काली हवेली कालपी – क्रांतिकारी मीर कादिर की हवेली Naeem Ahmad, August 26, 2022February 25, 2024 उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के ऐतिहासिक कालपी नगर के महमूद मुहल्ले में काली हवेली स्थित है। यह महमूदपुरा मुहल्ला कालपी के प्राचीन 52 मुहल्लों में से एक है। यह हवेली अब वर्तमान में इमामबाड़ा के रूप में उपयोग में लाई जा रही है।काली हवेली का इतिहासयह काली हवेली नसीरूद्दीन वल्द अहमद बख्स के नाम नगर पालिका कालपी के कागजातों में दर्ज है। यह हवेली शहीदों की हवेली भी कहलाती है। डा०सैय्यद रौनक अली हाशमी के अनुसार मीर कादिर अली बरजोर सिंह मगरौल तथा काजी रौशन अली हमीरपुर आदि सन 1857 ई० में नाना साहब पेशवा की ओर से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे जिसके कारण इन सबको काला पानी की सजा हुई थी। मीर कादिर अली इस हवेली के मुखिया थे अतः उनकी सजा के बाद इस हवेली को बागी हवेली करार दे दिया गया और देशभक्तों ने हवेली को शहीदों की हवेली नाम दिया।सुभानगुंडा की हवेली – हजरत शेख अहमद नागौरी दरगाहइस हवेली को आधी हवेली के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी लोकोप्ति है कि इस हवेली का काम होते होते रूक गया था जिससे इसका निर्माण पूर्ण न हो सका। आज भी छत के ऊपर चूने से भरे उल्टे तसलों के निशान मौजूद है जो इसके अधूरे कार्य करने का प्रमाण है। शायद इसी कारण इसे आधी हवेली के नाम से ख्याति मिली है। इस हवेली में इमाम बाड़ा जैसी जगह है जहां पर अलम आदि रखे जाते है। आज भी काली हवेली के अलम उठाये जाते है।काली हवेली कालपीकाली हवेली कालपी जालौनइस काली हवेली के जो भग्नावशेष है उनको देखने से यह ज्ञात होता है कि यह हवेली अंग्रेजी के अक्षर एल के आकार में बनी है। सम्पूर्ण हवेली लगभग 100 फीट के क्षेत्र में बनी है। हवेली के पीछे की दीवार लम्बी व ऊंची है जिसमें अलग अलग कमरे है।चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहासप्रत्येक पंक्ति में कई कमरे अंकित है। आले की दो- दो पक्तियाँ दृष्टव्य है। आले का अंकन विशेष प्रकार का है। एक कमरे में पाँच बड़े आले है। उनके बगल में दो छोटे – छोटे आले है जो कि डेढ फुट गहरे है। कमरे की छत गोल झट न होकर पक्की सीधी है। उसको पतली ईटों व चूना के गारे से बनाया गया है जिसकी मोटाई लगभग डेढ फुट है। पूरी हवेली की दीवारें पत्थर तथा चूने कीबनी है । दीवारें ढाई फुट चौड़ी है। भीतरी कमरे के बाद बाहर ऊपरी छत से ढका बरांडा है जोकि बाहर की ओर 12 पहलुओं के खम्भों पर आधारित है। काली हवेली कभी चार मंजिल की रही होगी। 4 मंजिल अवशेष अभी दृष्टव्य है। प्रत्येक मंजिल में पहुँचने के लिए सीढ़ी की व्यवस्था थी।गणेश मंदिर कालपी – गणेश मंदिर का इतिहासकाली हवेली में नक्कासीदार लाल पत्थरों का बहुतायत में उपयोग हुआ है। इस हवेली में एल की छोटी लाईन की दशा में दीवाने आम रहा होगा। जिस पर लाल बलुआ पत्थर से ही तीन बड़े दरवाजे मेहराबदार बने है। मेहराबों में उत्कृष्ट कलात्मक पच्चीकारी देखी जा सकती है। बेलबूटों से अलंकृत यह से नक्काशी बड़ी सुन्दर प्रतीत होती है। इस नक्काशी में कमल के फूलों का अत्यन्त सुन्दर उपयोग हुआ है। मेहराब के अन्दर भी बेलबूटों की अत्यधिक सुन्दर कारीगरी है जोकि देखते ही बनती है पत्थर को आपस में लोहे की क्लिप द्वारा जोड़ा गया है। पूरी हवेली में पानी के निकास की सुन्दर व्यवस्था है। अतः काली हवेली वातानुकूलित रही होगी जिसके लिए पूरी इमारत में तमाम रोशनदान बने है।रोपड़ गुरू मंदिर इटौरा कालपी – श्री रोपड़ गुरु मंदिर का इतिहासदीवाने आम की छत पर निसान अस्पष्ट है। इससे यह ज्ञात होता है कि उसके ऊपर छत नहीं बन पाई बाकी पूरी हवेली में छत बनी हुई है। कुछ स्थान पर छत के ऊपर पुनः लाल बलुआ पत्थर के बेलबूटे युक्त स्तम्भों पर आधारित मेहराब युक्त द्वार बने है। काली हवेली की वास्तुशिल्प देखने से यह ज्ञात होता है कि हवेली मुस्लिम स्थापत्य के अनुरूप नहीं बनी है। इसमे पत्थर से की गई नक्काशी बेलबूटे एवं कमल पुष्पों का अंकन विशेष रूप से इस बात को स्पष्ट करता है कि इस हवेली का निर्माण हिन्दू स्थापत्य के अनुकूल हुआ होगा। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के स्वतंत्रता सेनानी उत्तर प्रदेश पर्यटन