आसमाई व्रत कथा – आसमाई की पूजा विधि Naeem Ahmad, August 13, 2021March 10, 2023 वैशाख, आषाढ़ और माघ, इन्हीं तीनों महीनों की किसी तिथि में रविवार के दिन आसमाई की पूजा होती है। जो किसी कार्य की सिद्धि के लिये आसमाई की पूजा बोलता है और उसका कार्य सिद्ध होता है, वही यह पूजा करता है। किसी-किसी के यहाँ साल में एक बार या दो या तीन बार भी पूजा होती है। बाराजीत ( बारह आदित्य ) और आसमाई ( आशापूर्ण करने वालो शक्ति ) की पूजा एक साथ होती है। प्रायः लड़के की माँ आसमाई का व्रत करती है। वह व्रत के दिन अलेाना भेाजन करती है। आसमाई की पूजा विधिएक पान पर सफेद चन्दन से एक पुतली लिखी जाती है। उसी पर चार गँठीली कोड़ियाँ रखकर उनकी पूजा की जाती है। चौक पर कलश की स्थापना की जाती है। उसी के समीप एक पटा पर ऊपर कहे अनुसार आसमाई की स्थापना की जाती है। पंडित पंचाग-पूजन कराकर कलश का तथा आसमाई का विधिवत् पूजन कराता है। पूजन के अन्त में पंडित एक बारह गाँठ वाला ” गंडा व्रत वाली को देता है। उसी गंडे के हाथ में पहनकर आसमाई और बाराजीत को भोग लगाया जाता है। पूजा के अन्त में जब पूजा की सब सामग्री जल में सिराई जाती है, तब उक्त गंडा भी सिरा दिया जाता है।आसमाई व्रत कथा – आस माता व्रत की कहानी आसमाई की कथा एक राजा था। उसके एक ही राजकुमार था। माता-पिता का बहुत लाडला होने के कारण वह बहुत ऊधम किया करता था। वह प्रायः कुओं या पनघटो पर बैठ जाता और जब स्त्रियां जल भरकर घर को चलने लगतीं तो गुलेल का गुल्ला मारकर उनके घड़े फोड़ डालता था। लोगों ने राजा के पास जाकर राजकुमार के आचरण की शिकायत की और कहां कि यदि यही हाल रहा तो हमारा निवाह किस तरह होगा? राजा ने कहा– “अब से कोई मिट्टी का घड़ा लेकर पानी भरने न जाया करे। जिनके यहाँ ताँबे-पीतल के घड़े नही हैं, वे हमारे यहाँ से घड़े ले लें।आसमाई व्रत कथाजब स्त्रियां ताँबे-पीतल के घड़े से पानी लेने जाने लगीं, तब राजकुमार मिट्टी के बजाय लोहे और कांच के गुल्ले मार-मारकर उनके घड़े फोड़ने लगा। लोगों ने एकत्र होकर राजा से फिर कहा कि अब तो हम आप के राज्य से चले जायेँगे। या तो राजकुमार को राज्य से बाहर भेजो, राजा ने उस समय समझा-बुझाकर पीडितों को शान्त किया।राजकुमार उस समय शिकार खेलने गया हुआ था। राजा ने अपने हस्ताक्षर-ःसहित एक आज्ञापत्र सिपाहियों के देकर कहा कि जब राजकुमार शिकार से वापस आकर महलों में आने लगे, उसी वक्त यह पर्चा तुम उसको दिखा देना। जब राजकुमार वापस आया। और, सिपाहियों ने उसे देश निकाले की आज्ञा का परवाना दिखाया तो वह उन्हीं पैरों राजद्वार से लौटकर जंगल की तरफ चला गया।राजकुमार घोड़ा बढ़ाता हुआ चला जाता था कि उसे चार बुढ़ियाँ सामने रास्ते में बैठी हुईं दिखाई दीं। उसी समय अनायास राजकुमार का चाबुक गिर गया। उसे उठाने के लिए वह घोड़े पर से उतरा और फिर सवार होकर आगे बढ़ा। बुढ़ियों ने समझा कि इस पथिक ने घोड़े से उतरकर हम लागों का अभिवादन किया है। अस्तु जब वह उन लोगों के पास पहुँचा तो उन्होंने उससे पूछा–“मुसाफिर” ! तुम बतलाओ कि तुमने हम लोगों में से किसको घोड़े से उतरकर प्रणाम किया था। वह बोला–तुम सब में जो बड़ी हो मैने उसी को प्रणाम किया है। उन्होंने कहा– तुम्हारा यह उत्तर ठीक नहीं। हम कोई एक दूसरे से कम नहीं हैं। अपने-अपने स्थान पर सब बड़ी हैं। तुम को किसी एक को बतलाना चाहिए। तब राजकुमार ने कहा अपना-अपना नाम बतलाओ। तब में बतलाऊँगा कि मैने किसे प्रणाम किया था।एक बुढ़िया ने कहा–“मेरा नाम भूखमाई है।” राजकुमार ने कहा — तुम्हारी एक स्थिति नहीं। तुम्हारा कोई मुख्य उद्देश्य लक्ष्य भी नहीं है। किसी की भूख जैसे अच्छे भोजनों से शांत होती है, वैसे ही रूखे-सूखे टुकड़े से भी शान्त हो जाती है। इसलिए मैने तुमको प्रणाम नही किया।दूसरी ने कहा–“मेरा नाम प्यासमाई है। राजकुमार ने जवाब दिया–“जो हाल भूखमाई का है, वही तुम्हारा है। तुम्हारी शान्ति जैसे गंगाजल से हो सकती है, वैसे ही पोखरी के गंदे जल से भी हो सकती है। इसलिए मैने तुमको भी प्रणाम नहीं किया।तीसरी बोली–“मेरा नाम नींदमाई है।” राजकुमार ने कहा– “तुम्हारा प्रभाव या स्वभाव भी उक्त दोनों की।तरह लक्ष्यहीन है। पुष्पों को शैय्या पर जैसे नींद आती है, वैसे ही खेत के ढेलो में भी आती है। इसलिए मैने तुमको भी प्रणाम नहीं किया।अन्त मे चौथी बुढ़िया ने कहा–मेरा नाम आसमाई है। तब राजकुमार बोला– जैसे ये तीनों मनुष्य को विकल कर देने वाली हैं वैसे ही तुम उसकी विकलता का नाशकर उसे शान्ति देने वाली हो। इसलिए मेंने तुम्हीं को प्रणाम किया है। इससे प्रसन्न होकर आसमाई ने राजकुमार को चार कोड़ियाँ देकर आशिर्वाद दिया कि जब तक ये कोड़ियाँ तुम्हारे पास रहेगी, कोई भी तुम से युद्ध मे या जुएं मे न जीत सकेगा। तुम जिस काम मे हाथ लगाओगे उसी में तुमको सिद्धि होगी। तुम्हारी जो इच्छा होगी या यत्न करते हुए तुम जिस वस्तु की प्राप्ति की आशा करोगे वही तुमको प्राप्त होगी।राजकुमार चलता-चलता कुछ दिनों के बाद एक राजा के शहर में पहुँचा। उस राजा को जुआं खेलने का शौक था। इस कारण उसके नौकर-चाकर, प्रजा-परिजन सभी को जुआ खेलने का अभ्यास पड़ गया था। राजा के कपड़े धोने वाला धोबी भी जुआरी था। वह नदी के जिस घाट पर कपड़े धो रहा था, उसी घाट पर राजकुमार अपने घोड़े को नहलाने ले गया। धोबी उससे बोला–“मुसाफिर! पहले मेरे साथ दो हाथ खेल लो, जीत जाओ तो घोड़े को पानी पिलाकर चले जाना और राजा के सब कपड़े जीत में ले जाना और जो हार जाओ तो घोड़ा देकर चले जाना। फिर मैं इसे पानी पिलाता रहूँगा। राजकुमार को तो आसमाई के वरदान का बल था। वह घोड़े की लगाम थामकर खेलने बैठ गया। थोड़ी ही देर में राजकुमार ने राजा के सब कपड़े जीत लिए। उसने कपड़े तो न लिए। पर घोड़े का पानो पिलाकर वह चला गया।धोबी शाम को जब महल में गया, तब उसने राजा को बताया कि एक ऐसा खेलने वाला मुसाफिर इस शहर में आया है जैसा आज तक मैने देखा न सुना। कोई उससे जुएं में जीत ही नहीं सकता। यह सुनकर राजा बोला–तब में उस मुसाफिर से जरूर मिलूँगा और दो-दो हाथ उसके साथ खेलूँगा। दूसरे दिन धोबी राजकुमार को राजा के पास लिवा ले गया। राजा ने उसका उचित आवभगत करके जुआ खेलने की इच्छा प्रगट की। राजकुमार ने कहा — मुझे हुक्म की तामील करने से कोई इन्कार नहीं है। परन्तु अधिक देर तक खेलने का मेरा अभ्यास नहीं है। दो-चार दाँव में ही वारा-न्यारा हो जाना चाहिए। राजा ने कहा– बहुत अच्छा। दोनों खेलने लगे। थोड़ी ही देर में राजकुमार ने राजा का राजपाट सब जीत लिया। राजा ने हार स्वीकार कर ली। तब अपने मंत्री, मित्र, मुसाहब सबको इकट्ठा करके सलाह ली कि अब क्या करना चाहिए ? किसी ने कहा– इसे मार देना उचित है। अकेला तो है ही, क्या कर सकता है, किसी ने कहा– राज का एक अंश देकर उसे राजी कर लेना चाहिए।राजा के पिता के समय का एक पुराना मंत्री था। यह प्राय: घर ही में रहता था। उसने जब यह समाचार सुना ते वह बिना बुलाये ही दरबार मे गया, उसने राजा से कहा–“महाराज ! राजाओं के सामने बिना बुलाये न जाना चाहिये। और न बिना पूछे कुछ कहना चाहिये। किन्तु जब कोई संकट आ पढ़े तो अवश्य ही उचित सलाह देना स्वामी-सेवी नौकर का धर्म है। इसलिए में हाजिर हुआ हूँ। मेरी बात सुन ली जाय। राजा ने एकान्त में बैठकर उसका मत लिया तो वह बोला– इस विजयी मुसाफिर को अपनी बेटी ब्याह दीजिए। तब वह आपका लड़का हो जायेगा। तब आपके ही राज पर दावा न करेगा और यों ही यदि वह यही रह जायेगा ओर योग्य होगा तो उसे प्रजा के लोग आप का उत्तराधिकारी मानने लगेंगे। यदि अयोग्य होगा। ते जैसा होगा वैसा व्यवहार किया जायगा।राजा ने वृद्ध की बात मानकर राजकुमार के साथ अपनी बेटी ब्याह दी। राजकुमार कोई साधारण मनुष्य तो था नहीं। वह भी तो राजा का लड़का था। उसके आचरण से राजा को बड़ी असन्नता हुईं। राजा ने सलाह देने वाले वृद्ध के बहुत इनाम दिया। विवाह हो जाने के बाद राजकुमार को अलग महलों में डेरा दिया गया। राजा की कन्या भी अपने पति के साथ उन्हीं महलों में रहती थी। वह बड़ी ही सदाचारिणी और विनयशीला स्त्री थी। उस घर में सास-ननदें वे कोई थीं नहीं, जिनकी आज्ञा का वह पालन करती। इस कारण उसने कपड़े की गुड़ियाँ बनाकर रख लीं। जब वह श्रृंगार करके निश्चिन्त होती, तब उन गुड़ियों को सास-ननद मानकर उनके पैर पड़ती और आंचल पसारकर उनका आशीर्वाद लेने के बाद पति के समीप जाती थी।एक दिन राजकुमार ने उसे गुड़ियों के पैर पड़ते देख लिया। उसने पूछा– यह तुम क्या किया करती हो। राजकुमारी ने जवाब दिया– मैं यह स्त्री धर्म का निर्वाह करती हूँ। यदि में आप के घर में होती तो नित्य सास-ननद के पैर पड़ती और उनसे आशीर्वाद लाभ करती। किन्तु यहाँ सास ननद कोई नहीं है, तब इन गुड़ियों को सास-ननद मानकर अपना धर्म-निर्वाह करती हूँ। यह सुनकर राजकुमार बोला–“यदि ऐसी बात है तो गुड़ियों के पैर पड़ने की क्या जरूरत है ? तुम्हारे परिवार में तो सभी कोई है। यदि तुम्हारी इच्छा है तो अपने घर चले। वह बाली– इस से अच्छा क्या? है कि में अपने घर चलकर अपने परिवार में मिल-मिलाकर रहूं। विवाह हो जाने के बाद लड़की का माता-पिता के घर में रहना किसी हालत में अच्छा नहीं है । वह विवाह होने पर भी बिन ब्याही के समान होती है। आप घर को चलिये मैं खुशी से आप के साथ चलूंगी।तब राजकुमार ने अपने सास-ससुर से कहा–“मै अपने घर के जाना चाहता हूँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये। राजा ने उनकी यात्रा का सब प्रबन्ध करके बेटी को विदा कर दिया। राजकुमार नई दुल्हन को लिवाये, भीड़-भाड़ के साथ चलता हुआ कुछ दिनों में अपने पिता की राजधानी के पास पहुँचा। इधर जिस दिन से राजकुमार चला गया था, उसी दिन से राजा- रानी दोनों उसके बिछेड मे दिन-ब-दिन दुबले होने लगे थे। जब राजकुमार! वापस आया, उन दिनों उसके माता-पिता दोनों अन्धे हो गये थे। राजकुमार की सेना देखकर लोगों ने राजा के सूचना दी कि कोई बड़ा सूबा चढ़ आया है। राजा गले में अंगोछी डालकर उससे मिलने के लिये तैयार हो गया। इसी समय राजकुमार ने महल के दरवाजे पर आकर खबर कराई कि में अपने अपराध की पूरी सजा पा चुका। अब आज्ञा है तो चरणों में हाजिर होऊँ। यह सुनते ही राजा को बड़ी खुशी हुई। उसने कहा– मैं बाप हूँ, वह बेटा है। उसका घर है, खुशी से आवे।तब राजकुमार ने पुनः अर्ज कराई कि मे विवाह कर लाया हूँ। पहिले कुलाचार के अनुसार अपनी बहू को महलों में बुलाइये। तब पीछे में आऊँगा। इस पर राजा ने सवारी लगवाई। खुद बाहर गाँव तक बहू को लिवाने गया। महलों में आकर बहू ने सास के पैर पड़े। सास ने आशीर्वाद दिया। कुछ दिनो के बाद उस राज-कन्या के भी एक अति सुन्दर बालक हुआ। इसी बीच में राजा-रानी की नज़र फिर ठीक हो गईं। जिस परिवार में अंधेरा पड़ा था, उसी परिवार में आसमाई की कृपा से आनन्द की वर्षा होने लगी। उसी समय से लोक में आसमाई की पूजा का रिवाज चला है।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—–[post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार हमारे प्रमुख व्रतहिन्दू धर्म के प्रमुख व्रत