कुम्भज ऋषि कौन थे – कुम्भज ऋषि आश्रम जालौन Naeem Ahmad, August 29, 2022February 24, 2024 उत्तर प्रदेश के जनपद जालौन की कालपी तहसील के अन्तर्गत उरई से उत्तर – पूर्व की ओर 32 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कुरहना बसा हुआ है। इस ग्राम के विषय में यह जनश्रुति है कि कुम्भज ऋषि का आश्रम यहीं पर था।कुम्भज ऋषि का इतिहासमहाभारत में कुम्भज ऋषि का वर्णन मिलता है। कुम्भज और वशिष्ट मुनि दोनो भाई भाई थे तथा मित्रावरूण की संतान थे। इनके विषय में कथानक प्रसिद्ध है कि भगवान शकर अपनी शक्ति सती के साथ त्रेतायुग में उनके आश्रम में गये थे। जहां पर ऋषि द्वारा इनको अखिलेश्वर जानकर इनकी पूजा की गयी। यह वृतांत रामचरित मानस में इस प्रकार वर्णित है:–एक बार त्रेतायुग माहीं , सम्भु गये कुम्मण ऋषि पाहीं । संग सती जग जननि भवानी, पूजे ऋषि अखिलेश्वर जानी।इन कुम्भज ऋषि के बारे में यह पौराणिक कथन है कि ये विन्ध्याचल पर्वत को पार कर दक्षिण – भारत की ओर गये थे और वहीं पर अगत्स्य ऋषि नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्हीं अगत्स्य मुनि ने समुद्र के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने हेतु उसके जल को अपने पेट में समाहित कर लिया था। इसलिए इनको अगत्स्य मुनि के नाम से जाना गया। रामचरित मानस में यह वर्णन दृष्टव्य है कि-&, कहँँ कुंभज कँँह सिन्धु अपारा। सोषेउ सुजसु सकल संसारा ॥ रवि मंडल देखत लघु लागा। उदय तासु तिभुवन तम भागा ॥ अस्तु यह स्पष्ट है कि कुम्भज ऋषि और अगस्त्य अलग अलग नहीं थे वरन् दोनों एक ही थे। मान्यता के अनुरूप कुरहना में ही इनका आश्रम था। जहाँ पर उन्होंने या तो अपना चर्तुमास मास व्यतीत किया हो अथवा अपनी तपस्थली बनाया होगा। इस ग्राम में दो प्राचीन मंदिर है जो कि शंकर जी एवं पार्वती जी का मंदिर है। यहीं स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा श्वेत संगमरमर की कुम्भज ऋषि की मूर्ति स्थापित की गई है। कुम्भज ऋषि का मंदिर का जीर्णोाद्वार अभी निकट में कराया गया है जबकि इनके सामने ही शंकर जी तथा पार्वती जी का मंदिर है , जिनका जीर्णोद्वार अभी नहीं हुआ है।कुम्भज ऋषिकुम्भज ऋषि का मंदिरशंकर जी का मंदिर अन्दर से वर्गाकार है। अष्टभुजी आधार पर अर्द्धगोल गुम्बद बना है जिसके ऊपर मध्य में कमल दल का अंकन है और उस कमल दल में कलश स्थापित है। मंदिर की वर्गाकार चारों भुजाओं के मध्य में एक एक मेहराब युक्त दरवाजा बना हुआ है जिसके दोनों सिरों पर दो दो आले अंकित है। मंदिर लगभग 25 फुट ऊँची है। वर्ग की प्रत्येक भुजा 14 फुट लम्बी है। दीवार दो फुट चौड़ी है। तथा इसका दरवाजा 6 फुट ऊँचा एवं 2.5 फुट चौड़ा है।पराशर ऋषि का आश्रम व मंदिर – पराशर ऋषि का जीवन परिचयइस मंदिर की दीवारों पर चूने का प्लास्टर है। मंदिर के कोने में मेहराब का अंकन है और ऊपर 8 आले बने हुए है। छत पर बेलबूटों का अंलकरण है। इसमें प्रयुक्त ईटें हल्की एवं मोटी हैं। यह मंदिर पूर्वा भिमुख है।संत तुकाराम का जीवन परिचय और जन्मशिवलिंग – भगवान शंकर का शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर से बना हुआ है। जिसके बारे में यह मान्यता है कि इसकी गहराई के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है परन्तु वर्तमान अर्घे में यह गोल लिंग जिसका व्यास 11.5 फुट तथा ऊँचाई 1 फुट स्थापित दिखता है।पार्वती मंदिर – यह मंदिर भी वर्गाकार है। जिसपर अष्टभुजी आकार की अर्द्धगोल छत बनी है जिसके मध्य में कमल दल का अंकन है। इसमें प्रयुक्त ईटें पतली परन्तु अत्यन्त हल्की है। चूने के प्लास्टर पर बेलबूटों का बाहर की ओर से अंलकरण स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। पार्वती जी का मंदिर एक चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। जो कि जमीन से लगभग 3 फुट ऊँचा है। मंदिर के वर्ग की भुजा 12 फुट लम्बी है। दरवाजा 5 फुट 3 इच ऊँचा व 2 फुट 6 इंच चौड़ा है। दीवार की चौड़ाई मय प्लास्टर 3 फुट है।संत सदना जी का परिचयदोनों मंदिर अत्यन्त प्राचीन है एवं उनको देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि ये मंदिर लगभग 16 वीं , 17 वीं शताब्दी के आस पास के होने चाहिये। इसके सामने प्राचीन बजरी पत्थर के कुछ खण्ड भी पड़े हैं तथा एक चबुतरे पर कुछ पाषाण प्रतिमाएं भी पड़ी है। खण्डित पाषाण प्रतिमाओं को देखने से यह आभास होता है कि यह प्रतिमा भी 10वीं शताब्दी के आस पास की होनी चाहिये। मंदिरों तथा खण्डित मूर्तियों को देखने से यह निष्कर्ष निकालना जा सकता है कि यह स्थान प्राचीन स्थान रहा होगा। किन्तु मूर्तियों का मूर्ति शिल्प हमें 9वीं, 10वीं, शताब्दी के काल में ले जाता है। इसके पश्चात दैवी आपदाओं विध्वंशकारी प्रवृतियों के कारण ये नेस्तनाबूद हुए होंगे परन्तु जन आस्थाओं का सम्बल पाकर पुनः 16वी, 17वी, शताब्दी में जीर्णोद्वार हुए होगे और आज वर्तमान में पुनः जीर्णोद्वार की उत्कंठा अपने मन में संजोये समाज की आस्थाओं का परीक्षण कर रहे है। ब्रहमांड पुराण में वर्णित चतुर्थ अध्याय के अन्तर्गत कालपी महात्मा में भी इस क्षेत्र का उल्लेख हुआ है।संत हरिदास का जीवन परिचय – निरंजनीयहाँ स्थानीय स्तर पर शंकर जी के मंदिर के विषय में यह लोकोप्ति है कि आज से लगभग 40-50 वर्ष पूर्व कुछ अपराधिक प्रवृत्तियों के लोगों को जो भगवान शंकर के शिवलिंग को उखाड़ कर उसके नीचे दबे- हुए धन की प्राप्ति की इच्छा रखते थे, उन्हें यहाँ पर खींच लाई और इन अपराधिक प्रवृत्तियों वाले व्यक्तियों द्वारा पिंडी की खुदाई की गयी तथा उसमें उन्हें न तो कोई छोर मिला और न ही धन की प्राप्ति हुई बल्कि उस समय भगवान शंकर का वाहन एक वृषभ वहाँ पर आ गया और इन बदमाशों को वहाँ से खदेड़ दिया। तब से यहाँ पर इस प्रकार की घटना की पुन:वृत्ति नहीं हुई। कुल मिलाकर कुम्भज ऋषि का यह क्षेत्र अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल भारत के प्रमुख संत उत्तर प्रदेश तीर्थ स्थलउत्तर प्रदेश पर्यटन