उरैयूर का इतिहास और पंचवर्णस्वामी मंदिर Naeem Ahmad, February 28, 2023 उरैयूर ( Uraiyur/Woraiyur)भारत के तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली शहर का एक पॉश इलाका है। उरैयूर तिरुचिरापल्ली शहर का प्राचीन नाम था। अब, यह त्रिची शहर का सबसे व्यस्त क्षेत्र बन गया है। यह प्रारंभिक चोलों की राजधानी थी, जो प्राचीन तमिल देश के तीन प्रमुख राज्यों में से एक थे।उरैयूर का इतिहास और प्रमुख पंचवर्णस्वामी मंदिर अशोक के काल में चोलों का एक स्वतंत्र राज्य था। प्राचीन तमिल साहित्य से ज्ञात होता है कि प्रथम शताब्दी ई०पू० से प्रथम शताब्दी ई० के अंत तक चोल राजाओं ने पांड्यों और चेरों को हराकर उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। संगम साहित्य से ज्ञात होता है कि इस वंश का संगम युग का प्रथम ज्ञात एवं प्रसिद्ध राजा कारिकल था। उसने चेर और पांड्य राजाओं को पराजित किया और लंका पर आक्रमण किए। उसने कई वैदिक यज्ञ किए। उसने कई नहरें बनवाईं, उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा दिया और तमिल लेखकों को संरक्षण दिया। वह न्यायप्रियता था। उसकी राजधानी उरैयूर थी। उसके काल में उरैयूर सूती के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। उन दिनों तटों से प्राप्त सारे मोती यहाँ लाए जाते थे तथा यहां से मलमल का निर्यात किया जाता था। म॒दुरा के पांड्य राजा मारवर्मा सुंदर पांडय (1216-28) ने चोलों से उरैयूर छीन लिया। उरैयूर का मंदिर उरैयूर के दर्शनीय स्थलों में यहां का प्रमुख पंचवर्णस्वामी मंदिर है। जिसके लिए उरैयूर को जाना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। माना जाता है कि भगवान शिव पांच अलग-अलग रंगों को चित्रित करते हैं, जो मंदिर के पीठासीन देवता, पंचवर्णस्वामी को नाम देते हैं। पंचवर्णस्वामी 7 वीं शताब्दी के तमिल शैव विहित कार्य, थेवरम में प्रतिष्ठित हैं, जो तमिल संत कवियों द्वारा लिखे गए हैं जिन्हें नयनमार के रूप में जाना जाता है और उन्हें पाडल पेट्रा स्थलम के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उरैयूर प्रारंभिक चोलों की प्राचीन राजधानी थी और माना जाता है कि प्राचीन शहर रेत के तूफान से नष्ट हो गया था। पुगाज़ चोल नयनार और कोचेंगाटा चोलन का जन्म यहीं हुआ था, जैसा कि तिरुपनझवार का हुआ था। कावेरी नदी के दक्षिण में स्थित चोल साम्राज्य में थेवारा स्थलम की श्रृंखला में इस मंदिर को मुक्केश्वरम के रूप में भी जाना जाता है। इसमें चोल काल के कई शिलालेख हैं। मंदिर में सुबह 5:30 बजे से रात 8 बजे तक अलग-अलग समय में छह दैनिक अनुष्ठान होते हैं, और इसके कैलेंडर पर तीन वार्षिक उत्सव होते हैं। वार्षिक श्रीवारी ब्रह्मोत्सवम (प्रमुख उत्सव) में दूर-दूर से सैकड़ों-हजारों भक्त शामिल होते हैं। मंदिर का रख रखाव और प्रशासन तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और बंदोबस्ती बोर्ड द्वारा किया जाता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”16623″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल तमिलनाडु के मंदिरतमिलनाडु दर्शनतमिलनाडु पर्यटन