क्रिस्चियन ह्यूजेन्स (Christiaan Huygens) और पेंडुलम घड़ी का आविष्कार? Naeem Ahmad, May 29, 2022February 27, 2023 क्रिस्चियन ह्यूजेन्स (Christiaan Huygens) की ईजाद की गई पेंडुलम घड़ी (pendulum clock) को जब फ्रेंचगायना ले जाया गया तो उसके वक्त में कुछ कसर आ गई। ह्यूजेन्स को जब पता लगा कि कितना समय वह इस प्रकार खो बैठा है तो गणनाएं करते हुए वह इस परिणाम पर पहुंचा कि भूमध्य-रेखा पर पृथ्वी में कुछ उभार आ जाता है। विज्ञान की इस विलक्षण प्रतिभा क्रिस्चियन ह्यूजेन्स का जन्म, जिसे इतिहास में पेंडुलम घड़ियों के तथा प्रकाश के सिद्धान्त के, आविष्कार कर्ता के रूप में स्मरण किया जाता है, 14 अप्रैल, 1629 को नीदरलैंड की राजधानी हेग में हुआ था। हयूजेन्स के पिता कास्ट्टेन्टाइन हयूजेन्स बिरादरी का एक धनी-मानी व्यक्ति और कवि, राजनीतिज्ञ, संगीतज्ञ तथा मशहूर पहलवान था। बचपन से ही क्रिस्चियन ह्यूजेन्स को गणित तथा विज्ञान में विशेष रूचि थी। लाइदन और ब्रेदा के विश्वविद्यालयों में उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई। बाईस वर्ष की कच्ची उम्र में गणित तथा ग्रह-गणना सम्बन्धी उसके कुछ निबन्ध जब छपे तो उन्हें पढ़कर प्रसिद्ध दाशर्निक रेने डेकार्ट तक चकित रह गया था। क्रिस्चियन ह्यूजेन्स का जीवन परिचय उस युग में ज्योति विज्ञान को सम्पूर्ण विज्ञान लोक का केन्द्र बिन्दु समझा जाता था। ह्यूजेन्स ने उसमें भी कार्य किया है। टेलिस्कोप का इस्तेमाल अब शुरू हो चुका था किन्तु जो उपकरण उन दिनों मिलते थे, ह्यूजेन्स उनसे सन्तुष्ट न था। परिणामत: ह्यूजेन्स ने अपने ही लेन्स बनाने शुरू कर दिए। इस काम में उसका सहायक होता एक यहूदी डच बेनिडिक्ट स्पिनोजा। वही बेनिडिक्ट स्पिनोजा जो विश्व का एक विश्वस्त दार्शनिक है, किन्तु लेन्स घिस-घिसकर ही वह अपने लिए रोजी कमाया करता था। टेलिस्कोप के निर्माण में जो बेहतरी वह इस तरह ले आया उसकी बदौलत ह्यूजेन्स ने शनि ग्रह के उस ज्योति मंण्डल का प्रत्यक्ष किया, जिसे उससे पहले केवल गैलीलियो ही देख सका था। किन्तु ह्यूजेन्स ने इस मण्डल की प्रकृति को पहचान लिया कि यह एक भारी चपटी परिधि है। आज के कहीं अधिक शक्तिशाली टेलिस्कोप द्वारा यदि इस परिधि को देखें तो हम पाएंगे यह परिधि वस्तुतः तीन परिधियों का एक समुच्चय है। धूल के बड़े-बड़े तीन ढेर जो बड़ी तेज़ी के साथ शनि के गिर्द चक्कर काट रहे हैं। नेत्र-सम्बन्धी कितने ही उपकरण क्रिस्चियन ह्यूजेन्स ने ईजाद किए जिनमें हूजेन्स का आई-पीस आज भी हमारे सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों में प्रयुक्त होता है। 24 साल की उम्र में क्रिस्चियन ह्यूजेन्स को लन्दन की रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया। इस सम्मान को ग्रहण करने के लिए जब वह इंग्लैंड पहुंचा, तब न्यूटन से उसकी भेंट हुई। न्यूटन भी उसकी बहुमुखी-प्रतिभा से कम प्रभावित नहीं हुआ। उसने कोशिश भी की कि लन्दन में ही ह्यूजेन्स का काम बन जाए। किन्तु इसमें उसे सफलता नहीं मिली। बात यह थी कि हौलैण्ड के इस वैज्ञानिक को अभी उसके अपने देश के बाहर बहुत ही कम लोग जानते थे, और वह भी कुछ वैज्ञानिक मित्र ही। परिणामत: न्यूटन भी किसी समृद्ध अभिभावक को उसके सम्पर्क में न ला सका जिससे कि एक विदेशी वैज्ञानिक को उसकी आर्थिक चिंताओं से मुक्त रखा जा सके। क्रिस्चियन ह्यूजेन्स काफी साल बाद लुई चौदहवें ने जिसने कसम खा रखी थी कि किसी भी कीमत पर फ्रांस का सिर विज्ञान के अध्ययन में ऊंचा रहना चाहिए, ह्यूजेन्स को एक वैज्ञानिक अनुसन्धान संस्था का अध्यक्ष-पद प्रस्तुत किया जिस पर कि वह 1666 में 1681 तक बना रहा। फ्रांस में रहते हुए ही उसने अपने महान ग्रन्थ प्रकाश पर एक निबन्ध लिखा। किन्तु इसका प्रकाशन बहुत बाद में 1690 में हुआ। स्वयं ह्यूजेन्स ने स्वीकार किया हैं कि, वह भी आखिर एक इन्सान था, किस तरह इसके छपने में इतना वक्त लग गया। मूल पुस्तक फ्रेंच में लिखी गई थी और उसका विचार था कि वह इसका अनुवाद लैटिन में भी करेगा। किन्तु वह पहली प्रत्यग्रता, विचार की और उसे प्रस्तुत करने की, जब एक बार शिथिल पड़ गईं, और ही और काम उसे निरन्तर आकर्षित करते गए, और अनुवाद की वह योजना पीछे और पीछे पड़ती गई। अनुवाद का विचार उसे छोड़ना ही पड़ा और फ्रेंच में ही जल्दी से उसे मुद्रित कराकर एक तरफ कर देना पड़ा कि इतनी देरी से कहीं उसका वह उन विचारों की मौलिकता का श्रेय भी अपना न रह जाए तथा कोई ओर बाज़ी मार ले जाए। क्रिस्चियन ह्यूजेन्स का पेंडुलम घड़ी का आविष्कार अपने दिनों में क्रिस्चियन ह्यूजेन्स की प्रतिष्ठा पेंडुलम घड़ी के आविष्कार कर्ता के रूप में थी। वह उसका केवल मात्र आविष्कार कर्ता ही नहीं था, अपितु पेंडुलम घड़ी की गतिविधि के मूल में क्या नियम है और कैसे वह काम करता है इसकी व्याख्या भी वह कर सकता था। यह विचार कि पेंडुलम का प्रयोग घड़ी-पल गिनने में किया जा सकता है, सूझा तो पहले गैलीलियो को भी था, किन्तु घड़ी बनाने में उसकी उपयोगिता को क्रियात्मक रूप ह्यूजेन्स से पूर्व कोई दे न सका था। कितने ही वैज्ञानिकों ने समस्या से अपना दिमाग लड़ाया, किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। सन् 1657 में ह्यूजेन्स ने पहली पेंडुलम घड़ी तैयार की। घड़ी की सफल गतिविधि के मूल थे– एक समिश्र पेंडुलम के संचालन के काम में आने वाले नियम। इनकाप्रत्यक्ष ह्यूजेन्स ने कर लिया था। गोले के एक आन्दोलन के साथ घडी की सूइयों को कितना खिसक जाना चाहिए। एक प्रकार की ऐस्केपमेण्ट सी कुछ वह प्रत्यक्ष सिद्ध कर चुका था और, इसके साथ ही पेंडुलम के खुले लटकाने के (साइक्लाय डल सस्पैन्शन) सिद्धान्त का अनुमान भी वह कर चुका था। ह्यूजेन्स की घडी सही-सही घण्टे-मिनट बताने लग गई। चाद, तारो के साथ एक मानव-निर्मित यन्त्र भी काल-गणना करने लग गया। अब इस पेंडुलम घडी को समुद्र-यात्रा मे सहायता पहुचाने के लिए भेज दिया गया और, तभी उसकी मुसकिले शुरू हो गई। पृथ्वी की गुरुत्वता की ओर आविष्कार कर्ता का ध्यान अभी तक नहीं गया था। पेंडुलम के हर आन्दोलन को वही समय लगता है–हां, यदि पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण वही रहे तब। दरअसल तो पेंडुलम अपनी ऊंचाई से निम्त-बिन्दु पर गिरता ही इसीलिए है क्रि पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण उसे प्रतिक्षण नीचे की ओर खीच रही होती है। घडी को जरा किसी पहाड की चोटी पर ले जाइए– पृथ्वी के केन्द्र से दूर और फिर देखिए पेंडुलम के पतन में वहीं तेज़ी नही रह जाती, उसे इधर से उधर डोलने मे अब ज़्यादा वक्त लगेगा, जिसका परिणाम यह होगा कि घडी धीरे-धीरे मिनट-सैकण्ड खोने लग जाएगी। पहाड की चोटी पर यही कुछ संभव था, यही कुछ नियमानुकूल था। किन्तु इसी घडी को फ्रेंच गायना के सायेन द्वीप से ले जाया गया। सायेन समुद्र स्तर पर है किसी पहाडी चोटी पर नही। वहा भी वह सुस्ताने लगी। ऐसा क्यो हुआ ? क्या बात थी? क्रिस्चियन ह्यूजेन्स ने प्रश्न का विश्लेषण किया, वह जानता था कि रस्सी में एक पत्थर को बांधकर अगर उसे चक्कर पर चक्कर दिए जाए तो यह पत्थर, गुरुत्वाकर्षण को मानो निष्क्रिय करता हुआ, सुत्र-वृत्त की परिधि-सीमा से खुद को बांध लेता है। और सच तो यह है कि यदि सूत्र की इस परागति मे बल कुछ अधिक हो तो यही रस्सी टूट भी सकती है। ह्यूजेन्स ने इस शक्ति व बल को सेण्ट्रीप्यूगल केन्द्र प्रतिगामी शक्ति का नाम दे दिया। पृथ्वी भी तो लट॒टू की तरह घूमती है और खूब तेजी के साथ परिक्रमा करती है। अपनी धुरी के गिर्द एक चक्कर पूरा करने मे इसे 24 घण्टे लगते है। भूमध्य रेखा पर पृथ्वी की परिमा 1000 मील प्रति घण्टा से भी ज्यादा की अविश्वसनीय गति से यह परिक्रमा कर रही होती है। भूमध्य रेखा पर स्थित कोई भी वस्तु, धागे के सिरे पर बंधे पत्थर की तरह ही, जैसे प्रथ्वी से अपना बन्धन तोड देने को आकुल होती है। अब यदि हम, विषुवत् रेखा को छोड, उत्तर व दक्षिण ध्रुव की ओर चल पडें, धरती तो अब भी 24 घण्टों मे एक ही चक्कर अपना पूरा करेगी किन्तु इन दोनो बिन्दुओं पर उसकी गति में वही आवेश अब नही होगा जो कि भूमध्यरेखा पर था। अपनी साइकिल को जरा एक ओर मोड देकर देखिए– सिरे पर उसके स्पोक्स धुधले से दिखाई देगे जबकि केन्द्र के पास उन्हें स्पष्ट देखा जा सकता है। क्योकि वहा उनकी गति में वही तेज़ी नही है। और परिक्रमा के केन्द्र बिन्दु मे तो, जैसे कोई गति होती ही नही। पृथ्वी के हर बिन्दु पर, हर स्थान पर, गुरुत्वाकर्षण का कार्य होता है– वस्तु-मात्र को खीच कर पृथ्वी के केन्द्र की ओर गिराने का प्रयास उत्तरी ध्रुव पर गुरुत का काम यही कुछ है, किन्तु अन्य किसी भी स्थान पर उसका काम साथ में यह भी होता है कि चीज़ें अपनी ही केन्द्र-प्रतिगा मिनी वृत्ति द्वारा आवेश मे आकर धरती से अपना नाता ही न तोड जाए– इसकी संभाल भी करना और वस्तुओ की यह केन्द्र प्रतिगामिता भूमध्य रेखा पर अपनी पराकाष्ठा पर होती है क्योकि इसी रेखा पर पृथ्वी की गति भी अपनी पराकाष्ठा पर होती है। अर्थात्, भूमध्यरेखा पर पृथ्वी मे गुरुत्वाकर्षण अब वही नही रह सकता, अपेक्षाकृत कुछ कम हो जाएगा, जिसके परिणाम स्वरूप घडियो की सुइयों में स्वभावत अब कुछ सुस्ती आ जाएगी क्योकि पेंडुलम के उत्थान-पतन में अब वही रफ्तार नही रह सकती। ह्यूजेन्स ने गणना की कि घडी की गति को भूमध्य रेखा पर कितना शिथिल पड जाना चाहिए। उसकी गणना का आधार था भूमध्य रेखा पर तथा पेरिस मे पृथ्वी की गतियों की परस्पर तुलना। किन्तु घडी की सुइयां उसके अनुमान से कही ज्यादा सुस्त निकलीं। अब एक ही संभावना रह गई थी कि भूमध्य रेखा पर पृथ्वी मे उभार होना चाहिए, जिसके कारण उसके गुरुत्वाकर्षण मे और भी कसर आ जाती है। यह केन्द्र-प्रतिगामिता तथा भूमध्य रेखा के उभार का सम्मिलित प्रभाव था कि वही घड़ियां अब एक दिन में ढाई मिनट पिछडने लग गई थी। समुंद्र यात्रा में यदि ये पेंडुलम घड़ियां नाकारा साबित होती है, तो उसका भी कुछ उपाय होना चाहिए। अब ह्यूजेन्स के सम्मुख यह एक नया प्रश्न था। उसका समाधान भी उसने निकाल लिया– स्पाइरल वाच स्प्रिंग। ह्यूजेन्स ने इस स्प्रिंग को पेटेंट करा लिया, क्योकि उसे पता था कि राबर्ट हुक उससे पहले ही इसका आविष्कार कर चुका है। और बात दरअसल यह भी है कि हुक अपनी तजवीज को सामने लाया ही तब जबकि ह्यूजेन्स के आविष्कार को सभी कही सम्मान मिल चुका था। घडियों के सम्बन्ध में ह्यूजेन्स ने एक यही आविष्कार नही किया था, उसकी युग-प्रतिष्ठा हो चुकी थी, उसका ईजाद किया साइक्लायडल सस्पेन्शन’ आज भी हम पेंडुलम घड़ियों मे प्रयोग में लाते हैं। प्रकाश की किरणों की मूल प्रकृति की खोज क्रिस्चियन ह्यूजेन्स की प्रतिष्ठा एक और कारण से भी है। प्रकाश की किरणों की मूल प्रकृति क्या है इसके विषय मे भी उसने एक स्थापना प्रस्तुत की कि ध्वनि और जल की भांति ज्योति भी प्रकृत्या तरंगमयी ही होती है। ह्यूजेन्स कहता है “यह सन्देह करना व्यर्थ है कि प्रकाश वस्तुत एक प्रकार के द्रव्य की गति का परिणाम है। उसका अनुमान था कि प्रकाश भी तरंगो मे ही इधर उधर फैलता है किन्तु, साथ ही इस बात का भी उसे निश्चय था कि जहा ध्वनि की गति शुन्य मे अवरुद्ध हो जाती है, प्रकाश की नही हो सकती। ये तरगें किस प्रकार गति करती है इसका एक माडल भी ह्यूजेन्स ने प्रस्तुत किया था “किसी कर्कश धातु के एक ही परिमाण के कुछ गोले लीजिए और उन्हे एक सरल रेखा मे व्यवस्थित कर दीजिए इस प्रकार कि वे एक-दूसरे के स्पर्श मे रहे। अब यदि उसी प्रकार के एक और गाले से पास पडे गोले को बजा दिया जाए तो यह हलचल तत्क्षण दूरदराज़ पडे उस पहले गोले में भी खुद-ब-खुद पहुंच जाएगी। हमारी आंख यह भाप भी न पाएगी कि यह सब हो कैसे गया। इसी आदर्श की उसने दो प्रकार से परीक्षा की। कुछ गोलों को तो उसी रेखा मे रहने दिया और कुछ को उसके 90° के कोण पर उसी प्रकार अवलम्बित करके रख दिया गया। किन्तु स्पन्दन की गति दोनो दिशाओं में एक ही थी। पूर्व-पश्चिम की ओर भी और दक्षिण-उत्तर की ओर भी। अर्थात् प्रकाश की दो किरणें एक-दूसरे का उल्लघन करती हुई भी रल-मिल नही जाती। क्रिस्चियन ह्यूजेन्स ने इस प्रकार प्रकाश के सम्बन्ध मे तरंग सिद्धान्त (वेव थ्योरी) (wave theory of light) की स्थापना की और उसके आधार पर प्रकाश के क्षेत्र मे प्रत्यावर्तन (रिफ्लैक्शन), अभ्यावर्तन (रिफ्रेक्शन) , तथा गुणान्तरण (पोलराइजेशन) की व्याख्या भी कर डाली। किन्तु न्यूटन तभी प्रकाश के ही विषय मे अपना कार्पस्क्युलर सिद्धान्त प्रस्तुत कर चुका था, और न्यूटन उस युग का वैज्ञानिक-शिरोमणि था। प्रकाश के इस कण सिद्धान्त की स्थापना यह है कि प्रकाश, प्रकाश के स्रोत से, कण-बाही छोटे-छोटे स्फुलिगों मे निरन्तर फूटता रहता है। विश्व के वैज्ञानिक इसी सिद्धान्त को दो सौ साल आंख मूंद कर मानते चले गए। आखिर मेक्सवेल ने आकर सिद्ध कर दिखाया कि तरंग-सिद्धान्त प्रकाश के क्षेत्र में अधिक उपयुक्त भी है, सरल भी। इसके अनन्तर, फोटो-इलक्ट्रेसिटी के अव्ययन में आइन्स्टाइन और प्लेक ने न्यूटन की कार्पस्व्युलर थ्योरी का पुनरुद्धार किया। आधुनिक प्रवृत्ति कण” और ‘तरग’ की उन दोनो, मूर्त तथा अमूतते, दृष्टियो को समन्वित कर देने की है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new 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