गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी – बिलासपुर साहिब गुरुद्वारा का इतिहास Naeem Ahmad, June 19, 2021March 11, 2023 गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर शहर मे स्थित है बिलासपुर, कीरतपुर साहिब से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कभी यह कहिलूर रियासत की राजधानी थी। अक्टूबर 1611 में श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने यहां के राजा कलियाणा चंद और कुंवर तारा चंद को ग्वालियर के किले से मुक्त करवाया था। छठे से दसवें पातशाह के साथ तक के इस रियासत के साथ सम्बंध रहे थे। सन् 1613 तक गुरु साहिब राजघराने के सभी पारिवारिक अवसरों पर बिलासपुर पहुंचा करते थे। इस नगर में नौवें और दसवें नानक ने कई बार दर्शन दिये थे। गुरु साहिब की याद में शाही महल में एक गुरुद्वारा बना हुआ था। भाखड़ा बांध बनने के समय यह ऐतिहासिक शहर झील का एक हिस्सा बन गया, किंतु सारा सागर ही गुरु साहिब की यादगार बन गया है। आजकल पुराने बिलासपुर से दूर ऊपर की पहाडियों के बीच नये बसाये गये बिलासपुर में दसवीं पातशाही की याद में एक नये स्थल पर बिलासपुर साहिब गुरुद्वारा बनाया गया है। इस नगर में नौवें तथा दसवें गुरु साहिब ने कई बार दर्शन दिये थे। गुरु गोबिंद सिंह जी यहां चार बार गये थे। गुरु साहिब की याद में शाही महल में एक गुरुद्वारा बना हुआ था। लेकिन बिलासपुर के कुछ सिक्ख दुश्मन राजाओं ने इस स्थान को बंद किया हुआ था। तथा सिखों को यहां आने भी नहीं दिया जाता था। वाहिगुरू ने बिलासपुर के इस परिवार को ऐसी सजा दी कि वह बिलासपुर शहर, जिसमें शाही महल थे, भाखड़ा बांध के लिए बने सागर में 80 फुट पानी के नीचे चला गया तथा उस सागर का नाम गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में गोबिंद सागर रखा गया है। सिक्खों को गुरु साहिब की यादगार के पास न आने देने वालों का महल, राजधानी, रियासत तथा खानदान भी समाप्त हो गया। वह गुरुद्वारा शाही महल के साथ ही गोबिंद सागर का भले ही हिस्सा बन गया किंतु सारा सागर ही गुरु गोबिंद सिंह जी साहिब की यादगार बन गया है। आजकल पुराने बिलासपुर से दूर ऊपर वाली पहाडियों के बीच नये बसाये गये शहर में दसवीं पातशाही की याद में गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब बनाया गया है। इसकी इमारत नई तथा खूबसूरत है तथा इसका प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पास है। बिलासपुर में सिखों के बहुत कम घर है ज्यादातर यात्री ही गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब जाते है।इसके अलावा बिलासपुर के दूसरी ओर पहाड़ियों में बसे छोटे छोटे गांवों में भी कुछ घर सिखों के है। गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब गुरुद्वारा बिलासपुर साहिब हिस्ट्री इन हिन्दी गुरुद्वारा बुद्धा साहिब हिमाचल प्रदेश के पुराने बिलासपुर शहर में स्थित था। गुरु तेग बहादुर बकाला में रहते थे और उन्होंने असम, बंगाल और बिहार में सात साल (1656-64) से अधिक समय बिताया था। गुरु तेग बहादुर ने कुछ समय तलवंडी साबो और धमतान में भी बिताया था। अप्रैल 1665 के मध्य में, गुरु तेग बहादुर ने किरतपुर साहिब की यात्रा की। जब गुरु तेग बहादुर किरतपुर में थे, तब 27 अप्रैल 1665 को बिलासपुर के शासक राजा दीप चंद की मृत्यु हो गई। बिलासपुर का शासक बहुत ही समर्पित सिख था। 10 मई 1665 को, गुरु साहिब राजा दीप चंद के लिए अंतिम प्रार्थना करने के लिए बिलासपुर गए। गुरु साहिब 13 मई तक वहीं रहे। इस समय तक रानी चंपा को पता चल गया था कि गुरु साहिब ने अपना मुख्यालय धमतान स्थानांतरित करने का फैसला किया है। इससे रानी चंपा मायूस हो गई। रानी चंपा माता नानकी (गुरु साहिब की मां) के पास गईं और उनसे विनती की कि वे गुरु साहिब से बिलासपुर राज्य से दूर न जाने के लिए कहें। माता नानकी भावुक रानी चंपा की मदद करने से नहीं रोक सकीं। माता जी ने गुरु साहिब से रानी की इच्छा पूरी करने का अनुरोध किया। जब गुरु साहिब सहमत हुए, रानी चंपा ने गुरु साहिब को कुछ जमीन दान करने की पेशकश की ताकि वह एक नया शहर स्थापित कर सकें। गुरु साहिब ने नया शहर बसाने का फैसला किया लेकिन जमीन का दान स्वीकार करने से इनकार कर दिया। शिवलाक पहाड़ियों के निचले हिस्सों पर आनंदपुर साहिब शहर की साइट को गुरु तेग बहादुर ने पांच सौ रुपये के भुगतान पर खरीदा था। गुरु तेग बहादुर ने लोदीपुर, मियांपुर और सहोटा गांवों के बीच जमीन का एक टुकड़ा चुना और उसके लिए नियमित कीमत चुकाई। रानी चंपा ने झिझकते हुए जमीन की कीमत स्वीकार कर ली, लेकिन उनकी खुशी इस विचार से कम नहीं थी कि गुरु जी ने बिलासपुर राज्य के पास अपना मुख्यालय स्थापितकरने के लिए चुनी गई मखोवाल के प्राचीन गांव के खंडहरों के आसपास, गुरु साहिब द्वारा चुना गया स्थल, रणनीतिक दृष्टि से बहुत उल्लेखनीय था क्योंकि यह एक तरफ सतलज नदी से घिरा हुआ था और साथ ही इसके चारों ओर पहाड़ियों और जंगल भी थे। चक नानकी क्षेत्र के रूप में जाना जाने लगा का नाम गुरु जी की मां के नाम पर रखा गया। यह ध्यान के साथ-साथ कला और बौद्धिक गतिविधियों के लिए एक शांतिपूर्ण क्षेत्र साबित हुआ। पुराना बिलासपुर बिलासपुर का ऐतिहासिक शहर 1954 में जलमग्न हो गया था जब सतलुज नदी को गोबिंद सागर (और भाखड़ा बांध) बनाने के लिए बांध दिया गया था, और पुराने के ऊपर एक नया शहर बनाया गया था। तो वास्तविक गुरुद्वारा सुलभ नहीं है लेकिन सरकार ने एक नए स्थान और वर्तमान गुरुद्वारे के लिए जमीन दी है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—— [post_grid id=”6818″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल प्रमुख गुरूद्वारेहिमाचल पर्यटन