एरिस्टोटल का जीवन परिचय – एरिस्टोटल की थ्योरी क्या थी? Naeem Ahmad, May 26, 2022May 26, 2022 रोजर बेकन ने एक स्थान पर कहा है, “मेरा बस चले तो मैं एरिस्टोटल की सब किताबें जलवा दू। इनसे मुफ्त में वक्त बरबाद होता है, शिक्षा गलत मिलती है, और अज्ञान ही बढ़ता है। ये शब्द स्वयं एक ऐसे व्यक्ति के हैं जो अपने युग का एक असाधारण वैज्ञानिक था। इनमें आलोचना की कुछ कटुता अवश्य आ गई है किन्तु वस्तुतः इनमें यूनान के उस प्राचीन दार्शनिक वैज्ञानिक की अद्भुत प्रतिभा की प्रशंसा ही हुई है कि उसका महत्व और प्रभाव कितना स्थायी है। एरिस्टोटल का जीवन परिचय एरिस्टोटल (अरस्तू ) का जन्म ईसा से 384 साल पहले ईजियन समुद्र के उत्तरी छोर पर स्थित स्टेगीरा नाम के शहर में हुआ था। पिता एक शिक्षित और धनी-मानी व्यक्ति था और अलेक्जेंडर (सिकन्दर) महान के दादा के यहां शाही हकीम था। एरिस्टोटल की आरम्भिक शिक्षा का प्रबन्ध घर पर ही किया गया और स्वयं पिता ने ही प्राकृत ज्ञान-विज्ञान में बालक की मनोभूमि को संवर्धित-पल्लवित किया। 367 ई० पू० में 17 साल की उम्र में एरिस्टोटल एथेंस गया, जो उन दिनों विद्या का प्रसिद्ध केन्द्र था। एथेन्स में उसने प्रसिद्ध दार्शनिक प्लेटो की छत्र छाया में विद्या अभ्यास किया। बाल्यावस्था से ही एरिस्टोटल ने अपनी कुशाग्र एवं स्वतन्त्र बुद्धि का परिचय देना शुरू कर दिया–प्लेटो के विचारों को भी उसने बिना आत्म परीक्षा के कभी स्वीकार नहीं किया। जो कुछ ग्राह्म प्रतीत हुआ वही स्वीकार किया, अन्यथा जहां मतभेद दिखा वहां, नये सिरे से चिन्तन से हिचकिचाया नहीं। एरिस्टोटल शीघ्र ही एरिस्टोटल की ख्याति एक असाधारण अध्यापक के रूप में फैलने लगी। मेसीडोनिया से उसे बुलावा आया कि वह 14 साल के राजकुमार अलेक्ज़ेंडर की शिक्षा-दीक्षा को अपने हाथ मे ले ले। यही राजकुमार जब अलेक्ज़ेंडर महान बन गया, वह अपने गुरु के ऋण को भूला नही और समय-समय पर वैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान में एरिस्टोटल की सहायता भी करता रहा। अनुमान किया जाता है कि एरिस्टोटल ने कोई 400 और 1000 के बीच ग्रन्थ लिखे। स्वभावत सन्देह हो उठता है, कि ये किताबे सब उसकी अपनी लिखी हुईं है या अन्य सहयोगियों एव वैज्ञानिकों की कृतियों का सम्पादन-मात्र है। इनमे इतने अधिक विषयो का विवेचन हुआ है, और इतना सूक्ष्म विवेचन हुआ है, कि इनका सहसा एक ही लेखक की कृति होना असम्भव प्रतीत होता है। खैर, वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिए उस पुराने जमाने मे भी एरिस्टोटल के पास सहयोगियों का एक खासा वर्ग था। 1000 के करीब वैज्ञानिक उसके निर्देशन में सारे ग्रीस में घूमे और एशिया की भी सेर करके, समुद्रीय और स्थलीय जीवो के नमूने इकट्ठे कर लाए, और इन संग्रहो के विस्तृत वर्णन भी उन्होंने आकर एरिस्टोटल को पेश किए। एरिस्टोटल के अनुसन्धानों का सबसे अधिक स्थायी महत्त्व शायद प्राणि विज्ञान तथा पशु विज्ञान मे ही हुआ है। इन गवेषणाओ को देखकर हम आज भी चकित रह जाते है कि वह वैज्ञानिक प्रणाली के आधुनिकतम रूप को किस प्रकार प्रयोग में ला सका। दिन का कितना ही समय वह खुद समुद्र के किनारे गुजारा करता,समुंद्र जीवन का अध्ययन करते हुए उसे खुद अपना होश न रहता। और जो भी अध्ययन वह इर्द-गिर्द के पशु-पक्षियों का कर गया है, उसका महत्त्व आज भी कम नही हुआ है। कुछ अध्ययन तो उसके ऐसे है जिन्हे अरसे तक निरर्थक समझा जाता रहा किन्तु आज उनकी सत्यता अक्षरश प्रमाणित हो चुकी है। यह प्रतीति एरिस्टोटल को भी हो चुकी थी कि सृष्टि-व्यवस्था मे कुछ क्रम है–जीवित प्राणियों का, जीवन की प्रक्रिया मे उनकी निरन्तर बढती सकुलता के आधार पर, वर्गीकरण किया जा सकता है। और यह अनुभव भी एरिस्टोटल को हो चुका था कि इन प्राणियों का आगे विकास किस प्रकार इनके आसपास की परिस्थितियों के अनुकूल ही हुआ करता है। मानव-सभ्यता के विकास में एरिस्टोटल वैज्ञानिकों के उस महान वर्ग का अग्रदूत प्रतीत होता है जिनकी दृष्टि मे सृष्टि का कण-कण एक सुन्दर व्यवस्था का जीवित-जागरित प्रमाण है–व्यवस्था-हीन अथवा निरर्थक यहां कुछ भी नही है। वैज्ञानिक प्रणाली का एक मूलभूत सिद्धान्त यह है कि हम अपने आसपास की दुनिया मे और परीक्षण शाला मे खुली आंखो से हर चीज को प्रत्यक्ष करे, तथा उसके सम्बन्ध मे परीक्षण करे। एरिस्टोटल और उसके सहयोगियो ने प्राणि विज्ञान मे इस प्रणाली को किस सुन्दरता के साथ निभाया, किन्तु एरिस्टोटल के बाद जैसे 1500 साल बीत जाने जरूरी थे पेशतर इसके कि एल्बर्टस मैग्नस आकर उसके अधूरे काम को फिर से हाथ मे ले। मैग्नस ने स्वय भी कुछ मौलिक अध्ययन किए जिनके आधार पर वह एरिस्टोटल के कार्य की कुछ अभिवृद्धि एव आलोचना कर सका। एरिस्टोटल की गवेषणाए प्राणि विज्ञान के बहिरग तक सीमित न थी, अंगराग-विच्छेद द्वारा शरीर के अन्तरंग का ज्ञान इतिहास मे शायद एरिस्टोटल ने ही प्रवर्तित किया। आन्तरिक रचना मे भी किस तरह अन्तर आता रहता है, इसका भी प्रथम प्रत्यक्ष उसी ने किया। अर्थात्, प्राणि विज्ञान की आधुनिक प्रणालियों का भी वह एक तरह से अग्रदूत ही था, जनक ही था। एच० जी० वेल्स ने इतिहास की रूपरेखा मे एरिस्टोटल के बारे मे लिखा है, “ज्ञान-विज्ञान को एक व्यवस्थित क्रम मे बाधंने की कितनी आवश्यकता है, यह अनुभव करते ही एरिस्टोटल जैसे बेकन का और हमारी आधुनिक वैज्ञानिक गतिविधि का पूर्वाभास ही दे चला हो, और सचमुच उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान के संग्रह में तथा उस संग्रह के क्रम-बन्धन में उसने अपने-आप को खपा ही डाला। प्राकृतिक विज्ञान का वह प्रथम इतिहासकार था। वस्तु-जगत की प्रकृति के सम्बन्ध मे औरों ने उससे पूर्व कल्पनाएं ही की थी, किन्तु एरिस्टोटल ने आकर, जिस नौजवान को भी वह प्रभावित कर सका उसे अपने साथ में लिया और प्रत्यक्ष का तुलनात्मक संग्रह तथा वर्गीकरण शुरू कर दिया। तो फिर बेकन एरिस्टोटल की किताबों के पढने-पढाने के इतना खिलाफ क्यों है? इसलिए कि प्राणि विज्ञान मे जहा एरिस्टोटल की दृष्टि इतनी सूक्ष्म थी वहा भौतिकी मे पता नही क्यो वह इतनी अक्षम्य अशुद्धियां कर कैसे गया। वही वैज्ञानिक प्रणाली थी जिसको इस खूबी के साथ प्राणि विज्ञान मे निभाया गया था, किन्तु नक्षत्रों के अध्ययन मे, तथा इस स्थल जगत के अध्ययन में, उसका या तो सही इस्तेमाल नही हो सका या फिर उपेक्षा हो गई। 1500 साल तक एरिस्टोटल असाधारण रूप से विचार-जगत पर छाया रहा। उसके ग्रन्थों को विद्या मण्डल इस तरह कबूल करता रहा जैसे वे कोई बाइबल या कुरान के पन्ने हो, और वह भी सिर्फ इसलिए कि एरिस्टोटल की उन पर मुहर लगी हुई है। एरिस्टोटल के इस तरह के कुछ विचारों का निर्देशन सम्भवत प्रासंगिक हो जाता है। उसका ख्याल था कि इस हमारी धरती पर जितनी भी चीजे है, उन्हे गर्म-सर्द और गीले-सूखे मे, परिमाण-भेद के अनुसार, बखूबी विभक्त किया जा सकता है, और इस तरह एक क्रम भी दिया जा सकता है। वस्तु-वस्तु मे इन चार गुणों के अन्तर का आधार होते है ये चार तत्व जल, वायु, अग्नि और पृथ्वी। उदाहरणतया, लकडी के एक लट्टू को आग में फेंक दीजिए। उसका पानी तुरन्त बाहर निकलना शुरू हो जाएगा, धुएं की सूरत मे उसकी हवा ऊपर को उठ चलेगी, आग तो प्रत्यक्ष है ही, और बच रहेगी राख, अर्थात मिट्टी। किन्तु हां, आकाश एक और (दैवी ) तत्त्व का बना होता है जिसमे कुछ परिवर्तन नही आता। अर्थात यह विश्व हमारा पांच तत्त्वों या भूतो का ही एक विलास या विकार है। आकाश बाहर, खाली जगह मे, सभी कही फैला होता हैं। आग की लपट स्वभावत ऊपर को उठती है। पानी धरती के ऊपर बहता है। हवा पानी से भी ऊपर, किन्तु आग के नीचे, घूमती-फिरती है। पृथ्वी के ये चार तत्त्व, इस प्रकार, परस्पर ऊपर-नीचे एक अधरोत्तरी-सी मे गतिमान होते हैं किन्तु आकाश एक परिधि मे वृत्ताकार परिक्रमा करता हुआ सर्वत्र व्याप्त है। आकाश ही इन पांच तत्त्वो मे देवी है, पूर्ण है। उसका परिक्रमा-मार्ग भी, एक पूर्ण तत्त्व के लिए एक पूर्ण परिक्रमा-मार्ग होने के नाते, एक पूर्ण आकृति ही होना चाहिए वृत्त ही एकमात्र पूर्णतम आकृति है। 1609 में केपलर ने जब प्रत्यक्ष किया कि इन ग्रह-नक्षत्रों के परिक्रमा-मार्ग वृत्ताकार नही, अण्डाकार होते है तो उसे मानो अपनी ही आखों पर, अपनी ही गणनाओं पर विश्वास नही आया, क्योकि एरिस्टोटल के आकाश-तत्त्व का इतना पुराना बद्ध-मूल इतिहास जो चला आता था। गैलीलियो के वक्त से अब हर कोई जानता है कि हवा जो रुकावट पेश करती है उसे अगर दूर किया जा सके तो हलकी और भारी, सभी चीज़े एक साथ’ छोडने पर एक ही साथ जमीन पर आ गिरेगी। किन्तु एरिस्टोटल का प्रत्यक्ष कुछ अधूरा’ था। इसलिए जरूरी था कि उसका नतीजा भी कुछ गलत ही निकलता। उसने देखा कि एक पत्थर एक पत्ते की अपेक्षा ज्यादा तेजी के साथ जमीन पर आ जाता है—और यह सच भी है—और वह एकदम से इस परिणाम पर पहुंच गया कि भारी वस्तुएं हल्की वस्तुओं की अपेक्षा जल्दी जमीन पर गिरती है। उसकी युक्ति थी कि दो सेर वज़न की कोई चीज एक सेर वजन की किसी दूसरी चीज से आधे वक्त मे जमीन पर आ जानी चाहिए। लेकिन इस सम्बन्ध मे उसने कोई परीक्षण नही किया , उसे यही कुछ युक्ति युक्त प्रतीत हुआ। सन् 1585 के आसपास एक डच गणितज्ञ ने रागें की दो गेंदे अपने घर की खिडकी से एक साथ नीचे की ओर छोड़ी। इनमे एक, वजन मे, दूसरी से दस गुना भारी थी। खिडकी से 80 फुट नीचे लकडी का एक प्लेटफार्म था। दोनो के गिरने पर एक ही आवाज सुनाई पड़ी जो इस बात का सबूत थी कि दोनो वजन एक ही साथ जमीन पर गिरे है। एरिस्टोटल एक महान वैज्ञानिक था। दुर्भाग्य से, आवश्यकता से कुछ अधिक महान। कुंद्बुद्धि लोग जो उसके बाद मे आए उसकी गलतियों को भी उसकी महान गवेषणाओं के साथ बाबा-वाक्य मानकर चलते रहे, और हर प्रश्न का समाधान उसकी उन पुरानी पोथियों मे ही पडतालते रहे जैसे वे त्रि-काल सत्य हो हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=’9237′] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी