कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी Naeem Ahmad, July 12, 2021March 11, 2023 कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई से कालपी की दूरी 35 किलोमीटर है, तथा यहाँ रेलवे स्टेशन भी है। यह स्थल जालौन राठ हमीरपुर से सडक मार्ग पर जुड़ा हुआ है तथा यह यमुना नदी के तट पर बसा है। कालपी का इतिहास प्रचलित जन कथाओं के अनुसार इस नगर के संस्थापक कालिब देव थे। इस नगर का अस्तित्व प्राचीन काल से था। फरिस्ता के अनुसार कन्नौज के राजा वासुदेव ने इस नगर को बसाया था। जनकथाओं के अनुसार कालपी का महत्व पौराणिक काल से रहा है। यही पर कछ दूरी पर व्यास टीला और नरसिंह टीला नामक दो स्थान है, कहते है कि महार्षि व्यास यहाँ रहकर तपस्या किया करते थे, और विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण करके यहाँ पर प्रहलाद के प्राणों की रक्षा की थी प्रहलाद हिरणा कश्यप का पुत्र था। ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। यहाँ चन्देलो का बनवाया एक दुर्ग है इस स्थल पर सन् 1196 का एक अभिलेख कुतुबुद्दीन ऐबक का उपलब्ध हुआ है। जिसने यह दुर्ग चन्देलो से जीत लिया था। बुन्देला शासकों का सम्पर्क तेरहवी शताब्दी में कुतुबुद्धीन के वंशजों से हुआ था। जब दिल्ली में फिरोजशाह तुगलक का शासन था। उस समय सुल्तान ने यहाँ एक प्रशासक नियुक्त किया। सन् 1398-99 में दिल्ली में तैमूर लंग ने आक्रमण किया। उस समय कालपी के सूबेदार मुहम्मद खाँ ने अपने को यहाँ का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। धीरे-धीरे यह शहर राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता गया। जौनपुर के शासक शर्की वंश के नरेश ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। चौरासी खंभा कालपी का किलायह नगर बहुत समय तक इब्राहीम शाह शर्की के अधीन बना रहा सन् 1407 से लेकर 1442 तक यह नगर दौलतरखाँ के अधीन था। सन् 1526 में सुल्तान मुहम्मद खां का पुत्र कादिर खाँ यहाँ का सूबेदार बना, 6 वर्ष पश्चात यह क्षेत्र मालवा के सूबेदार हुसंगशाह के अधिकार में आ गया, जब दिल्ली का सुल्तान बहलोल लोदी बना। उसने कालपी पर अधिकार कर लिया। सन् 1488 में यह क्षेत्र आजम हिमायूं के अधिकार में दे दिया गया, यह बहलोल लोदी का नाती था। सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में छत्रसाल बुन्देला ने इसे अपने अधिकार में कर लिया तथा इसे प्रसिद्ध मराठा सरदार गोविन्द बलदार खेर को दे दिया। यह मराठा सरदार सन् 1761 में पानीपत के युद्ध में मारा गया। उसने अपने पुत्र गंगाधर गोविन्द को यहाँ का शासक नियुक्ति किया। सन् 1798 में कालपी अंग्रेजों के हाथ में आ गया, किन्तु एक संधि के अनुसार नाना गोविन्दराय यहाँ के प्रशासक बने रहे तथा उनके अधिकार में यह क्षेत्र सन् 1857 तक बना रहा। सन् 1857 की क्रान्ति में राव साहब, तात्याटोपे और महारानी झाँसी ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्ति की जब यह क्रान्ति विफल हो गयी उस समय यह क्षेत्र अंग्रेजों के हाथ में आ गया, तथा सन् 1947 तक उन्हीं के अधिकार में बना रहा। कालपी का किला व कालपी के दर्शनीय स्थलकालपी के किले के पास कई दरगाहें मिलती है, इसमें एक मजार साहब जफर जान-जानी चोर की है तथा दूसरी ओर बीबी और बहादुर की है। लोग इस स्थल को चौरासी गुम्बद के नाम से पुकारते है यहाँ पर लोदी वंश के शासक लोदीशाह बादशाह की एक मजार है। जिसे कुछ लोग सिकन्दर की लोदी की मजार मानते है। किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि सिकन्दर लोदी की मृत्यु आगरा के समीप हुई और उसका स्मारक दिल्ली में बनाया गया। चौरासी खम्भा अनेक इमारतों का समूह है जो एक दूसरे से मिले हुए बने है। इसमें आठ पंक्तियों में बन्द इमारते है और सात पंक्तियों में खुले स्थल है। कचल मिलाकर 84 स्तम्भ वहाँ है। उसकी ऊँचाई लगभग 60 फुट ही तथा खंभों के आधार पर ही इसे चौरासी खाम्भा के नाम से सम्बोधित किया गया है। चौरासी खंभा के स्तम्भों की बनावट बहुत ही सुन्दर है तथा इसके चारो और चार कोने है, तथा बीच में आने जाने का रास्ता है। यहाँ पर कुछ मकबरें बने हुये है, तथा आगे बढ़कर किले के समीप दुर्ग का प्रवेश द्वार उपलब्ध होता है। इस प्रवेश द्वार को श्री दरवाजा के नाम से जाना जाता है। युद्ध की दृष्टि से यह द्वार महत्वपूर्ण था। कहते है कि कालपी का अन्तिम हिन्दू राजा मुस्लिमों से पराजित हुआ और यहीं वह मारा गया। इस दरवाजे के समीप उसका सिर दफन किया गया था। इसके पूर्वी भाग में बडा बाजार नामक स्थल है। वर्तमान समय में कालपी फोर्ट के भग्नावशेष बचे है। दुर्ग के नीचे यमुना नदी का घाट है। तथा इसी के समीप मराठा शासको की बनवाईं हुईं इमारते देखने को मिलती है, तथा इसी के समीप थोडा नीचे चलने पर एक मन्दिर उपलब्ध होता है, तथा यही से थोडी दूर चलने पर दुर्ग का परिकोटा दिखलायी देता है, और परकोटे से लगे हुए अनेक सैनिको की कबरे है। जिनकी मृत्यु 1857-58 में हुई थी। यही गणेश गंज मुहाल में एक ऊँची मीनार मिलती है जिसे लंका के नाम से जाना जाता है। इस का निर्माण मथुरा प्रसाद ने कराया था। यहाँ पर अनेक दृश्य राम-रावण के बने हुए है। कालपी का किला में निम्नलिखित स्थल दर्शनीय है। 1. दुर्ग अवशेष 2. प्रवेशद्दार (श्री दरवाजा) 3. चोरासी खम्भा 4. सिकन्दरशाह की मजार हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले