अक्टूबर क्रान्ति कब हुई थी – अक्टूबर क्रान्ति के कारण और परिणाम Naeem Ahmad, May 12, 2022March 24, 2024 प्रथम विश्व-युद्ध का जन्म ब्रिटिश और जर्मन पूंजी के बीच के अंतर्विरोध के गर्भ से हुआ था। रूस मित्र राष्ट्रों के साथ था पर उसे युद्ध से कोई लाभ नही हुआ। पूरे रूस में मजदूरों के आदोलन जोर पकड़ते जा रहे थे जार निकोलस-द्वितीय की दूमा (संसद) जनता की समस्याएं हल करने मे असफल सिद्ध हो चुकी थी। देश की दूर्दशापूर्ण स्थिति को सामाजिक-जनवादी मजदूर पार्टी के बोल्शेविकों ने जन आंदोलनों का नेतृत्व अपने हाथ मे से लिया इन बोल्शेविको के नेता थे-लेनिन। फरवरी-क्रांति ने जार को गद्दी छोडने पर मजबूर कर दिया पर सत्ता मे अस्थाई सरकार के रूप में केरेस्की जैसे पूंजीपतियो के प्रतिनिधि आ गये। बोल्शेविको ने अक्टूबर में अस्थायी सरकार के खिलाफ बगावत करके सत्ता अपने हाथ में ली और जर्मनी व मित्र राष्ट्रों के हस्तक्षेप के बावजूद नई क्रांति की दृढ़ता पूर्वक रक्षा की। इसी क्रांति को अक्टूबर क्रान्ति या बोल्शेविक क्रांति कहते हैं। अपने इस लेख में हम इसी अक्टूबर क्रान्ति का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:— अक्टूबर क्रान्ति कब हुई थी? अक्टूबर क्रान्ति किसे कहते हैं? अक्टूबर क्रान्ति की प्रमुख घटनाएं? अक्टूबर क्रान्ति दिवस कब मनाया जाता है? अक्टूबर क्रान्ति क्या थी? अक्टूबर क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? अक्टूबर क्रान्ति का नेता कौन था? रूस में अक्टूबर क्रान्ति क्यों हुई इसके कारण? बोल्शेविक क्रांति का नेतृत्व किसने किया? रूस में अक्टूबर 1917 में बोल्शेविक की सफलता के क्या कारण थे? अक्टूबर क्रान्ति के बाद रूस कौनसा देश बना? बोल्शेविक क्रांति की प्रकृति? रूस की 1917 की अक्टूबर क्रान्ति का क्या परिणाम हुआ? अक्टूबर क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? अक्टूबर क्रान्ति के कारण20वीं शताब्दी की शुरुआत में पूंजीवाद दुनिया के सामने दो रूपों में पेश हुआ। एक और पूंजीवाद व्यवितगत आजादी की वकालत करता था और सामंतवाद के मुकाबले काफी प्रगतिशील बातों के साथ सामने आता था। दूसरी ओर उसकी व्यवितगत आजादी मज़दूरों की आर्थिक आजादी की मांग के साथ अपना तालमेल नही बैठा पाती थी। मजदूर अपना श्रम बेचने के लिए स्वतंत्र थे और पूंजीवाद उस श्रम के अपने मुनाफे के हक में मनमाने दाम लगान के लिए स्वतंत्र था। इस वर्गीय अतंविरोध ने सारी दुनिया में समाजवादी साम्यवादी आंदोलन को जन्म दिया। 19वीं शताब्दी का पेरिस कम्यून इसी आंदोलन की एक व्यावहारिक अभिव्यित था। कम्यून के कुचले जाने के बाद पहली सफल साम्यवादी क्रांति की जिम्मेदारी 20वी शताब्दी को उठानी थी।काली हवेली कालपी – क्रांतिकारी मीर कादिर की हवेलीप्रथम विश्व-युद्ध के रूप में पूजीवाद ने अपना और भी घिनौना चेहरा दिखाया। कहने के लिए इस बडी लडाई की शरुआत एक सर्बियाई छात्र द्वारा आस्ट्रिया राजकुमार फर्डीनाड की हत्या कर देने से हुई थी, पर यह घटना तो केवल बहाना मात्र थी, दरअसल दुनिया की बड़ी बड़ी पूंजीवादी ताकत अपना मुनाफा बढ़ाने और बाजार तलाश करने के लिए दुनिया का नये सिरे से बंटवारा करना चाहती थी। युद्ध का प्रमुख कारण था जर्मन और ब्रिटिश पूंजी का अंतविरोध। एक तरफ मित्र राष्ट थे। इस बेडे मे थे रूस, ब्रिटेन, और फ्रांस। दूसरी तरफ जर्मन गठजोड था, जिसमें जर्मनी के अलावा आस्ट्रिया और हंगरी थे। मुनाफा कमाने की प्रवृति से अनुप्राणित इस युद्ध में 95 लाख लोग या तो मारे गये या बुरी तरह घायल होकर अधमरे हो गये, दो करोड लोग घायल हो गए औरर 35 लाख लोग हमेशा के लिए अपंग हो गये।मकर संक्रांति का महत्व – मकर संक्रांति क्यों मनाते हैंइस यद्ध में 38 देश शामिल हुए। इसके फलस्वरूप जर्मनी तथा ब्रिटेन की आमदनी क्रमश छः और पांच गुना बढ़ गई। अमेरीका मित्र राष्ट्रों के साथ बाद में आकर जुडा, पर उसने भी बेतहाशा और शायद सबसे ज्यादा मुनाफा कमाया। रूस को क्या मिला- तबाही और सिर्फ तबाही” जार निकोलस द्वितीय द्वारा युद्ध में अंधाधुंध रूसी जवानों को झोंका गया। मोर्चे पर तैनात हर रूसी सैनिक के दिमाग में यह सवाल बार-बार उठता कि आखिर वह किसकी खातिर यह युद्ध लड रहा है?अक्टूबर क्रान्ति की शुरुआतसन् 1911 में रूस के एक लाख से ज्यादा मजदूरों ने हड़ताल में हिस्सा लेकर अपने बदले हुए तेवर जतला दिये थे। सन् 1912 में दस लाख से भी ज्यादा मजदूरों ने हड़ताल की। सन् 1914 के पहले छः महीनों मे 13 लाख 37 हजार मजदूर हडताल पर थे। रूसी सर्वहारा की ताकत साफ तौर पर बता रही थी कि वे जार ओर जारीना के कुशासन के तहत और अधिक दिनों तक घुटने पिसने के लिए तैयार नही थे। मजदूर ग्रामीण गरीब और मझोले किसान रूस की कुल आबादी का एक बहुत बडा हिस्सा थे। जनता में व्यापक रूप से असंतोष फैला हुआ था। जार और जारीना कुशासन की हालत यह थी कि वे एक ज्योतिषी और तांत्रिक ग्रिगारी यफिमाविच रास्पूतिन के हाथ की कटपुतली मात्र बनकर रह गय थे। रास्पूतिन ने जारीना और दरबार पर अपना असर जमा लिया था। युद्ध की वजह से फौजी खर्चा बढ़ता जा रहा था। मंहगाई छलांग मार-मारकर आम जनता की कमर तोड रही थी। विदेशी पूंजी पर निभरता बढ़ रही थी। अगस्त 1914 से फरवरी, 1917 के बीच 30 महीनों में मंत्री परिषद के चार अध्यक्ष छः गृहमंत्री और चार युद्ध मंत्री बदले गए। राजनैतिक अस्थिरता और अनिश्चितता की इससे बडी मिसाल और क्या हो सकती है।अक्टूबर क्रान्तिदूमा (Duma) यानी रूसी संसद में केडेट (सर्वधनिक -जनवादी पार्टी) का लक्ष्य राजतंत्र और संसद को जोडकर रखना था।समाजवादी -क्रांतिकारी पार्टी कृषि सुधारों को लागु करने पर जोर दे रही थी। प्रगतिवादी पार्टी बड़ी पूजी के फलन फूलन और इजारदारियों को मजबूत करने की पक्षधर थी। त्रुदाविक पार्टी ग्रामीण पूंजीपतियों की पार्टी थी। पर कूल मिला कर ये सभी दल रामानाव वंश के जारों को अपने रास्ते की बाधा नही समझते थे। हां रूसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी का ज़ारशाही से सख्त घृणा थी। इस पार्टी का जन्म 1898 में हुआ था। यह पार्टी व्लादीमिर इलिच उल्यानाव लेनिन द्वारा स्थापित श्रमिक मुक्ति संघर्ष से निकली थी। लेनिन का मानना था कि जारशाही और पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष करने के लिए एक एकल और केन्द्रीकृत जुझारू पार्टी की जरूरत है, जो भाषा और जाति के भेदभाव के बिना पूरे सर्वहारा वर्ग को अपने पीछे ला सके।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधसामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी में दो गुट थे। बाल्शविक (बहुमत वाले) और मशोविक (अल्पमत वाले)। सन् 1903 में पार्टी दी दूसरी कांग्रेस सपन्न हुई। लेनिन के नेतृत्व में बाल्शविकों ने अपना फौरी कार्यक्रम जारशाही यानि एकतंत्र का खात्मा और अधिकतम कार्यक्रम समाजवादी क्रांति रखा। बल्शविकों ने जनता को जगाकर क्रांतिकारी आंदोलन में खीचने की मुहिम शुरू की। देश के कोने-कोने में बाल्शविकों ने क्रांति का संदेश फैलाया। लोगों को बताया कि उनकी बदहाली की असली वजह क्या है।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहास10 फरवरी 1917 को पेत्राग्राद में मजदूरों के प्रदर्शन शुरू हो गये। 14 फरवरी को 90000 मजदूर ने काम बंद कर दिया। पुराने पचांग के अनुसार 23 फरवरी को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिलाओ के प्रदर्शन के समर्थन में सवा लाख मजदूरों ने हडताल कर दी। बाल्शविकों ने इस अवसर पर अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता का परिचय देकर जनता के सच्चे रहनुमा बनने का अधिकार प्राप्त कर लिया। 24 फरवरी तक हड़तालियों की संख्या बढ़कर सवा दो लाख हो गई और 25 फरवरी को हुई राजनीतिक हडताल ने नगर की सभी आर्थिक गतिविधिया ठप्प कर दी। जार ने कमांडर जनरल खाबालोव को राजधानी में हो रही गड़बड़ियों को खत्म करने और जलसे-जलूसों पर पाबंदी लगाने का हुक्म दिया। जनता को कुचलने गयी टुकडियों से मजदूर भिड़ गये। घमासान युद्ध छिड़ गया। 27 फरवरी को 10000 सैनिक विद्रोही मजदूरों से मिल गये। अगले दिन तक बागी फौजियों की संख्या सवा लाख हो चुकी थी। मजदूरों ओर सैनिकों ने मिलकर पत्राग्राद सोवियत बना ली। सोवियते मजदूरों, किसानो और सैनिकों के निर्वाचित राजनैतिक संगठन थी। इनका जन्म प्रथम रूसी क्रांति (1905 1907) के दौरान हुआ था। फरवरी मे हुई क्रांतिकारी घटनाओं का पूंजीपति वर्ग के प्रतिनिधियों ने फायदा उठाया। जारशाही की दूमा में बैठने वाले इन प्रतिनिधियों ने चालाकी से खुद को दूमा की अंतरिम समिति स्थापित कर दिया ताकि वे युद्ध के क्रान्तिकारियों के गले उतार सके। 2 मार्च को इसी अंतरिम समिति के कहने पर जार ने अपन भाई के पक्ष में गद्दी छोड़ दी, परंतु जार के भाई ने घबराकर अंतरिम समिति की अस्थायी सरकार को सत्ता सौंप दी।होवरक्राफ्ट क्या है इसका आविष्कार कब और कैसे हुआइस अस्थायी सरकार को पूंजीवादी देशों ने हाथों-हाथ लिया और मान लिया कि युरोप की तरह रूस भी उदारतावादी पूंजी वादी जनतत्रों की राह पर चल पडा है। पर इस सरकार के प्रमुख कारकूनों का ध्यान से अध्ययन करने पर ही इसका पतनशील चरित्र साफ हो जाता था! पूंजीपति गुचकाव इस अस्थायी सरकार का सैन्य और नौसैनिक मंत्री था। इस ने सन् 1905 से सन् 1907 के बीच हुई रूसी क्रांति की पराजय का स्वागत किया था। प्रिंस ल्वोव शासनाध्यक्ष था। वह हर तरह के क्रांतिकारी आंदोलन को कुचल देने का पक्षधर था। व्यापार ओर उद्योग मंत्री कोनोवलोव अपने मिल-मालिक चरित्र के अनुरूप ही मजदूरों के खिलाफ के रवैये की वकालत करता था। वित्तमंत्री तेरेश्चको रूस को लगातार युद्ध में झोके रखने के पक्ष मे था। जाहिरा तौर पर यह अस्थायी सरकार उन क्रांतिकारी ताकतों को संतुष्ट नही कर सकती थी जो फरवरी-क्रांति के दौरान पैदा हुईं थी। वैसे भी अस्थायी सरकार को सत्ता हाथ मे लेने का मौका मंशिविको ने दिया था। बाल्शेविक इस नीति के पक्ष में कतई नही थे।वियतनाम की क्रांति कब हुई थी – वियतनाम क्रांति के कारण और परिणामइस तरह से अब तक रूस में दो सरकार बन चुकी थी। एक तरफ अस्थायी सरकार थी तो दूसरी तरफ पत्राग्राद सोवियत थी। 3 अप्रैल 1917 का लेनिन निर्वासित से लौटे। पत्रोग्राद में उनका जोरदार स्वागत किया गया। जनता के दबाव ने अस्थायी सरकार के गठन में कई बार परिवर्तन किये। इन अस्थायी सरकार में से कोई भी सरकार जन-समस्याओं को तो हल नही कर सकी लेकिन वह जनता के आंदालनों का दमन करने में भी कतई पीछे नही रही। 4 जुलाई 1917 को पाच लाख शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर अस्थायी सरकार की फौजा ने गोलियां चलायी जिससे 50 लोग मारे गये। बोल्शविकों की हत्याएं भी की गयी। लेनिन की गिरफ्तारी की योजनाएं बनने लगी। लेनिन कों फिर विदेश चले जाना पडा। पार्टी साहित्य छापने वाले प्रेसों पर छापें पडने लगे। बोल्शेविक पार्टी और उसके नेता भूमिगत हो गये। उसका मुख-पत्र प्राव्दा रावेची, ई सल्दात, रावोची पूत इत्यादि के नामो से प्रकाशित होता रहा।इंग्लैंड की क्रांति कब हुई थी – इंग्लैंड की क्रांति के कारण और परिणामबोल्शेविकों ने 26 जलाई से 3 अगस्त तक अपनी छठी कांग्रेस भूमिगत रूप से की। इसमें हथियारबंद बगावत की तैयारी करने और मौके का इन्तजार करने की नीति तय की गयी। उधर अस्यायी सरकार ने नये प्रधानमंत्री करस्की ने तय किया कि बोल्शेविको को काबू में करन के लिए सैनिक तानाशाही लागू कर देना ठीक होगा। प्रधान सेनापति कार्नोलाव भी इसी पक्ष में था। पर वह खुद को तानाशाह घोषित करना चाहता था। 21 और 31 अगस्त 1917 के बीच जनरल कार्नोलाव की फौैजी टुकड़ियां पत्राग्राद में लामबंदी करने लगी। कार्नोलाव को बड़े पूंजीपतियों और मित्र राष्ट्रों का समर्थन हासिल था। लेकिन कार्नालाव का यह विद्रोह पनपने से पहले ही कुचल दिया गया। इससे लोगों की समझ में आ गया कि रूसी जनता के सच्चे प्रतिनिधि करस्वी या कार्नालाव के बजाय बोल्शेविक ही हैं।क्यूबा की क्रांति कब हुई थी – क्यूबा की क्रांति के नेता कौन थेसन् 1917 के पतझड़ में लेनिन फिनलैंड से वेश बदलकर पत्रोग्राद पहुंचे। उन्हे 1/32 सर्दोबाल्स्काया रोड पर बने एक मकान में गुप्त रूप से ठहराया गया। यही उन्होंने हथियारबंद विद्रोह की योजना बनायी। विद्राही दस्तों का मुख्यालय बनाना, तारघरों, टेलीफोन केंद्रों और रेलवे स्टेशनों पर कब्जा कर लेना सेना के जनरलों व अस्थायी सरकार के सदस्यों को गिरफ्तार कर लेना आदि बात इस योजना का मुख्य अंग थी। बाल्शेविक की पार्टी ने इस योजना को मंजूरी दे दी।अमेरिकी क्रांति कब हुई थी – अमेरिकी क्रांति के कारण एवं परिणामपत्राग्राद गैरीसन के क्रांतिकारी सैनिकों बाल्टिक जहाजी बेड़े के नौसैनिकों व रेड गार्डो की मिली-जुली फौजों ने क्रांतिकारी सैनिक केन्द्र के नेतृत्व में तैयारी कर ली। इस समिति में बुवनोव, दझरझीस्की, स्वदलव, स्तालिन आर उरीत्सकी जैसे लेनिन के विश्वस्त शिष्य और साथी थे। पत्राग्राद में अक्टूबर 1917 में हुए इस सशस्त्र विद्रोह में 40000 क्रांतिकारियों ने हथियार उठाये।फ्रांसीसी क्रांति कब हुई थी – फ्रांसीसी क्रांति के कारण और परिणामदूसरी तरफ युद्ध से परेशान सैनिक मोर्चा छोडकर भाग रहे थे। मजदूरों ने कारखानों की बागडोर अपने हाथों में लेनी शरू कर दी। किसाना ने भी जमींदारों का खदेड़ना और लतियाना शुरू कर दिया था। ऐसे में करस्की ने पहला वार किया। 24 अक्टूबर को सरकार ने क्रांतिकारियों के मुख पत्र रावीची पूत के प्रेस पर छापा मारा।पर इसी दिन क्रांति के मुख्यालय स्माल्नी इस्टीट्यूट में सारी तैयारी पूरी हो चूकी थी। 24-25 अक्तूबर की रात को एक-एक करके केन्द्रीय डाकघर निकोलायवस्की रेलवे स्टेशन बिजली घर इत्यादि पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया। अगली सुबह बैंक वारसा रेलवे स्टेशन और टेलीफोन एक्सचेंज उनके हाथ में आ गये। क्रांतिकारियों का समर्थन करने वाला यद्धपोत अर्वारा नवा नदी में आ गया। अब शिशिर प्रासाद (केरेस्की का मुख्यालय) सीधे उसकी तोपों की मार के अंदर था। 25 अक्तूबर को क्रांतिकारी सैनिक समिति ने रूस के नागरिकों के नाम अपील प्रसारित की। 26 अक्टूबर की रात 2:10 बजे अस्थायी सरकार के प्रतिनिधियों को गिरफ्तार कर लिया गया। सोवियतो की दूसरी अखिल रूसी कांग्रेस हुई जिसने भूमि और शांति संबंधी विज्ञप्तियां निकाली। इनमें युद्ध खत्म करने और भूमि पर जमींदारों का मालिकाना खत्म करने की घोषणाएं की गई थी। इस कांग्रेस में दुनिया में मजदूर किसानो की पहली सरकार जन कमिसार परिषद गठित हुई। लेनिन सरकार के प्रधान चुने गये। उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। शासकों से वोट डालने के अधिकार छीन लिया गया। 31 दिसंबर 1917 को फिनलैंड को आजाद घोषित कर दिया गया।बीजापुर का युद्ध जयसिंह और आदिलशाह के मध्यदूसरी तरफ क्रांतिकारी सरकार के खिलाफ साजिश हो रही थी। सत्ता से हटाये गये पूंजीपतियों औरर सामंतों ने मातृभूमि तथा क्रांति उद्धारक समिति जैसे आकर्षक नामों से बोल्शविको के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी। पात्राग्राद से आठ किमी दूर केरस्की इस बातका इंतजार कर रहा था कि कब उनकी फौजे पत्राग्राद पर कब्जा करे और वे अपने सफेद घोड़े पर सवार होकर शिशिर प्रासाद में जाये पर बोल्शेविकों ने जनरल क्रस्नाव और उसके स्टाफ को गिरफ्तार कर लिया। कई घंटों की लडाई के बाद क्रांतिकारी दस्तों की जीत हुई । करस्की फिर भग निकला।पुरंदर का युद्ध और पुरंदर की संधि कब और किसके बीच हुईअब बारी आयी मित्र राष्ट्रों के हस्तक्षेप करने की। ब्रिटेन और फ्रांस ने 10 दिसबर 1917 को सैनिक कार्यवाही के क्षेत्रों में बटवारा करके जल्दी से जल्दी बोल्शेविकों को उखाड़ फेकने की साजिश की। अमेरीका ने तमाम क्रांति विरोधी ताकतों की भरपूर आर्थिक मदद की। 25 अक्टूबर से 2 नवंबर तक घनघोर संघर्ष चलाकर बोल्शेविकों ने मास्को को जीत लिया था। बाल्टिक राज्यों के आधे से अधिक भू भाग पर सोवियतो की सत्ता कायम हो गयी थी। देश के पुनर्निर्माण के लिए शांति की जरूरत थी। इसलिए थोडी कडी और अपमानजनक शर्तो पर भी 3 मार्च, 1918 को ब्रेस्ट लितोब्स्क में सोवियत प्रतिनिधि मंडल ने जर्मनी के साथ संधि कर ली। जर्मनी ने शांति समझौता तोडकर पूर्वी मोर्चे पर हमला बोल दिया। पत्राग्राद पूरी तरह घरेबंदी में था इसलिए लेनिन के नेतृत्व में सोवियत सरकार मास्को चली गयी।राणा सांगा और बाबर का युद्ध – खानवा का युद्धपूंजीवादी देशों में अकेले ब्रिटेन ने सोवियत विरोधी कारवाइयो पर 8 करोड 97 लाख पौंड खर्च किये। क्रांति के लाल रंग के खिलाफ प्रतिक्रांति के सफेद झंडे तले दक्षिण और पूर्वी इलाकों में सेनाएं जमा होने लगी। 23 फरवरी को इस गृह युद्ध में लडने के लिए लाल सेना का गठन किया गया। सिर्फ पत्राग्राद में ही 40000 मजदूरों ने सेना में अपने को नामजद करवाया। लाल सेना के पास अच्छे और काफी मात्रा में हथियार नही थे।तिरला का युद्ध (1728) तिरला की लड़ाईहर छ: सैनिकों के बीच एक राइफल थी। 9 मार्च तक 2000 ब्रिटिश, 65000 जापानी और 12000 अमेरीकी सैनिक रूस के गृह युद्ध में हस्तक्षेप के लिए ब्लादीवास्टक पहुंच चुके थे चकास्लोवक युद्ध बंदीयों की फौज खड़ी कर दी गई। सन् 1918 की गर्मीयों में मजदूर किसानों का यह नवनिर्मित गणराज्य सभी ओर से घेरे में आ गया। अगस्त में लेनिन के ऊपर कातिलाना हमला हुआ। वह बुरी तरह घायल हो गया। उसी दिन पत्राग्राद में एक आतंकवादी ने पार्टी के नेता उरीतस्की की हत्या कर दी। इस तरह प्रतिक्रांतिकारियों ने अंदर और बाहर दोनों तरफ से क्रांति के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी।ट्रॉय का युद्ध कब हुआ था – ट्रॉय युद्ध के कारण और परिणामविदेशी आक्रमण को देखते ही क्रांति के कई पूर्व विरोधी देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर उसके पक्ष में आ गए। ज़ारशाही के कई जनरल ने गृह युद्ध में सोवियत की और से जमकर भाग लिया। तमाम तरह की दिक्कतों, भूख, तबाही और कमी के बावजूद सोवियत सेनाएं युद्ध लड़ती रही। और इस तरह सन् 1918 का साल खत्म होने को आ गया।मैराथन का युद्ध कब हुआ था – मैराथन की लड़ाई के कारण और परिणाम11 नवंबर 1918 को विश्व युद्ध खत्म हो गया। जर्मनी और मित्र राष्ट्रों के बीच सन्धि हो गई। अब ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने युद्धपोतों के जरिए क्रांति में हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया। ब्रिटिश फौज अपने टैंक लेकर आ गई। सोवियत सरकार ने सन् 1919 में अपनी राजनीतिक और कूटनीतिक कुशलता साबित की। लाल सैनिक मार्च से एक कदम भी नहीं डिगें। सन् 1920 में आखिर हारकर मित्र राष्ट्रों को अपनी सेनाएं वापस बुलानी पड़ी। सन् 1921 के आते आते गृह युद्ध खत्म हो गया। अब बारी आयी गृह युद्ध से खत्म हुए देश के पुनर्निर्माण की। सोवियत जनता ने कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में यह बेहद गंभीर और जरूरी काम भी सफलतापूर्वक कर दिखाया। आज सोवियत संघ विश्व के सबसे बड़े दो औद्योगिक देशों में से एक हैं।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—-[post_grid id=”8940″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like 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