आंद्रेयेस विसेलियस का जीवन परिचय और उन्होंने क्या खोज की? Naeem Ahmad, May 27, 2022 “मैं जानता हूं कि मेरी जवानी ही, मेरी उम्र ही, मेरे रास्ते में आ खड़ी होगी और मेरी कोई सुनेगा नहीं, और यह भी कि–जब एनाटमी में वे लोग जिनकी अपनी आंखें नहीं हैं मुझ पर वार करना शुरू कर देंगे, मेरी हिफाजत में एक भी उंगली कहीं नहीं उठेगी। ये शब्द हैं जिनमें अट्ठाइस साल की कच्ची उम्र के आंद्रेयेस विसेलियस (Andreas Vesalius) ने सम्राट चार्ल्स पंचम से प्रार्थना की थी कि मुझे आश्रय दें। (Andreas Vesalius) आंद्रेयेस वेसेलियस अपनी गवेषणाओं का एक संग्रह सात भागों में प्रकाशित करने चला था। ‘डि ह्यूमेनि कार्पोरिस फैब्रिका (de humani corporis fabrica) ( मानव शरीर की रचना के विषय में कुछ )। आंद्रेयेस विसेलियस को मालूम था कि उसकी आलोचना होगी और कटु आलोचना होगी। वह खुद डाक्टरों की चलती प्रैक्टिस की और प्रचलित शिक्षा-प्रणाली की आलोचना करने की ठान चुका था और स्वयं गैलेन की ही वेद-वाक्यता पर सन्देह उठाने की ठान चुका था। तेरह सदियों से चलता आ रहा शरीर-रचना विज्ञान सिद्धांत, तथा परीक्षण जिस मोड़ पर आ पहुंचा था, विसेलियस ने अपने को उस पर पाया। सो, इसमें कुछ आश्चर्य की बात नहीं कि नौजवान छोकरे को स्वभावत कुछ संकोच अनुभव हुआ कि राजकीय अभिरक्षा के बगैर वह कुछ भी प्रकाशित करने का साहस करे या नहीं। आंद्रेयेस विसेलियस को जीवन परिचय आंद्रेयेस विसेलियस का जन्म 1514 में, ब्रुसेल्स शहर में हुआ था। उसका पिता सम्राट चार्ल्स पंचम के यहां शाही औषधिविक्रेता था, और उसके पूर्वजों में (उसकी रगों में खून था) कितने ही आयुर्वेदशास्त्री हो चुके थे। जवानी में वह जरूर अपने ही घरवालो के लिए एक खासा सिरदर्द रहा होगा क्योकि छोटे-छोटे जानवरों, चूहों, परिंदों वगैरह पर चीरा फाडी करने का उसे शुरू से शौक था। वंश में उपयुक्त परम्परा ने और अपनी निजी अभिरुचि ने मिलकर जैसे पहले से ही फैसला कर रखा हो वह चिकित्सक बनेगा। आंद्रेयेस विसेलियस की शिक्षा-दीक्षा, तदनुसार, लूवे विश्वविद्यालय में तथा पेरिस विश्वविद्यालय के मेडिकल स्कूल में हुई। आंद्रेयेस विसेलियस के विद्यार्थी जीवन का दीक्षान्त पेदुआ विश्वविद्यालय में हुआ और, पढाई खत्म करते ही वही मेडिकल फेकल्टी मे शल्य-शास्त्र तथा शरीर शास्त्र के प्रोफेसर के रूप में उसे नियुक्ति मिल गई। 1543 तक वह वहीं बना रहा और अध्यापन-स्वाध्याय मे, तथा अपने जीवन के महान कार्य की अहर्निश पूर्ति मे लगा रहा। लेकिन आंद्रेयेस विसेलियस की किताब छपते ही उसकी नौकरी जाती रही, एक तूफान उठ खडा हुआ और तरह-तरह की मजबूरियां बन आईं। खैर, स्पेन के चार्ल्स पंचम के यहां वह राजकीय वेद्य नियुक्त हो गया। यहां पहुंच कर उसने शरीर-रचना पर आगे कुछ भी अनुसन्धान नही किया। चार्ल्स के बाद उस के बेटे फिलिप्स द्वितीय के यहां भी वह उसी तरह राज वेद्य ही बना रहा। आंद्रेयेस विसेलियस आंद्रेयेस विसेलियस को चिकित्सा शास्त्र की अध्ययन-अध्यापन विधि मे त्रुटियों का आभास तभी से कुछ न कुछ मिल चुका था जब वह पेरिस मे खुद एक विद्यार्थी था। शरीर-रचना चिकित्सा शास्त्र का एक मुख्य अंग है और चिकित्सा-विषयक सही-सही शिक्षा, बिना शरीर के अंगाग का प्रत्यक्ष कराए, दी भी कैसे जा सकती है? मुर्दे को देखते ही कुछ लोगो की तबियत खराब होने लगती है, लेकिन मानव-शरीर के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का परिचय और किसी तरह बढ भी कैसे सकता है? बीमारों का ठीक तरह से इलाज किसी और तरह शुरू भी कैसे किया जा सकता है? आज भी कितने ही लोग है, कितने ही धर्म है, जिन्हे इंसान के जिस्म पर चाकू चलाने से नफरत है। चीराफाडी होते देख लोगो को उलटी आने लगती है। उन दिनों जब विसेलियस एक विद्यार्थी के तौर पर शरीर-रचना विज्ञान पढ रहा था, प्रोफ़ेसर आता और सामने कुर्सी पर बैठकर गैलेन के ग्रन्थ का श्रद्धा भक्ति के साथ कुछ पाठ करके चला जाता। 200 ई० मे गैलेन की मृत्यु हुई थी और उसके ग्रन्थों मे जो कुछ मानव-शरीर के सम्बन्ध मे लिखा था वह प्राय (बार्बेरी) बन्दरों की चीराफाडी पर ही आधारित था। उधर, प्रोफेसर अपने घिसे-पिटे नोट्स पढ़ता जाता, और इधर एक सहायक उघडे मुर्दे के अंगाग तदनुसार जल्दी-जल्दी दिखाते चलने की रस्म पूरी करता जाता। कही-कही ऐसा भी आ जाता कि गैलेन के वर्णन में और सामने पढ़े नमूने मे परस्पर संगति बनती नहीं या बन ही नहीं पाती। ऐसे स्थलो पर प्रोफेसर साहब यही कहकर छट से आगे चल देते कि जरूर गैलेन के बाद से मनुष्य के शरीर मे कुछ परिवर्तन आ गए है। गैलेन के विरुद्ध सम्मति के लिए किसी में साहस नही था गैलेन स्वत प्रमाण था, और यह तब जबकि खुद गैलेन में स्थान-स्थान पर परस्पर-विरोध कुछ कम नही है। आंद्रेयेस विसेलियस चिकित्सा शिक्षा की इस प्रणाली से असंतुष्ट था। उसे याद था कि बचपन में उसे किस प्रकार परिंदो पर, चुहों पर खुद चीरा फाडी करने का शौक था, उसने निश्चय कर लिया कि इन्सान के बारे मे भी वह अपना ज्ञान इसी तरह बढाएगा। अब मुश्किल यह थी कि फालतू शरीर कहां से हासिल किए जाएं ? एक ही रास्ता रह गया था कि मुर्दों को उड़ाया जाए (आज भी ‘हॉरर’ फिल्म में जब यह दहशत परदे पर पेश हो रही होती है, देखनेवालों में कितने ही मुंह फेर लेते हैं। यही एक रास्ता रह गया था जिसका परिणाम यह हुआ कि कुछ अनधिकारी लोग भी जा-जाकर कब्रों को पलीत करने लग गए। कुछ भी हो, विसेलियस ने निश्चय कर लिया कि वह किसी भी और के लिखे-कहे पर आंख मूंदकर विश्वास कभी नहीं करेगा, अपने ही हाथों जो कुछ सामने खुलेगा उसी के आधार पर वह अगला कदम रखेगा, अपने सिद्धान्त बनाएगा। उसे भी रोज़ शरीर रचना विज्ञान पर लैक्चर देने होते थे, इन लेक्चरों में अब हाजिरी बढ़ने लगी। विद्यार्थियों के लिए उसने एक नियम ही बना दिया कि वे, उसकी क्लास में आप जिस्म को चीरने फाड़ने की आदत बनाएं, प्रोफेसर के गिर्द बुत बनकर खड़े न रहा करे, मेरी यह अपनी पुस्तक भी एक मार्गदर्शिका ही है, प्रत्यक्ष का स्थान यह नहीं ले सकती। सत्यासत्य की एक ही कसौटी हो सकती है– प्रत्यक्ष दर्शन। विसेलियस ने अपने जमाने के डाक्टरों की आलोचना की, “आज जब बाकी सबने अपने उत्तरदायित्व का वह अरुचिकर अंश त्याग दिया है किन्तु साथ ही पैसे और ओहदे की अहमियत से मुंह जरा भी नहीं फेरा, तब भला ये मेरे साथी डाक्टर पुराने जमाने के उन हकीमों के साथ, उन च्यवनों के साथ अपना मुकाबला कर कैसे सकते हैं ?। “खुराक के तरीके और तौर क्या होने चाहिए? यह प्रश्न आज नर्सो के जिम्मे छोड़ दिया जाता है। दवाइयां मिलाने का काम पंसारी करे, और चीरा फाड़ी का नाई (उस समय नाई ही मनुष्य शरीर की चीरा फाडी करता था)। फिर डाक्टर के लिए क्या रह गया ?”। आंद्रेयेस विसेलियस ने चिकित्सकों को प्रबोधित किया कि वे मरीज की सेहत का जिम्मा अपने हाथ ले लें, अपनी कुछ जिम्मेदारी समझे। विसेलियस के ग्रंथ ‘फैब्रिका’ का महत्त्व बहुत कुछ उसके चित्रकार यान स्टीफन वॉन काल्कार की बदौलत है। वॉन काल्कार प्रसिद्ध कलाकार टीटियन का शिष्य था। आज तक उसके रेखाचित्रों की सूक्ष्म-दृष्टि को तथा स्वाभाविकता को मात नहीं दिया जा सका, और शरीर रचना शास्त्र की वे स्थायी सम्पत्ति बन चुके हैं। 1564 में आंद्रेयस विसेलियस का देहांत हुआ, आखिर वह भी इंसान था। उसकी प्रणाली की तथा उसके निष्कर्षों की आलोचना अब भी बन्द होने में नहीं आ रही थी। वह भी इंसान था, कहां तक बरदाश्त करता चलता?। आंद्रेयेस विसेलियस का महत्त्व शरीर रचना विज्ञान में यही कुछ है कि चिकित्सा शास्त्र को शरीर के प्रत्यक्ष शल्योद्धाटन की ओर फिर से ले आने वाला “आदि पुरुष’ वही था। विसेलियस की यह स्थापना, यह निधि आज चिकित्सा के क्षेत्र मे सभी कही प्रामाणिक रूप में गृहीत हो चुकी है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—- [post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी