गुरु अमरदास जी का जीवन परिचय – गुरु अमरदास जी बायोग्राफी Naeem Ahmad, May 26, 2021April 9, 2024 श्री गुरु अमरदास जी महाराज सिखों के तीसरे गुरु साहिब थे। गुरु अमरदास जी का जन्म अमृतसर जिले के ग्राम बासरके में श्री तेजभान भल्ला खत्री के घर में हुआ था। आपकी माता श्री सुलक्खणी जी थी। आपका विवाह 11माघ, वि.सं. 1559 श्री मनसा देवी सुपुत्री श्री देवी चंद्र बहिल के साथ हुआ था। श्री गुरु अमरदास जी का जीवन परिचय, गुरु अमरदास जी की जीवनी, गुरु अमरदास जी का सत्संग जन्म — वैशाख शुक्ल 14, वि.सं. 1526 (23 मई 1479) जन्म स्थान — ग्राम बासरके, जिला अमृतसर पिता—- श्री तेजभान जी माता—- माता सुलक्खणी जी वंश—- भल्ला, क्षत्रिय पत्नी—- श्री मनसा देवी जी पुत्र एवं पुत्री—- बाबा मोहन जी, बाबा मोहरी, बीबी दानी जी, बीबी भानी जी गुरु गद्दी— चैत्र शुक्ल 1, वि.सं. 1609 (16 अप्रैल सन् 1552 ई.) ज्योति ज्योत—- भाद्रपद शुक्ल 15, वि.सं. 1631(16 अप्रैल सन् 1574 ई.) गुरु मिलाप— श्री गुरु अंगद देव जी महाराज खडूर साहिब में विराजमान थे और उनकी सुपुत्री बीबी अमरो, बासरके गांव में इनके भाई के बेटे के साथ ब्याही हुई थी। एक दिन वह गुरूवाणी का पाठ कर रही थी। अमृतवाणी की मीठी मीठी फुहार जब गुरू अमरदास जी के कानों में पड़ी तो आपने बीबी अमरो जी से पूछा– बेटा! तुम किस वाणी का पाठ कर रही हो। बीबी ने बताया कि यह तो मेरे परम पूज्य पिता श्री गुरु अंगद देव जी जो खडूर साहिब में विराजमान है, तथा श्री गुरु नानक देव जी महाराज की गददी पर सुशोभित है, उनकी वाणी है। संगत दूर दूर से उनके दर्शन करने आती है। ऐसा सुनकर श्री गुरू अमरदास जी के मन में भी गुरु जी के दर्शन करने की अभिलाषा हुई और एक दिन आप बीबी अमरो को साथ लेकर खडूर साहिब आ पहुंचे। दर्शन करके ऐसे निहाल हुए कि फिर सदा के लिए उनके द्वार पर टिक गए। इस प्रकार गुरु द्वार पर ही हरि रंग से रंगे रहने लगे। बहुत अधिक सेवा गुरु दरबार की करते रहे। आधी रात जागकर ब्यास नदी से गुरु महाराज के स्नान के लिए खडूर साहिब से चलकर अंधेरे सवेरे नित्य प्रति पानी की गागर भरकर लाते तथा दिन भर गुरु घर की सेवा में लीन रहते। महान तीर्थ बावली साहिब श्री गोइंदवाल साहिब की रचना— गोइंदवाल जिला अमृतसर में व्यास नदी के किनारे आबाद है। श्री खडूर साहिब में गोंदा खत्री नामक एक श्रृद्धालु ने, गुरु अंगद देव जी के दरबार में हाजिर होकर विनय की कि हे दयालु जी! मेरा गांव उजड़ चुका है। वहां भूत प्रेत बसने लगे है। जोकि किसी का भी घर आबाद नहीं होने देते। जो कोई भी दीवार खड़ी करते है अपने आप ही धरती पर आ गिरती है। मैने गुरु घर की बड़ी महिमा सुनी है और आपके चरणों में निवेदन है कि कृपा करके मेरा गांव फिर से आबाद करें। उसकी विनती प्रवान करते हुए गुरु अंगद देव जी महाराज ने, गुरु अमरदास जी महाराज की ओर इशारा करते हुए कहा कि आप इस गोइंदा सेठ जी के साथ जाकर, एक धर्म नगरी आबाद करो। जब आप वहां की धरती पर कदम रखोगे तो वहां रिद्धि सिद्धियों का वासा हो जाएगा और सारी दुष्ट आत्माएं भूत प्रेत वगैरह वहां से भाग खड़े होगें। सारे दुख कलेश समाप्त हो जायेगे। इतिहास गवाह है कि गुरु साहिब के वचन सत्य साबित हुए जब गुरु जी की आज्ञा लेकर गुरु अमरदास जी ने उस धरती पर अपने चरण कमल रखे तो उस पृथ्वी का कण कण जगमग हो गया तथा उस स्थान की चरणधूलि को लोगों ने अपने माथे पर लगाकर भाग्य रोशन कर लिए। सर्वप्रथम उस इलाके में पीने के पानी की कमी को देखते हुए गुरु अमरदास जी ने 84 सीढ़ियों वाली बावली की सेवा आरंभ करवाई और आज्ञा दी कि इन चौरासी सीढियों पर बैठकर एक एक सीढी पर जपुजी साहिब का पाठ करने वालों की चौरासी कट जाएगी। गुरु अमरदास जी वाणी की रचना— आनंद साहिब तथा कुल शब्द 869 श्लोक छंद इत्यादि 17 रागों में थे। गुरूद्वारा चुबारा साहिब– यह चुबारा साहिब गुरूद्वारा गुरु जी ने बनवाया था और इसमें दीवार पर एक किल्ली (खूंटा) खास तौर पर लगवाई थी जिसे थामकर आप वृद्ध अवस्था में खड़े होकर तपस्या करते थे। गुरूद्वारा बड़ा दरबार सभा स्थान— इस स्थान पर आप काफी समय भजन बंदगी करते रहे तथा संगत दर्शनों के लिए व्याकुल हो रही थी। इस समय बाबा बुडढा साहिब तथा अन्य श्रृद्धालु सिक्खों की विनती सुनकर सभा में संगत को दर्शन देने के लिए आए। यही बीबी भानी जी की कोठडी, चूल्हा तथा तेईये तप की कोठड़ी है। इसी स्थान पर गुरु अर्जुन देव जी महाराज का जन्म हुआ था।यह गोइंदवाल नगरी खडूर साहिब से तीन कोस के फासले पर बसी है। खडूर साहिब में ही गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी अक्षर प्रचलित किए थे तथा यही पर हुमायूं बादशाह गुरु महाराज के दर्शन करने आया था। गुरूद्वारा तपिआणा साहिब— इस स्थान पर गुरु अंगद देव जी ने रोड़ो (कच्ची मिट्टी के रोड़े कंकड़) की सेज बनाकर कठिन तपस्या की थी। गुरुद्वारा खडूर साहिब– यहां गुरु अंगद देव जी ज्योति ज्योत समाये थे। गुरूद्वारा दमदमा साहिब— यहां पर गुरु अमरदास जी महाराज, दरिया ब्यास से पानी की गागर लाते हुए दम लिया करते थे। बाईस प्रचार केन्द्र— आपने गुरु नानक पातशाह का संदेश घर घर पहुचाने के लिए 22 प्रचार केन्द्र स्थापित किए। इस प्रकार आपने दूर दूर स्थानों पर रहने वाले गुरु सिक्खों को एक सूत्र में परोये रखने के लिए कार्यक्रम बनाये। जहाँ जहाँ भी गुरु सिक्ख थे वहां धर्मशालाओं में सत्संग जारी रखने के लिए चुनिंदा भक्त महान विद्वान तथा उंचे चरित्रवान व्यक्ति नियुक्त किए। सामाजिक सुधार— आपने पर्दा करने की रस्म की निंदा की। तथा बाल विधवाओं को सती होने की रस्म से हटाकर फिर से विवाह करवाने की रस्म जारी की। इसके अलावा आदर्श विवाह (आनंद कारज) की रीति प्रचलित की। लंगर— प्रत्येक धर्म के प्राणी मात्र के लिए एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करने की मर्यादा चालू की। रात्रि के समय जो लंगर बच जाता था उसे ब्यास नदी में जलप्रवाह कर दिया जाता था ताकि जल में रहने वाले जीव जंतु भी पेट भर सके। तेइए ताप की कथा— एक बार गोइंदवाल साहिब में एक वृद्ध माई का पुत्र तेईए के ताप से मृत्यु को प्राप्त हो गया तो उसकी माता के रोने धोने को सुनकर आप उनके घर गए और उस मृत बच्चे के मस्तक को अपने चरण स्पर्श करवाये तो वह उठकर खड़ा हो गया तब आपने तेइए ताप को बालक रूप प्रदान कर एक लोहे के पिंजरे में कैद करवा दिया। एक बार भाई लालो डल्ले ग्राम वाले गुरु दर्शन को आए तो पिंजरे में कैद बालक को देखकर द्रवित हो गए। तो वो इस बालक को छुडाने की कोशिश करने लगे। इस पर गुरु जी ने कहा यह बड़ी बुरी बला है। अगर आप ले जाना चाहते हो तो आपकी इच्छा है। कुछ दिन ठहर कर भाई लालो अपने गांव जाने लगा तो रास्ते में एक धोबी कपड़े धो रहा था। उसे देखकर बालक कहने लगा गुरु प्यारे जी आप परोपकारी हो मुझे बहुत भूख लगी है यदि आज्ञा मिले तो मै थोड़ा भोजन कर आऊं। भाई लालो ने कहा किसी सिक्ख के घर चलते है। बालक बोला आप यही कुछ देर रूके। मेरा भोजन यही तैयार है कही जाना नहीं पडेगा। ऐसा कहते हुए वह बालक बुखार का रूप धारण कर उस धोबी पर जा सवार हुआ। कुछ देर बाद धोबी की मृत्यु हो गई। तब भाई लालो को गुरु साहिब का वचन याद आया तो उन्होंने उसे वापस लाने की सोची तब यह सुनकर तेईए ताप भाई लालो जी के चरणों में गिर पड़ा । और यह प्रतिज्ञा ली कि अब वो किसी को परेशान नहीं करेगा। नम्रता के सागर— एक बार आप दीवान सजाकर गद्दी पर बैठे हुए संगत से विचार विमर्श कर रहे थे कि अचानक श्री दातू जी, गुरु अंगद साहिब के बेटे, दीवान में आए नमस्कार तो नहीं किया अपितु कुछ समय खड़े रहने के बाद जोर से एक लात आपके बूढ़े शरीर पर जमा दी। जिससे गुरु जी गद्दी से नीचे लुढक गये। संगत में कोहराम मच गया। कुछ सहासी युवक तो लाल पीले भी होने लगे पर गुरु अमरदास जी जो अपार सहनशक्ति के पुंज थे, स्वयं ही उठे ओर दातू जी के चरण पकड़कर विनय की कि गलती हो गई। आपके चरण कमल से कोमल है मेरा बूढ़ा तन सख्तजान है इन्हें बहुत ही कष्ट हो रहा होगा तथा पैर दबाने लगे। बीबी भानी जी की शादी— बीबी दानी जी की शादी के बाद गुरु जी से माता मनसा देवी ने एक दिन बीबी भानी के विवाह के बारे में बात चलाई कि वर सुंदर तथा बनता फबता होना चाहिये। हुजूर मुस्कराये और कहा — करतार भली ही करेगा। इतने में भाई जेठा जी जो कुछ समय घुंगनीया बेचकर अपना गुजारा करते थे तथा बाकी समय गुरु घर में सेवा में व्यतीत करते थे, घर के सामने से घुंगनीया बेचते हुए गुजर रहे थे कि माता जी की नजर अचानक उन पर पड़ी तो कहने लगी कि दातार पातशाह इतनी आयु का तथा कुछ ऐसा ही गबरू जवान लड़का चाहिए। ऐसा ही सुंदर होना चाहिये। आप ने सुना तो प्रभु रंग में रंगे बोले — भाग्यवान! यदि ऐसा ही वर चाहिए तो इसमें क्या कमी है। यही ठीक है इसे बुलाकर पूछ लेना चाहिए। गुरु गद्दी का वरदान— एक दिन आप स्नान कर रहे थे कि अचानक चौकी का एक पाया टूट गया। बीबी भानी जी स्नान करवा रही थी बीबी ने देखा तो अपना हाथ वहां टिका दिया जहां से पाया चटक गया था। जब गुरु जी स्नान करके हटे तो बीबी भानी के हाथ से बहते हुए खून को देखकर सब कुछ समझ गए। आपने बिटिया से कहा कि मांग जो कुछ भी मांगना चाहती है। बीबी भानी ने कहा कि पिता जी आगे से गुरु गद्दी घर में ही रहनी चाहिए। गुरुदेव कहने लगे– बेटा यह बहुत कठिन मार्ग है। गुरु व्यक्तियों को बहुत कुर्बानियां करनी पडेंगी और इशारों में ही आगे आने वाले दृश्य बीबी भानी को दिखला दिए। इस पर भानी जी ने कहा कि पिता जी यह वरदान भी साथ ही दे देवें कि आपकी बेटी का वंश यह बलिदान हंसते हंसते कर सके।उचित समय पर भाई जेठा जी सेवा के पर्चो में पास हुए तो आपने उन्हें ही गुरु गद्दी सौंप दी। और भाद्रपद शुक्ल 15 वि.सं. 1631 को ज्योति ज्योत समा गए। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—– [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... सिखों के दस गुरु जीवनीसिख गुरु