गुरूवायूर मंदिर केरल का इतिहास – गरूवायूर टेम्पल दर्शन व हिस्ट्री Naeem Ahmad, December 6, 2018March 6, 2024 गुरूवायूर मंदिर केरल के गुरुवायूर में स्थित प्रसिद्ध मन्दिर है।यह कई शताब्दी पुराना है और केरल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मन्दिर है। मंदिर के देवता भगवान गुरुवायुरप्पन हैं जो बालगोपालन के रूप में हैं। यह दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी है। कहा जाता है कि स्वंय धर्मराज ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा की थी। ममीयूर में भगवान शिव ममीयूरप्पन नाम से प्रख्यात है। कहते है, इन्होंने ही गुरूवायूरप्पन की प्रतिष्ठा की थी। मंदिर का मूलतः निर्माण देवताओं और विश्वकर्मा का किया हुआ है, इसलिए इसकी कला अत्यंत उत्कृष्ट और मानवोत्तर कौशल युक्त है।गुरूवायूर मंदिर की धार्मिक पृष्ठभूमिएक बार श्रीकृष्ण ने अपने परम मित्र उद्धव को देवगुरु बृहस्पति के पास एक अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश देकर भेजा। संदेश यह था कि समुद्र द्वारका को डूबो दे, इससे पहले ही वह मूर्ति जिसकी देवकी- वासुदेव (श्रीकृष्ण के माता-पिता) पूजा किया करते थे, किसी सुरक्षित व पवित्र स्थान में प्रतिष्ठित हो जाए। भगवान ने उद्धव को समझाया कि वह मूर्ति कोई साधारण मूर्ति नहीं है। कलियुग के आने पर वह उनके भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणदायक और वरदान स्वरूप सिद्ध होगी।केरल की भाषा – मलयालम भाषा का इतिहाससंदेश पाकर देवगुरु बृहस्पति जी द्वारका गए। परंतु उस समय तक द्वारका समुद्र में लीन हो चुकी थी। उन्होंने अपने शिष्य वायु की सहायता से उस मूर्ति को समुद्र में से निकाला। इसके बाद वे मूर्ति की प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त स्थान खोजते हुए इधरउधर घूमने लगे।केरल के त्योहार – केरल के फेस्टिवल त्यौहार उत्सव और मेलेंवर्तमान में जहां मूर्ति प्रतिष्ठित है, वहां उस समय सुंदर कमल पुष्पों से युक्त एक झील थी, जिसके तट पर भगवान शिव व माता पार्वती पवित्र जल क्रीड़ा करते हुए इस पवित्र मूर्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे। बृहस्पति जी ने शिवजी की आज्ञा से तथा वायुदेव की सहायता से उस मूर्ति की उचित स्थान में प्रतिष्ठा कर दी। तभी से इस स्थान का नाम गुरूवायूर हो गया।गुरूवायूर मंदिर के सुंदर दृश्यगुरूवायूर मंदिर मूर्ति का इतिहाससबसे पहले भगवान विष्णु ने अपनी साक्षात मूर्ति ब्रह्मा जी को उस समय प्रदान की, जब वे सृष्टि कार्य में संलग्न हुए। सृष्टि निर्माण करने के बाद वह मूर्ति प्रजाति सुतपा तथा उनकी पत्नी पृश्नि को दी, ताकि वे उत्तम संतान प्राप्ति के लिए भगवान की पूजा तपस्या कर सकें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान पृश्नि के गर्भ उत्पन्न हुए। दूसरे जन्म में जब पृश्नि अदिति बनी तथा सुतपा कश्यप बने तब भगवान ने उनके यहां वामन रूप में अवतार लिया था। तीसरे जन्म में सुतपा वासुदेव बने और पृश्नि देवकी बनी, तब भगवान ने कृष्ण बनकर उनके यहां जन्म लिया। तब यही मूर्ति धौम्य ऋषि ने उन्हें दी थी, तथा उन्होंने इसे द्वारका में प्रतिष्ठित कराके इसकी पूजा की थी।गुरूवायूर मंदिर का निर्माण व इतिहासपांच सौ वर्ष पूर्व पांडय देश के राजा को किसी ज्योतिष ने कहा कि अमुक दिन सर्प दंश से वह मर जाएगा। वह दिन मात्र सात दिनों बाद आने वाला था। राजा ने यह सुनकर तीर्थ यात्रा प्रारंभ की तथा वह गुरूवायूर पहुंचा। उसने इस मंदिर को अत्यंत ध्वस्त अवस्था में देखा। तब उसने इसके पुनः निर्माण का आदेश दिया मंदिर निर्माण से कुछ पहले ही वह राजधानी लौट आया।केरल की वेषभूषा – केरल का पहनावानिश्चित तिथि बीत जाने पर भी राजा की मृत्यु न हुई। तब राजा ने ज्योतिषी को बुलाया। ज्योतिषी ने कहा– महाराज! आपकी मृत्यु के ठीक समय आप एक अत्यंत पवित्र मंदिर की पुनः निर्माण योजना में व्यस्त थे। उस समय आपको एक सर्प ने काटा भी था, परंतु अपने कार्य में अत्यंत एकाग्र होने के कारण आपको ज्ञात नहीं हो सका।केरल की वेषभूषा – केरल का पहनावाराजा को ज्योतिषी की बात पर विश्वास नहीं हुआ, तब ज्योतिषी ने उसके शरीर पर सर्प के काटे जाने का घाव दिखाया। साथ ही कहा— आप जिनके मंदिर का निर्माण करवा रहे थे, यह उन्हीं की कृपा का फल है। आप मृत्यु से बच गए। अब आपको पुनः वहीं जाना चाहिए। इसके बाद राजा ने वहां जाकर निर्माण पुरा काराया तथा बाद में स्थानीय भक्तों ने मंदिर में कई बार कुछ सुधार तथा परिवर्तन किए।गुरुवायूर मंदिर में सींग लगे नारियलों का सचएक किसान ने नारियल की खेती की। पहली फसल के कुछ नारियलों को लेकर वह भगवान गुरूवायुरप्पन को चढ़ाने चला। मार्ग में उसे एक डाकू मिल गया। किसान ने डाकू से प्राथना की— ” तुम मेरा सब कुछ ले लो! परंतु इन नारियलों को छोड़ दो। ये मैने भगवान गुरूवायुरप्पन को चढ़ाने है।विदिशा के पर्यटन स्थल – विदिशा के दर्शनीय स्थलडाकू ने ताना मारते हुए कहा— “क्या गुरूवायुरप्पन के नारियलों में सींग लगे हुए है?। डाकू का इतना कहना था की सचमुच नारियलों पर सींग उग गए। डाकू इस चमत्कार को देखकर घबरा गया और चुपचाप चला गया। ये सींग लगे नारियल गुरूवायूर मंदिर में अब भी रखे हुए है। भारत के प्रमुख तीर्थों पर आधारित हमारें यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”6235″] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल केरल पर्यटनतीर्थ स्थलभारत के प्रमुख मंदिर