम में एक तीसरा वर्ग भी था- गुलाम वर्ग। दरअसल यह वर्ग ही पूरे रोमन साम्राज्य के सुख और सम्पदा का आधार था पर इसे कोई अधिकार प्राप्त नही था। इस तरह रोमन प्रजातंत्र हर तरह से दास मालिकों के करूप समीकरणों पर टिका एक धिनौना प्रजातंत्र था, रोमन साम्राज्य ने प्यूनिक युद्धों (Punic wars) के जीतकर अपनी ताकत काफी बढ़ा दी थी। ईसा से 133 साल पहले दो रोमन भाईयों तिबरियम (Tiberius) नौर गईयस (Gauus) ने कुछ समाज-सुधार करने चाहे। इने दोनों का कहना था कि अमीर को बड़ी-बडी जायदाद नही रखनी चाहिए, इसके पक्ष मे दोनो भाई प्राचीन नियमों का हवाला देते। इस तरह की विद्रोही विचारधारा को भला कौन सहन करता, नतीजतन दोनों भाई अमीरों की साजिश से कत्ल कर डाले गये। इसी के साथ रोम में गृह-युद्ध छिड़ा जससे रोम का सारा ढ़ांचा चरमरा उठा। इसी जमाने में गुलामों ने एक के बाद एक, तीन विद्रोह किये। दरअसल इन विद्रोह के रूप में रोमन समाज की आंतरिक टूटन ओर पतनशीनता की अभिव्यक्ति मिली।साम्राज्य-लिप्सा शक्ति के मर्द दासों के मालिक होने के अमानवीय दंभ ओर हर किमत पर आंनद भोगने की जिद ने विलासी रामो को पूरी तरह से निकम्मा, आलसी काहिल थुलथुल और लम्पट बना दिया था। अप्राकृतिक मैथुन, पशु मैथुन अजीब अजीब तरह के भोजनों के चाव ओर खून में तरबतर गुलाम योद्धाओं को अखाड़े में द्वंद देखकर रोमांचित होना उस जमाने के रोमनों की जीवन-शैली बन चुकी थी। इस बर्बर शैली की रीढ़ पर सबसे कडी चोट स्पार्टकस के विद्रोह ने की थी। दो गुलाम विद्रोह हो चुके थे। पहला गुलाम विद्रोह बड़ी आसानी से कुचला जा चुका था। दूसरे गुलाम विद्राह को कुचलने के लिए पोम्पियस मगनस (पोम्पी) (Pompeius Magnus) जैसे जनरल को सेनाएं लेकर जाना पडा था। उसी समय तीसरा गुलाम विद्रोह भी रोम साम्राज्य के शरीर में भीतर-ही-भीतर विषैली गांठ की तरह पक रहा था।1947 की क्रांति इन हिन्दी – 1947 भारत की आजादी के नेताएक तरह से खुद रोमनों ने ही गुलामों को लडना सिखाया था, उन दिनो रोमनों का लोकप्रिय मनोरंजन युद्ध-कला मे प्रशिक्षित गुलाम ग्लैडिएटर (Gladiators) का द्वंद्व होता था। इन गुलामों को खूब अच्छा खिलाया-पिलाया जाता कसरत करवाई जाती ओर गुलामी के दूसरे काम नही करवाये जाते। उन्हे संतुष्ट करने के लिए उनके मालिक औरत तक मुहैया कराते। गुलामों को प्रशिक्षित करने वाले प्रशिक्षक लानिस्ता (Lanista) कहलाते थे। रोम में जगह जगह अखाडे बन गये थे, जहा दास-मालिक भारी कीमत चुकाकर मनचाहा जोडों की लड़ाई देखते थे। लानिस्ता रोमनों की रक्त-लिप्सावृति का लाभ उठाकर बैशुमार दौलत कमा रहे थे।उन्होने गुलामों की लड़ाई को रोमांच की चरम सीमा पर पहुचा दिया था। थ्रेस (Thrace) के रहने वाले गुलाम एक छोटा-सा मुंडा हुआ छुरा चलाने में बहुत प्रवीण होते थे, तो अफ्रीका के नीग्रो मछली पकड़ने के जाल व त्रिशूल से लडने में। एक थ्रेसियन के छुरे व अफ्रीकन हब्शी के त्रिशूल वह जाल की टक्कर देखने के लिए सारे रोमन वासी व्याकुल रहते थे।गुलामों की लड़ाई के लिए कापुआ (Capua) नगर में पत्थरों से एक बेहद शानदार अखाड़े का निर्माण किया गया था। इसी अखाड़े के पास लानिस्ता लेण्टुलस बाटियाटस (Lantulas Batiatus) ने गूलामों को लड़ाई सिखाने का स्कूल खोला हुआ था जो उस जमाने का अपनी तरह का सबसे बड़ा स्कूल था।देखने में मोटे और थुलथुल लानिस्ता वाटियाटस की नजर गुलामों को चुनने में काफी तेज थी। बह उन्हे दूर-दूर से खरीद लाता, रोम की गलियों में गुंडागर्दी से अपना करियर शुरू करने वाले बाटियाटस ने इस अखाड़ेबाजी से इतना धन बटौरा कि वह रोम के चार सबसे बड़े मकानों का मालिक बन बैठा। वाटियाटस अपने काम के गुलाम, गुलाम खानों में ढूंढ़ता। खानों के दरोगा को रिश्वत खिलाकर वह एऐसे गुलाम का पता लगा लेता, जो विद्रोही स्वभाव के होते। फिर बाटियाटस उन्हे खरीद लेता। खानों का काम सबसे कडी महनत मांगता था। बाटियाटस के अनुसार जो गुलाम उस कड़ी महनत को झेलकर भी लगातार बगावत के मूड मे रहता हो उसके अच्छा योद्धा साबित हाने की संभावनाएं ज्यादा रहती थी। बाटियाटस इन गुलाम को द्वंद्व युद्ध का प्रशिक्षण देकर एक दिन उनकी जजीरें खोलकर अखाड़े में धकेल देता। योद्धा गुलामों को ऐसा लगता कि मानो वे थोडी देर के लिए दमघोंटू कैद से आजाद हो गये है। वे इस लालच मे जी-जान से लड़ते कि अगर जीत गय तो अगली लडाई मे उन्हे फिर आजाद होने का मौका मिलेगा। तीसरे गुलाम युद्ध की जड़ में ग्लैडिण्टरो के मन में आजाद होने की यही भावना चिंगारी के रूप में विद्यमान थी।गुलाम विद्रोहबाटियाटस ने नूबिया (मिस्र) की सोने की खानों से स्पार्टाकस को खरीदा था। घुंघराले बालों, टूटी हुई नाक, सामान्य कद-काटी ओर गहरी काली आंखों वाला यह गुलाम स्वभाव से बेहद विनम्र गंभीर ओर नेतृत्व के प्राकृतिक गुणों से युक्त था। अन्य थ्रेसियन गुलाम उसे उम्र में छोटा होने पर भी “पिता कहकर संबोधित करते। स्पार्टाकस आदतन कम बोलता, पर गुलामों के बीच उसके आदेश बिना किसी जोर दबाव के माने जाते थे। कापुआ में अपने स्कूल के अंदर बाटियाटस ने स्पार्टाकस समेत दो सौ ग्लैडिएटरों को पाल रखा था। इनमें से अधिकांश यहूदी, नीग्रा ओर थ्रेसियन गुलाम थे। कई युद्ध कलाओं में निपुण ओर शरीर से मजबूत इन ग्लैडिएटर्स के दिलों मे दास मालिकों के प्रति गहरी घृणा भरी थी। इसी अखाड़े में बाटियाटस ने स्पार्टाकस का मनारंजनार्थ एक जर्मन औरत सौंपी, जिसका नाम वारीनिया था। वारीनिया ने स्पार्टकस को अपना पति माना और अंत तक उसके कंधे से कंधा मिलाकर लडी।गुलाम विद्रोह की शुरुआतएक दिन दो रोमन नौजवान लड़ाई देखने की लालसा में कापुआ आये ओर बाटियाटस से 25 हजार दीनार में दो जोड़ों का आमरण युद्ध देखने का सौदा किया। ब्रेकस और कैमस नामक इन रोमनों ने ग्लैडिएटर्स में से खुद स्पार्टाकस, डावा नामक एक नीग्रा ओर डेविड नामक एक यहूदी ओर एक अन्य नस्ल के गुलाम का चयन किया। पहली युद्ध यहूदी ओर चौथे ग्लैडिएटर में हुआ। यहूदी विजयी रहा पर उसने पराजित ग्लेडिएटर का कत्ल करने से इंकार कर दिया। यह विद्रोह की पहली चिंगारी थी। फिर बारी आयी स्पार्टाकस ओर डावा के युद्ध की। इसमे पहले कि रेफ्री सीटी बजती डावा ने स्पार्टाकस से लडने के बजाय अपना त्रिशूल ताना ओर भूखे भेड़िए की तरह रोमनों पर झपट पडा। सैनिकों ने डावा को फुरती से बिना चूक तत्काल भालों से गोद डाला। पर विद्रोह की बुनियाद पड चुकी थी। बाटियाटस ने सजा देने ओर गुलामों पर अपना आतंक जमाने के उदेश्य से डाबा के बाद एक ओर बेकसूर नीग्रो गुलाम का अन्य गूलामों के सामने भालों से छंद डाला पर इसके बावजूद विद्रोह न रूका। स्पार्टाकस ने उस विद्रोह की कमान संभाली। क्रिक्कस ओर गानिक्स नामक दो गुलाम इस विद्रोह की अगुआई में उसके दाये ओर बाएं बाजू बने।डाबा ओर दूसरे नीग्रा गुलाम की लाश ग्लडिएटरों को सबक सिखाने के लिए उनके सामने सलेब पर टांग दी गयी पर स्पार्टाकस ने तो इन लाशों से कुछ और ही सबक सीखा। उसने तय किया कि वह अब किसी ग्लेडिएटर से नही लडेगा। जैस ही उसने साथी योद्धाओं को अपना निर्णय सुनाया सभी विद्रोह करने के लिए मचल उठे। सुबह की कसरत के बाद वे खाने के कमरे में जमा हुए, स्पार्टाकस ने उन्हें एक छोटा सा भाषण दिया, सबसे पहले गुलाम योद्धाओं ने अपने कोडाधारी दरागाओं और उस्तादों का सफाया किया। तीन पीढ़ी की गुलामी का जुआ अपने कंधों पर ढोने वाले स्पार्टकस ने पहली बार गुलामों के साथ आजादी का अमृत चखा। फिर गुलाम ग्लेडिएटर अखाड़े में तैनात चालीस सैनिकों पर टूट पडे़। भरपूर नफरत मे की गयी इस पत्थरों ओर डंडों की मार के सामने वे सैनिक थोडी देर भी न टिक सके।वियतनाम की क्रांति कब हुई थी – वियतनाम क्रांति के कारण और परिणामस्पार्टाकस ने अब बाकायदा ग्लेडिएटरों का नेतृत्व संभाल लिया। बाटियाटस के शस्त्रागार से हथियार लेकर उसने व्यूह रचना की ओर कापुआ से आने वाली सैनिक टुकडियों को ध्वस्त किया। उन्हाने सबसे पहले माउट वंसुविअस (Mt. Vesuvius) को अपने अधिकार में लिया। रोम की सीनेट ने विद्रोह की खबर सुनने पर ज्यादा गंभीरता नही दिखायी ओर मुट्ठी भर बागियों को कुचलने के लिए बारिनियस के नेतृत्व मे तीन हजार सैनिक भेजे। रोमन सेना रास्ते मे मिलने वाले गुलामों पर जुर्म अत्याचार करती हुई आगे बढी। गुलाम सेना ने उस पर रात मे हमला किया। रोमन उस समय आमोद-प्रमोद से थके हुए सो रहे थे। एक एक रोमन बीन-बीनकर मार डाला गया। स्पार्टाकस ने पोर्थुस नामक एक सैनिक को रोम का राजदंड देकर कहा, जाओ सीनेट से कहो अब कोडो का संगीत सुनते-सुनते हम तंग आ चके हैं अब हम गुलाम नही रहना चाहते। स्पार्टाकस की फौज जहा-जहा से गुजरती गुलामों के हुजूम के हुजूम उसमे मिलते जाते। धीरे-धीरे उसकी फौज में एक लाख आदमी हो गये।रोमनों ने स्पार्टाकस के दमनार्थ पुब्लियस के नेतृत्व में एक बडी सेना भेजी। स्पार्टाकस ने उसके खिलाफ एल्पाइन के दर्रा में कामयाब छापामार युद्ध लडा और जीत हासिल की। स्पार्टाकस की चौथी जीत ममियस नामक अनुभवी सेनापाति के खिलाफ थी। रोमन फौज खदेड दी गयी। इतिहास मे रोमन फौज में कभी एऐसी भगदड न मची थी। वापस आये हर दस भगोड़ों मे से एक को कायरता के अपराध में मौत की सजा दी गई। बाद में स्पार्टाकस ने ममियस ओर सवियस नाम के दो रमन सेनापतियों को गिरफ्तार करके ग्लैडिएटरों की तरह आपस में लडवाकर अपनी बदले की आग को ठंडा किया। गुलामों ने लडने का एक खास तरीका खोज निकाला था। वे नक्शा बनाकर अपनी रणनीति तय करते और अपने इच्छित मैदान में लडते। रोमन सेनाएं अति आत्म-विश्वास के कारण अपनी व्यूह रचना तोड देती ओर हार जाती। एक बडी लड़ाई तीस हजार गुलाम मारे गये पर उन में से एक की भी पीठ पर घाव नही था। रोमनों के दिलों दिमाग में गुलामों की बहादुरी की दहशत बैठ गयी।गुलाम विद्रोह के जनक स्पार्टाकस की मृत्युआखिर में रोमन सेनापति मार्कुस लिसीनियस क्रैंसस (Marcus Licinius crassus) के नेतृत्व में सबसे बडी सेना गुलामों से लडने गयी और उन्हें परास्त कर दिया। स्पार्टाक्स लडता हुआ मारा गया। 6872 गुलामों को गिरफ्तार कर रोम से कापुआ जाने वाले मार्ग के दोनो ओर लाइन से सलीबा पर लटका दिया गया। वे वही लटके-लटके मर गये। किंवदंती है कि स्पार्टाकस की बीवी वारीनिया किसी तरह स्पार्टाकस के बच्चे के साथ भाग निकली। स्पार्टाकस की नाकामयाबी गुलाम विद्रोह का अंत नही था। उसके बाद भी कई गुलाम विद्रोह हुए। आदि विद्रोही स्पार्टाकस की महान स्मृति मे हावर्ड फास्ट ने ‘स्पार्टाकस’ नामक अमर उपन्यास लिखा ओर किक डगलस ने इसी नाम की अमर फिल्म बनायी। पर स्पार्टाकस को इससे भी बडी श्रद्धांजलि तो आने वाली उन पीढ़ियों ने दी जिन्होंने मानवीय आजादी के लिए संघर्ष किया और कुर्बानियां दी। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध जन क्रांति विश्व की प्रमुख क्रांतियां