गुरु रामदास जी की जीवनी – श्री गुरु रामदास जी का जीवन परिचय Naeem Ahmad, May 27, 2021March 11, 2023 श्री गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। श्री गुरू रामदास जी महाराज का जन्म कार्तिक कृष्णा दूज, वि.सं.1591वीरवार वाले दिन,लाहौर शहर में चूना मंडी इलाके में हुआ। आपकी माता दया कौर जी तथा पिता श्री हरिदास जी सोढ़ी थे। उस समय हिन्दुस्तान में शेरशाह सूरी राज कर रहा था। महाराज जी छोटी अवस्था के ही थे आपके पिता श्री हरिदास जी हरिलोक गमन कर गए तथा आपके बाल कंधो पर घर परिवार की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी। आपका घर का नाम भाई जेठा था। कुछ समय ननिहाल में रहने के पश्चात गोइंदवाल चले आए । वहां रहकर चने मसाले बेचने लगे । गुरु रामदास जी का जीवन परिचय — गुरु रामदास जी की जीवनी जन्म— कार्तिक कृष्ण 2, वि.सं. 1591, (24 सितंबर 1534) जन्म स्थान— चूना मंडी, लाहौर, पाकिस्तान पिता— श्री हरिदास जी माता— माता दया कौर जी पत्नी— माता भानी जी वंश— सोढ़ी खत्री सुपुत्र— पृथ्वी चन्द्र, महादेव जी, गुरु अर्जुन देव जी गुरूगददी— भाद्रपद शुक्ल 13, वि.सं. 1631 (16 सितंबर सन् 1574) ज्योति ज्योत— भाद्रपद शुक्ल 3, वि.सं. 1638 (1 सितंबर सन् 1581) एक बार चने मसाले बेचते हुए गुरू जी के महलों के नीचे से गुजर रहे थे कि गुरू जी अपनी माता मनसा देवी जी साथ बैठे बीबी भानी जी के बारे में विचार- विमर्श कर रहे थे। माता जी भाई जेठा जी की ओर इशारा करके कहने लगे कि ऐसा लड़का चाहिए तो गुरू जी ने कहा कि तो इसी से विवाह कर दो । फिर वि. संवत 1613 में भाई जेठा जी के साथ बीबी भानी जी कि शादी कर दी गई। कुछ समय पश्चांत बीबी भानी जी जो कि अपने पिता गुरू देव कि बहुत सेवा करते थे ने महाराज जी से गुरूगददी घर में ही रहने का वरदान प्राप्त कर चुके थे। सदगुरु ने भाई जेठा जी को रामदास नाम देकर गुरूगददी बख्श दी और आपके श्री गुरू रामदास सोढ़ी पातशाह बना दिया। अमृतसर की स्थापनासाहिब श्री गुरु अमरदास जी महाराज ने सुलतानविंड तथा तुंग ग्राम के जमींदारों से ज़मीन खरीदकर श्री गुरू रामदास जी के हाथों इस नगर की नींव आषाढ़ 5 वि.सं. 1626 को रखवाई तथा यहां सब जातियों के लोग बुलाकर बसाया। इस पवित्र नगरी में हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब को सोढ़ी पातशाह की ओर से पूर्ण सत्कर दिया जाता था। इस नगर का नाम रामदासपुर रखा गया। इसी को रामदास चक्क भी कहा जाता था। वि.सं.1633 में जब अकबर बादशाह दर्शानों के लिए आया तो उसने तुंग व सुलतानविंड ग्राम की कुछ और जमीन चक्क रामदास के नाम कर दी तथा मामला भी माफ करने का पटटा लिखा दिया। कुछ किमती हीरो -जवाहरात भी भेंट किया और माथा टेक कर चला गया। गुरु रामदास जीवि.सं.1638 में अमृत सरोवर की सेवा शुरू हुई। पहले यह एक छोटा कच्चा तालाब था । गुरू रामदास जी महाराज ने समय आने पर सरोवर के लिए इसी स्थान को चुना था अमृत जल होने के कारण से इसका नाम अमृतसर रख दिया गया।चौथी पातशाही श्री गुरू रामदास जी के ज्योतिलीन हो जाने के पश्चात श्री गुरू अर्जुन देव ने एक सुंदर नक्शे के अनुसार सचखंड श्री हरिमंदिर साहिब की सरोवर के एकदम बीचोंबीच रचना की। जिसकी नींव प्रसिद्ध सूफी फकीर सांई मियां मीर द्वारा कार्तिक शुक्ल पंचमी, वि.सं. 1635 में रखवाई गई। इसके चार द्वार चार वर्णों को ध्यान में रखकर बनाए गए। सुंदर पुल तथा दर्शनी ड्योढ़ी की सेवा कई सालों तक होती रही। जब भी कोई यात्री दर्शन करने पहुंचता तो अपने आप उसके मुंह से निकल जाता है, डिठ्ठे सभे थाव नहीं तुध जेहिया, अर्थात संसार के सभी तीर्थ स्थान देखे पर श्री हरिमंदिर की शोभा इन सब से अलग है। दर्शनी ड्योढी के बिल्कुल सन्मुख छठे पातशाह श्री हरिगोबिन्द साहिब जी ने भक्ति के साथ शक्ति का मिश्रण करते हुए समय की नब्ज को पहचानकर श्री अकाल तख्त साहिब की नींव रखी जहां से धर्म युद्ध के लिए युद्ध लड़ने की अरदास की जाती थी। जो मर्यादा आज तक चली आ रही है। यंही पर हजूर ने मीरी पीरी की दो तलवारें पहनकर जुल्म का नाश किया। इनके तीन पुत्र पृथ्वी चंद्र, महादेव जी तथा अर्जुन देव जी थे। पृथ्वी चंद्र कडवे स्वभाव के थे, महादेव सदा भजन में ही लीन रहते थे, तथा अर्जुन देव अपने पिता श्री के साथ बराबर की सेवा में हाथ बंटाते थे। गुरु रामदास जी महाराज ने अपनी नगरी अमृतसर में सब जातियों के लोगों लाकर बसा दिया। बाबा श्री चंन्द्र जी से भेंट— एक बार गुरु रामदास जी महाराज बारठ गांव गुरदासपुर जिले में सतिगुरु नानकदेव जी महाराज के बड़े पुत्र बाबा श्री चंन्द्र जी महाराज के पास गए और वहां आपने जिक्र किया कि हमने अमृतसर सरोवर की रचना की। आप भी किसी समय वहां पधारे तथा चक्क रामदास में दर्शन देवें, सो बाबा जी उसी इकरार के मुताबिक अमृतसर में मिलने आये, तब आपने बहुत आदर सत्कार किया। सूरज प्रकाश ग्रंथ में लिखा है कि आपने अनेक प्रकार के वचन विलास हुए। आपकी लम्बी दाढ़ी क्यों बढ़ रही है तो गुरू जी ने कहा आप जैसे महापुरुषों के चरण झाड़ने के लिए तथा बडी नमृता के साथ बाबा जी के चरण पोंछने लगें। बाबा जी आपके वचन सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। आपको तथा आपके परिवार को आशिर्वाद दिया। आपने पांच सौ रूपये तथा एक घोड़ा बाबा जी को भेंट करके माथा टेका। भाई हिन्दाल को जो लंगर की सेवा बडी श्रद्धा व प्यार के साथ करता था। एक बार लंगर में आये तो भाई जी आटा गूंथ रहे थे। आपजी को आया देखकर सत्कार के लिए खड़े हो गये तथा आटे में सने हाथ पीठ पिछे करके चरणों पर शीश झुका दिया। महाराज ने एक सरोपे की बख्शीश की जब भाई जी ने कपड़ा सिर पर लपेटा तो उसे लोक परलोक का ज्ञान हो गया।गुरु ग्रंथ साहिब में आपके द्वारा रचित कुल 638 छंद, शबद,श्लोक इत्यादि प्राप्त होते है। बाबा आदम को पुत्र का आशिर्वाद— एक बार बाबा आदम जी मालवे से अपनी घरवाली सहित दर्शन के लिए आये। कुछ समय डटकर गुरु घर में सेवा की। एक दिन गुरु जी ने प्रसन्न होकर कहा– गुरु घर के भंडारे खुले है जो मन में आये मुराद मांग लेवा, बाबा आदम ने कहा– महाराज आपका दिया सब कुछ है पर हमें एक पुत्र की दात बख्शे। गुरु जी ने बाबा आदम से कहा– आपके कर्मों में पुत्र लिखा ही नहीं पर आपकी सेवा श्रृद्धा से हम बड़े खुश है। इसलिए हमारे यहाँ जो चौथा पुत्र होना था सो चौथा पुत्र हम आपको देते है सो वहीं अब आपके घर में पैदा होगा। उसका नाम भाई भगतू रखना। यह सुनकर आदम जी ने गुरु चरणों पर सिर झुका दिया तथा इस प्रकार दोनों जीव गुरु घर से खुशियां प्राप्त करके वापिस अपने घर लौट गये। श्री गुरु अर्जुन देव जी को गुरूगददी सौंपी— एक बार लाहौर से कोई रिश्तेदार आया तो अपने छोटे बेटे अर्जुन देव जी को उसके साथ भिजवा दिया और आदेश किया कि आप तब ही लौटना जब हम वापिस बुलावे।जब अर्जुन देव जी को लगभग दो साल हो गये तो वह बहुत उदास रहने लगे क्योंकि उनका आपके साथ बहुत लगाव था। बड़ा साहिबजादा कुछ सख्त स्वभाव का था तथा महादेव जी अपने ही रंग में मस्त रहते ऊंची इमारत को एऊएऊएएैएऐएएथे तथा गुरु अर्जुन देव आप जी के साथ गुरू घर की सेवा में हाथ बंटाते थेइसलिए आपने बहुत वैराग्य में भर कर वहां से एक पत्रिका लिखी। छोटे बच्चे के ऊच़ो।जब आपने श्री अज छर्जुन देव जी के ह्रदय में गुरुघर के प्रति इतनी लगन श्रृद्धा व प्रेम अनुभव किया तो उनको भाद्रपद, दूज 1638 को गुरूगददी प्रदान कर दी तथा भादों सुदी तीज को 1638 वि.सं. को ज्योति ज्योत में समा गये। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—- [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... सिखों के दस गुरु जीवनीसिख गुरु