अरुंधती व्रत रखने से पराये मर्द या परायी स्त्री पाप से मुक्ति Naeem Ahmad, August 7, 2021March 10, 2023 चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को अरुंधती व्रत रखा जाता है। इस व्रत को रखने से पराये मर्द या परायी स्त्री से नाजायज संबंध रखने के पाप से मुक्ति मिलती है। अरुंधती कौन थी? अरुंधती किसकी पत्नी थी? देवी अरुन्धती कर्दम मुनि की पुत्री कपिलदेव मुनि की सहोदरा तथा महर्षि वशिष्ठ की पत्नी है। मुनि पत्नियों में इनका स्थान अति विशिष्ट है। देवी अरुन्धती को सप्तर्षि मंडल नक्षत्रों में भी स्थान प्राप्त हैं। प्राचीन ग्रंथों में इनकी बार-बार कई बार याद दिलाई गयी हैं। ये अखण्ड सौभाग्य देवियों में चर्चित और सम्मानित है। अरूंधती व्रत क्यों रखा जाता है – अरुंधती व्रत कब रखा जाता है अरुन्धती व्रत चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से आरम्भ होता है और चैत्र शुक्ला तृतीया को समाप्त होता है। इस व्रत को रखने का अधिकार मात्र स्त्रियों को है। अरून्धती व्रत के करते समय प्रार्थना की जाती है कि —“मुझे कभी किसी जन्म में वैधव्य दुःख ने भुगतना पड़े। मुझे रूप, धन तथा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति हो । मैरे पति को चिरायु, स्वस्थ और सुख-वेभव प्राप्त हों एवं यावत् चन्द्र दिवाकरो पर्यन्त मेरे सुख-सोन्दर्य कल्याण अखण्डित बने रहें”। अरुंधती व्रत प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। उस तिथि को सर, सरिता, कूप था तडाग में स्नान कर संकल्प किया जाता है। दुसरे दिन द्वितीया को धान पर कलश स्थापित कर ध्रुव, अरुन्धती और वशिष्ठ की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। फिर गणेश की पूजा होती है ओर पूर्ण विधि से अर्चना की जाती है। तीसरे दिन तृतीया को व्रत समाप्ति शिव-पार्वती पूजन के बाद यह प्रार्थना करनी चाहिए कि –“हे महाभागे ! हे अरुन्धती !! हैं वशिष्ठप्रियतमे !!! मुझे सौभाग्य दो–मुझे धन दो–पुत्र दो”। अरुंधती व्रत अरुंधती की कहानी – अरुंधती व्रत की कथा अन्त में अरुन्धती व्रत कथा सुनी पढ़ी जाती है, जो इस प्रकार है :—“पुराकाल में एक ब्राह्मण था। उसकी एक सुन्दरी कन्या थी। कन्या बाल-विधवा थी। वह वेधव्य दुःख से मुक्ति के लिए जमुना तट पर घोर तप में लीन हो गई। संयोग से एक दिन उस ओर से शिव-पार्वती निकले। पार्वती जो के उस कन्या के विषय में पूछने पर शिवजी ने बतलाया कि यह कन्या पूर्व जन्म में ब्राह्मण कुमार था। उसने एक कुलशील वाली सर्वणा कन्या से विवाह किया। किन्तु विवाह के ठीक बाद वह परदेश चला गया और उसने एक परायी स्त्री को अपने घर बैठा लिया और वह अपनी पत्नी को सदा-सदा के लिए भूछ गया। ब्राह्मण कुमार को उसी पाप के फलस्वरूप इस जन्म में कन्या रूप धारण करना पड़ा और वह वही वैधव्य दुःख भोग रहा है। “इतना कहकर शिवजी ने आगे कहा–“जो पुरुष परस्त्री से प्रीति करता है, वह जन्म-जन्मांतर स्त्री योनि में जन्म लेकर वैधव्य दुःख भोगता है तथा जो स्त्री पराये-पुरुष से प्रीति करती है, वह भी पाप के फलस्वरूप बाल-वैंधव्य दुःख भोगती हैं। अन्त में शिवजी ने पार्वती के पूछने पर कहा — जो स्त्री अरुन्धती व्रत करती हैं, उसे बाल-वैधव्य दुःख भोगना नहीं पड़ता है और बाल-वैधव्य दुख में पड़ी स्त्री अरुंधती व्रत रखकर इस दुःख से सदा के लिए मुक्ति पाती है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”6671″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख त्यौहार त्यौहारहमारे प्रमुख व्रत