अकाल तख्त का इतिहास – अकाल तख्त की स्थापना कब, किसने करवाई Naeem Ahmad, May 22, 2019March 11, 2023 यह ऐतिहासिक तथा पवित्र पांच मंजिलों वाली भव्य इमारत श्री हरमंदिर साहिब की दर्शनी ड्योढ़ी के बिल्कुल सामने स्थित है। श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर सिक्खों के पांच पवित्र तख्त साहिब मे से प्रथम स्थान रखता है। अपने इस लेख में हम अकाल तख्त की स्थापना किसने की, अकाल तख्त का निर्माण किसने किया, अकाल तख्त का इतिहास, अकाल तख्त हिस्ट्री इन हिंदी आदि सवालों के जवाब जानेंगे।अकाल तख्त की स्थापना – अकाल तख्त का इतिहासआषाढ़ की संक्रांति सं 1663 वि. बुधवार को कोठा साहिब के सम्मुख सिख संगत के भारी जमावडे के समय बाबा बुड्ढढा जी ने गुरु हरगोबिन्द साहिब को पगड़ी बंधवा के दस्तारबंदी की रस्म सम्पन्न की थी।गुरु हरगोबिन्द साहिब ने कोठा साहिब के बांई ओर अपना सच्चा तख्त राज सिंहासन तैयार कराने के लिए आषाढ वदी पंचमी , रविवार को श्री हरमंदिर साहिब में अरदास करके, तख्त की नीवं अपने पवित्र कर कमलों से रखी थी। बाबा बुढ्डा जी तथा भाई गुरदास की ओर से इस तख्त के निर्माण का कार्य कराया गया था।यह तख्त 14 फुट लम्बा, 8 फुट चौड़ा, 7 फुट ऊंचा बनाया गया। यह अकाल पुरूष की आज्ञा के अनुसार निर्मित किया गया था। इसलिए इस तख्त का नाम अकाल बुंगा रखा गया।श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर के सुंदर दृश्यआषाढ़ सुदी दशमी संवत 1663 रविवार वाले दिन श्री तख्त साहिब के ऊपर राज सिंहासन सुशोभित किया गया था। गुरू हरगोविंद साहिब ने सुंदर दस्तार के ऊपर जिहगा तथा कलगी सजाई, बाये हाथ में सुंदर बाज, कमर पर ढाल सजाई हुई थी। बाबा बुढ्डा जी ने गुरू साहिब को दो श्री साहिब तलवारें एक दायें तथा दूसरी बायें तरफ पहना दी। तीरों का भत्था कमर के साथ बांध दिया। गुरू साहिब जी ने एक तीर अपने दायें हाथ में पकड़ कर घुमाया।श्री अकाल तख्त की स्थापना मानव मात्र के कल्याण के लिए तथा दुष्टों के विनाश के लिए की गई। श्री अकाल तख्त साहिब की समस्त मर्यादा गुरू साहिब ने स्वंय निश्चित की थी। श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश श्री अकाल तख्त साहिब में कराया गया तथा भाई गुरदास जी को सारे प्रबंध सौंपे गये।तत्कालीन सम्राट जहांगीर की आज्ञा थी कि प्रजा का कोई भी व्यक्ति दो फीट ऊंचा चबूतरा नहीं बना सकता, नगाड़ा नहीं बजा सकता, घोडे की सवारी नहीं कर सकता, सेना नहीं रख सकता, परंतु गुरू जी ने सम्राट की इस गुलामी को ललकारा और अकाल तख्त का निर्माण कराया और 12 फुट ऊंचा सिंहासन बनाया जहां से आज भी पूरे खालसा पंथ को यही से आदेश दिया जाता है।प्रति वर्ष दो बार दीवाली तथा वैशाखी के अवसरों पर यहां सिख संगतो का भारी जमावड़ा होता है। श्री तख्त साहिब पर भारी दीवान सम्मेलन आयोजित होता है। ढाडी दरबार सुसज्जित होते है। भाई सत्ता तथा बलवण्ड की वार आसा दी वार तथा धर्मयुद्ध व गाथाएं तथा वारें सुनने का अवसर मिलता है। सिख संगतों को बढ़िया शस्त्र बनाने, शस्त्रधारी सजने तथा घोड़े व शस्त्र गुरू दरबार से भेंट करने की आज्ञा दी जाती है। इस अवसर पर हजूरी ढाडी अब्दुल्ल तथा नत्थामल ने वीर रस से युक्त नौवारों का गायन करके एकत्र जनसमुदायों में वीर रस का निष्पन्न किया था।सिख नर नारी उन्हे सच्चा पातशाह कहकर उनका आदर करने लगे। श्री हरमंदिर साहिब में रात दिन दैवी शब्द कीर्तन, नाम स्मरण , सेवा, भक्ति, श्रुति व शबद का सम्मेलन, आध्यात्मिकता के विकास पर बल दिया जाने लगा। यहा तक कि श्री हरगोविंद साहिब पीरी का भव्य केंद्र बन गया था।सन् 1619 में गुरू साहिब ने श्री अकाल तख्त साहिब के पीछे की ओर एक कुआँ बनवाकर उसका नाम अकालसर रखा। सन् 1634 तक गुरू हरगोविंद साहिब स्वयं श्री तख्त साहिब तथा हरमंदिर साहिब में दरबार सुसज्जित करते रहे।सन् 1699 से 1737 तक भाई मनी सिहं जी प्रबंध करते रहे। 10अप्रैल सन 1762 में अहमदशाह अब्दाली के सेनापति कलंदर खां ने श्री तख्त साहिब के स्थान पर रक्तपात किया, परंतु दीवाली सन् 1762 में सरबत खालसा का आयोजन हुआ और कलंदर खां को कत्ल कर दिया गया। 1764 को अहमदशाह अब्दाली ने भारी आक्रमण कर दिया। इस समय जत्थेदार गुरबख्श सिंह, भाई रामसिंह ग्रंथी के साथ 30 शूरवीर शहीद हुए।श्री हरमंदिर साहिब को बारूद के साथ उड़ा दिया गया। बाबा गुरबख्श सिंह की पुण्य स्मृति गुरूद्वारा श्री अकाल तख्त के पिछे सुशोभित है। सन् 1774 में जत्थेदार जस्सा सिंह आहलूवालिया की ओर से श्री अकाल तख्त साहिब के ऊपर एक मंजिल का निर्माण कार्य कराया गया। 9 मार्च 1783 को बघेल सिंह तथा सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने दिल्ली पर आक्रमण करके लाल किले के ऊपर अपना ध्वज फहराया। और सरदार जस्सा सिंह ने बादशाह होने की घोषणा भी कर दी।सन् 1803 को महाराज रणजीतसिंह की ओर से अपने गुरू दरबार की शोभा को बढ़ाने के लिए श्री अकाल तख्त साहिब को चार मंजिलों का बना दिया गया। श्री तख्त साहिब भोरे समेत पांच मंजिलों वाला तैयार हो गया। खालसा राज को सिक्का बनाकर यहां अरदास करके चालू कर दिया गया। गुरू का लंगर भी लगाया गया। श्री अकाल तख्त साहिब साहिब सरबत खालसा एकत्र होकर पंथ सम्बोधित विचार विमर्श, निर्णय तथा मत पास किये जाते है। पंथ के हुक्मनामे जारी किये जाते है। भले ही और भी नगरो में तख्त स्थापित थे, परंतु सभी तख्तों के जत्थेदार, यहा पर आते है तथा पंथ सम्बंधित सभी फैसले एखत्र होकर यही पर किये जाते है।20 अक्टूबर सन् 1920 को श्री तख्त साहिब के जातीय पुजारियों को यहां से निष्कासित किया गया। 15 नवंबर 1920 को यहां पंथ की ओर से शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी तथा 20 दिसंबर 1920 को शिरोमणि अकाली दल स्थापित करकेपंथक सरगर्मियां आरम्भ होने लगी।श्री तख्त साहिब के ऊपर करोड़ों रूपये का सोना और करोडों रूपये का संगमरमर लगा हुआ है। इस काम के लिए राजस्थान के 60 माहिर कारीगरों ने चित्रकारी और सरदार हरभजन सिंह नक्काश ने अपने दो लड़को के साथ नक्काशी का काम किया।प्रति महीने संक्रांति, अमावस्या, पंचमी, पूर्णिमा तथा गुरूपर्वो के अवसर पर ढाडी दरबार लगते है। जिसमें गुरू इतिहास का गायन किया जाता है। सप्ताह के प्रत्येक रविवार तथा बुधवार को अमृत संचार होता है। तख्त साहिब में श्री गुरू नानक देव की का प्रकाश पर्व, श्री हरगोविंद सिंह जी तख्त नशीनी पर्व, श्री गुरू रामदास जी का प्रकाश पर्व, श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश पर्व, श्री गुरू गोविंद जी का प्रकाश पर्व बडी धूम धाम से मनाया जाता हैं।भारत के प्रमुख गुरूद्वारों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’6818′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल ऐतिहासिक 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