ककार का अर्थ – ककार किसे कहते है – सिख धर्म के पांच प्रतीक Naeem Ahmad, June 28, 2019July 18, 2019 प्रिय पाठकों अपने इस लेख में हम सिख धर्म के उन पांच प्रतीक चिन्हों के बारें में जानेंगे, जिन्हें धारण करना हर सिख को जरूरी होता है। जिन्हें ककार कहा जाता है। ककार क्या है?, ककार किसे कहते है?, ककार का अर्थ, सिख धर्म के पांच प्रतीक, सिख दाढी क्यों रखते है, आदि के बारे में विस्तार से अपने इस लेख में जानेगें।ककार का अर्थ क्या है, ककार किसे कहते हैगुरू गोविंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा के जन्म के समय ‘खण्डे बाटे का पाहुल, के साथ ही हर खालसे को पांच वस्तुएं धारण करने की सलाह दी। ये पांच वस्तुएं “क” अक्षर से शुरू होती है, इसलिए इनको कक्कार कहा जाता है। हर अमृतधारी सिक्ख के लिए पांच कक्कार को धारण करना अनिवार्य है। प्रत्येक सिक्ख के लिए पांच कक्कार एक समान ही है।सिख धर्म के पांच ककारपांच कक्कार कौन कौन से हैकेशकेश गुरू की मोहर है। सिक्ख संगत केश को गुरू द्वारा दिया हुआ खजाना समझता है। सम्मपूर्णकेश को सम्भाल कर रखने वालो को ब्रह्ममंडी मनुष्य का प्रतीक माना जाता है। और गुरूवाणी में भी “सोहणें नक जिन लंमड़े वाल” कहकर इसकी स्तुति की गई है। गुरू गोविंद सिंह जी ने इस ब्रह्ममंडी मनुष्य की शक्ल में खालसा की स्थापना की थी। केश रखने का मतलब गुरू के हुक्म में चलना है, और जो रूप परमात्मा ने दिया है, सिक्खों ने उसको संभाला है।कंघाकेशो की सफाई के लिए कंघे को केशो में रखने के लिए कहा गया है। ताकि केशो को साफ सुथरा रख कर इनकों जटाएं बनने से रोका जा सके, क्योंकि जटाएँ संसार को त्यागने का प्रतीक हैं, जो कि सिक्ख धर्म के अनुकूल नहीं है।कड़ाकड़ा लोहे का होता है, जो आमतौर पर दाहिने हाथ की कलाई पर पहना जता है। कड़ा साबित करता है कि सिक्ख वहम भ्रम नहीं करता और गुरू के हुक्म में रहता है।कच्छहराप्रत्येक खालसे को कच्छहरा डालने का आदेश है। यह उसके ऊंचे शुद्ध आचरण का प्रतीक है। कच्छहरा रेबदार होता है और जांघों को घुटनों तक ढकता है। कच्छहरा डालना भारतीय जाति धर्म में नग्न रहने की प्रथा को रोकता है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—लोहगढ़ साहिब का इतिहासगुरूद्वारा शहीद गंज साहिबगुरूद्वारा गुरू के महलखालसा पंथ की स्थापनापांच तख्त साहिब के नामगुरू ग्रंथ साहिबदमदमा साहिब का इतिहासपांवटा साहिब का इतिहासगुरूद्वारा बाबा अटल राय जीअकाल तख्त का इतिहासगोल्डेन टेम्पल का इतिहासआनंदपुर साहिब का इतिहासहेमकुण्ड साहिब का इतिहासहजूर साहिब का इतिहासगुरूद्वारा शीशगंज साहिबकृपाणसिक्ख धर्म में कृपाण उस शस्त्र का प्रतीक है जो अज्ञान की जड़ों को मूलस्रोत से कही काटकर परम ज्ञान की समझ करवाता है। क्योंकि परमात्मा ही अज्ञान का नाश करता है। इसलिए कृपाण प्रभु सत्ता का भी प्रतीक है। इसके अलावा कृपाण एक ऐसा शस्त्र है, जो रक्षा और हमला दोनों हालातों में प्रयोग में लाया जा सकता है। साथ ही यह सिक्ख की आजाद हस्ती को प्रकट करता है और बताता है कि सिक्ख किसी का गुलाम नहीं हो सकता।भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’6818′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... Uncategorized ऐतिहासिक गुरूद्वारेगुरूद्वारे इन हिन्दीभारत के प्रमुख गुरूद्वारे