अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय – अल्बर्ट आइंस्टीन के आविष्कार? Naeem Ahmad, June 11, 2022March 25, 2024 “डिअर मिस्टर प्रेसीडेंट” पत्र का आरम्भ करते हुए विश्वविख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने लिखा, ई० फेर्मि तथा एल० जीलार्ड के कुछ नये अनुसंधानों से मुझे अवगत कराया गया है। इन अनुसंधानों की पाण्डुलिपि का अध्ययन करने के पश्चात् मुझे विश्वास हो गया है कि निकट भविष्य में ही वैज्ञानिक यूरेनियम को एक नये और महत्त्वपूर्ण शक्ति-स्रोत के रूप में प्रयुक्त करने में सफल हो जाएंगे। इस तरह का केवल एक ही बम अगर किसी बन्दरगाह पर फेंका गया तो वह उस बन्दरगाह के साथ-साथ आसपास के इलाके का भी सफाया कर देगा।” यह पत्र प्रेसीडेंट फ्रेंकलिन डी० रूजवेल्ट के नाम 1939 की शिशिर ऋतु में लिखा गया था। और 6 साल बाद 6 अगस्त, 1945 के दिन इस तरह का केवल एक ही बम जापान के शहर हिरोशिमा पर फेंका गया, जिसके परिणामस्वरूप 6,000 व्यक्ति मारे गए, 1,00,000 घायल हुए और 2,00,000 बेघर हो गए। उस पहले एटम बम ने शहर के 600 मुहल्लों को मिट्टी में मिला दिया। कुछ दिन पश्चात् एक और इसी तरह का बम नागासाकी पर फेंका गया। जापानी सरकार ने घुटने टेक दिए और द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। ट्रांसफार्मर का आविष्कार किसने किया और यह कैसे काम करता हैपरमाणु बम के मूल में जो सिद्धान्त काम करता है वह अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1905 में ही आविष्कृत कर लिया था कि किसी भी द्रव्य को शक्ति में तथा शक्ति को द्रव्य में परिवर्तित किया जा सकता है। विज्ञान का पुराना सिद्धान्त यह था कि द्रव्य का स्वतः न निर्माण किया जा सकता है न विनाश। आइंस्टीन के निष्कर्षो को एक सरल सूत्र के रूप मेंप्रस्तुत करना इष्ट हो तो श=द्र×प्र² अर्थात इस विपरिणाम द्वारा विसरजित शक्ति (श) का परिणाम होगा–द्रव्य (द्र) का प्रकाश की गति (प्र) के वर्ग से गुणित फल। अब, क्योकि प्रकाश की गति स्वयं एक अपरिमेय-सी वस्तु है, 186,000 मील प्रति सेकण्ड अथवा 60,00,00,00,000 फुट प्रति मिनट, थोडे से भी द्रव्य से विकीर्ण शक्ति बहुत हीअधिक निर्माण व संहार कर सकती है। सचमुच अगर किसी भी वस्तु के एक पौंड को मान लीजिए कोयले को यदि पूर्णतया शक्ति में विपरिणमित किया जा सके, तो उसका परिणाम होगा 10,00,00,00,000 किलोवाट घंटो से भी अधिक परिमाण की शक्ति का उदयअर्थात् किसी भी द्रव्य के 10 पौंड से इतनी बिजली पैदा की जा सकती है जो दुनिया-भर की एक महीने की आवश्यकता को आसानी से पूरा कर दे। अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879 को उल्म के दक्षिणी जर्मन शहर में हुआ था। एक साल बाद ही अल्बर्ट आइंस्टीन परिवार यहां से उठकर म्यूनिख में आ बसा। अल्बर्ट आइंस्टीन का पिता एक छोटी-सी इलेक्ट्रो-कैमिकल फैक्टरी का मालिक भी था, ऑपरेटर भी। अल्बर्ट का एक चाचा था जिसने शादी नही की थी और इजीनियरिंग मे ट्रेनिंग हासिल की हुई थी। वह भी आकर परिवार के साथ ही रहने लगा और परिवार के इस धंधे में मदद देने लगा। मां की अभिरुचि संगीत में थी और बीथोबेन में विशेषकर। मां की इस दिलचस्पी का ही परिणाम यह हुआ कि बालक को 6 साल की उम्र से ही वॉयलिन में सबक मिलने लगे। शुरू-शुरू मे यह ‘विद्या-दान’ आइंस्टीन को बुरा लगता था, किन्तु धीमे-धीमे वह इस कला में निपुणता प्राप्त करता गया। आइंस्टीन की अपनी पसन्द का संगीत था, मोजार्त की एक-स्वर, हि-स्वर, सरल धुने। सगीत में यह प्रारम्भिक दीक्षा आइंस्टीन की आजीवन सगिनी रही, इन्हीं गीतो में थका-हारा वैज्ञानिक क्षणिक मन शांति और सुख उपलब्ध किया करता था।डायनेमो का आविष्कार किसने किया और डायनेमो का सिद्धांतबचपन में अल्बर्ट ने कोई चीकने पात नही दिखाए। उलटे वह बोलना भी इतनी देर से सीखा कि मां-बाप को डर ही लगने लगा कि बालक मन्दबुद्धि है, गूंगा है। बडी ही छोटी उम्र से वह अपनी उम्र के और बच्चों से अलग रहने लगा और सारा दिन कुछ न करना, बस दिवस्वप्नो मे गुम। किसी तरह की कडी मेहनत या व्यायाम से कोई वास्ता नही, मेहनत के खेल न खेलना और सिपाही बनने से तो जेसे सचमुच नफरत ही हो। उन दिनों म्यूनिख की गलियों में आए दिन जर्मन फौजे परेड करने निकला करती, ओर बच्चे कितने चाव से उन्हे देखने आते। लेकिन अल्बर्ट था कि उसका दिल इन नजारों से बैठने लगता। उसे बिलकुल नापसन्द था यह देखना तक भी कि इन्सान किस तरह एक निर्जीव मशीन की तरह, जैसे वह आप कुछ सोच न सकता हो, अकड-अकडकर चलने फिरने के लिए तैयार हो जाता है।अल्बर्ट आइंस्टीनम्यूनिख में आम शिक्षा के लिए कोई सरकारी प्रबन्ध नही था। प्रारम्भिक स्कूल जो थोडे-बहुत थे उनकी व्यवस्था दो-एक धर्म संस्थाओं के अधीन थी श। अल्बर्ट आइंस्टीन के घर वाले यहूदी थे किन्तु उन्हे किसी भी धर्म में शुरू से ही कुछ भी अभिरुचि नही थी। एक कैथोलिक प्राथमिक स्कूल ही नजदीक पडता था। आइंस्टीन को उसी मे दाखिल करा दिया गया। 10 साल की उम्र में उसे एक माध्यमिक स्कूल, जिम्नेज़ियम में डाल दिया गया कि वह विश्वविद्यालय की उच्च शिक्षा की योग्यता प्राप्त कर सके।स्कूल जीवन में न उसे कुछ सुख ही हासिल हुआ न सफलता। यहां रिवाज था पाठ को कण्ठस्थ करने का। किसी विषय पर खुलकर विवेचन विनिमय की कोई छूट नही कि विषय का अन्तरग परिचय भी तनिक प्राप्त हो सके। किन्तु जिम्नेज़ियम में रहते हुए ही आइंस्टीन को यहूदी धर्म में पहली-पहली दीक्षा मिली। कैथोलिकों की उदारता के विषय में उसका कुछ परिचय प्राथमिक स्कूल में ही हो चुका था। इस शिक्षा-दीक्षा का परिणाम यह तो अवश्य हुआ कि धर्म की सार्वजनीक नीति-परता (चरित्र-प्रियता) में उसकी आस्था बद्धमूल हो गई किन्तु, साथ ही उसने हृदय से यह भी अनुभव किया कि सभी कर्मकाण्ड किसी भी धर्म व सम्प्रदाय के हो, अंधी जडता के अतिरिक्त कुछ नही है। इनका निर्माण ही शायद इसलिए किया गया था कि मनुष्य स्वतन्त्रता पूर्वक चिन्तन करना छोड दे। जिम्नेज़ियम से स्नातक होकर आइंस्टीन ने अपने धर्म सम्प्रदाय की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया, सालो बाद ही कही आकर वह अपनी पुरानी (यहूदियों की) बिरादरी में मिला, उन दिनो जब कि हिटलर के अधीन नात्सी अनुशासन में जर्मनों ने यहुदियों के बीज-नाश की कसम खा ली थी। बैटरी का आविष्कार किसने किया और कब हुआअल्बर्ट आइंस्टीन के इंजीनियर चाचा ने बालक की गणित में अभिरुचि जगाई। उसी ने अबोध शिशु को सबसे पहले यह समझाया कि किस प्रकार एक प्रश्न के समाधान में बीजगणित के प्रयोग से समय बच सकता है। और सब-कुछ परिहास और विनोद मे, बालक की निजी परिहास-बुद्धि को प्रबुद्ध करते हुए देखो, कितनी दिलचस्प साइंस है यह, एक जानवर है जिसका हम शिकार कर रहे है, लेकिन वह काबू में नही आ रहा, हम उसका क्षण के लिए नाम रख देते है—क्ष और अपना शिकार जारी रखते है जब तक कि उसका ‘क्षय’ नही हो जाता, वह पकड़ में नही आ जाता। किन्तु जिस विद्या का सबसे अधिक असर बालक आइंस्टीन पर पड़ा वह थी, ज्यामिति। ज्यामिति के तोर तरीको से वह कितना उल्लसित होता, साफ-सुथरे नपे-तुले शब्दो में ही सब कुछ कह देना, हर वाक्य के लिए प्रमाण तथा समर्थन की अपेक्षा, और हर सिद्धि में युक्ति-क्रम की अटूट श्रृंखला, और हर प्रश्न को हल करने के लिए निजी चिंत्तन का अवसर। आइंस्टीन ने खुद स्वीकार किया है कि दो घटनाएं थी जो बचपन में उसके लिए वरदान सिद्ध हुई— एक तो पांच साल की उम्र मे उसे किसी ने एक चुम्बकीय कम्पास ला दिया था और, दूसरी, बारह साल की उम्र में यूक्लिड की ज्योमेट्री से प्रथम परिचय। आइंस्टीन के शब्द हैं कि “स्कूल”के उन दिनो में यूक्लिड हाथ में आते ही अगर हममें से किसी को ऐसा अनुभव नही होता था कि मेरी दुनिया ही बदल गई है तो उसका अर्थ हम यही समझते थे कि इस बेचारे को परमात्मा ने समीक्षा अथवा अनुसंधान की बुद्धि से ही वंचित रखा है।सीटी स्कैन का आविष्कार किसने किया और कब हुआ अल्बर्ट आइंस्टीन जब 5 वर्ष का हुआ तो पिता के लिए यह जरूरी हो गया कि वह अपने बिजली के पुराने कारोबार को ठप कर दे। ओर परिणामत परिवार म्यूनिख से उठकर मीलान (इटली ) मे आ गया कि कोई और धंधा शुरू किया जाए। अल्बर्ट अभी कुछ समय और पीछे जिम्नेजियम में ही रहा कि वह और नही तो कम से कम डिप्लोमा तो हासिल कर ले। किन्तु स्कूल की यह ज़िन्दगी आइंस्टीन के लिए दिन-ब-दिन अब असहाय होती जा रही थी। गणित में तो उसका ज्ञान अपने और साथियों से कही अधिक था किन्तु तोता-रटन्त से पढ़ाए जाने वाले अन्य विषयो में उसका हाल बूरा था। दूसरे, एक बात यह भी हुई कि-अपने गुरुओं के प्रति अंध भक्ति भी उसमे नहीं थी, जबकि बाकी विद्यार्थियों के लिए यही कुछ धर्म-कर्म था। परिणाम यह हुआ कि उसे जिम्नेजियम से फारिग कर दिया गया और वह भी इटली मे अपने पिता से आ मिला। कांच का आविष्कार किसने किया और कब हुआइटली मे रहते हुए उसके कुछ ही दिन गजरे होगे जब उसे अपने भविष्य के विषय में सोचने की कुछ चिन्ता हुई, और अल्बर्ट आइंस्टीन ने निश्चय कर लिया कि वह अपना सारा जीवन गणित तथा समीक्षात्मक भौतिकी के अध्ययन में लगा देगा। तदनुसार ही उसने ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड ) के प्रसिद्ध स्विस फेडरल पॉलीटेक्निक स्कूल में दाखिल होने के लिए प्रवेशिका परीक्षा दी किन्तु असफल रहा। गणित में कोई तुलना ही नही, किन्तु भाषाओं में तथा प्राणि विज्ञान में उतना ही कमज़ोर। उधर, पॉलीटेक्निक का डायरेक्टर आइंस्टीन की गणित में योग्यता पर आश्चर्य चकित था और उसी ने अंततः कुछ व्यवस्था कर दी कि वह प्रवेशिका की इन आवश्यकताओ को स्विट्जरलैंड में जाकर ही पूरा कर ले। यहां पहुंचकर आइंस्टीन की खुशी का कुछ ठिकाना न था, क्योकि म्यूनिख के स्कूलों में और यहां की पठन-पाठन विधि में कितना अंतर था तोता-पाठ बिलकुल बन्द, कोई जोर-जबरदस्ती नही, विद्यार्थी कुछ स्वतन्त्र चिन्तन भी करें, और अध्यापक हर विषय पर विद्यार्थियों के साथ विमर्श करने के लिए हर वक्त तैयार। पहला मौका था यह जब आइंस्टीन को जिन्दगी में स्कूल में कुछ दिलचस्पी महसूस होने लगी। पाठ्यविधि पूर्ण करके वह फेडरल पॉलीटेक्निक स्कूल (ज्यूरिख) में दाखिल हो गया। रेफ्रिजरेटर का आविष्कार किसने किया और कब हुआज्यूरिख में रहते हुए उसने निश्चय किया कि वह भौतिकी का अध्यापक ही बनेगा और पाठ्य-विषयो का चुनाव भी उसने इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए तदनुसार ही किया। साथ ही उसने इसके लिए यह भी आवश्यक समझा कि वह स्विट्ज्वरलेड का नागरिक बन जाए। आर्थिक दृष्टि से आइंस्टीन का ज्यूरिख में बीता यह काल कोई सुगम समय नही था, क्योंकि पिता को नये काम में यहां सफलता नही मिल रही थी। सो, पुत्र की शिक्षा के लिए वह आवश्यक खर्च वगैरह कैसे जुटा पाता ? सौभाग्य से एक सम्पन्न सम्बन्धी ने विश्वविद्यालय के द्वारा ही उसकी कुछ सहायता का प्रबन्ध करा दिया। बावजूद इसके कि वह स्वयं एक प्रतिभा सम्पन्न विलक्षण विद्यार्थी रहा था, बावजूद इसके कि स्वयं अध्यापकों ने उसकी प्रतिभा-बुद्धि को प्रमाण-पत्रों में लिखित रूप में स्वीकार भी किया था। अल्बर्ट आइंस्टीन को कही भी अध्यापक की नौकरी नही मिल सकी। लेकिन गुजारा तो आखिर किसी न किसी तरह चलाना ही था। वह बने के स्विस पेटेंट आफिस में पेटेंटो के एक परीक्षक के तोर पर नौकर लग गया।प्रेशर कुकर का आविष्कार किसने किया और कब हुआ सन् 1905 में इसी पेटेंट आफिस में नौकरी करते हुए आइंस्टीन ने विशिष्ट आपेक्षिकता की स्थापना की थी जिसका मूर्त प्रत्यक्ष विश्व ने चालीस साल बाद परमाणु बम के निर्माण में किया। तब तक भौतिकी शास्त्र का सारा दारोमदार न्यूटन के दो सौ साल पुराने गति के नियमो पर आधारित था। भौतिकी के अधिकाश प्रश्नों का हल इन नियमो द्वारा निकल आता था। किन्तु कुछ कठिनाइयां अब पेश आने लगी। मिसाल के तौर पर हवाई जहाज से यदि एक राकेट उडान की दिशा में ही फेंका जाए तो, स्वभावत राकेट की एक तो अपनी गति होगी ही और, साथ ही जहाज़ की गति भी उसकी इस गति में शामिल हो जाएगी। और यदि न्यूटन के नियमों को प्रकाश की गति में भी लागू किया जाए तो प्रकाश की गति स्वभावत तब अधिक ही होती जाएगी जबकि प्रकाश-स्रोत भी स्वय देखने वाले की ओर बढता आ रहा हो, और इसके विपरीत, जब यही स्रोत अन्वीक्षक से परे हट रहा हो तो उसकी गति अपेक्षया कुछ कम होती जाएगी। किन्तु प्रत्यक्ष ने कुछ और ही सिद्ध कर दिखाया, ए० ए० मिचेलसन (एक अमेरिकन वैज्ञानिक, तथा एनापोलिस में अमेरीकी नौसेना एकेडमी में एक प्राध्यापक) ने कुछ परीक्षणों द्वारा प्रमाणित कर दिखाया कि प्रकाश की गति आइज़क न्यूटन के गति विषयक नियमो का अनुसरण नही करती। बिजली का आविष्कार किसने किया और कब हुआअल्बर्ट आइंस्टीन ने अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन के इन निष्कर्षो का अध्ययन किया और, कुछ स्वतन्त्र चिन्तन के बाद वह कुछ नूतन-सी इस स्थापना पर पहुचा कि प्रकाश का स्रोत कुछ भी क्यो न हो और द्रष्टा कही भी क्यो न खडा हो, किधर भी क्यो न चल रहा हो, प्रकाश की गति सभी ओर एक-सी ही होगी। इस स्थापना का अर्थ यह हुआ कि प्रकाश की गति में किसी भी अवस्था में कुछ परिवर्तन नही आ सकता। अल्बर्ट आइंस्टीन की इस उक्ति में कुछ बडी बात अथवा असामान्यता नज़र नहीं आती, किंतु आइंस्टीन की प्रतिभा की यह एक निजी विशिष्टता ही रहीं है कि वह अपनी स्थापनाओं को सदा कुछ अद्भुत अविश्वसनीय किन्तु सत्य, अल्पनाओं में अभिव्यक्त करने में सफल रहा है। एक अद्भुत विचार इन कल्पनाओं में उदाहरणत यह है कि अगर घडी खुद (उसकी सुईया ही नहीं) चलने लग। जाए तो उसकी सुईया सुस्त पड जाएगी। इस वक्तव्य पर परीक्षण किए जा चुके है और हर बार आइंस्टीन की कल्पना ही सच निकली है। अणु-चालित अन्तरिक्ष-विमानों में मनुष्यो के लिए ग्रह-यात्रा का स्वप्न जब संभव हो जाएगा तब हमारा आकाश-यात्री अन्तरिक्ष-विमान की घडी के अनुसार लौटने पर देखेगा कि उसका अपना ही पुत्र उससे (बाप से) बीस साल ज्यादा बूढ़ा हो चुका है। स्टेथोस्कोप का आविष्कार किसने किया और कब हुआप्रकाश की गति को अपरिवर्तनीयता के इसी सिद्धान्त के आधार पर ही आइंस्टीन इन ने अपना द्रव्य-शक्ति का परस्पर परिवर्तनीयता सम्बन्धी वह प्रसिद्ध सूत्र निकाला था जिसका उल्लेख हम परमाणु बम के सिलसिले में पहले कर आए है। यही नियम है जो पहली-पहली बार सूर्य की शक्ति के ‘स्रोत’ की कुछ व्याख्या कर सका था कि सूर्य यदि अपने ही आन्तर ईंधन द्वारा हमे प्रकाश और गर्मी दे रहा होता तो, कभी का ठंडा पड चुका होता, कभी का बुझ चुका होता। किन्तु द्रव्य को शक्ति में विपरिणमित करते हुए, जैसा कि अल्बर्ट आइंस्टीन के सूत्र श=द्र×प्र² में पूर्व-दृष्ट है, वही सूर्य इतने युगों से ताप और द्युति का यह विकिरण करता आ रहा है और अरबो-खरबो वर्ष आगे भी इसी तरह करता रहेगा। इधर अल्बर्ट आइंस्टीन का सिद्धांत प्रकाशित होना शुरू हुआ और, उधर विश्व की परीक्षणशालाओं से तथा वेघशालाओ से उनकी पुष्टि में प्रत्यक्ष प्रमाण आने लगे। आइंस्टीन की प्रतिभा को अब स्वीकार किया जाने लगा। क्लोरोफॉर्म का आविष्कार किसने किया और कब हुआसन् 1909 में वह ज्यूरिख के विश्वविद्यालय मे असाधारण प्राध्यापक के पद पर था। वहा से वह प्राग के जर्मन विश्वविद्यालय में आ गया। कुछ समय बाद फिर ज्यूरिख मेऔर अन्त में बर्लिन के कमर विल्हेम इन्स्टीट्यूट में। 1933 में नात्सियों का जर्मन सरकार पर कब्जा हो गया। आइंस्टीन तब बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था किन्तु, सौभाग्य से इंग्लेंड और अमरीका में दो व्याख्यान मालाए देने बाहर गया हुआ था। नात्सी नृशसों ने उसे उसकी अनुपस्थिति मे ही उसकी सम्पत्ति से ही नही, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक-पद से स्वयं जर्मन गणराज्य द्वारा उपकृत समादृत तागरिक की स्वतन्त्रता से भी वंचित कर दिया। वह प्रिन्ध्टन (न्यूजर्सी) की नई इन्स्टीट्यूट फॉर एडवान्सड स्टडीज में गणित के विद्यालय का निर्देशक बन कर अमरीका में आ गया। यहां आकर उसने सबलता के साथ इजराइल में यहूदियों के लिए एक नया राज्य स्थापित करने का समर्थन किया और, उसी प्रकार एक विश्व सरकार के विचार को भी। किन्तु जब उसे इजराइल का राष्ट्रपति होने के लिए आमंत्रित किया गया तो उसने स्पष्ट अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि विज्ञान की समस्याओं से तो मेरा कुछ परिचय है, किन्तु मानव समस्याओं से जूझने की न मुझमें योग्यता ही है और न अनुभव ही । रेफ्रिजरेटर का आविष्कार किसने किया और कब हुआअल्बर्ट आइंस्टीन को भी नोबल पुरस्कार मिला था। फौरन्ज़ तथा क्वांटम-सिद्धान्त विषयक उसके विशिष्ट अनुसन्धानों के लिए। 1950 में उसका अविभाजित क्षेत्र (यूनिफाइड फील्ड) विषयक नया सिद्धान्त प्रकाशित हुआ जिसके गणित-सम्बन्धी सूत्रों में 24 पृष्ठो में गुरूत्वाकर्षण तथा विद्युत-चुम्बक के क्षेत्रों को एक ही सूत्रमाला से समन्वित कर दिखाया। परमाणु बम के आविष्कार पर आइंस्टीन को पश्चाताप था। उसे शुरू से यही आशा थी कि एटम की शक्ति का प्रदर्शन जापानी सरकार के प्रतिनिधियों की आखें खोल देगा। जापान के लोगो पर इसके भीषण प्रयोग की कोई आवश्यकता नही होगी। किन्तु हुआ वैसा नही। उसका स्वप्न एक यह भी था कि परमाणु का प्रयोग मानव-जाति की सेवा में किया जाएगा। 18 अप्रैल, 1955 को जब अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु हुई, तब भी वह सृष्टि को चालित करने वाले अन्तर्यामी नियमों को गणित की सरलता में सूत्रित करने में ही लगा हुआ था। सुष्टि के मूल मे पैठी महाशक्ति उसका कहना था, कोई जुआरिन नही है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—–[post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीवनी