अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य Naeem Ahmad, July 1, 2021February 17, 2023 अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित है जो बुंदेलखंड क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह किला चंदेल राज्य के अतंर्गत रहा है। तथा प्राचीन काल में यह क्षेत्र चेंदि जनपद का एक भाग था। इस क्षेत्र का विस्तार पश्चिम में बेतवा नदी तक पूर्व मे विंध्याचल पर्वत श्रेणी तक और उत्तर में यमुना नदी तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला था। अजयगढ़ का किला गिरि दुर्ग श्रेणी में आता है। इसका निर्माण विंध्याचल पर्वत श्रेणी में हुआ है। तथा यह भी शैव वासना का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। किले के ऊपर जाने के दो मार्ग है। एक रास्ता पूर्व दिशा की ओर से जाता है। इस मार्ग से पैदल ही किले के ऊपर चढ़ा जा सकता है। तथा दूसरा रास्ता उत्तर दिशा से है। इस रास्ते से भी पैदल ही किले पर चढ़ा जा सकता है। इस किले पर चढ़ना अत्यंत कठीन है। क्योंकि यह किला समुद्र तल से 1744 फीट और धरातल से 860 फिट ऊंचाई पर पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है। किले तक पहुंचने के लिए लगभग 500 सीढियां बनी हुई है। यही ऊंचाई इस किले को अभेद बनाती है। ऊपर से देखने पर यहां का प्राकृतिक दृश्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है। अजयगढ़ का किला किसने बनवाया और अजयगढ़ किले का इतिहास अजयगढ़ का किला कितना प्राचीन है? इस बात का उल्लेख किसी भी ग्रंथ या पुस्तकों में नहीं मिलता है। फिर भी यह अनुमान लगाया जाता है कि यह किला कालिंजर किले के समान ही प्राचीन है। अजयगढ़ किले का निर्माण कनिंघम के अनुसार ईसा की प्रथम शताब्दी में हुआ होगा। यही काल अजयगढ़ दुर्ग का अस्तित्व माना जा सकता है। किन्तु कुछ लोग अजयगढ़ फोर्ट का निर्माण आठवीं और नवीं शताब्दी का मानते है। यहां जो भी अभिलेख मिलते है, यह सभी चंदेल कालीन है। उस समय अजयगढ़ दुर्ग का प्राचीन नाम जयपुर दुर्ग एवं जयपुर था। चंदेल का मे अजयगढ़ फोर्ट एक महत्वपूर्ण फोर्ट था। तथा तदयुगीन युद्ध पद्धति के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण कराया गया था। अजयगढ़ का किला अजयगढ़ दुर्ग में मदन वर्मन, त्रैलोक्य वर्मन, भोज वर्मन एवं हम्मीर वर्मन के अभिलेख मिलते है। इन अभिलेखों में चंदेल युग का महत्वपूर्ण इतिहास छुपा हुआ है। इन से यह भी ज्ञात होता है कि इस वंश के नरेशों ने अपने यहां कायस्थों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया था। सर्वप्रथम श्रीवास्तव शब्द कायस्थ कुल के लिए यही प्रयोग किया गया है। जब कालिंजर किले पर तुर्क और मुगलों के आक्रमण होते थे। उस समय चंदेल शासक सुरक्षा की दृष्टि से अजयगढ़ किले में बस जाते थे। क्योंकि यह अजयगढ़ का अभेद किला होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित था। आईने अकबरी के लेखक अबुल फजल ने प्रशासनिक दृष्टि से महल का दर्जा दिलाया था। फोर्ट ऑफ इंडिया के लेखक के अनुसार अजयगढ़ का किला पर्यटकों के लिए प्राकृतिक दृष्टि से अति सुंदर किंतु किले पर चढ़ने के लिए पर्यटकों के लिए चुनौती पूर्ण भरा अभियान है। किले के ऊपर से अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा दिखाई देता है जैसे किसी ने सौंदर्य का खजाना प्राप्त कर लिया हो। यहा अनेक दुर्लभ जीव जंतु भी देखने को मिलते है। जिनका शिकार करने अकसर लोग यहां आया करते थे। इस किले के ऊपर हजारों की संख्या में भग्नावशेष देखने को मिलते है। जो किले कि महानता, प्राचीनता, और सुंदरता को उजागर करते है। चलिए आगे के लेख में अजयगढ़ किले के दर्शन के लिए चलते है। अजयगढ़ दुर्ग के दर्शन, अजयगढ़ किले का स्थापत्य व देखने योग्य स्थल अजयगढ़ फोर्ट में प्रवेश के दो द्वार है। उत्तरी द्वार का कोई नाम नहीं है। तथा दक्षिण पूर्व द्वार का नाम तरौनी दरवाजा है। यह दरवाजा तरौनी गांव होकर जाता है। इस द्वार के एक अभिलेख में कालिंजर द्वार के नाम से संम्बोधित किया गया है। यह द्वार उत्तर का द्वार है। उत्तरी द्वार से प्रवेश करने के बाद दितीय द्वार के पश्चिम में गंगा यमुना नामक दो जलकुंड पडते है। इन जलकुंडों का निर्माण पर्वत तराशकर किया गया है। इसी के समीप एक अभिलेख भी है। जिसमें निर्माण कर्ता का नाम लिखा है। ये जलकुंड वीर बर्मन देव की राजमहशी कल्याणी देवी द्वारा बनवाये गये थे। इस अभिलेख में किले का नाम नांदीपुर मिलता है। यहां से आगे बढ़ने पर चट्टानों पर उकेरी गई अनेक प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। इनमें गणेश, कार्तिकेय, जैन तीर्थंकरों की आसन मूर्तियां, नंदी को दुग्धपान कराती मां एवं शिशु की मूर्तियां है। यहां पर गणेश की चतुर्भुजी और अष्टभुजी मूर्तियां भी मिलती है। इस द्वार में बडे बड़े दरवाजे लगे है। तथा इसी के समीप दुर्ग के प्राचीन अभिलेख मिलते है। इनमें से एक अभिलेख में तेजल के पुत्र रावत वीर द्वारा अकाल के समय एक बावली के निर्माण का उल्लेख है। कुछ दूर आगे बढ़ने पर किले के मध्यभाग में एक बहुत बड़ा तालाब है। जो अजयपाल तालाब के नाम से जाना जाता है। इस तालाब के किनारे एक जैन मंदिर है। यह ध्वस्त अवस्था में है। इसका ऊपरी भाग गिर गया है। यहां अनेक जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां है। सरोवर के दूसरी ओर अजयपाल का मंदिर है। इस मंदिर में शिव, नंदी, पार्वती, गणेश, पंचानन शिव और अजयपाल की मूर्तियां है। यह मूर्ति वास्तव में विष्णु मूर्ति है। अजयगढ़ का किला अजयगढ़ किले के दक्षिणी छोर पर चार आकर्षक मंदिर है। इन मंदिरों को स्थानीय लोग रंग महल और चंदेली महल के नाम से पुकारते है। अब य ध्वस्त हो गये है। यहां उपलब्ध मूर्तियां खजुराहों की अनुकृति है। इन मंदिरों में दो मंदिर विष्णु मंदिर है। एक शिव मंदिर है और एक राजा परिमल की बैठक है। ये सभी स्थल बाहरवीं शताब्दी के है। तथा इनमें उपलब्ध मूर्तियां अत्यंत सुंदर और अलंकृत है। जितने भी मंदिर यहां मिलते है। उनमें सबसे बड़ा मंदिर 60 फुट लम्बा और 40 फुट चौड़ा है। इसका प्रवेशद्वार पश्चिम की ओर से है। तथा मंदिर का ऊपरी भाग गीर गया है। इस स्थल पर गंगा यमुना की मूर्तियां आराधिका की मूर्तियां एवं नृत्य सदा वाद्य यन्त्र बजाते हुए पूरूषो के दृश्य महत्वपूर्ण है। इसी मंदिर समूह का दूसरा मंदिर भी प्रथम मंदिर जैसा है। इसकी लम्बाई 54 फुट तथा चौडाई 36 फुट है। इसी के समीप छोटा सा मंदिर और है। जो परिमल की बैठक के नाम से प्रसिद्ध हैं। अजयगढ़ फोर्ट के दक्षिण पूर्व में तरौनी दरवाजा है। इस दरवाजे का संबंध तरौनी गांव से है। इसी द्वार के निकट एक पहाड़ी पर आष्टशक्ति मूर्तियों के अंकन है। इनमें सात आसन मुद्रा में है। और एक स्नातक मुद्रा मे है। यही पर एक अभिलेख भी है। यह अभिलेख 6 फुट 10 इंच लंबा और 2 फुट तीन इंच चौडा है। इस अभिलेख में मंदिर निर्माणकर्ता भोज बर्मन देव के भंडारपति सुभट का उल्लेख हैं। इस अभिलेख में कायस्थ वंश का इतिहास मिलता है। जो चंदेल वंश के अधीन महत्वपूर्ण पदों पर प्रतिष्ठित थे। इसी अभिलेख के समीप अष्टशक्तियों क बगल में सुरभि शिव आदि की मूर्तियों का उल्लेख है। जिनका निर्माण सुदृढ देव की पत्नी देवल देवी ने कराया था। दायी ओर के अभिलेख में पार्वती, वृषभ, कृष्ण, चामुण्डा, कालिका, ईश्वर एवं पार्वती की मूर्तियों के निर्माण का उल्लेख है। यही पर जैन तीर्थंकरों की अनेक मूर्तियां मिलती है। इसी के समीप एक चतुर्भुज देवी की मूर्ति मिलती है। इसकी गोद में एक बच्चा है। तथा इसके दाहिनी ओर पांच सुअरों की मूर्तियां है तथा इसके बायीं ओर आठ सूअर है। वह सृष्टि की मूर्ति है। दुर्ग के उत्तरी पश्चिमी कोने पर भूतेश्वर नामक स्थान है। यहां पर जाने के लिए अजयपाल मंदिर से रास्ता जाता है। यहां पर गुफा के अंदर शिवलिंग है। इसके ऊपर दो कुंड है। यहा पर अन्नतशेषशारी विष्णु की मूर्ति है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—– [post_grid id=”8089″] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत 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