आंग्ल मराठा युद्ध – अंग्रेजों और मराठा की लड़ाईयां Naeem Ahmad, April 16, 2022April 2, 2024 आंग्ल मराठा युद्ध भारतीय इतिहास में बहुत प्रसिद्ध युद्ध है। ये युद्ध मराठाओं और अंग्रेजों के मध्य लड़े गए है। अपने पिछले लेख में हमने आंग्ल मैसूर युद्ध के बारे में उल्लेख किया था जो अंग्रेजों और मैसूर रियासत के मध्य लड़े थे। अपने इस लेख में हम आंग्ल मराठा युद्ध के बारे में उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— आंग्ल मराठा युद्ध के क्या कारण थे? प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध कब और किसके बीच हुआ? आंग्ल मराठा युद्ध के परिणाम? आंग्ल मराठा युद्ध की संधि? प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के बारे में? प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के समय में जनरल गवर्नर कौन था? मराठों की युद्ध करने की एक विशेष पद्धति उसे क्या कहते हैं? पेशवा के साथ संधि सन् 1761 ईसवी में अहमदशाह अब्दाली के मुकाबले में पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय हो चुकी थी। उस समय तक दक्षिण में मराठों की शक्तियां संगठित और सदृढ़ थीं। उस युद्ध से मराठों की संयुक्त शक्ति को एक करारा धक्का लगा था। दिल्ली के मुगल साम्राज्य से उनका प्रभाव उठ गया था और उसके बाद से गायकवाड़, भोंसला, होलकर और सींधिया के राज्य पेशवा की अधीनता से एक-एक करके अलग होने लगे थे। पानीपत के युद्ध के बाद कुछ ही दिनों में पेशवा बाला जी बाजीराव की मृत्यु हो गयी थी। उसका नाबालिग लड़का माधव राव उसके स्थान पर अधिकारी हुआ, उसके नाबालिग होने के कारण, उसका चाचा रघुनाथ राव उसका संरक्षक बनाया गया। रघुनाथ राब बहादुर था, लेकिन दूरदर्शी न था। अंग्रेजों का फायदा इसमें था कि इस देश में कोई दूसरा राज्य शक्तिशाली न रहे। इसीलिए उन्होंने मराठों को निर्बल बनाने की कोशिश की ओर इस उद्देश्य में उन्होंने रघुनाथ राव को मिला कर लाभ उठाया। साष्टी का टापु और बसई का किला मराठों के अधिकार में था। अंग्रेज उनको अपने अधिकार में लेना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तरह-तरह के जाल फैलाने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में मराठों का शासन था और निजाम की हुकूमत भी चल रही थी। अंग्रेजों ने दोनों के बीच शत्रुता का भाव पैदा करने की चेष्टा की और झूठी अफवाह फैला कर उन्होंने माधव राब के साथ एक सन्धि कर ली, उसमें निश्चय हो गया कि निजाम के साथ संघर्ष पैदा होने में अंग्रेज माधवराव की सहायता करेंगे और माधवराव पेशवा इसके बदले में साष्टी का टापू और बसई का किला अंग्रेजों को दे देगा। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है…मराठों को लड़ाने की चेष्टासन् 1772 ईसवी में इंग्लैंड का चतुर राजनीतिज्ञ मास्टिन भारत में आया। उसने बम्बई से अपना एक प्रतिनिधि पेशवा दरबार में भेजा, उसका यह काम था कि वह पेशवा माधवराव के साथ सहानुभूति प्रकट करे और उस दरबार में रहकर वह पेशवा दरबार की भीतरी ओर बाहरी कमजोरियों को जानने की कोशिश करे। वह इस बात की भी कोशिश करे कि मराठों में आपस में फूट पैदा हो, वे एक दूसरे के साथ लड़ें और हैदर अली तथा निजाम के साथ भी मराठों की शत्रुता पैदा हो। अपने इस उद्देश्य को लेकर वह अंग्रेज पेशवा दरबार में चला गया।कुछ समय के बाद माधवराव बालिग हो गया। उसके दरबार में उस समय दूरदर्शी नाना फड़नवीस मौजूद था। वह अंग्रेजों की चालों को समझता था। माधवराव के बालिग़ होने पर नाना ने उसके नेत्रों को खोलने की चेष्टा की। अंग्रेजों ने रघुनाथ राव को बेवकूफ बना रखा था और इसके लिए उन्होंने उसे बहुत महत्व दिया था। उस समय अंग्रेजों के सामने एक ही आसान रास्ता था कि वे रघुनाथ राव को अपने अधिकार में रखकर पेशवा के दरबार में मनमानी करें, नाना फड़नवीस इसका विरोधी था। माधवराव भी बालिग हो चुका था, इसलिए पेशवा और रघुनाथ के बीच तनातनी बढ़ गयी ओर एक बार रघुनाथ राव कैद भी हो गया। लेकिन फिर छोड़ दिया गया।बीजापुर का युद्ध जयसिंह और आदिलशाह के मध्यअचानक पेशवा माधवराव की मृत्यु हो गयी। उसके स्थान पर उसका भाई नारायण राव गद्दी पर बैठा और रघुनाथ राव उसका भी संरक्षक माना गया। अंग्रेजों की फिर बन आयी। रघुनाथ राव ने नारायण राव को 30 अगस्त सन् 1773 ईसवी में मरवा डाला। अंग्रेजों से परामर्श लेकर रचुनाथ राव अब स्वयं पेशवा की गद्दी पर बैठा। अंग्रेज पहले से ही एक मौका चाहते थे। मास्टिन ने निजाम और हैदरअली के साथ रघुनाथ राव की लड़ाई करवा दी। अंग्रेजों के इशारे पर चलने के सिवा उसके सामने और कोई रास्ता न था। उस लड़ाई का इतना ही नतीजा निकला कि हैदर अली के साथ पेशवा की एक शत्रुता पैदा हो गयी। मास्टिन यही चाहता था। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है…पेशवा दरबार का विद्रोहमास्टिन के कहने पर रघुनाथ राव ने अपने आपको पेशवा बनकर घोषणा की थी। उसके दरबार के लोग ऐसा नहीं चाहते थे। नाना फड़नवीस स्वयं उसका विरोधी था। वह जानता था कि रघुनाथ राव अंग्रेजों की मर्जी पर चलकर पेशवा राज्य की जड़ को कमजोर बना रहा है। हैदरअली और निजाम के साथ युद्ध करने के पक्ष में पेशवा दरबार के मन्त्री न थे। इसलिए अपनी सेना लेकर, केवल अंग्रेजों के कहने पर, पूना से रघुनाथ राव के रवाना हो जाने पर दरबार के सभी लोगों ने नाना के साथ परामर्श किया और सभी ने एक मत होकर नारायण राव के पुत्र को गद्दी पर बिठाकर उसके पेशवा होने की घोषणा कर दी। यह घटना 18 अप्रैल सन् 1774 ईस्वी की है। आंग्ल मराठा युद्ध नाना फड़नवीस और दूसरे लोगों का उद्देश्य मास्टिन से छिपा न रहा। वह किसी प्रकार इसे बरदाश्त नहीं करता चाहता था। भारत में आकर अपने उद्देश्य में वह अभी तक सफल न हुआ था। उसका उद्देश्य था कि दक्षिण का शक्तिशाली पेशवा राज्य नष्ट हो जाये। इसके लिए उसने दो रास्ते पैदा किये, एक रास्ता तो यह था कि वह हैदर अली तथा निज़ाम से लड़ाकर पेशवा को उनका शत्रु बनाना चाहता था। इसमें वह सफल हो चुका था। दूसरा रास्ता यह था कि पेशवा दरबार में वह फूट पैदा करना चाहता था। वह बात भी उसकी पूरी हो गयी। अब अंग्रेजों के लिए रधुनाथ राव का पक्ष लेकर लड़ने और पेशवा राज्य को बरबाद करने का सीधा रास्ता खुल गया। मास्टिन ने रघुनाथ राव को सूरत में बुलाया। दोनों में बहुत समय तक परामर्श हुआ। 6 मार्च सन् 1775 ईसवी को रघुनाथ राव और कम्पनी के बीच एक सन्धि हुई, उसमें तय हुआ कि कम्पनी अंग्रेजी फौज की सहायता से रघुनाथ राव को फिर से पेशवा की गद्दी पर बिठावे और रघुनाथ राव इसके बदले में साष्टी, बसई औरर सूरत के कुछ प्रदेश कम्पनी को दे दें। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है…पेशवा की विजयहैदर अली से युद्ध करने के लिए अपनी सेना लेकर जिस समय रघुनाथ राव पूना से निकला था, अभी तक वह लौट कर पूना न पहुंचा था। सन्धि के बाद पूना पर आक्रमण करने और रघुनाथ को पेशवा बनाने के लिए करनल कोटिंग के नेतृत्व में अंग्रेजों की एक फौज तैयार हुई, रघुनाथ राव के साथ एक सेना थी ही दोनों सेनायें पूना की तरफ़ रवाना हो गयी। इस आक्रमण का समाचार पूना पहुँचा, उन सेनाओं के साथ युद्ध करने के लिए सेनापति हरि पंत फड़के के साथ पेशवा की एक सेना पूना से निकली। 18 मई सन् 1775 ईसवी को आरस नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ और युद्ध आरम्भ हो गया।तिरला का युद्ध (1728) तिरला की लड़ाईरघुनाथ राव के साथ जो पूना की सेना थी, वह अंग्रेजों की चालों को समझती थी। वह पेशवा राज्य की एक सेना थी और अंग्रेजों की चालों से वह पूना की सेना के साथ युद्ध करने के लिए मजबूर की गयी थी। युद्ध आरम्भ हुआ और कुछ समय तक भयानक संग्राम हुआ। लेकिन अंग्रेजों ने जो अनुमान लगाया था, वह पलटा खाता हुआ दिखायी देने लगा, रघुनाथ राव के साथ की सेना ने युद्ध में जोर नहीं पकड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि सारा बोझ अंग्रेजी सेना पर आता हुआ दिखायी देने लगा। करनल कोटिंग के बहुत जोर मारने पर भी अंग्रेजी सेना आगे बढ़ न सकी। दोनों ओर से अब॒ तक जो लोग मारे गये, उनमें अंग्रेजों की संख्या अधिक थी। कई एक अंग्रेजी अफसर भी उस युद्ध में मारे गए, सेनापति फड़के की सेना ने जोर पकड़ा। वह आगे बढ़ने लगी और रघुनाथ राव के पक्ष की दोनों सेनाओं को पीछे हटना पड़ा। रघुनाथ राव के बहुत चाहने पर भी उनको सफलता न मिली। पूना की सेना बराबर आगे बढ़ती हुई आ रही थी। अन्त में अंग्रेजी सेना ने साहस तोड़ दिया और करनल कोटिंग पराजित होकर युद्ध-क्षेत्र से हट गया। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है…युद्ध के लिए अंग्रेजों की तैयारीसूरत में रघुनाथ राव के साथ सन्धि होने के बाद अंग्रेजों ने साष्टी और बसई पर अधिकार कर लिया था। लेकिन इस सन्धि को पेशवा सरकार ने मानने से इनकार कर दिया था। इसलिए मास्टिन की कूटनीति असफल हो गयी थी। वारन हेस्टिग्स इन दिनों में कलकत्ता में था। उसने एक नया रास्ता निकाला। कलकत्ता से करनल अपटन को पूना भेजकर उसने उस लड़ाई पर अफसोस जाहिर किया जो रघुनाथ राव को पेशवा बनाने के लिए की गयी थी। उसने पूना में जाकर यह जाहिर किया कि बम्बई काउन्सिल की आज्ञा के बिना यह सब किया गया है। काउन्सिल न तो रघुनाथ राव का साथ देना चाहती है और न पेशवा सरकार से लड़ना चाहती है। करनल अपटन को अपने कार्य में सफलता न मिली। पेशवा राज्य के प्रधान मन्त्री सखाराम बापू ने कर्नल अपटन को आदेश दिया कि साष्टी श्रौर बसई अंग्रेजों को तुरन्त खाली कर देना चाहिए। वारन हेस्टिग्स को जब अपनी चालों में सफलता न मिली तो उनसे एक बड़े युद्ध की तैयारी की। कलकत्ता और मद्रास में अंग्रेजों की फौजी तैयारी आरम्भ हो गयी। भोंसले, सींघिया और होलकर मराठों की तीन शक्तियां मराठा मंडल से अलग हो चुकी थीं और उनसे अंग्रेज कुछ अधिक आशायें रखते थे, इसलिए उनको मिलाने के लिए अंग्रेज कोशिश करने लगे। रघुनाथ राव हैदरअली के साथ युद्ध करके पूना के साथ उसको शत्रु बना चुका था, इसलिए कम्पनी के अधिकारियों ने पूना के विरुद्ध युद्ध करने में हैदर अली और निजाम से सहायता माँगी। अंग्रेज युद्ध की तैयारी भी कर रहे थे और पेशवा सरकार के साथ सन्धि भी चाहते थे। युद्ध को बचाने के अभिप्राय से प्रधान मन्त्री सखाराम बापू और नाना फड़नवीस सन्धि के लिए तैयार हो गये। 3 जून सन् 1779 ईसवी को कम्पनी और पूना सरकार के बीच पुरंदर में एक सन्धि हुई जिसे पुरंदर संधि के नाम से जाना जाता है, उसमें सूरत की सन्धि को नामन्जूर किया गया। कम्पनी ने स्वीकार किया कि वह रघुनाथ राव की सहायता न करेंगी, बसई का किला छोड़ देगी और पूना सरकार के साथ सदा मित्रता रखेगी। इस सन्धि के अनुसार पेशवा सरकार ने साष्टी का टापू, भड़ोच की माल गुजारी और अपने कुछ प्रदेश कम्पनी को दे दिये। इसके साथ-साथ रघुनाथ राव की गुजर के लिए भी प्रबन्ध कर दिया गया। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है….आंग्ल मराठा युद्ध – सन्धि का जालकम्पनी और पेशवा सरकार के बीच पुरंदर की सन्धि हो चुकी थी और पेशवा सरकार ने सन्धि के बाद, संतोष के साथ कुछ दिन बिताने का अनुमान किया था। लेकिन अंग्रेजों की सन्धियां एक जाल का काम करती थीं ओर भारत में राजाओं के साथ उन्होंने जो अब तक सन्धियां की थीं, वे सब इसका प्रमाण देती थीं। पुरंदर की सन्धि में भी यही हुआ। अंग्रेजों ने न तो रघुनाथ राव का साथ छोड़ा और न बसई के किले को ही खाली किया। उस सन्धि में एक अंग्रेजी दूत के पूना दरबार में रखने का निर्णय हुआ था, इसलिए मास्टिन को दूत बनाकर बम्बई से पूना भेज दिया गया। मास्टिन की चालों से पेशवा दरबार परिचित था, इसलिए दरबार ने उसका विरोध किया, लेकिन उस विरोध का अंग्रेजों पर कोई प्रभाव न पड़ा और दरबार के मन्त्री लोग मास्टिन को अपने यहां रखने के लिए मजबूर किये गये।1971 भारत पाकिस्तान युद्ध – 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के कारण और परिणाममास्टिन पूना दरबार में पहुँच गया, फूट डालने, आपस में लड़ाने’ ओर शत्रुता पैदा करा देने में वह एक सफल राजनीतिज्ञ माना जाता था। पूना पहुँचने के बाद उसने यही किया और वह सफल हुआ दरबार के एक मन्त्री मोराबा को उसने अपने पक्ष में मिला लिया। नाना फड़नवीस और मोराबा के बीच उसने शत्रुता पैदा कर दी और सखाराम बापू तथा नाना के बीच भी उसने कलह के बीज बो दिये इन झगड़ों के कारण ही नाना पूना से पुरंदर चला गया।उसके न रहने पर मास्टिन का षड़यन्त्र पेशवा दरबार में काम करने लगा। मोराबा उसके साथ मिल चुका था। मास्टिन ने मोराबा से बम्बई काउन्सिल के नाम एक पत्र भेजवा दिया कि रघुनाथ राव को पूना की गद्दी पर बिठाने के लिए तैयारी कीजिए। बम्बई की काउन्सिल अवसर की ताक में थी। पुरंदर की सन्धि को ठुकरा कर उसने रघुनाथ राव को पेशवा बताने की तैयारी शुरू कर दी और इस कार्य की सहायता के लिए बंगाल से एक बड़ी अंग्रेजी सेना मंगायी गयी। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है….आंग्ल मराठा युद्ध – पेशवा दरबार में परिवर्तनमास्टिन ने पूना पहुँच कर पेशवा दरबार में फूट डालकर और उसके अधिकारियों को आपस में लड़ाकर जो छिन्न-भिन्न कर दिया था, वह अवस्था बहुत दिनों तक न चली पुराने मन्त्रिमंडल को बदलकर नया मन्त्री मण्डल बनाया गया। बम्बई काउन्सिल के नाम मन्त्री मोराबा ने जो पत्र भेजा था, उस अपराध के कारण वह कैद करके अहमदनगर के किले में बन्द कर दिया गया। सखाराम बापू और नाना फड़नवीस में फिर से मेल हो गया। सखाराम के वृद्ध होने के कारण नाता फड़नवीस पेशवा का प्रधान मन्त्री बनाया गया। इस नये मन्त्री मंडल में रघुनाथ राव के पक्ष में कोई न था। पूना में अब भी अंग्रेजों की कूटनीति चल रही थी और मास्टिन पेशवा दरबार को बराबर विश्वास दिला रहा था कि पुरंदर में होने वाली सन्धि की एक-एक बात को पूरा करने के लिए कम्पनी पूरे तौर पर तैयार है, जब कि उस सन्धि के खिलाफ कम्पनी के अधिकारी अंग्रेज रघुनाथ राव को पेशवा बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगाकर कोशिश कर रहे थे। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है….आंग्ल मराठा युद्ध – अंग्रेजों की पराजयरघुनाथ राव को पेशवा और पूना की सेनाओं को परास्त करने के लिए इस बार अंग्रेज अधिकारियों ने बड़ी मजबूती के साथ इन्तजाम किया। बंगाल, मद्रास और बम्बई की अंग्रेजी सेनायें युद्ध के लिए तैयार हो चुकी थीं। भोंसले, सींधिया और होलकर को किसी प्रकार अंग्रेजों ने अपने साथ कर लिया था। आपस के झगड़ों में कई एक राजाओं की सहायता करके पेशवा के साथ युद्ध करने में उनसे सहायता माँगी थी। इस प्रकार युद्ध की बहुत बड़ी तैयारी कर चुकने के बाद कम्पनी ने रघुनाथ राव से एक पट्टा लिखा लिया और 22 नवम्बर सन् 1778 ईसवी को रघुनाथ राव और कर्नल इजर्टन के साथ देकर बम्बई से उसको पूना के लिए रवाना कर दिया। मास्टिन अभी तक पूृना में ही था, वह अचानक बीमार पड़ा और बम्बई में जाकर 1 जनवरी सन् 1779 ईसवी को उसकी मृत्यु हो गयी।ट्रॉय का युद्ध कब हुआ था – ट्रॉय युद्ध के कारण और परिणामनाना फड़नवीस एक असाधारण राजनीतिज्ञ था। उसने सींधिया ओर होलकर को अपने पक्ष में कर लिया। अंग्रेजों की युद्ध सम्बन्धी तैयारी को सब बातों का उसे पता था। वह चुप न था और युद्ध के लिए वह अपनी तैयारी कर रहा था। अंग्रेजी सेनाओं के आगमन का समाचार जानकर उसने अपने यहां तैयारी की और सींधिया तथा होलकर के सेनापतित्व में उसने सेनायें देकर युद्ध के लिए रवाना कर दिया। पूना से आगे बढ़कर दोनों तरफ की सेनाओं का मुकाबला हुआ।अंग्रेजी फौजों ने बड़े जोर का आक्रमण किया और कुछ समय तक युद्ध करके पूना की सेनायें पीछे की ओर हटने लगीं। यह देखकर अंग्रेजी सेना का उत्साह बढ़ गया, उसने अब की बार और भी जोर के साथ पूना की सेनाओं पर प्रहार किया और उनको बहुत दूरी तक पीछे की ओर हटा दिया। विजय के उल्लास में अंग्रेजी फौजें बराबर आगे की ओर बढ़ती गयीं ओर पूना की सेनाओं को पीछे की ओर हटाकर वे ताले गाँव के विस्तृत मैदान तक ले गयी। उस स्थान से पूना की दूरी 18मील से अधिक न थी। उस मैदान में पहुंचकर पूना की जोरदार सेनाओं ने 9 जनवरी सन् 1779 ईसवी को अंग्रेजी सेनाओं के साथ इतना भयानक युद्ध किया कि अंग्रेजी फौजों के बहुत से सिपाही और अफसर काट-काटकर फेंक दिये गये। उस दिन पूना के बहादुर सैनिकों और सरदारों ने जिस भीषण रूप से नर संहार किया, उसे देखकर अंग्रेज सेनापति का साहस टूट गया। उसकी फौजों ने पीछे हटना शुरू कर दिया। थोड़े समय के बाद पूना की विशाल सेनाओं ने अंग्रेजी फौजों को तीन ओर से घेर लिया और भयानक मार शुरू कर दी। अंग्रेजी सेना के सैनिक अधिक संख्या में मारे गये और उनके अस्त्र शस्त्र छीन लिए गये। अंग्रेज सेनापति ने घबराकर सन्धि के लिए प्रार्थना की। उसी समय पूना की सेनाओं ने युद्ध बन्द कर दिया। 13 जनवरी को सन्धि की बातचीत हुईं ओर कुछ शर्तों के साथ दोनों पक्षो ने उसे मन्जूर कर लिया। आंग्ल मराठा युद्ध का वर्णन जारी है….आंग्ल मराठा युद्ध – भोरघाट में अंग्रेजों की हारताले गाँव में पराजित होने और सन्धि करने के बाद अंग्रेज अपनी चालों से बाज न आये। सन्धि के विरुद्ध उनकी हरकतें बराबर जारी रहीं वार्न हेस्टिग्स इस कोशिश में था कि हिन्दू नरेश पेशवा के साथ युद्ध करें ओर बरबाद हों। वह अंग्रेजों का इसी में लाभ समझता था। मराठा-मंडल में पाँच मराठा नरेश शामिल थे, उनमें महाराज गायकवाड़ को कम्पनी ने तोड़कर अपने पक्ष में कर लिया था। बरार के महाराजा भोंसले पर अंग्रेजों का कोई प्रभाव न पड़ा था। लेकिन वह पेशवा की सहायता से भी अलग हो गया था। अब होलकर और सींधिया को छोड़कर पेशवा की सहायता में और कोई राजा न था उसके साथ जो सेनापति थे, उनमें माधव जी सींधिया योग्य और शुरवीर था। लेकिन वार्न हेस्टिग्स ने अनेक तरह के प्रलोभन देकर उसे अपनी ओरमिला लिया।मैराथन का युद्ध कब हुआ था – मैराथन की लड़ाई के कारण और परिणामअंग्रेजों ने माधव जी सींधिया के साथ एक गुप्त बैठक की उस बैठक में तय हुआ कि माधव राव नारायण जो इस समय पेशवा है और जिसकी अवस्था इस समय पाँच वर्ष से अधिक नहीं है, पेशवा बना रहे लेकिन, रघुनाथ राव का लडका, बाजीराव जिसकी आयु लगभग चार वर्ष की है, पेशवा का दीवान बना दिया जाये इस नाबालिग़ दीवान के संरक्षक माधव जी सींधिया रहे और रघुनाथ राव को बारह लाख वार्षिक की पेन्शन देकर झाँसी भेजा दिया जाय। इसके साथ ही अंग्रेजों ने माधव जी को भड़ोच का इलाका और इकतालीस हजार रुपये नकद देना स्वीकार किया। इन शर्तों के साथ माधव जी सींधिया, रघुनाथ राव ओर अंग्रेजों में सन्धि हो गयी।जब माधव जी सींधिया के साथ अंग्रेजों ने ऊपर की संन्धि कर ली तो उन्होंने रघुनाथ राव और दोनों अंग्रेज अफसरों को पेशवा की कैद से छुड़ा लिया। इसी बीच में नाना फड़नवीस को मालुम हुआ कि अंग्रेज सेनापति कर्नल गाड़र्ड अपनी सेना लेकर आक्रमण करने के लिए गुजरात पहुँच गया है, इसलिए उसने तुरन्त माधव जी सींधिया को एक सेना देकर उसके साथ युद्ध करने को भेजा और एक दूसरी सेना सूदा जी भोंसला को देकर बंगाल पर आक्रमण करने से लिए रवाना किया। नाना फड़नवीस को जब मालूम हुआ कि माधव जी सींधिया कम्पनी के साथ मिल गया है तो उसने महाराज होलकर को अपनी एक सेना देकर गुजरात भेजा, लेकिन उसे सफलता न मिली। अंग्रेजी सेना ने गुजरात का विध्वंस किया और पूना पर चढ़ाई करने का इरादा किया। नाना फड़नवीस साधारण आदमी न था। उसने भारत के सभी राजाओं और बादशाहों को मिलाकर और एक संयुक्त मोर्चा बनाकर अंग्रेजों को भारत से निकलने का प्रयत्न किया।प्यूनिक युद्ध कब हुआ था – प्यूनिक युद्ध के कारण और परिणामगुजरात को बरबाद करके ओर वहां पर अपना प्रभुत्व जमाकर कर्नल गाडर्ड अपनी विशाल सेना के साथ पुना की ओर रवाना हुआ। उसका मुकाबला करने के लिए हरिपनत फड़के, परशुराम भाऊ भौंर होलकर के नेतृत्व में पुना से सेनायें रवाना हुई। भोरधाट के पास इन सेनाश्रों ने आकर अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने से रोका । उसी समय दोनों ओर से विकट संग्राम आरम्भ हो गया। बहुत समय तक दोनों ओर से भयंकर मार काट हुईं ओर हजारों सेनिक ओर सवार मारे गये। अंग्रेजी सेना ने इन दिनों में जिस प्रकार प्रत्याचार किये थे, पूना के वीर सैनिको से उनका खुब बदला उनको दिया। कई एक अंग्रेज अफसर और उनके बहुत से आदमी उस युद्ध में काम आये। अन्त में अंग्रेजी सेना कमजोर पड़ने लगी । यह देखकर पूना की सेनाओं ने एक बार भयानक मार काट की कनर्ल गाडर्ड की हिम्मत टूट गई और अंग्रेजी सेना वहां से भागकर बम्बई की तरफ चली गयी। अन्त में पूना की सेनायें पूना लौट गयी । हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”7736″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to 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