कोंच का इतिहास आर्थिक व सामाजिक दशा Naeem Ahmad, September 5, 2022February 20, 2024 उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कोंच नगर स्थित है, यह जिले में एक तहसील है जोकि जालौन जनपद का दक्षिणी पश्चिमी चौथाई भाग है तथा यह 25°-51° और 26°-15° उत्तरी अक्षांश एवं 78°-56° और 79°18° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसा हुआ है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि कोंच नगर जो कि उरई जिला मुख्यालय से पश्चिम की ओर 28 किमी० की दूरी पर है, 25°-49° उत्तरी अक्षांश तथा 79°10° पूर्वी देशान्तर के मध्य बसा है।कोंच का इतिहासबुन्देलखण्ड के नन्दन वन नाम से विख्यात क्रौंच ऋषि द्वारा बसायी गयी यह कोंच नगरी अत्यन्त प्राचीन है। मेरे विचार से इस स्थान पर क्रोंच पक्षी की विशेष अधिकता थी और क्रोंच पक्षी एक ऐसा पक्षी है जिसके विषय में भविष्य पुराण के मध्यम पर्व के अध्याय 1-2 में वर्णन मिलता है कि इस पक्षी का दर्शन सैकड़ों जन्मों में किये गये पापों को नष्ट करता है। इसको देखकर नमस्कार करने से सैकड़ों ब्रहम् हत्याजित पाप नष्ट हो जाते हैं। उसके पोषण से धन तथा आयु बढ़ती है। क्रोंच पक्षी नारायण का रूप है। स्नान कर यदि प्रतिदिन इसका दर्शन किया जाये तो गृहदोष मिट जाता है।बारह खंभा कोंच – बारह खंभा का इतिहाससम्राट अशोक के समय जब समूचा बुन्देलखण्ड बौद्ध की शरण में चला गया था उस समय भी यह स्थान अपने आप को बौद्ध प्रभाव से बचाये रहा और यह तथ्य इस बात से प्रमाणित है कि यहां पर बौद्ध मतावलम्बी बहुत न्यून है तथा बौद्ध प्रस्तर प्रतिमाएं भी नहीं मिलती हैं।रामानुज संप्रदाय की पीठ, परिचय, प्रवर्तक, नियम व इतिहासब्राह्मण वंशीय पुष्प मित्र के पश्चात् हर्षवर्धन का काल आया। उसके बाद यह क्षेत्र ब्राह्मण राजाओं के हाथ रहा। कोंच ने नाग, शक, गुप्त, हूण, बर्दून, कछुवाहे, कलाचुरि, चन्द्रल, अफगान, मुगल, गौड़ और बुन्देलों के वैभव और पराभव को भली भाँति देखा है। कोंच का इतिहास साक्षी है कि सन 1197-98 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कोंच और निकटवर्ती क्षेत्र हथिया लिया। कुतुबुद्दीन कालपी से होता हुआ कोंच आया। कोंच (झला पटा) मार्ग की ओर स्थित सबसे पुरानी मस्जिद (बड़ी मसजिद) लगभग उसी समय की है। कोंच का प्रशासन उस समय कालपी सूबा के अन्तर्गत था।कोंच का इतिहासमदन कोषकार के अनुसार दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान मलखान में सिरसागढ़़ पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् कोंच तक आ गया था। घायल दिल्ली सम्राट के सैन्य शिविर में एक बारादरी बनाई गई जहां उसने विश्राम किया। यही बारादरी बाराखंबा नाम से विख्यात है।जालौन का इतिहास समाजिक वह आर्थिक स्थितितेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में जब बुन्देलों ने मऊ मेहोनी को अपनी राजधानी बनाया उस समय यह कोंच कुरार के खंगारों के अधीन था जिसे बुन्देलों ने अपने अधिपत्य में ले लिया अकबर के समय में एरच सरकार के अन्तर्गत यहां एक महल निर्मित किया गया जोकि मुसलमानों के कब्जे में रहा तथा ये लोग सीधे अथवा आंशिक रूप से बुन्देलों के अधीन रहे।दौलताबाद का किला – दौलताबाद का इतिहाससत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने इस क्षेत्र पर अपना वर्चस्व बना लिया। औरंगजेब छत्रसाल के उपद्रवों से काफी परेशान हो गया था। उसने छत्रसाल के दमन हेतु पहाड़ सिंह व अमानुल्ला खाँ को भेजा। कूटनीतिज्ञ छत्रसाल ने औरंगजेब के समक्ष उपस्थित होकर उसे एक मुहर भेंट की। उस समय कोंच की देखभाल शाही अधिकारी अब्दुल समद खाँ द्वारा की जा रही थी। औरंगजेब के दरबार से लौटकर छत्रसाल ने पुनः यहा पर उपद्रव शुरू किया लेकिन अ० समद खाँ द्वारा स्थिति नियंत्रण में कर ली गई।छत्रसाल चुप नहीं बैठे और उन्होंने चित्रकूट जाकर हमीद खां मुगल सेनापति को परास्त कर भगा दिया। अब्दुल समद खाँ कोंच में व हमीदखाँ द्वारा चित्रकूट में हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था जोकि छत्रसाल को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और इसी कारण छत्रसाल ने इन दोनों का जमकर विरोध किया।विजयनगर साम्राज्य का इतिहास, स्थापना और पतनसन 1630 ई० में कोंच परगना छत्रसाल के अधिकार में आ गया था। महाराज छत्रसाल ने पेशवा बाजीराव को दिया गया वचन निभाया और अपनी सम्पत्ति का 1/3 भाग उन्हें सौंप दिया और कोंच मराठों के अधिपत्य में आ गया। सन 1838 ई० में कोंच अंग्रेजों के अधिकार में आ गया था। सन 1857 में अप्रैल माह में सर हयूरोज की पलटन ने कोंच पर हमला किया और क्रान्तिकारियों को कोंच छोड़ना पड़ा। कोंच में ही तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई आदि अनेक क्रान्तिकारी पुनः इकत्रित हुए। अतः पुनः सर हयूरोज ने कोंच पर हमला किया। अग्रेजों ने चारों ओर से कोंच को घेर लिया। भयानक युद्ध हुआ। दोनों ओर से काफी लोग मारे गये। कैप्टन इन-फीड की इसी जंग में खोपड़ी खुल गई। अंग्रेजों ने कोंच को पुनः जीत लिया तथा क्रान्तिकारी कालपी की ओर बढ़ गये। कोंच की आर्थिक दशामध्यकाल में कोंच की आर्थिक दशा समुत्रंत थी। यहां का सामान्य उधम कृषि था। कृषि के सहायक उधोग धन्धे भी यहाँ पर चलते थे। कपास के साथ साथ यह कोंच नगरी गेहूँ की भी एक अच्छी मन्डी थी। इस मंडी में गुड तम्बाकू तथा चावल का भी अच्छा व्यापार होता था। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कोंच एक विकासशील नगर के रुप में उभर रहा था। सन 1840 में यह उच्च कोटि का वाणिज्यक केन्द्र था। यहां पर 52 बैकिंग घर थे। 1860 में जब कस्टम लागू हुआ तब उससे यहां का व्यापार प्रभावित हुआ और तभी से इस कोंच नगर का व्यापार कम होने लगा। अलबत्ता इससे पूर्व कोंच के द्वारा दक्षिण भारत में नमक शकर तथा गन्ने के शीरा का उन्मुक व्यापार होता था। अच्छे व्यापार के कारण यहां पर समृद्धि थी। यहां के लोगो में अमन चैन था। इसी से लोगो ने यहां पर अपने अपने विशाल बगीचे बनवाये थे जिससे प्रदूषण तो दूर होता ही था अपितु आमदनी का स्रोत भी खुलता था। आर्थिक समृद्धि से सभी ओर खुशहाली थी।बिजय मंडल किला का इतिहाससामाजिक दशामध्यकाल में कोंच की सामाजिक दशा भी अच्छी थी। कोंच आर्थिक रुप से सम्पन्न था जिसके कारण यहां का जन मानष शांति पूर्वक अपना जीवन यापन करता था। यहां के लोग धर्मभीरू थे तथा धार्मिक कार्यों में विशेष रुचि लेते थे और इसी कारण विभिन्न धार्मिक उत्सवों का आयोजन विशेष उल्लास के साथ यहां पर सम्पन्न होते थे। गणेश उत्सव इन उत्सवों में से एक है। शिक्षा का प्रचार प्रसार व्यक्तिगत स्तर पर ही था। पाठशालाओं का तो आभाव था परन्तु विद्या अध्ययन की रुचि अवश्य समाज में थी जिसके कारण गुरुओं के घरों पर ही विद्या अभ्यास होता था तथा समाज में गुरुजनों का अति सम्माननीय स्थान था। वर्तमान समय में तो यहां पर प्रारम्भिक कक्षाओं से स्नातक तक विद्या अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है। समाज में स्त्रियों का सम्मान होता था तथा उश्रृंखलता का बोलबाला नहीं था। समाज के सभी वर्गों में आपस में सुन्दर ताल मेल था तथा आपसी लडाई झगडे नगण्य थे। भवनो के निर्माण में विभिन्न समकालीन स्थितियां एवं पृष्ठभूमिभवनो के निर्माण पर समाज की समकालीन स्थितियों का विशेष प्रभाव होता है। जब दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान सिरसागढ़ पर विजय प्राप्त के पश्चात् घायल अवस्था में कोंच में आये तब उनके विश्राम हेतु रातों रात एक बारादरी का निर्माण हुआ जोकि आज बारह खम्भा के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर समाज ने बौद्ध धर्म स्वीकार नही किया था जिसके कारण यहां पर बौद्ध भवनों का निर्माण नही हो सका। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बौद्ध स्मारकों के अभाव में यहां पर वैष्णव मन्दिरों को बहुतायत में देखा जा सकता है। यहां लक्ष्मी नारायण मन्दिर, रामलला मन्दिर, गणेश मन्दिर आदि हैं। जब 1684-85 में यहां का सूबेदार अब्दुल समद हिन्दुओं को तलवार की नोंक पर इस्लाम कबूल करने को विवस कर रहा या तो उस समय तमाम हिन्दू मन्दिरों को तोड़ कर उन्हे तकियों मस्जिदों तथा मजारों में परिवर्तित करने का भी दुश्चक्र चल रहा था यहां का जनसामान्य समृद्ध था अतः उसने समाज में आध्यात्मिक चेतना जगाए रखने की दृष्टि से विभिन्न मन्दिरों आदि का निर्माण कराया तथा सुन्दर: मजबूत अपने निवास ग्रहों का भी निर्माण कराया। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to 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