कैला देवी मंदिर करौली राजस्थान – कैला देवी का इतिहास Naeem Ahmad, October 9, 2019March 19, 2024 माँ कैला देवी धाम करौली राजस्थान हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहा कैला देवी मंदिर के प्रति श्रृद्धालुओं की अपार श्रृद्धा है। लोगों का विश्वास है कि कि माता के दरबार में हर मनौती पूरी होती है। यह स्थान शक्तिपीठों में माना जाता है। वर्ष मे एक बार चैत्र मास में यहां मेला भी लगता है। कैला देवी मेले में बडी संख्या में श्रृद्धालु आते है। अपने इस लेख में हम कैला देवी का इतिहास, माँ कैला देवी की कहानी, कैला देवी टेंपल के दर्शन के साथ साथ कैला देवी की उत्पत्ति कैसे हुई आदि सभी सवालों के बारें में विस्तार से जानेंगे। माँँ कैला देवी की कथा – कैलादेवी माता की कहानीबादशाह अकबर के समय की बात है। काफी प्रयत्नों के बावजूद भी बादशाह अकबर दौलताबाद पर अधिकार नहीं कर सका था। हर बार वह आक्रमण करता और हर बार असफल रहता था। बादशाह अकबर निराश हो चुका था। इस विषय में ज्योतिषियों की भी राय ली गई, मंत्रीगणों में काफी चिंतन हुआ, उन्होंने सम्मति दी की दक्षिण पर विजय, बिना यदुवंशी राजपूतों की सहायता के नहीं हो सकती है।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानचंबल के दक्षिण की ओर उरगिर पहाड़ पर यदुवंशी राजा चंद्रसेन राज्य करता था। अकबर स्वयं वहां जा पहुंचा। राजा चंद्रसेन ने शानदार आदर सत्कार किया। जब अकबर ने अपनी योजना राजा के सामने रखी तो वह सहायता के लिए सहर्ष तैयार हो गया। और अपने पुत्र गोपालदास को यदुवंशी सेना सहित अकबर को सौंप दिया। गोपालदास को चलते चलते रात हो गई। सेना ने घने जंगल में एक तालाब के किनारे पड़ाव डाल दिया। युवराज लेटे लेटे युद्ध की योजना बना रहे थे। कि उन्हें शंख नगाडे आदि की ध्वनि सुनाई दी, लोग जोर जोर से भजन गा रहे थे। युवराज उस ओर चल दिए, वहा पहुंचकर देखा कि कुछ लोग, देवी की प्रतिमा के सामने जोर जोर से कैला देवी के भजन गा रहे थे। मुख्य पुजारी थे केदागिरि गोस्वामी। भजन समाप्त हुआ, लोग अपने अपने मनोरथ सफल होने की भीख मांगने लगे। युवराज ने भी दक्षिण विजय की मनौती मांग ली।ब्रजराज बिहारी जी मन्दिर जयपुर राजस्थानदेवी ने वास्तव में युवराज की प्रार्थना को स्वीकार किया। यदुवंशी सेना जब दौलताबाद से लौटी तो उसके हाथों में विजय का पताका फहरा रहा था। बादशाह अकबर बेहद खुश हुआ और युवराज गोपालदास को सिर्फ पंच हजारी मनसबदार का ही खिताब नहीं बख्शा बल्कि चंबल का कई किलोमीटर क्षेत्र भी बख्श दिया।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानअब तक तो केवल थोडे से ग्रामीण ही विश्वास करते थे कि देवी चमत्कारी है। अब युवराज भी करने लगे और उस दिन से आज तक कैला देवी को करौली नरेश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते चले आएं है। जिस देवी देवता को राजा पूजने लगता था। प्रजा की भी श्रृद्धा उसी देवी देवता में हो जाती थी। इसमें प्रजा गौरव का अनुभव करती थी। अतः कैलादेवी की प्रसिद्धि दिन ब दिन बढने लगी और दूर दूर से लोग दर्शन के लिए आने लगे।सवाई मानसिंह संग्रहालय जयपुर राजस्थानलगभग दौ सौ वर्ष बाद सन् 1785 में देवी ने करौली नरेश को चमत्कार दिखलाया। उस समय महाराजा गोपाल सिंह राज्य करते थे। चंबल के पार उनके विरुद्ध विद्रोह खड़ा हो गया था। उसे दबाने के लिए स्वयं राजा को जाना पड़ा। वे देवी के सामने जा खडे हुए बोले– माँ तू हमारे कुल की विजश्री है, रणक्षेत्र मे मेरे साथ रहना। और जब महाराजा गोपाल सिंह लौटे तो विजय का डंका बजाते हुए लौटे। युद्ध से लौटकर उन्होंने देवी के नए भवन की नीवं डाली। यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाओं का निर्माण कराया। तभी से करौली के प्रत्येक नरेश कैला देवी के मंदिर एवं आसपास के क्षेत्र को सजाते सवांरते आए है।कैला देवी मंदिर फोटोलोग इतनी संख्या मे आने लगे कि धीरे धीरे मेले का रूप ले लिया। सन् 1943 के होते होते तो भरतपुर, आगरा, जयपुर, ग्वालियर आदि स्थानों से लोग माता के दर्शन के लिए आने लगे। चैत्र कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी प्रारंभ भी नहीं हो पाती कि कैला देवी की घाटी जहाँ देवी का भव्य मंदिर है। हजारों लाखों भक्तों के कंठ स्वरों से गूंज उठती है। नर, नारी, बालक, युवक और वृद्ध आत्म विभोर हो नाच गा उठते है। मंद मंद और धीमी लय के साथ गाए जाने वाले गीत जब घोष के साथ तीव्र लय एवं तारसप्तक के स्वरों से गाये जाने लगते है।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं कैला देवी की प्रतिमा कब बनी और किसने बनवाई कोई निश्चित मत नहीं है। किवदंतियां अनेक है। एक किवदंती के अनुसार यदुवंशी होने के कारण करौली राजवंश का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से जोडा जाता है। कहते है कि जब कंस ने वासुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया था। वही देवकी ने एक कन्या को जन्म दिया था। कंस ने जब उस नवजात कन्या को मार डालना चाहा तो वह आकाश की ओर उड़ गई। यह योग जब भूमंडल पर अवतरित हुई तो भिन्न भिन्न नामों से पूजी जाने लगी। यही योग माया करौली के त्रिकूट पर्वत पर कैलादेवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। शायद यही कारण है कि करौली के यदुवंशी शासक इस देवी को अपनी कुल देवी के रूप में पूजते चले आएं है।हर्षनाथ मंदिर सीकर राजस्थान – जीणमाता मंदिर सीकर राजस्थानएक ओर अन्य किवदंती के अनुसार मान्यता है कि कैला देवी की प्रतिमा का निर्माण राघवदास नामक राजा ने करवाया था। प्राचीन समय में त्रिकूट पर्वत भयानक जंगलों से घिरा हुआ था। इस जंगल में नरकासुर नामक राक्षस रहता था। उसके आतंक से आसपास के सारे लोग परेशान थे। कहते है कि देवी ने काली का रूप धारण कर नरकासुर का वध इसी जंगल में किया था। तभी से आसपास के लोग देवी को मानने लगे। और मीणा एवं गूजरों की यह ईष्ट देवी बन गई।ऋषभदेव मंदिर उदयपुर – केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थानकैला देवी का इतिहास कुछ भी रहा हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस क्षेत्र के लोगों को जितनी श्रृद्धा कैलादेवी मे है। अन्य देवी देवताओं में नहीं है। ऊपर से राजाश्रय मिलने के कारण देवी की प्रतिमा आसपास के प्रांतों में भी प्रसिद्ध हो गई। करौली के राज सिंहासन पर जब महाराजा भंवरपाल बैठे तो उन्होंने यात्रियों की सुख सुविधाओं की ओर विशेष ध्यान दिया। सड़कों, पुलों और धर्मशालाओं का निर्माण उन्होंने कराया।हर्षनाथ मंदिर सीकर राजस्थान – जीणमाता मंदिर सीकर राजस्थानप्रत्येक वर्ष चैत्र मास की शुक्ला अष्टमी को शोभा यात्रा निकलती थी। स्वंय महाराज उसमें शामिल होते थे। इस शोभा यात्रा में सजे धजे सेना के वीर, हाथी, रथ,घोड़े आदि सभी होते थे। यात्रियों के लिए यह शोभा यात्रा एक विशेष आकर्षण बन गई थी। इस क्षेत्र में ज्यो ज्यो सुविधाएं बढ़ने लगी त्यों त्यों यात्रियों की संख्या भी बढ़ने लगी। आज भी कैला देवी मेला में लाखों लोग पहुंचते है। कैला देवी के दर्शन करते है, मनौती मनाते है। और प्रसन्न हो चले जाते है।नाथ पंथ, सम्प्रदाय की विशेषता, परिचय और इतिहासकैला देवी की पूजा अन्य अनेक देवियों की तरह पशु की बलि द्वारा नही की जाती। किंतु कैलादेवी के पास ही प्रतिष्ठित एक अन्य देवी के भोग के लिए किसी समय यहां एक ही दिन में हजारों पशुओं की बलि चढाई जाती थी। किंतु अब आर्य समाज एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले समाजों द्वारा विरोध करने के कारण बलि की संख्या काफी समय पहले समाप्त हो गई है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएँ। और अपने बहुमूल्य सुझाव भी जरूर दे। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है। प्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थल है। जिसके बारे में आप पर्यटकों को बताना चाहते है। तो आप अपना लेख कम से कम 300 शब्दों में हमारे submit a post संस्करण में जाकर लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान के साथ अपने इस प्लेटफार्म पर शामिल करेंगे राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new 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