आर्किमिडीज का जीवन परिचय – आर्किमिडीज का सिद्धांत Naeem Ahmad, May 26, 2022March 18, 2024 जो कुछ सामने हो रहा है उसे देखने की अक्ल हो, जो कुछ देखा उसे समझ सकने की अक्ल हो, और जो कुछ समझ लिया उसके आधार पर उसके मूल में काम कर रहें नियम को खोज निकालने की अक्ल हो—एक वैज्ञानिक की यही पहचान है। आर्किमिडीज एक दिन स्नान करके बाहर निकला तो शरीर तो उसका स्वच्छ हो ही चुका था, विज्ञान का एक नया नियम भी वह टब से बाहर निकलते हुए साथ लेता आया। आज इस नियम को हम विशिष्ट गुरुत्व (स्पेसिफिक ग्रेवटी ) के नाम से जानते हैं। आर्किमिडीज का जीवन परिचय आर्किमिडीज का जन्म ईसा से लगभग 287 साल पहले सिसिली के सिराक्यूज द्वीप में हुआ था। प्रसिद्ध ग्रीक ज्योतिविद फीडियाज़ का वह पुत्र था। आर्किमिडीज की शिक्षा-दीक्षा अलेक्जेंड्रिया के प्रसिद्ध गणित विद्यालय में हुई। यह विद्यालय उन दिनों ग्रीस के गिने-चुने विद्या-केन्द्रों में था। यहां आर्किमिडीज के गुरू थे, यूक्लिड का एक परम्परा-शिष्य और सामोस का विख्यात गणितज्ञ सेनों। महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ आर्किमिडीज आर्किमिडीज ने अपनी तमाम ज़िन्दगी दर्शन और गणित के अध्ययन में गुजार दी। ग्रीस में उन दिनों हाथ से काम करने को नफरत की निगाह से देखा जाता था। कोई परीक्षण करना तो दूर, उसे होता हुआ देखकर भी लोगों की नाक-भौं सिकुड़ जाती। कुछ भी हो, कई विद्वानों का विचार है कि इतने नपे-तुले नतीजों पर पहुंचने के लिए आर्किमिडीज ने पहले कुछ न कुछ वास्तविक परीक्षण भी अवश्य किए होंगे। आर्किमिडीज ने इन परीक्षणों का ज़िक्र कहीं नहीं किया। वैसे उसके निष्कर्षों को पढ़ने से कुछ ऐसा ही लगता है, जैसे विशुद्ध मानसिक चिन्तन द्वारा ही वह इन परिणामों पर पहुचा था। अन्य लोगो के लेखों से हमे मालूम होता है कि इन निष्कर्षों का भौतिक प्रयोग भी आर्किमिडीज ने कुछ कम नही किया था। आर्किमिडीज़ का विशिष्ट गुरुत्व सिद्धांत एक किस्सा मशहूर है कि विशिष्ट गुरुत्व नियम का बोध जिसे आज भी आर्किमिडीज का नियम’ करके ही स्मरण किया जाता है, आर्किमिडीज को एक दिन टब में नहाते-नहाते हुआ था। बादशाह हीरो द्वितीय ने एक ताज बनाने का हुकम दिया था और उसके लिए साथ ही कुछ सोना भी सुनार को दिया था। जब ताज बनकर बादशाह के यहां आया तो उसका वजन उतना ही था जितना असली सोने का था, लेकिन बादशाह को शक था कि सुनार ने उसमें चांदी मिलाकर बेईमानी से कुछ कमाई और भी कर ली है। अब यह तो हर कोई उस जमाने मे भी जानता था कि भिन्न भिन्न किस्म की धातुओं का वजन भी भिन्न होता है। जाहिर है कि एक ही रूप और मात्रा के सोने और चांदी के दो टुकडों के वजन अलग-अलग होगे, सोना भारी होता है, और चांदी हलकी होती है। मुश्किल का एक आसान हल तो यह था कि ताज को पिघलाकर उसका सोना फिर से इकट्ठा करके तोल लिया जाए। अगर असल सोने से वह कम उतरे तो उसका मतलब साफ होगा कि सुनार ने कुछ सोना निकाल लिया है और उसकी जगह चांदी भर के बादशाह को धोखा दिया है। यह हल लगता तो आसान है, लेकिन इसके लिए ताज को बरबाद करना होगा। सो प्रश्न यह था कि ताज भी बना रहे और उसमें सोने के परिमाण का पता भी लग जाए। आर्किमिडीज का विशिष्ट गुरुत्व सिद्धांत बादशाह ने मामला आर्किमिडीज के सुपुर्द कर दिया। और इस तरह कहानी में हम आर्किमिडीज के ऐतिहासिक स्नानागार में आ पहुंचते हैं। टब मे जब आर्किमिडीज नहाने के लिए उतरा तो स्वाभाविक ही था कि टब का पानी टब मे ऊपर की ओर उठने लगा। जितना-जितना वह अन्दर उतरता गया, पानी भी उतना-उतना ही अधिक ऊपर चढता गया। आर्किमिडीज को सूझा कि इस चीज के इस्तेमाल से किसी भी वस्तु के परिमाण को बखूबी मापा जा सकता है, उसकी कसर को भी जांचा जा सकता है। आर्किमिडीज ने टब को लबालब भर दिया और बडी एहतियात के साथ उसमे ताज को डालना शुरू किया। जो पानी ताज को डुबाने से बाहर निकल आया, उसे उसने इकट्ठा कर लिया। इस गिरे पानी का परिमाण भी ताज के परिमाण के बराबर ही होना चाहिए। अब मसला आसान हो गया। इस बाहर गिरे पानी के बराबर वजन का सोना लिया जाए और उसके तोल की तुलना ताज के तोल के साथ कर ली जाए, बस। पता चल गया कि सुनार ने लालच मे आकर बेईमानी की है, और उसे मौत की सज़ा दे दी गई। खेर, जो चीज इस घटना से कही अधिक महत्त्व की है, वह यह कि दुनिया भर के वैज्ञानिक और इंजीनियर तब से एक ही परिमाण की किसी भी चीज़ के और पानी के दोनो वजनों का मुकाबला करते आ रहे हैं, और तुलना के इस निष्कर्ष को विशिष्ट गुरूत्व’ अथवा स्पेसिफिक ग्रेविटी’ नाम देते है। सोने की विशिष्ट गुरुत्वता 20 है, जिसका मतलब यह हुआ कि एक प्वाइंट सोने का वजन 20 पौंड होगा क्योकि एक प्वाइट पानी का वजन एक पौंड होता है। और एक प्वाइंट चांदी वजन में सिर्फ दस पौंड होनी चाहिए। साने के ताज में असली और नकली वज़न की इस जानकारी के साथ-साथ एक और मसला भी अपने-आप हल हो जाता है। वह मसला है–पानी में पड़ते ही चीज़ों के हल्का होकर ऊपर उठने लगने का। शायद आर्किमिडीज ने भी यह महसूस जरूर किया होगा कि टब के पानी में चीज को ऊपर धकेलने की कुछ ताकत होती है, पानी’ में मनुष्य खुद ही जैसे तैरने-सा लगता है। या हो सकता है, उसने यह भी देखा हो कि लकड़ी वगरह कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जो पानी में डालने पर डूबती नहीं। सतह पर तैरना शुरू कर देती हैं। उसके मन में सम्भवतः प्रश्न उठा होगा कि क्या जो चीज़ें नीचे डूब जाती हैं उनका भार भी पानी में पड़ने के बाद कुछ कम नहीं हो जाता? आर्किमिडीज ने समस्या का खूब अध्ययन किया और वह इस परिणाम पर पहुंचा कि “किसी भी चीज को पानी में डालो, उसका वज़न उतना कम हो जाएगा जितना पानी उसकी इस डूबने की हरकत से अपनी जगह से हटकर ऊपर को आ जाता है या बाहर गिर जाता है। इसका अर्थ यह है कि मान लीजिए एक आठ पौंड वजनी लोहे के टुकड़े को हम लेते हैं। इस लोहे का कुछ-न-कुछ परिमाण है। अब इसे अगर किसी भरे टेंक में डालें तो कुछ-न-कुछ पानी टेंक से बाहर उछलकर गिरेगा। मतलब यह कि अगर पानी में पड़ी लोहे की इस सलाख को इसी हालत में तौलें तो उसका वजन अब सात पौंड होगा। वज़न में आठ से सात पोंड की यह कसर एक पौंड पानी के वहां से हट जाने की वजह से आई है। जितना पानी इसने परे कर दिया उसी के बराबर वजन की ताकत पानी में इसे ऊपर उठाने की आ गई। पानी में हम भी तैर सकते हैं, इसका कारण यही होता है कि हमारे शरीर का भार प्रायः उतना ही होता है जितना कि हमारे पानी में दाखिल होने से इधर-उधर खिसक गए पानी का भार होता है। पानी में हमारा भार जैसे कुछ भी नहीं रह जाता। और यही कारण है कि पानी में तैरना हमारे लिए और भी आसान हो जाता है जबकि हमारा सारा जिस्म सिर-पैर सब पानी के अन्दर डूबा होता है। कोई भी हिस्सा उसका पानी के बाहर नही रह जाता। लकडी का टुकडा या कोई किश्ती पूरी की पूरी ही पानी पर नही तैरा करती, उतना हिस्सा उसका पानी के अन्दर डूबना ज़रूरी होता है जितना कि उसके बराबर वजन का पानी अपनी जगह छोड जाए। जहाजो में माल भी लदा होता है, इस वजह से वे और भी ज़्यादा पानी मे डूबते चलते है क्योकि अपने वजन के बराबर का पानी नीचे से निकाल परे करना उनके लिए इस तरह जरूरी हो जाता है। आजकल का एक यात्री जहाज़ 80,000 टन पानी को अपनी जगह से परे कर सकता है, अर्थात् जहाज़ का अपना वजन आजकल 80,000 टन तक होता है। पनडुब्बियों का, परमाणु-चालित पनड्ब्बियो तक का आधार भी यही आर्किमिडीज का सिद्धान्त ही है। आर्किमिडीज का स्क्रू का सिद्धांत आर्किमिडीज को पानी को ऊपर उठाने का एक यन्त्र आविष्कृत करने का श्रेय भी दिया जाता है। इस यन्त्र का नाम है आर्किमिडीज स्क्रू। इसकी बनावट एक मेहराबदार शक्ल की लम्बी-चौडी चूंडी की होती है, जो आराम से एक सिंलिडर की शक्ल के बॉक्स के अन्दर कायम की हुई होती है। चूंडी को जब घुमाया जाता है, तो पानी उसके साथ-साथ ऊपर को चलने लगता है, जैसा कि तस्वीर से जाहिर है। पानी को ऊपर उठाने और स्क्रू सिद्धांत इसी नियम काप्रयोग गेंहू के ढेर को एक जगह से दूसरी जगह हटाने के लिए भी करते है। इसका एक और रूप, जिसे ‘स्क्रू’ कहते है, जो आजकल विभिन्न प्रकार वस्तुओं को जोड़ने के काम में आता है। तथा कोयले को भट्टी से उतारने के लिए और वहा से राख को हटाने के लिए बने “आटोमेटिक स्टोकरो’ मे काम मे आता है। उसी एक बुनियादी नियम का प्रयोग घंरो मे कितने ही ढंग से हम रोज़ करते है। जूस को निकालने की सूरत में, या काटने के लिए औरतें एक तरह के स्क्रू या पेंच का इस्तेमाल करती हैं जिसमे साफ- साफ नज़र आता है कि किस तरह फल छोटे-छोटे टुकडों मे कटकर एक तरफ इकट्ठा होता जाता है। और जूस एक तरफ। आर्किमिडीज का लीवर सिद्धांत आर्किमिडीज ने यह भी जान लिया कि लीवर के पीछे गणित का कौन-सा नियम काम करता है, और उसने इस नियम की क्रियात्मक परीक्षा भी प्रत्यक्ष दिखा दी। इस नियम के प्रयोग द्वारा कोई भी मनुष्य अपने हाथो की ताकत को कितने ही गुना बढाकर बडे से बडे भार को यो ही उठा सकता है और एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर पहुचा सकता है। इसी बात को बलपूर्वक कहने का ढंग भी आर्किमिडीज़ का अपना ही था– “खडे होने के लिए बस, मुझे कुछ जगह दे दो, और फिर देखना– मैं पृथ्वी को ही हिला- कर कहा की कहां कर देता हूं।” लीवर के सिद्धान्त को चित्र की सहायता से स्पष्ट किया गया है। लीवर के एक सिरे पर कितना बोझ उठाया जा सकता है, कितनी कम ताकत इस्तेमाल करके उठाया जा सकता है–यह लीवर के ध्रुव (पिवट) की दोनो सिरों से दूरी पर निर्भर करता है उदाहरणार्थ, 1000 पौंड के वज़न को उठाने के लिए 100 पौंड की ताकत ही काफी है, अगर पिवट की दूरी लीवर के ताकत लगानेवाले सिरे से बोझ को उठाने वाले परले सिरे की दूरी की अपेक्षा दस गुनी हो। पार्कों मे सी-सौ’ का खेल आपने कभी देखा है ”? उसके एक सिरे पर–क्रास-बार से दूर के सिरे पर–बैठा कोई हल्का-फुल्का बच्चा भी क्रास-बार के नजदीक दूसरे सिरे पर बैठे एक ज़्यादा बजनी लड़के को बैलेंस कर लेता है; और कितनी आसानी के साथ कर सकता है। आर्किमिडीज के सर्पिल पर आधारित रडार एटिना गणित को आर्किमिडीज़ की देन, मूल सिद्धान्तों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है और क्रियात्मक प्रयोगों की दृष्टि से भी गणित में एक प्रश्न जिसका कभी कोई समाधान नहीं निकाला जा सका — वृत्त के वर्गीकरण का, अथवा सही-सही क्षेत्रफल निकालने का प्रश्न है। गणित शास्त्र अब तक हमें इसका कुछ निकटतम उत्तर नही दे पाया है जिसके अनुसार वृत का क्षेत्रफल π × व्यासार्द्ध होता है। और π (पाई) का निकटतम मुल्य होता है—3.1416,। इस ‘पाई’ का सही-सही मूल्यांकन कभी नहीं हो सका, आज की हमारी दानवी इलेक्ट्रॉनिक्स मशीने भी इसमें असफल रही हैं; लेकिन आर्किमिडीज ने बड़ी ही होशियारी के साथ इसका अन्दाज 3.1408 और 3.1429 के बीच तब लगा लिया था। यही नहीं, विश्लेषणात्मक ज्यामिति (एनेलिटिकल ज्योमेट्री ) के क्षेत्र में भी वह बहुत कार्य कर गया, खास तौर से गोलों ( स्फियर्ज ) तथा शंकुओं (कोन्ज) के पिडांशों (सेक्शंज) की विशेषताओं के स्पष्टीकरण में। एक सर्पिल (स्पाइरल) जिसका नाम भी आर्किमिडीज का सर्पिल है, का अध्ययन कैल्कुलस के हर विद्यार्थी के लिए आज भी आवश्यक है। आर्किमिडीज को अपने किये कामों में विशेष गर्व– स्फियर और सिलिंडर के बारे में जो कुछ वह मालूम कर सका, उसकी सफलता पर था। स्फियर या गोले के बहिरंग का क्षेत्रफल तथा गोले का परिमाण (वॉल्यूम) निकालने के लिए उसने नियम निर्धारित किए। यही नहीं ऐसे सिलिडर बनाने की विधि भी वह विज्ञान को दे गया जिनमें कि विशिष्ट परिमाण के दूसरे गोले ऐन फिट अन्दर डाले जा सकते हैं। आर्किमिडीज ने यह भी दिखा दिया कि स्फियर या गोला ही मूर्ते आकृृतियों में पूर्णतम आकृति है। पाठक इस उक्ति की सत्यता के प्रत्यक्ष के लिए गोलाकार टैंकों के दर्शन कर सकता है, यही बरतन हैं जिनमें ज़्यादा से ज्यादा पानी आ सकता है और जिनके बनाने में कम से कम मसाला खर्च आता है। आर्किमिडीज ने अपनी प्रतिभा को युद्ध की दिशा में मोड़ दिया। हमारी सभ्यता के इतिहास में कितने ही अन्य वैज्ञानिक भी ऐसा करते आए हैं। लीवर-सम्बन्धी उनके विज्ञान को कीटापुल्टज’ बनाने में प्रयुक्त किया गया। इतिहासकार लिखते हैं कि यह आर्किमिडीज़ के केठापुल्टज की बदौलत ही मुमकिन हो सका था कि 215 ई० पू० में सिराक्यूज की रक्षा में दुश्मन हर तरफ दूर नजदीक, दायें-बायें बुरी तरह घायल हुआ और जीत ग्रीस वालों को ही हासिल हुई। पॉलीबस इसका जिक्र करते हुए लिखता है, कि “कितनी सच है यह बात कि एक ही आदमी और एक ही अक्ल, जोकि उस खास काम को करने में पूरी-पूरी माहिर है, अपने-आप में एक पूरी फौज ही बन जाती है, जिसकी गवाही हम आज भी उतनी ही दे सकते हैं। परमाणु के बारे में दित-रात एक कर देने वाले वैज्ञानिक गिनती में कितने (थोड़े ) थे—और कितनी ज़्यादा तबाही करने वाले परमाणुविक हथियार ईजाद कर गए। अन्त में काफी साल बाद, रोमन जनरल मार्सिलस ने सिराक्यूज पर कब्जा कर लिया। उसका हुक्म था कि आर्किमिडीज पर और उसके घर पर आंच न आने पाए। कहीं कुछ गलती रह गई और आर्किमिडीज रोम के एक सिपाही की तलवार का शिकार हो गया। रोमनों ने आकर पूर्ण आदर-सम्मान के साथ उसकी अन्त्येष्टि की और उसकी कब्र पर उसके प्रिय चिह्न–एक स्फियर और एक सिलिंडर को अंकित गया। आर्किमिडीज एक दिग्गज था–विज्ञान और गणित के क्षेत्र में एक अद्भुत प्रतिभा का धनी दिग्गज। एक ही आदमी और एक ही अक्ल–लेकिन खुद में पूरी एक फौज। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=’9237′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी