कालहस्ती मंदिर का इतिहास, कालहस्ती मंदिर तिरूपति की कथा Naeem Ahmad, December 6, 2018March 6, 2024 श्री कालाहस्ती मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरूपति शहर के पास स्थित कालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। दक्षिण भारत में भगवान शिव के जो पंचतत्व लिंग माने जाते है, उनमें कालहस्ती वायुतत्व लिंग है। यहां 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ भी है। यहां देवी सती का दक्षिण स्कंध गिरा था। श्री कालहस्ती मंदिर स्वर्णमुखी नदी के तट पर है। इस नदी में जल कम रहता है। नदी के पार तट पर ही यह मंदिर है।कालहस्ती मंदिर की कथा – कालहस्ती मंदिर की कहानीकहते है कि नील और फणेश नाम के दो भील लड़के थे। उन्होंने शिकार खेलते समय वन में एक पहाड़ी पर भगवान शिव की लिंग मूर्ति देखी। नील उस मूर्ति की रक्षा के लिए वही रूक गया और फणीश लौट आया।घोड़ाखाल मंदिर या सैनिक स्कूल घंटी वाला मंदिरनील ने पूरी रात मूर्ति का पहरा इसलिए दिया ताकि कोई जंगली पशु उसे नष्ट न कर दे। सुबह वह वन में चला गया। दोपहर के समय जब वह लौटा तो उसके एक हाथ में धनुष, दूसरें में भुना हुआ मांस, मस्तक के केशो में कुछ फूल तथा मुंह में जल भरा हुआ था। उसके हाथ खाली नहीं थे, इसलिए उसने मुख के जल से कुल्ला करके भगवान को स्नान कराया। पैर से मूर्ति पर चढ़े पुराने फूल व पत्ते हटाएं। बालों में छिपाए फूल मूर्ति पर गिराए तथा भुने हुए मांस का टुकडा भोग लगाने के लिए रख दिया।तिरूपति बालाजी दर्शन – तिरुपति बालाजी यात्रादूसरे दिन नील जब जंगल गया तो वहां कुछ पुजारी आए। उन्होंने मंदिर को मांस के टूकड़ों से दूषित देखा। उन्होंने मंदिर की साफ सफाई की तथा वहां से चले गए। इसके बाद यह रोज का क्रम बन गया। नील रोज जंगल से यह सब सामग्री लाकर चढ़ाता और पुजारी उसे साफ कर जाते। एक दिन पुजारी एक स्थान पर छिप गए ताकि उस व्यक्ति का पता लगा सके, जो रोज रोज मंदिर को दूषित कर जाता है।अधिक पैसा कमाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करेंउस दिन नील जब जंगल से लौटा तो उसे मूर्ति में भगवान के नेत्र दिखाई दिए। एक नेत्र से खून बह रहा था। नील ने समझा कि भगवान को किसी ने चोट पहुचाई है। वह धनुष पर बाण चढ़ाकर उस चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को ढूंढने लगा। जब उसे कोई नही मिला तो वह कई प्रकार की जड़ी बूटियां ले आया तथा वह भगवान की आंख का उपचार करने लगा।जगन्नाथ पुरी धाम की यात्रा – जगन्नाथ पुरी का महत्व और प्रसिद्ध मंदिरपरंतु रक्त धारा बंद न हुई। तभी उसे अपने बुजुर्गों की एक बात याद आई, “मनुष्य के घाव पर मनुष्य का ताजा चमड़ा लगा देने से घाव शीघ्र भर जाता है”। नील ने बिना हिचक बाण की नोक घुसाकर अपनी एक आंख निकाली तथा उसे भगवान के घायल नेत्र पर रख दिया।कालहस्ती मंदिर के सुंदर दृश्यमूर्ति के नेत्र से रक्त बहना तत्काल बंद हो गया। छिपे हुए पुजारियों ने जब यह चमत्कार देखा तो वह दंग रह गए। तभी मूर्ति की दूसरी आंख से रक्त धारा बहने लगी। नील ने मूर्ति की उस आंख पर अपने पैर का अंगूठा टिकाया ताकि अंधा होने के बाद वह टटोलकर उस स्थान को ढ़ूंढ़ सके। इसके बाद उसने अपना दूसरा नेत्र निकाला तथा उसे मूर्ति की दूसरी आंख पर लगा दिया।तिरूवनंतपुरम के पर्यटन स्थल – तिरूवनंतपुरम के टॉप 10 दर्शनीय स्थलतभी वह स्थान अलौकिक प्रकाश से भर गया। भगवान शिव प्रकट हो गए, तथा उन्होंने नील का हाथ पकड़ लिया। वे नील को अपने साथ शिवलोक ले गए। नील का नाम उसी समय से कण्णप्प (तमिल में कण्ण नेत्र को कहते है) पड़ गया। पुजारियों ने भी भगवान तथा भोले भक्त के दर्शन किए तथा अपने जीवन को सार्थक किया।दांदेली कर्नाटक में अभ्यारण्य, ट्रैकिंग, राफ्टिंग, सहासी गतिविधियों का स्थानकण्णप्प की प्रशंसा में आदि शंकराचार्य जी ने एक श्लोक में लिखा है—-” रास्ते में ठुकराई हुई पादुका ही भगवान शंकर के अंग झाड़ने की कूची बन गई। आममन (कुल्ले) का जल ही भगवान का दिव्याभिषेक जल हो गया और मांस ही नैवेद्य बन गया। अहो! भक्ति क्या नहीं कर सकती? इसके प्रभाव से एक जंगली भील भी भक्तबतंस (भक्त श्रेष्ठ) बन गया”।।कालहस्ती दर्शन – कालहस्ती के दर्शनीय स्थल कैलाशगिरीरेलवे स्टेशन से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्वर्णमुखी नदी है। नदी तट के पास ही एक पहाड़ी है। इसे ही कैलाशगिरी कहते है। नंदीश्वर ने जो कैलाश के तीन शिखर पृथ्वी पर स्थापित किए, उन्हीं में से यह एक है। पहाड़ी के नीचे उससे सटा हुआ कालहस्तीश्वर का विशाल मंदिर है। कालहस्ती मंदिरमंदिर में मुख्य स्थान पर भगवान शिव की लिंग रूप मूर्ति है। यही वायुतत्व लिंग है। इसलिए पुजारी भी इसका स्पर्श नहीं करते। मूर्ति के पास स्वर्णपटट स्थापित है, उसी पर माला इत्यादि चढ़ाकर पूजा की जाती है। इस मूर्ति में मकड़ी, हाथी तथा सर्प के दांतों के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते है। कहा जाता है कि सबसे पहले मकड़ी , हाथी तथा सर्प ने भगवान शिव की आराधना की थी। उनके नाम पर ही श्री कालहस्तीश्वर नाम पड़ा है। श्री का अर्थ है मकड़ी, काल का अर्थ सर्प तथा हस्ती का अर्थ है हाथी। मंदिर में भगवती पार्वती की अलग मूर्ति है।मणिगण्णियगट्टममंदिर के अग्नि कोण में चट्टान काट काटकर बनाया हुआ एक मंडप है, जिसका निम मणिगण्णियगट्टम है। इस नाम की एक भक्ता हुई है, जिनके कान में भगवान शिव ने तारकमंत्र फूंका था। उसी भक्ता के नाम पर यह मंदिर विख्यात हैं।कण्णप्पेश्वरमंदिर के पास एक पहाडी है। कहा जाता है, कि इसी पहाड़ी पर अर्जुन ने तपस्या करके भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था। यहां ऊपर जो शिवलिंग है, वह अर्जुन द्वारा प्रतिष्ठित है। पीछे कण्णप्प ने उसका पूजन किया। तभी इसका नाम कण्णप्पेश्वर हुआ। वही एक छोटे से मंदिर में कण्णप्प भील की मूर्ति है।पवित्र सरोवरपहाड़ी से उतरते समय एक सरोवर आता है। पहाड़ी से वह सरोवर दिखाई दे जाता है। कहा जाता है कि कण्णप्प शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए वहीं से मुख में जल भरकर ले जाता था। यह सरोवर एक पवित्र तीर्थ माना जाता हैं।दुर्गा मंदिरकण्णप्प पहाड़ी के ठीक सामने बस्ती के दूसरे सिरे पर एक और पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर दुर्गा मंदिर है। यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है, परंतु बहुत कम लोग इस पहाड़ी पर जाते है। दुर्गा मंदिर प्रायः उपेक्षित पड़ा रहता है। भारत के प्रमुख तीर्थों पर आधारित हमारें यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”6235″] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल आंध्रप्रदेश पर्यटनतीर्थ स्थलभारत के प्रमुख मंदिरभारत के प्रसिद्ध शिव मंदिर