कर्पूरी देवी कौन थी, क्या आप राजमाता कर्पूरी के बारे मे जानते है Naeem Ahmad, December 2, 2018 राजस्थान में एक शहर अजमेर है। अजमेर के इतिहास को देखा जाएं तो, अजमेर शुरू से ही पारिवारिक रंजिशों का तथा अनेक प्रकार के षड्यंत्रो का केंद्र रहा है। अजमेर में पृथ्वीराज द्वितीय राज्य करते थे। उनके कोई संतान न थी। वे नि:संतान ही मृत्युलोक को प्राप्त हो गए। उनके एख चाचा थे। जिनका नाम सोमेश्वर देव था। सोमेश्वर देव को अजमेर की गद्दी पर बैठने के लिए कहा गया। वे थोडे दिन ही राजगद्दी पर बैठे थे, कि तभी उनकी माता जी उन्हें गुजरात लेकर चली गई। इसकी एक वजह थी। उनकी माता जी सोमेश्वर देव को अजमेर की कलह से बचाना चाहती थी। गुजरात में सोमेश्वर देव का विवाह हुआ। उनकी पत्नी का नाम कर्पूरी देवी था। कर्पूरी देवी राजपूत घराने में ब्याही गई। उनके पिता त्रिपुरा के राजा थे। कर्पूरी देवी की जीवनी – राजमाता कर्पूरी देवी का जीवन परिचय कर्पूरी देवी को जीवन में कभी शांति नही मिली। राजघराने में जन्म लेने के बावजूद वे खूश नहीं थी। जब उनकी शादी हुई तब भी उन्हें शांति नहीं मिली, खुशी नहीं मिली। उनका सारा जीवन कांटों से घिर गया। राजपूत घराने में एक अबोध बालक का जन्म हुआ। यह बालक यह बालक कर्पूरी देवी की कोख से पैदा हुआ था। उस बालक का नाम पृथ्वीराज तृतीय था। अभी पृथ्वीराज पालने में ही थेकि तभी उन्हें शिक्षा मिलने लगी। अपनी धरती की रक्षा के लिए लड़ना है। धरती का एक भी टुकडा दूसरे के कब्जे में न जाने पाएं। जान की परवाह नहीं करनी है। जान जाए तो जाए, पर धरती की शान न जाने पाए। अगर दुश्मन से लडते लडते बलिदान दे दिया, तो तुम्हारा नाम अमर होगा। तुम्हें यश मिलेगा। अगर दुश्मन से हार गए तो जिंदगी भर अपयश मिलेगा और नाम की बदनामी होगी।कर्पूरी देवी बेटे को समझा रही थी। राजपूत घराने का दस्तूर कुछ अजीब था। राजपूत युद्ध के क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त होने में अपना अहोभाग्य समझते थे। लडने की शिक्षा उन्हें पालने से ही दी जाती थीं। प्रत्येक मां अपने बेटे को जन्म भूमि की रक्षा करना सिखाती थी। जननी जन्म भूमि की रक्षा में प्राणो को न्यौछावर करने की शिक्षा दी जाती थी। वीर माताएं पुत्र को आंचल में नहीं छिपाती थी। यह राजपूत घराने की एक परंपरा थी। घंटे दिनों में, दिन महिनों में और महिने सालो में बदलते गए। पृथ्वीराज ग्यारह वर्ष के हो गए। उस समय सोमेश्वर देव नागौर की रक्षा कर रहे थे। नागौर के चालुक्यों ने उन्हें हमेशा के लिए इस दुनिया से अलविदा कर दिया। कर्पूरी देवी की कहानी अब सारी जिम्मेदारी कर्पूरी देवी के कंधों पर आ गई। एक ओर पृथ्वीराज की शिक्षा का दायित्व था तो दूसरी ओर राजघराने को भी संभालना था। कर्पूरी देवी के हाथ में राजघराने की कमान थी। उन्होंने अपना राजमाता धर्म बखूबी निभाया और एक कुशल प्रशासक होने का गौरव हासिल किया। उन्होंने एक संरक्षण सभा बनाई। उस सभा की अध्यक्षा वे खुद बनीं। राजमाता कर्पूरी देवी ने लडाई के सारे तरीके पृथ्वीराज को बताए। उन्होंने उनकी शिक्षा का उचित प्रबंध किया, क्योंकि उनके पास समय का आभाव था। उन्होंने सभा गठित करने के बाद मंत्रियों का चुनाव किया। उनके सभी मंत्री अपने पद के काबिल थे। कबासा उनका सबसे योग्य मंत्री था। सेनापति भुवनकमल एक कुशल सेनापति था। पृथ्वीराज कई भाषाओं के ज्ञात बन गए। पृथ्वीराज ने अनेक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। उन्हें प्रशासनिक कार्यों की शिक्षा भी प्रदान की गई। उन्होंने अनेक शस्त्रों का संचालन सीखा।समय ने करवट बदली। पृथ्वीराज एक वीर योद्घा बन गए। कर्पूरी देवी में अब कुछ बदलाव आ चुका था। उनमें शांति का नया संचार हुआ। वे धैर्य और संयम से कार्य करने लगी। पृथ्वीराज का एक चचेरा भाई था। उसका नाम नागार्जुन था। नागार्जुन अजमेर पर आक्रमण करना चाहता था। यह खबर जब राजमाता कर्पूरी देवी को मिली तब, उन्होंने एक बड़ी सेना का गठन किया। अभी गठन पूरा भी नहीं हुआ था। कि तभी नागार्जुन ने युद्ध का बिगुल बजा दिया। उसे मालूम था कि अजमेर सैनिक दृष्टि से अभी कमजोर है। पृथ्वीराज अल्पावस्था में है। राजमाता कर्पूरी देवी जरा भी नहीं घबराईं। उन्होंने अपना अटूट साहस दिखाया। उनकी सेना का नेतृत्व योग्य मंत्री कबासा ने किया। कबासा ने नागार्जुन को युद्ध में ललकारा। नागार्जुन अपनी योजना में कामयाब नहीं हुआ। वह युद्ध में पराजित हुआ। अजमेर की सेना ने उसे मार गिराया। कर्पूरी देवी के दिल में बदले की चिंगारी उठ रही थी। उनका बेटा जवान हो गया था। उन्होंने पृथ्वीराज को उकसाया, ताकि वह अपने पिता की मृत्यु का बदला ले सके। कर्पूरी देवी पृथ्वीराज के उत्साह को शुरु से ही बढ़ती आई थी। आज वो निडर बन गया था। उसके दिल में देशप्रेम जाग गया था। वह राजपूत का बेटा था, और राजपूत पीछे हटने वालों मे से नहीं होते। खतरों से खेलना उनकी आदत बन गई थी। कर्पूरी देवी को मालूम थाकि लड़ाई का मैदान पृथ्वीराज के लिए चारपाई हैऔर वहीं बिछौना भी। मां का आदेश मिलते ही पृथ्वीराज ने चालुक्यों पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने जबरदस्त संघर्ष किया, उनका संघर्ष सफल हुआ। उन्होंने चालुक्यों को पराजित किया। इस तरह से उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया। पृथ्वीराज छोटी बड़ी लड़ाइयां लड़ते रहे, और आगे चलकर वे एक शक्तिशाली योद्धा बने। उन्हें योद्धाओं का सम्राट कहा जाने लगा। समय हमेशा उनके अनुकूल रहा। उन्हें महान विजेता से भी संबोधित किया गया। धन्य है वह मां! जिसने पृथ्वीराज जैसा पुत्र जन्मा, धन्य है उस मां की शिक्षा जिसने बचपन से ही उन्हें निडर, साहस और वीरता का पाठ पढ़ाया। ये उन्हीं का चमत्कार है, जो इतने साहसिक गुण पृथ्वीराज में पाए गए, ये उन्हीं की देन है, जो पृथ्वीराज कुशल योद्धा बने, ये उन्हीं के संस्कार है, जिनसे पृथ्वीराज मातृभूमि की रक्षा करने में सफल हुए। ऐसी वीरांगना मां कर्पूरी देवी को हमारा शत शत प्रणाम। भारत के इतिहास की वीर नारियों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:— [post_grid id=”6215″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां बायोग्राफीभारत के इतिहास की वीर नारियांवीरांगनासहासी नारी