गलताजी मंदिर का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ गलताजी धाम जयपुर Naeem Ahmad, March 10, 2020March 17, 2024 नगर के कोलाहल से दूर पहाडियों के आंचल में स्थित प्रकृति के आकर्षक परिवेश से सुसज्जित राजस्थान के जयपुर नगर के पूर्व में मैदानी धरातल से 350 फीट ऊपर तथा मुख्य नगर से लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पर एक रमणीक तीर्थ स्थान है। जो गलताजी कहलाता है। जयपुर शहर से गलताजी का सामान्य मार्ग सूरजपोल द्वार से होकर जाता हैं। सूरजपोल अथवा गलता दरवाजा से बाहर निकलने पर लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद पर्वत की बडी बडी श्रेणियाँ है। जो गलताजी की पहाडियां कहलाती है। इन्हीं पर्वत श्रेणियों के पास एक और द्वार बना हुआ है। जयपुर शहर से इस द्वार तक पक्की सड़क बनी हुई है। सडक़ के अंतिम छोर से ही पर्वतों के बीच एक घाटी आरंभ होती है। जो गलताजी की घाटी कहलाती है। यही घाटी सर्पाकार चलती हुई गलता कुंड तक चली गई हैं। यह पुण्य स्थली गालव ऋषि की तपोभूमि होने के कारण गालव आश्रम के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। जिसका नाम समय के साथ साथ बिगडकर गालव से गलता हो गया है। जो आज गलताजी तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। गालव ऋषि ने 15 वी शताब्दी पूर्व इस सुरम्य, शांत स्थली को तपस्या के अनुकूल पाकर अपनी तपोभूमि बनाया था। हिस्ट्री ऑफ गलताजी जयपुर राजस्थानगलताजी तीर्थ चारों ओर से ऊंची ऊंची पर्वतमालाओं से घिरा हुआ अत्यंत रमणीक स्थान है। इसमें प्रसिद्ध आठ कुंड है। जिनके नाम है:– यज्ञ कुंड, कर्म कुंड, चौकोर कुंड, मर्दाना कुंड, जनाना कुंड, बावरी कुंड, केले का कुंड, और लाल कुंड। इन सब मे बडा और प्रधान कुंड मर्दाना कुंड है। गलताजी के इस बडे कुंड में संगमरमर का एक गौमुख झरना निरंतर गिरता रहता है। गौमुख से गिरने वाली इस जल धारा के उद्गम स्त्रोंतों का पता आज तक भी नहीं चल पाया है। अतीत काल से यह जल धारा निर्बाध रूप से गौमुख से कुंड मे गिरती चली आ रही है। यह जल धारा गंगा धारा मानी जाती है। ऐसा माना जाता हैं कि गालव मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी यहां प्रकट हो गई जो आज भी नियमित प्रवाह में है।कच्छ का इतिहास और कच्छ के दर्शनीय स्थलएक ओर किवदंती के अनुसार माना जाता है कि बहुत पहले की बात है जब एक बार जयपुर के महाराजा शिकार खेलते हुए पर्वतांचल में स्थित ऋषि के आश्रम की ओर आ निकले। इस आश्रम के समीप साधु महात्मा सिंह का रूप धारण कर पर्वतों पर विचरण करते थे। राजा ने एक सिंह पर तीर चलाया जो सिंह के पिछले पांव में लगा और यहां रक्त की धार बह निकली। उसी समय यह सिंह अपना रूप छोडकर एक महात्मा के वास्तविक रूप में प्रकट हुआ, और राजा से कहा !राजन! आपने इस आश्रम की ओर शिकार खेलने की चेष्टा कैसे की?। इसके फलस्वरूप आपको कुष्ठ रोग हो। यह श्राप देकर वह महात्मा गायब हो गए।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानकहते है कि वही गालब ऋषि थे। राजा अपने महल में लौट आया किंतु उसी दिन से वह कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गया और अधिक पीडित रहने लगा। बहुत उपचार करवाने पर भी राजा को रोग से छुटकारा न मिला। दुखी होकर राजा अपने कुछ साथियों के साथ महात्मा की तलाश में उसी आश्रम की ओर चला। अत्यंत प्रयत्न के बाद महात्मा एक पर्वत की गुफा में समाधिस्थ मिले। समाधि के पास राजा ने प्रार्थना की हे प्रभु! मै अनजान में अज्ञानता वश इधर शिकार खान लने चला गया था। मेरा अपराध क्षमा किजिए, और कृपया इस रोग से मुक्ति का कोई उपाय बताए। दयावान महात्मा ने राजा से कहा राजन! इस स्थान पर एक पक्का आश्रम और इसमें एक विशाल कुंड बनवा दिजिए। मै उस कुंड मै गंगा की एक जल धारा ला दूंगा। वह जल धारा जब तक संसार रहेगा तब तक कभी बंद नहीं होगी। उसी गंगा धारा मे स्नान करने से तेरा कुष्ठ रोग जाता रहेगा और जो कोई उसमें श्रद्धा पूर्वक स्नान करेगा या जल का आचमन करेगा वह पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होगा। राजा ने ऐसा ही अनुसरण किया और उसका कुष्ठ रोग जाता रहा। आज भी भक्तों का मानना है कि इस कुंड में स्नान करने से रोगों से मुक्ति मिलती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।गलताजी टेम्पल जयपुर के सुंदर दृश्यगलताजी के जनाने कुंड के दक्षिण की ओर एक छोटी पहाडी पर महात्मा पियाहारी की गुफा है। गुफा के द्वार पर महात्मा जी का एक चित्र कांच में जडा हुआ है। माना जाता है कि यह गुफा कोसों दूर तक चली गयी है। यह भी कहा जाता है कि इस गुफा की लम्बाई का पता लगाने के लिए एक बार कुछ साधु इसमें घुस गए थे। उनका बाद में कुछ भी पता न लगा। तब से इस गुफा का द्वार राज्य की ओर से सदैव के लिए बंद कर दिया गया। महात्मा पियाहारी जी के चित्र के सामने पूर्व जयपुर राज्य की ओर से अखंड धूनी लगी रहती थी। जो कभी नहीं बूझती थी। पियाहारी जी एक बडे तपस्वी और पहुंचे हुए महात्मा हुए हैं। कहते है कि इनकी तपस्या के बल से सिंह और गाय एक ही घाट पर पानी पिते थे। और इनकी आंख का इशारा पाते ही बडे बडे हिसंक जंतु भी इनके चरणों पर लौटने लगते थे। ये परम योगी महात्मा संत कवि नाभा जी के शिष्य थे। जयपुर के भूतपूर्व महाराजा ईश्वरीय सिंह जी इनके पूर्ण भक्त थे और उन्होंने इनसे कई योग सिद्धि की बातें सीखी थी।गिरधारी जी का मंदिर जयपुर राजस्थानगलताजी तीर्थ तपस्वी महात्माओं के लिए सदैव से प्रसिद्ध रहा है। किवदंतियों के अनुसार यहां कई बार पर्वतों की लुप्त गुफाओं मे साधु महात्मा तपस्या करते हुए पाये गए हैं। यह भी कहा जाता है कि सन् 1917 ईसवीं में जब गलता जी के मर्दाना कुंड की छटाई और खुदाई हुई थी। तब उस समय कुंड के अंदर एक तिवारा निकला था। जिसमें सात साधु तपस्या करते हुए दिखाई दिए थे। किंतु क्षणभर में वे विलीन हो गए थे।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं गलताजी के प्रमुख स्थान पर जयपुर नगर के ठीक सामने पूर्व दिशा की ओर सूर्य भगवान का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ से जयपुर शहर का दृश्य अत्यंत ही मनोहारी दिखाई पडता है। मंदिर में सूर्य भगवान की स्वर्ण प्रतिमा है। प्रति वर्ष शुक्ल सप्तमी (सूर्य सप्तमी) के दिन यही से सूर्य भगवान का रथ निखलता है। उस दिन यहाँ विशाल मेला लगता है। सूर्य भगवान की स्वर्ण मूर्ति एक विशाल चांदी के रथ में विराजमान कर उसकी शोभा यात्रा निकाली जाती हैं। गलताजी के सूर्य मंदिर से लेकर नगर मे त्रिपोलिया द्वार तक बडा भारी मेला रहता है। रथ पुनः घुमकर अपने मंदिर मे चला जाता हैं। सूर्य मंदिर की स्थिति ऐसी उत्तम है कि मुख्य जयपुर के निवासी जब प्रभात की बेला में उठकर सूर्य की ओर दृष्टि डालते है। तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो सूर्य ठीक उसी सूर्य मंदिर में से निकल रहा हो। चंद्रमहल सिटी पैलेस जयपुर राजस्थानसूर्य मंदिर के अतिरिक्त गलताजी तीर्थ स्थित अन्य मंदिरों में एक प्रमुख मंदिर महादेव जी का भी है। गलता तीर्थ पर सूर्य सप्तमी, राम नवमी, निर्जला एकादशी, तथा जल जूलनी एकादशी के दिन बडे भारी मेले लगते है। और बडी संख्या मे श्रृद्धालु यात्री आते है। चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण और स्नानार्थ पर्वो पर भी यहां बडी भीड रहती है। चतुर्मास मे तो यहां की छटा निराली होती है। श्रावण शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक यहां बराबर मेला लगा रहता है। सैकडों नर नारी यहां प्रति दिन आते है। और भंडारे आदि करते है। श्रावण मे यहां वन सोमवारों का मेला देखने योग्य होता है।ऋषभदेव मंदिर उदयपुर – केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थानसुबह होते ही श्रृद्धालु भक्तों की भीड नरवदे हर, हर हर गंगे, का उच्चारण करते हुए कुंड के पवित्र जल मे स्नान करने लगते है। कुछ लोग कुंड के उस शीतल एव पवित्र जल मे तैरते हुए गौमुख से प्रवाहित जलधारा के नीचे खड़े होकर झरने का आनंद लेते है। और हर हर महादेव का उच्चारण करते जाते है। नीले क्षितिज के पार खिलती सूर्य की किरणें गलताजी की सारी छटा को सतरंगी बना देती है। वृक्षों की हरीतिमा में तोते और बहुरंगी चिडिय़ा घाटी में बहती हवाओं में सरगम भर देती है। निःसंदेह गलताजी का प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम ही है। जो पर्यटकों व यात्रियों के लिए जीवन भर की स्थाई स्मृति बन जाता हैं। प्रतिदिन गलताजी तीर्थ में यात्री धर्मशाला रहते है। यहां पर बंगाली और गुजराती तीर्थ यात्री बडी संख्या में आते है। जो यात्री अपनी जयपुर की यात्रा मे गलताजी धाम नहीं जाता उसकी जयपुर यात्रा अधुरी समझी जाती है।प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताए। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:–[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान ऐतिहासिक इमारतेंराजस्थान के प्रसिद्ध मेलेंराजस्थान के लोक तीर्थराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन