ऋषभदेव मंदिर उदयपुर – केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर राजस्थान Naeem Ahmad, October 16, 2019March 18, 2024 राजस्थान के दक्षिण भाग में उदयपुर से लगभग 64 किलोमीटर दूर उपत्यकाओं से घिरा हुआ तथा कोयल नामक छोटी सी नदी के तट पर स्थित धुलेव नामक कस्बा है। यही पर मानव सभ्यता के पुराकर्ता आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का विशाल मंदिर है। जो ऋषभदेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। पूरे भारत में यही एक ऐसा मंदिर है जहाँ दिग्म्बर तथा श्वेतांबर जैन, वैष्णव, शैव, भील एवं तमाम सच्छुद्र स्नान कर समान रूप से मूर्ति का पूजन करते है। प्रतिमा की अतिशयता एवं प्रभावना के कारण ही यह कस्बा (धुवेल) ऋषभदेव जी के नाम से प्रसिद्ध है। प्रति वर्ष लाखों यात्री भारत के कोने कोने से ऋषभदेव मंदिर के दर्शन के लिए आते है। केसरियाजी ऋषभदेव मंदिर का इतिहास, दर्शन व स्थापत्यएक किलोमीटर के घेरे में स्थित पक्के पाषाण का यह विशाल मंदिर अपनी प्राचीन शिल्पकला के द्वारा पर्यटकों के मन को अनायास ही मुग्ध कर लेता है। कहा जाता है कि पहलें यहां ईटों का बना हुआ एक जिनालय था। जिसके टूट जाने पर 14वीं 15वी शताब्दी में जीर्णोद्धार के फलस्वरूप यह भावनात्मक एकता का प्रतीक विशाल ऋषभदेव मंदिर सामने आया। यहां के शिलालेखों से पता चलता है कि इस मंदिर के भिन्न भिन्न विभाग अलग अलग समय के बने हुए है।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानप्रथम द्वार से जिस पर नक्कारखाना है, प्रवेश करते ही बाह्य परिक्रमा कर चौक आता है। यहां पर दूसरा द्वार है। जिसके दोनों ओर काले पत्थर का एक एक हाथी खड़ा है। दक्षिण की ताक में पद्मावती एवं उत्तर की ताक में चक्रेश्वरी देवी के दर्शन होते है। इस द्वार से 100 सीढियां चढ़ने पर एक अलग मंडप आता है। जो नौ स्तंभ का होने के कारण नौ चौकी कहलाता है। यहां से तीसरे द्वार में प्रवेश करने पर खेला मंडप आता है। और इसके आगे मुख्य मंदिर का गर्भगृह है। जिसमें ऋषभदेव जी की काले पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के ऊपर ध्वजादंड सहित विशाल शिखर है। और खेला मंडप और नौ चौकी पर गुम्बद है। मंदिर के उत्तरी, दक्षिणी एवं पश्चिमी पार्श्व में देव कुलिकाओ (बावन जिनालय) की पंक्तियां है। जिनमें से प्रत्येक के मध्य में सहित एक एक मंदिर है। देव कुलिकाओ और मंदिर के बीच भीतरी परिक्रमा है। प्रवेशद्वार के दक्षिण भाग में डूंगरपुर की महारानी द्वारा नवनिर्मित मंदिर है। जिसमें 5फुट ऊंची पद्मासन में स्थित पार्शवनाथ की एवं दक्षिण दीवार में सप्तर्षि की कायोत्सर्ग प्रतिमा है।ब्रजराज बिहारी जी मन्दिर जयपुर राजस्थानगर्भगृह में ऋषभदेव भगवान की पद्मासन स्थित मनुष्य के समान अवगाहन वाली साढ़े तीन फीट ऊंची श्यामवर्गीय भव्य प्रतिमा है। जिसमें नीचे ही नीचे मध्य भाग में दो बैलों के बीच में देवी तथा उस पर सर्व धातु के बने हुए हाथी, सिंह आदि स्थित है। इनके ऊपर 16 स्वप्न ( जो तीर्थंकर की माता को तीर्थंकर के में आने पर आया करते थे) अंकित है। इन पर छोटी छोटी नवजीन प्रतिमाएं है। जिन्हें लोग नवग्रह कहते है। प्रतिमा की पद्मासन स्थित मुद्रा के बीच वृषभ चिन्ह है। जो कर्ममूलक संस्कृति का प्रतीक है। प्रतिमा के आजूबाजू तथा ऊध्र्व भाग मे सर्वण धातु का बना हुआ शेष 23 तीर्थंकरों की प्रतिमा से अंकित भव्य सिंहासन है। इस सिहासन को छोड़कर समस्त गर्भगृह तथा उसका द्वार चांदी से मढ़ा हुआ है।ऋषभदेव मंदिर के सुंदर दृश्यऋषभदेव मंदिर में स्थित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा पर कोई लेख या संवत् अंकित नहीं है। अतः इसकी प्राचीनता एवं प्रतिष्ठा के संबंध में कई किवदंतियां प्रचलित है। एक किवदंती के अनुसार रामायण काल मे यह प्रतिमा लंका के मंदिर में विराजमान थी। भगवान रामचंद्र लंका विजय कर आते समय इसको अपने साथ लाए और उज्जैन में प्रतिष्ठित की।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानएक अन्य किवदंती के अनुसार इस प्रतिमा का निर्माण 8वी शताब्दी में हुआ और विक्रम संवत 82 में उज्जैन संघ के आचार्य श्री विद्यानंदि ने इसे प्रतिष्ठित किया।एक ओर किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि अलाऊद्दीन के समय में यह प्रतिमा इसी स्थान से 64 किमी दूर जंगल में स्थित एक मंदिर में थी। जब विदेशी आक्रमणकारियों ने सोमनाथ के मंदिर को तोड़ इस मंदिर पर भी आक्रमण किया तो समस्त सेना अंधी हो गई। और एक पुजारी को स्वप्न आया जिसके अनुसार वह प्रतिमा को कावंड़ में रखकर यहां धुवेल ले आया। और एक साहूकार ने इसकी प्रतिषठिता कराई।चंद्रमहल सिटी पैलेस जयपुर राजस्थानएक ओर प्रचलित किवदंती के अनुसार माना जाता हैं कि यह प्रतिमा डूंगरपुर इलाके के आसपुरे बडौदे में विराजमान थी। विदेशी आक्रमणों से आतंकित होकर सुरक्षा की दृष्टि से कतिपय भक्तगण कांवड़ मे इसे यहां ले आएं। और पागल्यजी (स्थान विशेष) पर रखी। पर उसी दिन मूर्ति अंतर्ध्यान हो गई। मूर्ति को ढूंढते ढूंढते एक पुजारी एक ग्वाले की सहायता से जंगल में पहुंचा। वहां देखता क्या है कि बांसों की झाडी में रखी प्रतिमा पर एक गाय दूध झर रही है। इस चमत्कार से प्रभावित हो वहां पर गाय के स्वामी सेठ ने एक मंदिर बनवाया और प्रतिमा की विधिवत प्रतिष्ठिता की। स्नान कराते समय मूर्ति पर घाव देखकर सभी चमत्कृत हुए। इस पर रात्रि में सेठ खो स्वप्न में भगवान ने कहा कि मेरे आश्रम के निकट ग्लेच्छो ने गौवध किया था। उस समय गायों के जो घाव लगे थे। वो मेरे शरीर पर उधड आएं। आज भी प्रतिमा कमर के पास खंडित देखी जाती है।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं न जाने कितने ही लोग प्रतिवर्ष अपनी कार्य सिद्धि की कामना से मनौती करने के लिए यहाँ आते है। किसी का आंगन सूना है तो संतान प्राप्ति की कामना से, कोई बीमार है तो स्वास्थ्य ठीक होने की कामना से, सब अपनी अपनी कामनाएं लेकर यहां दर्शन के लिए आते है।महाराजा महेन्द्र सिंह और महाराजा राजेन्द्र सिंह पटियाला रियासतऋषभदेव मंदिर में नित्य सेवा पूजन का एक निश्चित कार्यक्रम है। जिसके अंतर्गत प्रातःकाल साढ़े सात बजे से जल प्रक्षाल होता है। जो आधे घंटे तक चलता है। इसकी सूचना धर्मशालाओं में ठहरे यात्रियों देने एक कर्मचारी रोज सुबह आता है। सभी भक्त स्नान करके विधिवत भगवान का जलाभिषेक करते है। ठीक प्रातः 8 बजे दूध प्रक्षाल चालू हो जाता है। इस समय की आलौकिक छवि देखते ही बनती है। इसके बाद पुनः जल प्रक्षाल होकर धूप सेवन होता है। 9 बजे केसर तथा फूलो से पूजन होता है। केसर पूजा के 10 मिनट बाद ही भगवान ऋषभदेव की आरती होती है। दोपहर में डेढ़ बजे से चार बजे तक प्रातःकाल की तरह पूजा होती है। उसके बाद मुख्य प्रतिमा को आंगीं (झांकी) धारण कराई जाती है। जो शाम को 7 बजे से रात्रि 11 बजे तक रहती है। इस समय आरती, स्तवन तथा वृत्यादि होते रहते है।सवाई मानसिंह संग्रहालय जयपुर राजस्थानअश्विनी कृष्ण प्रथमा तथा द्वितीय को यहाँ अपूर्व रथ यात्रा निकलती है। तथा कृष्ण अष्टमी व नवमी को ऋषभदेव में विशाल मेला लगता है। जिसमें हजारों यात्री एकत्र होते है।बूंदी राजपूताना की वीर गाथा – बूंदी राजस्थान राजपूतानाऋषभदेव के आसपास और भी कई दर्शनीय स्थान है जिनमें पगल्याजी, चन्द्रगिरि, भीम पगल्या, भट्ठारख यशकीर्ति भवन, पहले पीपली मंदिर आदि उल्लेखनीय है।सकराय माता मंदिर या शाकंभरी माता मंदिर सीकर राजस्थान हिस्ट्री इन हिंदीऋषभदेव जी की मूर्ति पर बहुत अधिक केसर चढाई जाती है। इस कारण यह केसरियाजी या केसरियाजी नाथ के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋषभदेव मंदिर की प्रतिमा चमकते हुए काले पाषाण की है। अतः भील लोग इनको कालाजी कहकर भी पुकारते है। और उनके उनकी इतनी अधिक श्रद्धा है और मान्यता है कि उन्हें कालाजी की सौगंध दिलाने पर वे अपने सत्य से विचलित नहीं होते। काला रंग इस बात का भी सूचक है कि भगवान गुणातीत है। जिस प्रकार काले रंग के आगे अन्य सभी रंग अदृश्य हो जाते है उसी प्रकार भगवान की शरण मे जाने पर सारे दोष दूर हो जाते है। और वह निर्विकार हो जाता है। धुलेव गांव मे स्थित होने के कारण धुलेवा धाणी के नाम से भी वे संबोधित किए जाते है। सौम्यपूर्ण प्रतिमा की अतिशयता वातावरण की पवित्रता तथा प्राकृतिक दृश्यों की मनोहरता के कारण यह स्थान आज भी लाखों लोगों का आकर्षण का केंद्र और श्रृद्धा भाजन बना हुआ है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते हैप्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थल है, जिसके बारें में आप पर्यटकों को बताना चाहते है। तो आप अपना लेख कम से कम 300 शब्दों में हमारे submit a post संस्करण में जाकर लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान के साथ अपने इस प्लेटफार्म पर जरूर शामिल करेगें राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान के प्रसिद्ध मेलेंराजस्थान के लोक तीर्थराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन