अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन का जीवन परिचय और खोज Naeem Ahmad, June 9, 2022March 25, 2024 सन् 1869 में एक जन प्रवासी का लड़का एक लम्बी यात्रा पर अमेरीका के निवादा राज्य से निकला। यात्रा का ध्येय था, अमरीका के राष्ट्रपति यूलीस्सिस एस० ग्रांट से मुलाकात, क्योंकि एन्नापोलिस की अमरीकी नौसेना एकेडमी में दस नियुक्तियां खुद राष्ट्रपति को नामजद करनी थीं। यात्रा लम्बी भी थी और असुविधाओं से भरपूर भी। एकेडमी में नियुक्ति के लिए जो परीक्षा कांग्रेस वालों ने नियत की थी उसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने के बावजूद भी अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन को वह पुरस्कार नहीं मिल सका क्योंकि एक और विद्यार्थी की पहुंच अधिक थी। और अब तो वक्त निकल चुका था, राष्ट्रपति ग्रांट से मिलकर भी काम बनने की कुछ उम्मीद नहीं थी। नामजदियां भी पूरी हो चुकी थीं। लेकिन राष्ट्रपति ने उसे एकेडमी के कमाण्डेंट से जाकर मिलने को कहा। एक अनुचित अर्थात गोर-कानूनी नियुक्ति जैसे-तैसे कर दी गई।विलियम वेडरबर्न का जीवन परिचय हिन्दी मेंअमेरीका उसकी मातृभूमि नहीं थी। किंतु मिशेलसन ने देश के प्रति यह ऋण उसे शिक्षित करने का बड़े होकर बखूबी उतार दिया। प्रकाश के विषय में जो अनुसन्धान उसने अपने 80 वर्षों में किए उनसे उसे भी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। साथ ही अमेरीका का नाम भी विज्ञान-जगत में आने लगा। विज्ञान के अनुसन्धान के लिए व्यवस्था हो गई और इस सबका एक प्रासंगिक परिणाम और भी एक अमरीकी को प्रथम बार नोबेल पुरस्कार मिला।अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन का जीवन परिचयअल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन का जन्म एशिया के स्ट्रेनलो शहर में 19 दिसम्बर 1852 को हुआ था। माता-पिता जर्मन यहूदी थे। 1848 में जर्मनी के लिबरल लोगों को, उन लोगो को जिनकी धारणा थी कि टैक्स सभी किसी पर एक ही तरह से लागू होने चाहिए और कि वाणी को स्वतंत्रता भी सभी को समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए, ख्याल आया कि सरकार अब हमारे हाथ मे आ सकती है। दुर्भाग्य से इस काम में उन्हे सफलता मिली नही। अगले कुछ एक सालो में ये उदार विचारधारा के लोग प्राय जर्मनी छोड अमेरीका में आ बसे। मिशेलसन परिवार जब न्यूयार्क सिटी में पहुचा उस समय अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन सिर्फ दो साल का था। कुछ समय पूर्वी प्रदेश में रहकर इस नये प्रवासी परिवार ने 49 को सोने की भगदौड मे केलिफोर्निया जा बसे एक सम्बन्धी के पास पहुंचने का निश्चय कर लिया। पानामा की ओर रवाना एक जहाज़ में सवार होकर वे पहले इस्थमस पहुंचे और उसके बाद प्रशान्त महासागर की यात्रा करते हुए पश्चिमी किनारे पर आ लगे।इधर पहुंच कर एल्बर्ट के पिता सैमुअल मिशैलसन ने केलिफोर्निया की कैलेबेरास काउंटी मे सिएर्रा निवादा पर्वत श्रृंखला के बीच बसे मर्फीज नाम के कस्बे में सूखे फलों की एक दुकान खोली। एक स्थानीय स्कूल में एल्बर्ट की शिक्षा आरम्भ हुईं किन्तु हाईस्कूल की स्थिति आने तक उसे सेंन फ्रांसिस्को भेज दिया गया। यहां उसकी प्रतिभा गणित और विज्ञान में चमक उठी। हाथों के हुनर में भी वह कुछ कम न था। और 15 रुपये महीने में स्कूल के वैज्ञानिक उपकरणों की देखभाल की नौकरी भी उसे मिल गई। अल्बर्ट जब 16 साल का हुआ परिवार उठकर वर्जीनिया सिटी (निवादा) आ गया। उन दिनों यहां चांदी की खुदाई खूब चल रही थी। एक साल के बाद घर में उसके एक भाई चार्ली ने जन्म लिया और अगले साल एक बहन मिरियम जन्मी। चार्ली मिशेलसन ने भी आगे चलकर राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी० रूजवेल्ट के शासन काल मे डेमॉक्रेटिक पार्टी के पब्लिसिटी डायरेक्टर के तौर पर काफी नाम कमाया।सर हेनरी कॉटन का जीवन परिचय हिन्दी मेंसन् 1873 से अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन नेवल एकेडमी से ग्रेजुएट हुआ। तब तक वह अमरीका की नेवी में दो साल एक एन्साइन के तौर पर काम कर भी चुका था। अब उसे भौतिकी तथा रसायन पढाने के लिए एकेडमी में ही वापस बुला लिया गया। यहा अध्यापन कार्य करते हुए उसका शौक जो प्रकाश की गति जानने में पैदा हुआ जीवन-भर बना ही रहा। फोकॉल्ट के घूर्णक दर्पण की विधि को प्रयोग में लाते हुए उसने 50 रुपये में ही एक परीक्षण की आयोजना कर डाली। हां प्रयोगशाला में उपलब्ध कुछ लेंस उसे मुफ्त में भी ज़रूर मिल गए थे। आश्चर्य तो यह है कि इस उपकरण द्वारा भी उसे प्रकाश-गति की गणना में सफलता मिल गई। 500 फूट की जरा-सी दूरी और कितनी सही गणना थी वह। 1878 के अमेरीकन जर्नल ऑफ साइन्स में उसका पहला प्रकाशित निबन्ध था, प्रकाश की गति को मापने का एक तरीका।साबुन के बुलबुलों को उड़ाना एक अच्छा खेल है। इन बुलबुलों को हवा में उड़ता देखकर बच्चो को तो आनन्द आता ही है, बडे भी कम खुश नही होते। लेकिन इनमे ये खूबसूरत मन-लुभावने रंग कहा से आते है ? इसकी वैज्ञानिक व्याख्या में जो सिद्धान्त प्रयुक्त होता है उपसे आज हम ‘अवरोध’ (इण्टरफियरेन्स ) कहते है। बुलबुलें की पतली बाहरी परत हम साफ देख सकते है कि प्रकाश का एक स्रोत नही है वह–प्रकाश को बस वापस फेक सकती है परत के दोनो ही पाइवें, भीतरी और बाहरी दोनो,रोशनी को वापस ही लौटा सकते है। किन्तु यह परत इतनी पतली होती है कि प्रकाश की कुछ तरंगें इस प्रकार भी प्रत्यावृत हो आती है कि इस प्रतिक्रिया में वे नष्ट ही हो जाती है। किसी भी रंग की तरंगे इस प्रत्यावर्तन मे स्वयं शीर्ण हो जाएगी यदि बुलबुले की परत की मोटाई उस रंग की तरगिमा की आधी हो। दो तरंगे परस्पर टकराई नही कि खत्म हुई नही, इसी नियम को विज्ञान में तरंगावरोध अथवा सक्षिप्त रूप में केवल ‘अवरोध’, कहते है। किन्तु सफेद रोशनी में तो कितने ही रंग होते है, कुछ तरंगे अवरुद्ध हो जाने पर फिर भी कुछ बच रहता है (कुछ रंग फिर भी हमारे देखने को बच रहते हैं)। बुलबुलों मे इन रंगों के बारे में न्यूटन को भी पता था, किन्तु उसे समझ नही आ सका कि इसका कारण क्या है, क्योकि प्रकाश के तरंगिमा-सिद्धान्त में उसकी आस्था नही थी।अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसनप्रकाश की तरगिमाओं की गणना कर सकना कुछ मुश्किल नही है यदि साबुन के इन बुलबुलों की मोटाई हमे मालूम हो। किन्तु अब प्रश्न उठता है कि बुलबुलों की मोटाई को किस तरह मापा जाए ? अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन ने एक उपकरण इसके लिए ईजाद किया इण्टरफेरोमीटर, अवरोध-मापक’ जिसमे डॉयरेक्ट (तत्सम ) तथा इण्डॉयरेक्ट (तदभव) तरणगों के सिद्धान्त का प्रयोग होता है, और इस तरह वह प्रकाश की तरंगिमा को मापने मे सफल भी हो गया। उपकरण का कुछ रेखा-चित्र-सा तथा उसकी प्रयोग विधि चित्र में अंकित है। इस उपकरण का आविष्कार मिशेलसन ने 1887 में किया था, और उसके द्वारा विश्वव्यापी प्रसिद्धि भी उसे मिली थी। किन्तु यह उपकरण एक समय में केवल एक ही तरंग की लम्बाई को माप सकता है उदाहरणार्थ— कैडमियम के वाष्प से से बिजली गुजरे— जैसे कि एक निओन साइम’ में से गुजरा करती है, तो उससे लाल रंग की फ्रीक्वेन्सी की कुछ रोशनी पैदा हो जाएगी। मिशेलसन ने इस तरंग को मापा- 000064884696 सेंटीमीटर लम्बी, जिसे वैज्ञानिक गणना मे आजकल हम 6438 4696 एंगस्ट्रम कहेगें।अलफ्रेड वेब का जीवन परिचय हिन्दी मेंसमुद्र के निम्न तलों में तैरती एक पनडुब्बी किसी पराए जहाज के इंजनों की आवाज़ को सुन सकती है क्योकि ध्वनि की तरंगे पानी में से गुजर सकती है। शीशे के एक बर्तन में यदि एक बिजली की घंटी रख दी जाए तो उसकी आवाज़ हमे सुनाई देती रहेगी क्योकि ध्वनि हवा में भी गुजर सकती है। परन्तु उसी बर्तन से हवा निकाल दीजिए और फिर देखिए आवाज़ तुरन्त बन्द हो जाएगी क्योकि शून्य में यह आवाज़ गति नही करती परन्तु घंटी को हम देख अब भी सकते है क्योकि प्रकाश के तरंग गति स्पन्दन शून्य में भी निष्क्रिय नही होते।वैज्ञानिको के सम्मुख प्रश्न यह था कि क्या प्रकाश की किरण के लिए किसी प्रकार के कुछ माध्यम की आवश्यकता नही है ? सूर्य से और अरबो मील परे चमकते सितारों से प्रकाश पृथ्वी की ओर शून्य आकाश को तय करता हुआ हमारे पास पहुंचता है। किन्तु कुछ न कुछ माध्यम तो चाहिए ही, सो,श एक द्रव्य की कल्पना की गई और उसे कुछ नाम भी दे दिया गया—ईथर’। और अरसे तक वैज्ञानिक ईथर को भी उसी तरह स्वीकार करते रहे जैसे उससे पहले वे ‘फ्लोजिस्टन’ और ‘कैलॉरिक’ को मानते आए थे ईथर के बारे मे बातचीत करते हुए भी उनके मन में सन्देह बना ही रहता कि क्या सचमुच यह ईथर कोई वस्तु है भी, कल्पना की परीक्षा बहुत ही सरल है, यदि ईथर सचमुच कुछ है, तो पृथ्वी भी उसी में से गुजरती होगी, बसे ही जैसे हवा में से जहाज गुजरता है। और इसके साथ ही ईथर की कुछ उलटी हवा भी होनी चाहिए जैसे कि हवाई जहाज़ के उड़ने के वक्त हम प्रत्यक्ष करते है।जॉर्ज यूल का जीवन परिचय हिन्दी मेंअल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन ने एक परीक्षण का आविष्कार यही जानने के लिए किया कि क्या सचमुच ऐसी कोई ‘ईथरी हवा’ होती भी है ? उसने प्रकाश का एक ऐसा स्रोत लिया जो केबल एक ही तरगिमा विकीर्ण कर सके और, तब इस किरण को उसने दो धाराओं मे विभक्त कर दिया। एक धारा को उत्तर की ओर, दूसरी को पश्चिम की ओर। प्रतिक्षिप्त होकर ये तरंगे पुन एकरूप हो जाती। किन्तु कोई आगे नही, कोई पीछे नही, एक ही क्षण दोनों का पुन:मिलन होता। ईथर-वात की ही दिशा में जाए तब भी, ईथर की धारा के विरुद्ध तब भी, और इस दिशा के लम्ब-दिक् का अनुसरण करे तब भी, इन्हे वापस लौटने में समय हमेशा वही लगता। मिशेलसन तथा उसके सहायक, ई० डब्ल्यू मॉल ने कितने ही परीक्षण कर देखे।दिन-रात सदियों में गर्मियों में किन्तु कुछ भी नही मिल सका उन्हें। परीक्षण ईथर की सत्ता को सिद्ध करने में असफल रहा। प्रतीत कुछ ऐसा ही हो शायद कि परीक्षण से कुछ भी साबित नही हो सका, किन्तु सिशेलसन जिस परिणाम पर इससे पहुचा वही कुछ— यही असफलता आइन्स्टाइन के सापेक्षवाद का प्रस्थान-बिन्दु थी। मिशेलसन ने ईथर-वात सम्बन्धी ये अपने परीक्षण तब किए थे जब वह क्लीवलैण्ड में एप्लाइड साइंस के केस स्कूल मे भौतिकी का प्रोफेसर था। वहां से वह क्लार्क विश्वविद्यालय आ गया और 1892 में उसे शिकागो विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया। यहां पढाने का काम न के बराबर ही था, अत वह दिन-रात अनुसन्धान में ही लगा रहता।विद्यार्थियों को उसके सामने पहुंचने का साहस कम ही होता काले-काले बाल और काली-काली ही आंखे, और फिर चाल ढाल भी मिलिट्री वालो जैसा। उसे अपने उप-स्नातक शिष्यों से बहुत आशाएं थी, किन्तु अनुसन्धान-कार्य उन्हे सौंप देने का भरोसा न था। हर कार्य में पूर्णता चाहिए, लेकिन सब कुछ अकेले ही निभाएगा। आइन्स्टाइन या प्लेमिंग का मानव स्पर्श उसके हाव भाव में नही था। अलबत्ता हां इन दोनो महा पुरुषों की कलाप्रियता उसमे भी कुछ थी वॉयलिन बजाने का शौक उसे भी था और अपने दो पुत्रो को, (दो शादियों से उसके छः सन्ताने हुई) वॉयलिन बजाना उसने खुद ही सिखाया भी। चित्रकार भी वह अच्छा था किन्तु उसकी आन्तर अनुभूति यही थी कि कला की अपनी पराकाष्ठा अभिव्यक्त होकर विज्ञान में ही अवतरित हुआ करती है।सारे ही पश्चिमी जगत से मिशेलसन पर अब सम्मान की वर्षा होने लगी।ऑनरेरी डिग्रिया, रॉयल सोसाइटी का रूमफोर्ड मेडल, पेरिस का और रोम के एक्सपोजीशन का ग्रांड प्राइज। 1892 में उसे पेरिस के इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एण्ड मेजर्स का सदस्य भी मनोनीत कर लिया गया। अपने अवरोध मापक की उपयोगिता उसने कैडमियम के वाष्पीय प्रकाश की तरगिमा के रूप मे स्टेण्डर्ड मीटर के लक्षण में सिद्ध कर दिखाई। तब तक स्टैंडर्ड मीटर का लक्षण– पेरिस में एक बोल्ट में सुरक्षित एक अमूल्य धातु के टुकडे पर पडे दो झरीटो के बीच की दूरी किया जाता था। 1907 में अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन भौतिकी में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाला पहला अमेरीकी घोषित हुआ।एनरिको फर्मी का जीवन परिचय – एनरिको फर्मी की खोज1926 में मिशेलसन ने प्रकाश की गति की गणना के सम्बन्ध में अपना सबसे प्रसिद्ध परीक्षण किया। उसकी गणना का आधार यहां भी, फोकॉल्ट के घूर्णक दर्पण का सिद्धान्त ही था। केलिफोर्निया में माउंट विल्सन की चोटी पर एक प्रयोगशाला स्थापित की गई। 22 मील दूर माउंट सान एन्तोनियो पर एक दर्पण की प्रतिष्ठा हुई। इन दो बिन्दुओं के अन्तर को यूनाइटेड स्टेटस कोस्ट एण्ड जिओडेटिक सर्वे ने अद्भूत कुशलता के साथ नापा। दो इंच से ज्यादा गलती होने की सम्भावना नही थी। माउंट विल्सन से अब प्रकाश की तरंगे चलना शुरू हुई और घूर्णक दर्पण द्वारा स्पन्दनों में परिवर्तित होती हुई, माउंट सान एन्तोनियो पर रखे दर्पण की ओर मोड दी गई। स्पन्दन रूप ये तरंगे वहां से प्रतिक्षिप्त होकर द्रष्टा के यहा पहुचती, किन्तु तभी जबकि घूमते हुए दर्पण की अपनी अगली स्थिति तक पहुंचने का वक्त होता। अर्थात् दर्पण की इस “’नियंत्रित गति” में ही परीक्षण का सारा रहस्य था सान एन्तोनियो तक पहुंच कर लौट आने में प्रकाश को जो समय लगता उतने में दर्पण अपने चक्कर का एक छठा हिस्सा ही पूरा कर सकता था। इन परीक्षणो के दौरान मिशेलसन अस्वस्थ था, किन्तु धैर्य पूर्वक उसने अन्त तक सब निभाया। दिमाग की एक नस फट जाने से जब 9 मई 1931 को अल्बर्ट अब्राहम मिशेलसन की मृत्यु हुई, तब उसकी आयु 79 वर्ष थी । उसके अन्तिम प्रकाशित निबन्ध का विषय भी वही था जो कि उसके प्रथम मुद्रित अनुसन्धान का था। प्रकाश की गति को मापने का एक उपाय।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—-[post_grid id=”9237″]Share this:ShareClick to share on 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